Darmiyana - 12 in Hindi Moral Stories by Subhash Akhil books and stories PDF | दरमियाना - 12

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दरमियाना - 12

दरमियाना

भाग - १२

मगर वह ज्यादा देर नहीं सो सका था। कुछ ही देर में हड़बड़ा कर उसकी नींद टूट गई । मैंने देखा -– उसके चेहरे पर कुछ अनमनापन था । ...वह सहज नहीं था । फिर भी वह मेरी तरफ देख कर मुस्कराया। मैं भी मुस्करा दिया था । इशारे से उसने मुझे पास बुलाया । ...मैं उसके सिरहाने आकर बैठ गया । एक हाथ धीरे-से उसके माथे पर रखा, तो उसने मेरा दूसरा हाथ पकड़ लिया, "भैया, एक वादा करोगे ? ..."

"हाँ बोल !" मैंने उसे आश्वासन दिया ।

"यदि मुझे कुछ हो जाए ... तो आप मेरे शरीर को रेशमा गुरू को सौंप देना ... " उसने मुझे बुरी तरह झकझोर दिया था । मैं जानता था कि रेशमा से इसके समीकरण बिगड़ गये हैं, फिर भी यह ऐसा कह रहा है । ...मगर जाहिर था कि प्रताप गुरू कि बारे इसकी राय अच्छी नहीं होगी । ...और फिर यह ऐसा कह ही क्यों रहा है ? यह भी जाहिर था कि रेशमा के प्रति इसके मन में कोई पश्चाताप, कोई ग्लानी पैदा हुई हो ।

फिर भी मुझे उसका ऐसा कहना अच्छा नहीं लगा, "पागल हो गया है !... " मैने कहा, "कुछ नहीं होगा तुझे । ...जल्दी ठीक होकर हम घर चलेंगे ।" मैंने उसे ढांढस बँधाया ...मगर पता नहीं क्यों, मुझे ऐसा लगा कि जैसे शायद इसे कुछ इलहाम हो रहा हो ।

उसने मेरा हाथ वहीं छोड़ा । कहना जारी रखा, "मैं जानती हूँ भैया !... रेशमा गुरू मुझसे नाराज है ...पर मैं यह भी जानती हूँ कि यदि आप उससे कहोगे, तो वो मुझे माफ कर देगी । ...मैं जानती हूँ –- गुरू आपको बहुत मानती है ।"

"अपनी बकवास बंद कर ...मुझे भैया कहती है न, फिर भी ऐसी बाते करती है । ...तू चिंता मत कर, मैं हर हाल में तुझे घर लेकर जाँऊगा ।" पता नहीं क्यों, आज मैं भी अपनी आँखों में गीलापन महसूस कर रहा था ।

"भैया कहती हूँ, तभी तो कह रही हूँ... " उसने कहना जारी रखा, "यह बात मैं और किसी से नहीं कह सकती । ...मम्मी और बहन इन बातों को नहीं जानते -– पर आप तो सब कुछ जानते हैं । ...तभी कह रही हूँ भैया कि रेशमा गुरू को फोन कर देना ...माफी माँग लेना मेरी तरफ से ...बाकी सब वो सम्भाल लेगी । ...इन लोगों को मत ले जाने देना ।..."

यह बात उसने कही तो मुझसे ही थी, मगर उन तीनों के समाने ही कही थी । माँ ने धोती के पल्लू से अपना मुँह ढक लिया था । संध्या ने मेरे हाथ को पकड़ा, उसके हाथ पर मैने अपना हाथ रख दिया था । ...इससे पहले कि अपनी तकलीफ छिपाने के लिए सचिन अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमाता, उसने पुकार लिया, "इधर आ... " वह पास आया तो उसने सचिन का हाथ पकड़ लिया, "अपनी बहन का ध्यान रखना । भैया हमेशा तेरा और इसका ध्यान रखेंगे ।... और मेहनत से पढ़ना, मेरी बात और थी... " संध्या फूट पड़ी तो उससे बोला "अरे पगली, मैं जानता हूँ--तू मुझसे बहुत प्यार करती है -– बस टूटना नहीं ।"

हमसे हाथ छुड़ा कर माँ का हाथ पकड़ा, तो वह भी जोर-से फफक उठीं । फिर बोला, "मुझे माफ कर देना मम्मी, मैंने तुम्हें बहुत तंग किया है । ...इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी । ...मैं नहीं जानती, ऐसा मेरे साथ ही क्यों हुआ ...शायद मेरे ही भाग्य में यह सब लिखा था ।"

"अब चुप करेगा कि लगाऊँ एक थप्पड़ !" माँ ने हाथ दिखाया था, "बकवास बंद कर, सो जा चुपचाप ।" उसने करवट बदलकर आँखें बंद कर ली थीं ।

***

शाम को डॅाक्टर शिनॅाय राउंड पर आये थे । उसे सोता देख उन्होंने मुझसे पूछा था, "कैसी तबियत है इनकी ?"

"अब ठीक है डा'क सा'ब, सबसे बातें कर के सोया है ।" मैंने कहा ।

उन्होंने ताजा रिपोर्ट देखी, फिर दवा देने के लिए आवाज दी, पर वह नहीं उठा –- शायद गहरी नींद में था । मैंने भी पुकारा, वह फिर भी नहीं उठा । डॅाक्टर शिनॅाय ने हिलाया ...फिर उसकी नब्ज देखी । मैंने एक घबराहट उनके चेहरे पर देखी । उन्होंने उसकी दोनों पलकों को उठा कर देखा -– फिर स्टेथेस्कोप से उसकी धड़कनों को टटोलने का प्रयास किया, किन्तु वहाँ तो जैसे जिंदगी का सारा कोलाहल ही शांत हो गया था ।

"ओह माई गॅाड... " उन्होंने अपने बालों को ऊपर की ओर समेटा । फिर मेरे कंधे पर अपना हाथ रख दिया, "आई एम सॅारी...ही इज नो मोर... "

एक झटके से बहुत कुछ टूट गया था । हालांकि मुझे उसकी बातों से लगा था कि इसे कुछ इलहाम तो हुआ है । मैं समझ नहीं पा रहा था आखिर मेरा ही इन सबसे क्या नाता है ?... क्यों, कहीं न कहीं ये मेरे जीवन में चले आते हैं ?... या मैं खुद इनके प्रति एक खिंचाव महसूस करता रहा हूँ ।

पर आज मुझे लगा था कि इस तरह के दर्द भरे पन्नों का एक और अध्याय पूरा हो गया । बाकी सबको भी शायद इस बात का अहसास हो गया था, पर किसी ने किसी से कुछ कहां नहीं था । ...उनके रुदन के समवेत स्वर ने भी इस अध्याय को समाप्त मान लिया था । ...वे खुद ही बिलखने और एक-दूसरे को सम्भालने में लगे थे ।

तभी डॅाक्टर शिनॅाय ने मेरे कंधे पर हाथ रखा था, "आई एम सांरी सर...मैं कुछ नहीं कर सका !...आप आइए मेरे साथ –- मैं मेडिकल रिपोर्ट बना देता हूँ ।...एक फॅारमलिटी होती है ।" मैं उनके साथ उनके कैबिन में चला आया था । उन्होंने कुछ पेपर्स मेरे सामने रख कर पूछा था, "पोस्टमार्टम करवाना चाहेंगे आप ?... कुछ पेपर्स भी साइन होने हैं ।"

"नहीं सर, अब इस मामले में जो भी करना है, मैं खुद करूँगा । ...पोस्टमार्टम नहीं चाहिए । ...बॅाडी मैं रिसीव करूँगा । ...मुझे इससे सारी जानकारी मिल गई है – अब आगे की कार्रवाई मैं खुद करुंगा ।...आप से मुझे बहुत मदद मिली ...मैं आपका आभारी हूँ ।" मैंने डॅाक्टर शिनॅाय को धन्यवाद दिया ।

"एक बात मैं आपसे कहना चाहता हूँ ।" वे बोले ।

"जी कहिए !"

दरअसल, मैं शुरू से ही कुछ महसूस कर रहा था, पर मैंने किसी से कुछ कहा नहीं ।..." मुझे कुछ-कुछ आशंका हुई थी कि कहीं इन्हें कोई आभास तो नहीं हो गया ।

*****