Risate Ghaav - 8 in Hindi Fiction Stories by Ashish Dalal books and stories PDF | रिसते घाव (भाग-८)

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रिसते घाव (भाग-८)

फ्लैट का दरवाजा खोलकर अमन अन्दर प्रवेश कर गया लेकिन श्वेता कुछ सोचते हुए वहीं दरवाजे पर ही खड़ी रह गई । अमन ने दरवाजे के पास ही रखी शूज रेक में अपने जूते निकालकर रखे और फिर श्वेता की तरफ देखा ।
‘बाहर क्यों खड़ी हो ? किस बात की दुविधा है ?’ अमन ने दो कदम पीछे हटकर श्वेता के पास जाकर पूछा ।
‘तुम्हारें कहने पर तुम्हारें साथ यहाँ तक आ तो गई पर इतनी रात को तुम्हारें संग ...’
‘तुम लड़कियों की यही प्राब्लम है । मैं कोई भेड़िया थोड़े ही जो तुम्हें खा जाऊँगा ?’ श्वेता की बात बीच में काटते हुए अमन बोला ।
‘नहीं अमन । दिन के वक्त तुम्हारें साथ यहाँ आना ठीक है पर रात को मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा । प्लीज तुम मुझे घर वापस छोड़ आओं ।’ कहते हुए श्वेता ने अमन का हाथ पकड़ लिया ।
‘चलों अन्दर चलकर बात करते है ।’ अमन ने कहा और श्वेता ने पकड़ रखे उसके हाथ को पीछे खींचते हुए अन्दर आ गया । श्वेता इस बार भी उसके आग्रह को नकार नहीं पाई और उसके पीछे एक विश्वास के साथ अन्दर आ गई । दरवाजे के सामने वाली दीवार से सटाकर रखे हुए सोफे पर वह जैसे ही बैठी, अमन भी उसके पास आकर बैठ गया ।
१५ X १५ के हॉल में सिक्स सीटर सोफे के अतिरिक्त गैलरी के दरवाजे के पास दो कुर्सियां लगी हुई थी । सोफे के सामने की दीवार पर स्टाइलिश शोकेस के बीचोंबीच खाली रही जगह में ४० इंच का टीवी लगा हुआ था और उसके ऊपर की तरफ अमन की मुस्कुराती हुई एक रोमान्टिक तस्वीर लगी हुई थी ।
‘अब बताओं क्या प्राब्लम है और किस बात का डर लग रहा है?’ अमन ने श्वेता की आँखों में झाँका ।
‘अमन, तुम्हारी जिन्दगी का ज्यादातर समय अमेरिका में बीता है तो तुम इन सब बातों को बड़ी ही आसानी से ले सकते लेकिन मेरे लिए यह सब आसान नहीं है ।’
‘श्वेता, जिन्दगी को बहुत सिरीयसली मत लो । जब जो क्षण हाथ आता है उसे जी लेना चाहिए । लास्ट वन एण्ड हॉफ ईयर में हमारें मन की दूरियां तो मिट ही चुकी...फिर भी तुम ...’ श्वेता का जवाब सुनकर अमन कुछ कहते हुए चुप हो गया ।
‘फिर से बुरा मान गए ? मुझे डर इस बात का है कि तुम्हारा मन शादी के लिए तो अब भी तैयार नहीं है । बिना शादी के कब तक रह पाएगा हमारा सम्बन्ध ?’ श्वेता अमन की हथेली पर अपनी उँगलियाँ घुमाने लगी ।
‘श्वेता, मैंने बहुत ही नजदीक से शादी के दुष्परिणाम देखे है । सात साल का था जब समझ में आया कि मेरे मम्मी और पापा अपनी शादी को बेवजह ढो रहे है । मेरा जन्म तो उनकी शारीरिक वासना की पूर्ति के तहत एक दुर्घटना ही था । मम्मी पापा के झगड़ों में न कभी मम्मी से जुड़ पाया और न ही पापा से क्योंकि कभी दोनों को समझ ही नहीं पाया । मैं उसी तरह की जिन्दगी नहीं जीना चाहता ।’ कहते हुए अपनी जिन्दगी की पिछली बातों को याद करते हुए अमन भावुक हो उठा ।
‘अमन, तुम्हारी कहानी मेरी कहानी से अलग नहीं है । फर्क सिर्फ इतना ही है कि तुमने अपनी मम्मी पापा की शादी की त्रासदी को झेला है । मैं सीधे तौर पर मेरे मम्मी पापा की शादी की असफलता की गवाह नहीं रही पर फिर भी हूँ तो हिस्सा एक बिखरे हुए परिवार का ही । लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शादी जैसे बंधन से विश्वास ही तोड़ लिया जाये ।’ श्वेता अमन के साथ सहानुभूति दर्शाते हुए बोली ।
‘श्वेता, तुम्हारी तरफ तुम्हारें मुक्त विचारों की वजह से आकर्षित हुआ था । तुम्हारी तरफ का मेरा यह आकर्षण कब प्यार में बदल गया मैं खुद नहीं जानता । मैं प्यार व्यार के पचड़े में भी नहीं पड़ना चाहता था लेकिन इस पर किसी भी इन्सान का वश नहीं । फिर भी तुमसे जुड़ने के बाद आज भी मैं पहले की तरह ही स्वच्छंद विचारों का मालिक हूँ यह तुम भी अच्छी तरह से जानती हो । अब मर्जी तुम्हारी है कि तुम मेरा साथ देकर मेरे साथ चलना पसन्द करती हो या नहीं । शादी कर मैं किसी बन्धन का हिस्सा नहीं बनना चाहता लेकिन तुम्हें इतना यकीन दिलाता हूँ कि हमारें सम्बन्धों के लिए तुम्हें शादी जैसे कॉन्ट्रैक्ट की जरूरत नहीं पड़ेगी । जिन्दगीभर मैं तुम्हारा साथ शादी किए बिना निभाऊंगा । शादी अगर एक दूसरें के प्रति विश्वास और मजबूत हो जाने की वजह है तो मैं इस वजह को नकारता हूँ । इस बात में सच्चाई होती तो शादी के बाद भी झगड़े और अफेयर नहीं होते ।’ कहते हुए अमन श्वेता के और करीब आ गया और उसकी दोनों हथेलियों को अपने हाथों में लेकर कसकर पकड़ लिया ।
अमन की बात सुनकर श्वेता कुछ देर तक चुपचाप उसे देखती रही । अमन की आँखों में उसे एक समर्पण नजर आ रहा था ।
‘अमन, तुम्हारें बिना मैं नहीं जी सकती लेकिन तुम्हारी इस तरह की विचारधारा से डर भी लगता है ।’ तभी श्वेता ने अपनी चुप्पी तोड़ी ।
‘कॉफ़ी पियोगी ?’ सहसा अमन ने बातों का रुख पलटते हुए श्वेता से पूछा और अपनी जगह से खड़ा हो गया ।
‘तुम बैठो । मैं बना लाती हूँ ।’ श्वेता कहते हुए खड़ी हो गई ।
‘अपनी तो लाइफ ही ऐसी है । रोज का यही शेड्यूल है अपना । ऑफिस से आकर एक कप गर्मागम कॉफ़ी पीकर अपनी तन्हाइयों के संग अकेले सो जाना । तुम क्यों एक दिन के लिए परेशानी उठा रही हो ।’ श्वेता के कहने पर अमन ने कहा और कीचन की तरफ बढ़ चला ।
‘अच्छी तरह जानती हूँ तुम्हें । आज तुम अकेले नहीं हो जो अपनी मर्जी के हिसाब से अपनी मनमानी करों ।’ कहते हुए श्वेता अमन के पीछे कीचन में आ गई ।
‘मर्जी तो मेरे मन की ही चलेगी ।’ कहते हुए अमन अपना चेहरा श्वेता के चेहरे के नजदीक ले आया लेकिन श्वेता उसे हल्का सा धक्का देकर दो कदम पीछे हट गई । यूँ तो पिछले एक साल में श्वेता कई दफा अमन के फ्लैट पर उसके संग आ चुकी थी पर आज पहली बार उसकी इच्छा के अधीन होकर रात के वक्त पहली बार इस तरह ऑफिस से सीधे उसके साथ उसके घर आई थी ।
अमन ने गैस चालूकर पतीली में पानी गर्म होने के लिए रख दिया और फ्रेश होने के लिए बेडरूम से अटैच्ड बाथरूम में चला गया । वह जब तक बाहर आया श्वेता कॉफ़ी बना चुकी थी और ट्रे में दो कप लेकर वह सोफे पर जाकर बैठ गई थी ।
अमन श्वेता के समीप जाकर बैठ गया । दोनों चुपचाप कॉफ़ी का गर्म घूंट गले से नीचे उतार रहे थे । अमन की नजरें बार बार श्वेता के वक्षस्थल पर जाकर ठहर रही थी । श्वेता ने काले रंग के जींस के साथ ब्ल्यू और पिंक फूलों वाला स्लीवलेस खुले गले का टी शर्ट पहन रखा था जिससे उसके वक्षस्थल के उभार स्पष्ट रूप से अमन की नजरों को ललचा रहे थे । आँखों में काजल की हल्की सी रेखा उसकी आँखों की सुन्दरता को और भी बढ़ा रही थी । तभी श्वेता अमन को देखकर मुस्कुराई तो आर्मी की सेना की तरह एक पंक्ति में कतारबद्ध मोती की तरह चमकते हुए दांत उसके चेहरे की सुन्दरता में चार चाँद लगाने लगे । आपसी समझौते के बाद किसी एक रंगीन विचार को मन में संजोंकर आज उसने श्वेता के साथ रात के गहरे अँधेरे में घर में प्रवेश किया था लेकिन फिर श्वेता का मन बदलने पर वह बड़ी मुश्किल से अपने आप पर काबू रख पा रहा था ।
एक दूसरें को नजरों से पीते हुए कप में रही कॉफ़ी का आखरी घूंट भी पूरा हो गया । तभी अमन की नजर अपनी रिस्ट वॉच पर गई ।
‘डेढ़ बज रहा है । चलों तुम्हें घर छोड़ देता हूँ ।’ अमन ने बड़ी मुश्किल से शब्दों को अपने होंठों से बाहर निकाला ।
जवाब में श्वेता एक बार फिर से अमन को देखकर रहस्यमयी मुस्कान बिखरी । इस बार श्वेता की मुस्कराहट पर अमन ऐसा कायल हुआ कि उसने एक झटके के साथ अपना बायाँ हाथ श्वेता के सिर के पीछे ले जाकर उसके बालों को अपनी मुठ्ठी में भरकर उसके चेहरे को अपने चेहरे के एकदम करीब खींच लिया । श्वेता की साँसे तेज हो गई और उसने आँखें बंद कर ली ।
‘आई लव यू अमन !’ श्वेता बुदबुदायी ।
श्वेता की गर्म साँसे अमन के चेहरे को छूती हुई उसके होंठों पर हरकत कर रही थी । अमन पूरी तरह से कामाग्नि की ज्वाला में फँस चुका था । दूसरी तरफ श्वेता की हालत भी अमन की तरह ही थी । श्वेता अमन के और नजदीक आ गई और उससे लिपट गई । उसके वक्ष की गर्मी को अपनी छाती पर महसूस करते ही अमन ने अपने कंपकंपाते होंठ श्वेता के गुलाबी होंठों पर रख दिए । काफी देर तक यूँ ही दोनों एक दूसरें के होंठों से प्रेमभरा अमृतरस पीते रहे फिर धीरे धीरे अमन के हाथ श्वेता की पीठ पर हरकत करने लगे । लेकिन तभी श्वेता ने अपने आपको अमन की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश की तो अमन ने उसे और कसकर अपनी बांहों में भर लिया । अमन की देह में अब कामदेवता पूरी तरह से प्रगट हो चुके थे । सहसा वह अपनी जगह से खड़ा हुआ और श्वेता की तरफ झुककर उसे हीरो की अदा से अपनी बाहों में उठाने के लिए आगे बढ़ा । श्वेता मौका देखकर वहाँ से उठ खड़ी हुई और दौड़कर अन्दर बाथरूम में चली गई ।
वह जानबूझकर करीबन २० मिनिट तक अन्दर बाथरूम में ही बंद रही । जब वह वापस बाहर आई तब तक अमन की देह में प्रगट हुई कामाग्नि आग का स्वरूप लिए बिना शान्त हो गई ।
अमन ने श्वेता पर एक नजर डाली और बाइक की चाबी हाथ में लेकर बोला, ‘चलों तुम्हें घर छोड़ देता हूँ ।’