गौरीशंकर और श्याम के बीच की बातें सौभाग्यवती ने सुन ली थीं, रात्रि में भोजन के बाद सौभाग्यवती ने गौरीशंकर से कहा कि आपने कमल के लिए किवाड़ क्यो नही खोले, आपकी मनोदशा से मैं भली-भांति परिचित हूं, आपका प्रेम आपको पुकार रहा है और आप उसे अनदेखा, अनसुना कर रहे हैं,आपके हृदय में जो कमलनयनी के लिए अपार प्रेम है,वो मुझसे छुपा नहीं है और कमलनयनी ने आपके प्रेम में ही पड़कर इस गृह में आना शुरू किया था क्योंकि कमलनयनी के नयनों में जो प्रेम आपके लिए दिखता था वो पवित्र और शुद्ध था, आपने ऐसा क्यों किया,स्वामी!!
इस समय कुछ ना पूछो,सुभागी!! मैं कुछ भी बताने में असमर्थ हूं, गौरीशंकर बोला।
लेकिन क्यो स्वामी? आप अपने प्रेम को क्यो नही स्वीकार कर पा रहे? मुझे इस बात से ना कोई पीड़ा है और ना कोई आपत्ति, सौभाग्यवती बोली।
नहीं सुभागी,इन सब निरर्थक बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है, मेरे पास तुम्हारे प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं है, मेरे पास बहुत से कर्त्तव्य है जो अभी निभाने शेष है,समाज मेरा परिहास करेगा अगर मैंने अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं किया तो, इतना सरल नहीं है सबकुछ जैसा तुम समझ रही हो, मैं अभी ये सब कुछ नहीं कर सकता, गौरीशंकर बोला।
अच्छा तो आप मेरे सिर पर अपना हाथ रखकर वचन दीजिए कि,आप जब भी अपने कर्त्तव्यों से मुक्त हो जाएंगे,तब आप कमल को जरूर अपना बनाएंगे, सौभाग्यवती बोली।
गौरीशंकर बच्चों की तरह फूट-फूटकर सौभाग्यवती से लिपटकर रोने लगा, उसने कहा, सुभागी आज मेरी आत्मा को बहुत कष्ट दिया है मैंने,कमल के साथ ऐसा व्यवहार करके, भगवान मुझे कभी भी क्षमा नहीं करेगा, तुम मेरी सच्ची मित्र हो जो मेरे हृदय की बात समझती हो और मैं ये तुम्हारे समक्ष स्वीकार करता हूं कि मैं कमलनयनी से प्रेम करता हूं लेकिन मां ,तुम और देववृत का भी कमलनयनी से पहले मेरे जीवन में उच्च स्थान है और मेरे संस्कार मुझे उसका प्रेम स्वीकार करने से रोक रहे हैं,मैं विवश हूं, मुझे क्षमा करो,जिस दिन मेरे कर्त्तव्य पूर्ण हो जाएंगे,उस दिन मैं कमलनयनी को स्वयं अपने हृदय से लगाकर, अपने जीवन में उचित स्थान दूंगा।
किसी गांव से बाहर की ओर बहुत दूर स्थित___
एक छोटी सी पहाड़ी के पास एक बड़े से बरगद के पेड़ के नीचे एक छोटा सा मंदिर है, मंदिर के बगल में एक छोटी सी कुटिया बनी है,पास में कुआं है,उस पहाड़ी से उतरकर नीचे की ओर एक कच्चा रास्ता जा रहा है,उस रास्ते से चल कर एक दस वर्ष की बालिका उस कुटिया की ओर जा रही है,उस कुटिया से एकतारे के साथ किसी जोगन स्त्री के मधुर भजन की ध्वनि सुनाई दे रही है।
वो बालिका उस रास्ते से होती हुई, पहाड़ी पर चढ़कर जाती है ,जब बालिका कुटिया के अंदर पहुंचती है तो भजन की ध्वनि बंद हो जाती है____
अरे, बड़ी मां!!
मेरे आते ही आपने भजन क्यो बंद कर दिया? बालिका ने पूछा।
मुझे पता चल गया था कि मेरी कादम्बरी बेटी आ गई है!! जोगन बोली।
लेकिन आप तो अंधी हो तो आपको कैसे पता चला कि मैं कादम्बरी हूं, बालिका बोली।
मेरे पास मन की आंखें हैं,जो सब कुछ देख लेती हैं और तू अकेली गांव से इतनी दूर मुझसे मिलने फिर आ गई, कितनी बार मैंने मना किया है, मयूरी और श्याम को कि कादम्बरी को मेरे पास अकेली ना भेजा करें लेकिन दोनों को बात समझ नहीं आती, जोगन बोली।
लेकिन बड़ी मां आज मां ने खीर-पूड़ी बनाई थी तो मैं आपके लिए लाई हूं, मैं आज आपके साथ भोजन करना चाहती थी लेकिन आप तो इतना क्रोधित हो रही है,कादम्बरी बोली।
अरे! मैं क्रोधित नहीं हो रही हूं मेरी बेटी,तू यहां गांव से बाहर अकेले आ जाती है ना और जानवरों का भी डर रहता है, इसलिए,
जोगन बोली।
अच्छा चल कुंए पर, पहले हाथ-मुंह धो ले, उसके उपरांत भोजन करेंगे, जोगन बोली।
वो दोनों कुंए पर गई,जल निकालकर हाथ-पैर धोएं फिर आकर भोजन करने बैठी, बालिका बहुत ही वार्तालाप करती है, उसने फिर अपनी बड़ी मां से बात करना शुरू कर दिया,कई सारे प्रश्न पूछने शुरू कर दिए।
बहुत ही अच्छा भजन गाती है,आप बड़ी मां,मुझे सिखाएंगी,कादम्बरी बोली।।
जोगन बोली, हां सिखाऊंगी,क्यो नही सिखाऊंगी,अपनी प्यारी बेटी को!!
पता है बड़ी मां, मां बता रही थी कि आप पहले नृत्य भी करती थीं,जब आपकी आंखें ठीक थी,आप लोग पहले किसी महल में रहते थे,तब मां और बाबा का विवाह नहीं हुआ था,मां कहती है कि अधिक रोने से आपकी आंखों की रोशनी चली गईं, पहले आपका नाम कमलनयनी था,अब हर कोई जोगन कहता है,कादम्बरी बोली।
बेटी पहले शांत मन से खाना खा ले फिर वार्तालाप कर लेना,जोगन बोली।
और अब तू अकेले कैसे घर जाएगी,जोगन बोली।।
बड़ी मां,आप चिंता ना करें, मैं आज रात्रि,आपके पास ही रूकूंगी,मां बाबा कह रहे थे कि कल एकादशी है तो वे दोनों मंदिर आऐंगे,तब मुझे साथ ले जाएंगे इसलिए तो मां ने इतना सारा भोजन बांध दिया था,कादम्बरी बोली।
इसी तरह समय बीतता रहा,आठ वर्ष और बीत गए,अब कादम्बरी अठारह साल की हो चुकी है।।
क्रमशः____
सरोज वर्मा____🐦