main samay hun - 4 in Hindi Short Stories by Keval books and stories PDF | में समय हूँ ! - 4

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में समय हूँ ! - 4

(अब तक : महाराज अपरिचित को मिलने कैदखाने में जाते है इस मक्सद से की उसे मिलेंगे उतर उस बात के जो उसे चाहिए थे मगर हुआ कुछ ऐसा की राजा की मुश्केलिया कई गुना बढ़ गई। उस अनजान ने भविष्यवाणी करदी थी कि आज रात्रि को उसका राज्य संकट में है । दूसरी ओर महाराज की खीर में ज़हर मिलता है व सैनिको के विद्रोह की सूचना प्राप्त होती है। महाराज के ऊपर काले बादल मंडरा चुके है )

अब आगे :

जैसे कि महाराज के ऊपर ओर संकट आने वाले हो वैसे ही एक सैनिक भोजनखण्ड में दौड़ आता है। उसके चेहरे के भाव बता रहे है कि वह कोई दुविधा लेकर आया है । एक गहरी सांस लेकर वो बहुत हिमत बटोर कर बोलता है , " महाराज हमारे गुप्तचर बंदी बना लिए गए है ।"

"भगवान आप ये मेरी केसी परीक्षा ले रहे हो ! " महाराज हताश होकर बोले।

पीछे खड़ा वह अपरिचित इंसान बोलता है ,"राजन अभी भी कुछ नही गया है , तुम्हारे गुप्तचर सहीसलामत है उनसे बाते उगलवाने की कोशिश की जाएगी मगर वह तुम्हारा विश्वास नही तोड़ेंगे ! ,बड़े अटल स्वभाव के है तुम्हारे गुप्तचर फिक्र मत करो !"


महाराज : " महल के सारे दरवाज़े बंध करदो , सारे गुप्त रास्तो पर सैनिको का पहरा लगा दो , हथियार तैयार करो आक्रमण किसी भी वक्त हो सकता है "


अपरिचित : "सभी सिपाईयो को भरपेट खाना खिलाओ , क्योकि हमला मध्यरात्रि को होने वाला है , उसके सिपाही भूखे प्यासे थके हारे आएंगे ,हमारे एक एक सिपाही उसके दस-दस सिपाही के प्राण हरने चाहिए । चालाकी का पूरा उपयोग करना है। "

महाराज :" इसकी आज्ञा का पालन हो "


•••••••••••



उधर अपरिचित महाराज को कैदखाने में ले जाता है और अपने हाथों से बनाये गए नक्शे को दिखाता है , "देखो राजन यह नक्शे को ध्यान से। यह है तुम्हारा राज्य और यह राजा धनुष का क्षेत्र तुम्हारे राज्य से जाने में ओर वहां से आने में 3 घंटे का समय लगता है। तीन घंटो में उसके घोड़े थके होंगे ,हम महल के बाहर इस प्रदेश मेंमिट्टी को गिला कर देंगे ताकि घोड़ो की अधिक से अधिक शक्ति बर्बाद होगी एवं तब तक हमारे बणवीर कई दुश्मनी सैनिको को विन्ध चुके होंगे । "

" उसने यह कभी सोचा नही होगा की हम यह चाल चलेंगे ओर यह चाल कारगर साबित होगी । फिरभी उसकी बड़ी संख्या में सेना बच जाएगी जो किल्ले का दरवाजा तोड़ कर घुसने की कोशिश करेंगे " हमे दरवाजे के पीछे कई बाणवीर रखने होंगे ओर जब तीर की मात्रा घटेगी हम उसे पृष्ट तलवारधारी सैनिको से लड़ाएंगे दुश्मनी सीपाईयो की थकान का फायदा उठाएंगे "

" रात के अंधेरे में ज्ञात रहे किल्ले के अंदर कम से कम रोशनी हो व बहार आंख मिचाने वाली रोशनी हो , हमारे सीपाईओ को अंधेरे कमरे में कैद रखो ताकि वह बाहर निकलते ही थोड़े से उजाले में भी बहुत कुछ देख सके ।"


"अब तक उसकी बड़ी सेना हार चुकी है ,अब उसके भी उतने ही सैनिक है जितने हमारे बचे है। सवेरा होनेमें अभी देरी होगी"

" आओ राजन शस्त्रगार में "

(महाराज ओर वह अपरिचित शस्त्रगार में दाखिल होते है ।)

कर्मचारी को बुलाकर अपरिचित आदेश देता है , " छोटी मटकियों का संग्रह करो ,उसमे भरपुर बारूद भरो ओर ऊपर दिवाबति की सर रखके मटकी को कपड़े से ढक दे। यह तुरन्त तैयार हो जाएगा व बड़ा खतरनाक कारगर होगा । ज्ञात रहे आज शाम से पहले पूरा बंदोबस्त करना है हमे "


भोजन की व्यवस्था जिम्मेदार सैनिकों और कड़ी सुरक्षा के बीच बनाया गया । पेटभर सैनिको को खाना खिलाया गया , अब उसमें फिरसे ऊर्जा क
आ गई थी ओर सैनिको के प्रति इतना प्यार देख उसका मनोबल आसमान छू गया था। अब वह सैनिक राजय का सम्मान के लिए कुछ भी कर सकते थे ।


•••••••

(देखते ही देखते शाम होने लगी , राजा सैनिको ओर रक्षागण के सरदारो के साथ योजनाओ के विषय मे चर्चा कर रहे है। गुप्तचर के कैद हो जाने से कोई गुप्त जानकारी नही मिल पा रही थी
, अब उसके पास उतना समय भी नही है कि दूसरे गुप्तचर भेजे जाए। राजा यह सोचने पर विवश हुआ कि आज तक न पकड़े जाने वाले होनहार गुप्तचर आज इतनी आसानी से कैसे पकड़े गए । )


राजा अंदर से चिंतित था , मानो वो मांन बैठा था कि उसके राज्य का अंत निच्छित न सही पर नज़दीक है। मगर अब उसे अपरिचित पर यकीन होने लगा है।

अपरिचित : " राजन तुमहारे राज दरबार से 4 सुरंगे अलग अलग दिशा में बटति है। उसमें से 3 सुरंगों के बारेमे दुश्मनो को पता चल गया है । और चौथी सुरंग जो महल से होकर जंगल के बीच जहा जंगली प्राणियो का डेरा होता है वह सुरक्षित होगी। उसके बारेमे भी खोज जारी हो सकती है। "

महाराज : " क्या हमें सुरंग से बच कर भागने का वक्त आ जायेगा ? इतनी पृष्ट सेना ओर चल के साथ ? "

सेनापति : " नही महाराज ! सुरंग से जैसे बाहर निकला जा सकता है ,वैसे ही अंदर आया जा सकता है । हमे सुरंगों से दुश्मनो को महल में घुसते रोकने हेतु मध्य में सिपाइयो को स्थित करने होंगे । हम दो भागों में सिपाही रखेगे मध्य में आधे ओर आधे थोड़ी दूरी पर ।

अपरिचित : थोड़े नही बहुत सैनिक रखेंगे । बाहरी सेना हमे उलझने हेतु बनाई जा रही है मगर सुरंगों से होकर कई माहिर सिपाही पीछे से हमला करेगे। वहाँ पर भी घातक सेना तैनात करो।

सेनापति : ओर चौथी सुरंग का क्या करेंगे श्रीमान महोदय !? "

अपरिचित : " चौथी सुरंग में राजमहल के छोटे कर्मचारी व स्त्रियों और बालको को सलामत रखे जाएंगे । अनाज और पानी के साथ जरूरी चीज वस्तु का ख्याल रहे ,वह इकलौती सुरंग है जो सुरक्षित है और दुश्मनो की नजर में नही आई है ।"


•••••••

देखते देखते मध्यरात्रि हो चुकी थी ।

महल में राजन समेत एक एक सिपाही आक्रमण की राह देख रहे थे। अचानक कुछ आवाज़ आई जैसे एक बड़ा जुंड पास आ रहा हो। ओरिचित स्थित मुद्रा में हो गए। यह देख कर महाराज समज गए क्या होने वाला है।

" समय आ गया है !"

मुख पर चिंता के भाव मगर विश्वास की मूरत अपरिचित ने धीमे स्वर में कहा।

सेना बचाव के लिए तैयार थी । महल के अंदर की आधी से ज्यादा रोशनी बुजा दी गई । महल के बाहर पहलेसे इतनी रोशनी कर दी गई थी मानो रात में सूरज निकला हो। दूर से आते घोड़ेसवार ओर एक बड़ा लश्कर महल के ऊपर से साफ साफ दिखाई दे रहा था।

अचानक कुछ उड़ते हुए पंछी आसमान में आ कर मंडराने लगे और कराहने लगे। सेनापति समेत कुछ लोगो ने यह देख लिया। मगर वो आश्चर्यचकित थे यह हो क्या रहा है ! रात के वक्त इतने पंछी यहां पर पहले कभी नही देखे। तभी अपरिचित ने धनुष उठाकर तीर से तीर एक एक पंछी को विन्ध दिया । राजा यह देखकर हैरान है आखिर यह इंसान समज क्यों नही आ रहा ।

" यह पंछी डर के मारे तो बिल्कुल नही उड़ रहे थे " अपरिचित ने राजा की ओर देखकर कहा ।

"यह पंछी धनुष के पालतू व इंसानो के होने का संकेत देने के लिए तालीम दिए हुए पंछी है जो इंसान का चलन चलन के हिसाब से संकेत देते है। अपरिचित ने कहा ।




दुश्मन सेनापति को ज्यादा जानकारी न मिलनेसे क्रोधित हो गया। " कौन है इतना चतुर इस मुट्ठी भर राज्य में जो मेरी युक्ति नाकाम कर गया ।" अभिमान उसकी रग रग में था। और हो भी क्यो न यह पहली बार था जब उसकी कोई युक्ति का तोड़ पाकर नाकाम कर पाया है।


उसने बाणवीरो को दो हिस्से में बंट जाने का आदेश दिया । एक हिस्सा तलवारधारी सैनिको की रक्षा के लिए व एक हिस्से को ध्यान भटकाने हेतु पीछे रहनेका आदेश दिया ।

घोडेसवार सैनिक सबसे आगे जा रहे है। अचानक उसके घोड़ो की गति धीमी हो गई। कुछ सैनिक काबू गुमा कर नीचे गिर गए । घोड़े आपस मे टकराने लगे फिसलने लगे व कुछ गिर गए।

दूर खड़ी सेना महल में खूब प्रकाशित रोशनी में अपने सैनिकों का साया साफ देख रही थी। यह सब देखकर सब चोक गये । वह समज नही पा रहे थे हो क्या रहा है यह। कुछ सैनिको की वही पर मौत हो गई। व कुछ घोड़ो के पावो तले कुचल जाने के बाद भी जीवित रहे मगर जख्मी बहुत थे । घायल सैनिक फिरसे घोड़े लेकर जैसे तैसे आगे बढ़े।

मगर यह क्या !

घोडेसवार सिपाइयो को देखते रहे तब तक किल्ले के ऊपर बड़ी मात्रा में बाणवीर स्थित हो गए थे । वह तीर से पीछे वाली टुकड़ी पर प्रहार कर रहे है जबकि उसे आगे पहले आने वाले घोड्सवार पर करना चाहिए था ।











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क्रमश :
में समय हूँ ! (Part 4)