दरमियाना
भाग - ११
दरअसल, इसके जर्मनी जाने की बात प्रताप गुरू को पता चल गई थी । वह नहीं चाहता था कि यह उसके हाथ से निकले । इसीलिए वह एक दिन अपनी मंडली के कुछ दरमियानों को साथ लेकर आया था ...और इसे किसी बातचीत के बहाने गाड़ी में बैठा लिया था । उस समय 21 हजार रूपये भी उसके पास थे । धीरे-धीरे इनकी बातचीत और गाड़ी चलती रही । रास्ते में कब इसे बेहोश कर दिया गया, कुछ पता ही नहीं चला ।
जब इसे होश आया, तो यह जालंधर छावनी के आसपास किसी बड़े-से नाले के ऊपर बनाये गये कथित ‘नर्सिंग होंम’ में था । ऐसा इसे बाद में किसी के जरिये मालूम हुआ । वहीं इसे ‘छिबरा’ (कतरवा) बना दिया गया था । ...इसके सारे सपने बिखर गया थे । ...यूँ तो, यदि मैं इसके जीवन में नहीं आता, तो शायद स्त्री बन जाने के सपने भी इसे नहीं आते । ...यूँ भी इसका हश्र तो यही होना था – मगर शायद इस तरह से नहीं ।
संजय से ही मुझे पता चला कि वह क्लिनिक आर्मी से रिटायर्ड किसी डॅाक्टर परवान का था, जहाँ उसे ‘ऑपरेट’ किया गया था । शायद वहाँ यही काम होता रहा हो । ...उस दिन इसके साथ दो और लड़कों को ऑपरेट किया गया था, जिनमें से एक ने बाद में दम तोड़ दिया । दूसरा इसी की तरह जख्मी हालत में था, मगर इससे कुछ ठीक था । ...उस तीसरे लड़के को लेकर उसकी मंडली से डॅाक्टर की बहस चल रही थी । ...कुछ देर के बाद संजय ने खुद अपनी आँखों से देखा था कि जिस लड़के ने दम तोड़ दिया था, उसकी लाश को एक बोरे में भरा गया । फिर क्लिनिक के एक हिस्से में बने फर्श के ढक्कन को उठाकर, उस लाश को नाले में बहा दिया गया था ।
यह अभी मरा नहीं था औऱ डॅाक्टर परवान को पता चल गया था कि इसे हेमोफिलया है । उसने प्रताप गुरू से पूछा था, "अब इसका क्या करें ?..." शायद उसका इरादा इस तरफ था कि इसका जिंदा रहना भी ठीक नहीं । क्यों न इसे भी ‘टपका दिया’ जाए । ...मगर प्रताप गुरू ने आश्वासन दिया कि वह दिल्ली में किसी वैध को जानता है, वहाँ इसे ठीक करा लेगा । डॅाक्टर परवान ने एक इंजेक्शन लगा कर कुछ दवाइयाँ लिख दीं, "अब जल्दी इसे यहाँ से ले जाओ.. " परवान ने फरमान सुनाया तो संजय के पैसों में से ही उसे कुछ भुगतान किया गया ओर इसे साथ लेकर ये लोग दिल्ली के लिए रवाना हो गए । रास्ते में कुछ दवाइयाँ खरीद कर इसे खिला दी गईं ।
वहाँ से लौट कर प्रताप गुरू इसे अपने वैध के पास ले गया ...मगर जब वैध ने भी हाथ खड़े कर दिये कि इसमें वह कुछ नहीं कर सकता, इसे अस्पताल ले जाओ -– तब प्रताप के माथे पर बल पड़ गये । फिर यही निर्णय लिया गया कि इसे इसके घर वालों के हाल पर छोड़ दो । ...संजय से उन्हें पता चल गया था कि घर पर भाई आया हुआ है । सो, उसे घर पहुँचाने का फैसला हुआ । घर पर उतारते समय उसे धमकी भी दी गई थी, "देख चेली, अगर तू बच गई और तूने किसी को कुछ बताया, तो तुझे हम मार देंगे । ...वैसे ठीक हो जाए तो मेरे पास आ जाना -– तुझे सबसे प्यारी चेली बनाकर रखूँगी । ...गहनों से लाद दूँगी, समझी न !" फिर वे सभी वहाँ से भाग निकले थे । मैंने तभी ठान लिया था कि अभी तो इसी पर ध्यान देना है, मगर यहाँ से फ्री होते ही मैं इनमें से किसी को नहीं छोडूँगा ।
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सचिन सुबह आ गया था । वह खुद खा कर आया था और मेरे लिए नाश्ता ले आया था । उसी ने बताया था कि माँ और संध्या अभी परसों ही आगरा लौटे हैं । मगर सचिन ने उन्हें फिर से लौट आने की सूचना दे दी थी । हालांकि यह सब, जो हुआ था, उसने नहीं बताया था, उसे तो ज्यादा पता भी नहीं था । हाँ, इतना जरूर कह दिया था कि भाई की तबियत खराब है । उसका अनुमान था कि वे भी यहाँ के लिए चलने वाले होंगे ।
मैं नाश्ता करके संजय के पास लौटा तब तक डॅाक्टर्स की विजिट का समय भी हो गया था । मेरे परिचित डॅाक्टर शिनॅाय भी अपने सीनियर्स के साथ विजिट पर आये थे । सभी ने उसकी अब तक की रिपोर्ट देखीं । उसका पूरी तरह से मुआयना करने के लिए उन्होंने मुझे और सचिन को बाहर भेज दिया था । वे सभी उसका परीक्षण करने की कोशिश कर रहे थे । मैंने बाहर से ही देखा -– वे सभी रिपोर्ट को उलट पलट रहे थे । फिर कुछ देर उससे बातचीत की, जो मैं नहीं जान सका ।
सीनियर्स डॅाक्टर्स अगले पेसेंट की ओर बढ़ गये, तो डॅाक्टर शिनॅाय ने मुझे इशारे से बुलाया । दरअसल, उन्हीं की वजह से हमें काफी मदद हो गयी थी । मैं पास आया, तो वे कहने लगे, "सर, एक प्रॅाब्लम है । ...हमारे सीनियर्स का कहना है कि यह गॅायनी केस है, जो शायद वे भी ठीक से नहीं समझ पा रहे । ...इसलिए वे चाहते हैं कि आप इन्हें लेड़ी हार्डिंग हॅास्पिटल ले जाएँ । ...मैं रैफर कर दूँगा, आपको कोई दिक्कत नहीं होगी ... "
गॅायनी केस ! मैं अचकचा गया, मगर मेरे पास उनकी बात मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था । मेरे आग्रह करने पर उन्होंने हमारे लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था करवा दी थी । मैं सचिन के साथ उसको लेकर लेडी हार्डिंग चल दिया । मैंने रास्ते में सचिन से पूछा था, "तुमने मेरे घर फोन कर दिया था ?"
"जी भैया, भाभी से बात हो गई थी । मैंने उन्हें बता दिया था कि संजय भाई की तबियत खराब है, इसीलिए आप हॅास्पिटल में हैं ।"
"इसे क्या हुआ ? ...क्या बताया तुमने ?"
"जी बस, यही कि ब्लिडिंग हो रही है । हालत ज्यादा खराब है । ...और यही कि आप भाई के पास ही रूकेंगे ।... "
लेडी हांर्डिंग पहुँच कर सीधे इमरजेंसी में ही ले जाया गया । पिछली रिपोर्ट के साथ डॅाक्टर शिनॅाय का रैफर उन्हें बता दिया गया था कुछ लेडी डॅाक्टर ने उसे अपनी कस्टडी में लेकर हमें बाहर कर दिया था । हमसे पूछा भी गया था, "कोई लेडी आप लोगों के साथ नही हैं ? हमारे मना करने पर वे सब खुद ही उसके प्राथमिक परीक्षण में जुट गई थीं । सारी रिपोर्टस् का निरीक्षण किया जाने लगा था ...और संध्या के रूप में उसका मुआयना भी ।
किन्तु साढ़े बारह बजे के करीब उनमें से एक डॅाक्टर बाहर आई थीं । उन्होंने मुझे इशारें से बुलाया फिर मुझसे मुखातिब होते हुए कहा, "देखिए, यह गॅायनी केस नहीं है । ..हमने अपनी सीनियर्स से भी बात कर ली है । हमें कुछ भी समझ नहीं आ रहा । ...आपको इन्हें वापिस वहीं ले जाना होगा । हम इस केस में कुछ नहीं कर सकते । ...आप चाहें, तो डॅाक्टर शिनॅाय से बात कर लें ।... "
मैं बुरी तरह से चकरा गया था । ...यानी यहाँ भी वही सवाल -– यह लड़का है या लड़की ? ...हालांकि अब तो यह इन दोनों में कुछ भी नहीं रह गया था । ...था तो पहले भी नहीं, मगर अब तो स्पष्ट तौर पर यह जनाने औऱ मर्दाने के बीच का था – यानी पूरी तरह से – दरमियाना !
बाहर आकर मैंने डॅाक्टर शिनॅाय को फोन किया था । यहाँ के हालात मैंने उन्हें बता दिया थे । फिर लगभग गिड़गिड़ाते हुए उनसे मदद करने का आग्रह किया था । वे फोन पर कुछ क्षणों के लिए मौन रह गये थे । फिर शायद कोई विचार उनके मन में आया था, "ठीक है...आप ले आइये ...मैं मैनेज करता हूँ । ... " उन्होंने फिर से एम्बुलेंस भेज दी थी और हम दोबारा लगभग ढाई बजे विलिंग्डन हॅास्पिटल पहुंच गये थे । डॅाक्टर शिनॅाय ने उसे अपने चार्ज में ले लिया था । इस बार आपातकालीन विभाग के स्थान पर उन्होंने इसे वार्ड में ले लिया था । कुछ ब्लड का प्रबंध करने के आदेश पर मैंने और सचिन ने डोनेट किया था, जिस वजह से उसे उसके ब्लड ग्रुप का खून चढ़ाया जाने लगा था । दूसरी तरफ से ड्रिप रोक कर इंजेक्शन लगा दिया गया था ।
दोपहर बाद चार बजे तक अम्मा और संध्या भी पहुँच गये थे । ...तभी मैंने सोचा था कि यदि हम अभी विलिंग्डन के बजाय लेडी हार्डिंग में ही होते, तो इन्हें कितनी परेशानी होती, क्योंकि सचिन ने तो विलिंग्डन ही बताया था । यह भी शायद कोई संयोग ही था कि हम वहीं वापस आ गये थे ।
मैं ही उन दोनों को लेकर संजय के पास आ गया था ।...उसकी हालत देख कर वे दोनों फफक पड़ी थीं । ...संध्या तो फूट-फूट कर रोने लगी थी । मैंने बड़ी मुश्किल से उसे शांत कराया । माँ भी--माँ तो जैसे भीतर ही भीतर बुरी तरह सुबक रही थीं, मगर उनकी आवाज के बजाय आँसू बहुत तेजी से बाहर रहे थे । मैंने सचिन को इशारा किया तो उसने माँ को सम्भाला । ...दरअसल उसका सारा शरीर और चेहरा एकदम जर्द पड़ गया था, किसी पिंजर की तरह । ...फिर जैस-तैसे सान्त्वना देकर उन्हें शांत किया गया ।
सचिन हम तीनों के लिए चाय ले आया था और संजय के लिए जूस । मैं माँ और संध्या को लेकर बाहर आ गया, तो सचिन ने उसे जूस पिला दिया था । ब्लड चढ़ाया जाना फिलहाल रोक दिया गया था । उन दोनों ने मुझसे जानना चाहा कि क्या हुआ है ! ...मैं पशोपेस में था – क्या कहूँ ? मैं खुद तो जानता था कि इसे 'छिबरवा' दिया गया हैं, मगर उनसे क्या कहूँ ?... यह ‘छिबरवाना’ भी मुझे इसी ने बताया था कभी, किसी और के संदर्भ में । ...मगर इनसे में क्या कहता ?... हो सकता है, वे अपने आप ही कुछ समझ रही हों –- उसे इस हाल में देख कर । ...धीरे-धीरे संजय को नींद आ गई थी । लगा कि वह शांत मन सो गया ।
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