VIVEK in Hindi Motivational Stories by Sunil N Shah books and stories PDF | विवेक

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विवेक

जिंदगी का वह पल जिसे हम देख चुके हैं, महसूस कर चुके हैं, हमारे मन स्मृति में हमेशा जिंदा रहता है।

ऐसे ही बात मैं आपको बताना चाहता हूं।आज से कुछ ९ साल पहले सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत मुझे स्कूल कोऑर्डिनेटर्स हिंदी माध्यमिक शाला मैं नियुक्त किया गया था।मैं प्रधानाचार्य शर्मा मैडम को मिलने गया।

सर मैंने बीकॉम के बाद में B.ed और एमकॉम किया है साथ साथ में एलएलबी की परीक्षा की तैयारी चल रही है।

आचार्य आपका स्वागत है सर हमें अच्छा लगेगा आप हमारी स्कूल में आए मैं आपको इतना बताना चाहती हूं की, एक पका हुआ फल और गुणवान व्यक्ति हमेशा झुके हुए होते हैं। यानी आपको विनम्र रहना है।इतना सख्त भी नहीं होना है। यह गवर्नमेंट साला है यहां पर मिडिल क्लास से भी नीचे के विद्यार्थी पढ़ने आते हैं।पास के क्लास में शिक्षक बाहर गए हैं । आप जाकर बच्चों को कुछ पढ़ाई

(पास के रूम में कक्षा नंबर ४ का क्लास था। क्लास में दाखिल होते ही सभी बच्चों ने अभिवादन किया। पर मेरा मन उन बच्चों को देखकर बहुत आकुल-व्याकुल हो रहा था किसी के पास अच्छे कपड़े नहीं थे नो तो ठीक किताबे शर्ट था तो बटन टूटे थे। मैं कुछ असमंजस में टेबल के पास कुर्सी में जाकर बैठा।)

सभी बच्चों की आवाज आई सर विवेक कुछ किताबें लेकर आया है
मैंने विवेक को पास में बुलाया देखा उसके पास में आठवीं कक्षा की किताब हिंदी की थी।
विवेक सर मैं यह कविता समझना चाहता हूं।

मैंने गौर से देखा आठवीं कक्षा की किताब है मैंने पूछा विवेक आप उसमें से क्या समझना चाहते हैं सर मुझे यह समझना है
पुष्प की अभिलाषा "चाह नहीं प्रेमी माला में"
मैंने उससे उसका पूरा अर्थ समझाया कि कवि यह नहीं चाहते कि किसी के गजरे में वह फूल बनकर रहें, भगवान की सिर पर भी वह फूल बन कर बैठ कर अपने भाग्य पर ईठलना नहीं चाहते। मुझे उस जगह पर छोड़ देना वनमाली वीर सैनिक के पथ पर मुझे छोड़ देना।

विवेक सर मुझे भी सैनिक बनाना है।
(छात्र गण ने तालियों से उसका अभिवादन किया)

मैंने कुछ गणित विज्ञान और कुछ उनके विषयों के प्रश्न पूछो सभी में यह बच्चा बहुत तेज था। मैं बहुत खुश हूं और साथ साथ में उससे प्रभावित हुआ

कुछ दिन के बाद में

प्रिंसिपल और शिक्षकगण एक साथ में चित्र प्रतियोगिता के लिए सब को बुलाया गया।

आचार्य सुनील जी ऐसा बहुत कम होता है कि थोड़े समय में आकर अपना नाम करता है इसमें से आप हो आपको हमारे बीआरसी ,सीआरसी और सभी डी आरसी भी पहचानता है हमें इस बात का गर्व है
मैंने आभार व्यक्त किय ।
यह स्कूल बहुत अच्छा है । यहां के छात्र सभी अच्छे हैं। पर मैं खास विवेक से प्रभावित हुआ है। वह चौथी क्लास में हो कर भी सातवीं आठवीं क्लास के पुस्तक को पढ़ सकता है समझ भी सकता है।
शिक्षक विवेक जरूर होशियार है ,पर वह ज्यादा दिन यहां पर रुक नहीं सकता ।
मैं समझा नहीं
आचार्य सर उसे ऐसी बीमारी हुई है कि वह ज्यादा जिएगा नहीं
क्या हुआ है उसे। सर उसके हार्ट में वाल के अंदर छेद है। वह ज्यादा जी नहीं सकता

यह सुनकर मैं बहुत डर गया। भगवान इतने छोटे लड़क को इतनी तकलीफया
इतने में ही दरवाजे में हमारे शिक्षक रमा बहान देखो वह सामने जा रही है वह विवेक की मात पिता है।
हमने पास बुलाकर उनसे पूछा विवेक को ये प्रॉब्लम कब से है , और क्या वह ठीक नहीं हो सकता उन्होंने मना कर दिया सर इसका कोई इलाज नहीं डॉक्टर भी मना कर रहा है।
उनकी माता और पिताजी पेडल लारी चला रहे थे। दोनों के पैर में जूते भी नहीं थे ।
मैंने पूछा आपने जूते क्यों नहीं पहने हैं ?

सर जूते पहनते तो पाउट स्लिप खाता है हमसे फिरे कम लगते हैं इसलिए दुख ठंडी गर्मी में हम कभी जूते नहीं पहनते।

पूरा शिक्षक गण एकदम चिंतित था। एक तरफ गंभीर बीमारी और इलाज करने के लिए पैसे उनके पास था ही नहीं।

एक दिन मैंने विवेक को २ पुस्तक और कुछ कपड़े दिए विवेक ने लेने के लिए इंकार कर दिया सर मैं यह नहीं ले सकता।
मैंने बोला यह मेरे तरफ से तोहफा है विवेक आप ले लीजिए आप क्लास में सबसे होशियार विद्यार्थी हो।

विवेक सर मैं यह ले लूंगा लेकिन मेरा एक शर्त है । सर आपको मेरी तरफ से एक पेंटिंग लेनी होगी
मैंने विवेक की तरफ से दी गई सर्त का स्वीकार किया
विवेक खुश होकर अपने मेरे दिए गए कपड़े और बुक्स दोस्तों को दिखाने लगा।
दूसरे दिन विवेक क्लास में आकर सर मैंने आपके लिए पेंटिंग बनाई है और वह पेंटिंग सर आपकी है
मैंने देखा मेरी पेंटिंग चेहरा भी ऐसा था नाक नक्शा भी एक मैं देखकर आश्चर्यचकित हो गया विवेक इतनी अच्छी पेंटिंग आप कैसे बना लेते हो ?

मैंने विवेक की तारीफ की।

स्कूल का एग्जाम खत्म हो गया था छात्राओं का वेकेशन हो गया था हर साल की तरह आज भी विवेक क्लास में फर्स्ट आया था।
पर उनके तरफ से रीजल्ट लेने आने वाला कोई भी नहीं था ।तब हमको छात्राओं से पता चला विवेक अब यह दुनिया में नहीं रहा पूरे क्लास और शिक्षक गण में मानो सन्नाटा सा छा गया ।

हमने विवेक के घर पर जाकर उनके मां पिता को आश्वासन दिया उनकी तरफ से लगाई गई विवेक की प्रतिमा पुष्पा माला अर्पण सभी के चेहरे पर आंसू छलक रहे थे।
भूतकाल के इस समय को हम सोचते हैं तो हम सोचते ही रह जाते हैं। तभी तुरंत हम है विवेक की स्मृति यादें ताजा हो जाती है।

भूतकाल वह दर्पण है जिसमें हम अतीथको सुधारने का समझने का एक मौका मिलता है। हमारी तरफ से की गई अच्छाइयां हमेशा हमें वर्तमान में नया रास्ता बनके सामने आती हैं।