ADHA MUDDA SABSE BADA MUDDA - 15 to 25 in Hindi Women Focused by DILIP UTTAM books and stories PDF | आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) -अध्याय-15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25

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आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) -अध्याय-15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25

-----अध्याय १५."केवल नौकरानी नहीं |"-----

शादी बाद आज भी अधिकतर नारी को नौकरानी ही बनना पड़ता है क्यों?

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हर स्त्री जो बीमार होते हुए बेटा या पति के रहते हुए काम करे, बेटा या पति बीमार होने पर भी उसकी हेल्प न करें और न हेल्प करना चाहे, ऐसी सभी स्त्रियां नौकरानी से ज्यादा दर्जा नहीं रखती है |जब बीमार होने पर, हताश होने पर कोई आपकी सहायता न करें (आपका खुद का बेटा या पति तो), आप नौकरानी से ज्यादा कुछ भी नहीं, जिस घर में मां का सम्मान न हो, जिस घर में बहन का मान न हो, जिस घर में पत्नी का अधिकार न हो, ऐसे घर में कभी भी सुख शांति न होगी ,ऐसे घर की प्रगति न होगी |

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क्या घर की जिम्मेदारी केवल स्त्री की है?

बीमार हो या न हो उसका मन करे या न करे, फिर भी वह काम करेंगी, ऐसा किस ग्रंथ में लिखा है और कौन से कानून में लिखा गया है? तो समानता की दृस्टि से बीमार होने या न होने पर पुरुष उस काम से छुट्टी क्यों लेता है, वह बीमार होने पर भी ऑफिस क्यों नहीं जाता है और तो और आज संडे है और पूरे हफ्ते काम कर-कर के थक चुका हूं आज मैं कोई काम नहीं करूंगा और संडे को आराम करता है, वहीं एक नारी पर ये सब लागू क्यों नहीं होते? इसका अर्थ तो यही हुआ कि हम नारी को सम्मान नहीं देते, हम नारी के अधिकार नहीं देते, हम नारी की भावनाओं की कद्र नहीं करते, बस यूं ही मतलब के लिए चाहते हैं, केवल मतलब के लिए ही पूछते हैं, मतलब के लिए नारी को पूछते हैं ,ऐसा नहीं चलेगा, अगर हमें समानता देना है तो हमें सोच बदलनी होगी, हमें रूढ़िवादिता से निकलना होगा/तोड़ना होगा, हमें पुरानी सोचो को बदलना होगा ,हमें नारी को सम्मान देना ही होगा, हमें नारी को आगे बढ़ाना ही होगा|

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"अपनों के दर्द को तो समझो, पुरुष तुम |

अपनों को तो दिल से मानों |

अपनों को तो दिल से चाहो |

इससे वो खुश रहेंगीं |

इससे आप भी खुश रहेंगे |

और यही तो जीवन का लक्ष्य होना चाहिए |

यही तो जीवन का धेय होना चाहिए |

तभी जीवन में मजा आएगा |

तभी जीवन में हँसी आएगी |

तभी जीवन में खुशहाली आएगी|"

---- अध्याय १६."पुनर्विवाह |"-----

पुनर्विवाह जितना जायज पुरुषों के लिए है, उतना ही जायज स्त्री के लिए भी है| पुनर्विवाह के लिए जितनी जरूरत पुरुष को है और जितने बहाने पुरुष के लिए हैं, वह सभी बहाने, जरूरत स्त्रियों पर भी लागू होती है |स्त्रियों का पुनर्विवाह समाज गलत कैसे ठहरा सकता है? समाज आज भी मन से, क्यों ना स्वीकार कर रहा है |स्त्रियों के केस में पुनर्विवाह परिवार तक सीमित है, वहीं पुरुषों में एक शादी के बाद, फिर से एक दूसरी शादी की तरह भी शादी की जाती है तो स्त्रियों के साथ ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? जितनी जरूरत पुरुष को है, उससे ज्यादा जरूरत है नारी को | कब तक मारा जाएगा हर सपने को, हर अपने को, कब तक मारा जाएगा? अपनी को कब तक मारा जाएगा? कोई तो अंत होगा? कोई तो शुरुआत होगी? कोई तो राह होगी?कोई तो चाह होगी? यदि पुरुष की पत्नी खत्म हो जाए तो उसे किसी से भी डर नहीं रहता ,पुरुष को किसी से डर नहीं है आराम से जिंदगी काट सकता है, वहीं यदि किसी पत्नी का पुरुष खत्म हो जाता है या खत्म हो जाए तो शादी नहीं करेगी तो अपने ही डोरे डालने लगते हैं, पति के दोस्त उस पर डोरे डालने लगते हैं, रिश्तेदार भी डोरे डालने लगते तो ऐसी हालत पर जीना मुश्किल हो जाता है, वो टेंशन में रहने लगती है| मुश्किल हो जाता रहना उसका ,लोग मौका ढूंढते है, जितना जरूरी पुरुष को है पुनर्विवाह की उससे सौ गुना ज्यादा जरूरत स्त्री को है पुनर्विवाह की ताकि वह अपनी आबरू को बचा सके ,उसे कोई टेंशन न रहे, उसको कोई/ उसके मौके का कोई फायदा नहीं उठा सके, उसका शोषण न हो सके, वह आराम से जीवन जी सके, इसलिए उसको पुनर्विवाह की ज्यादा जरूरत है|

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" नारी की हर मुश्किल को समझना होगा |

नारी की हर काबिलियत को समझना होगा |

नारी को मौका देना होगा |

नारी को मजबूत बनाना होगा |

नारी से ही जीवन है |

नारी से ही राह है |

नारी से ही चाह है |

नारी से ही वाह है |

नारी नहीं तो कुछ नहीं |

न जीवन बढ़ेगा, न जीवन रहेगा ||"

----- अध्याय १७."वंशावली |" ----

अधिकतर पुरुष आज भी क्यों सोचता है कि, उसका वंश लड़का की चलाएगा/ बढ़ाएगा?

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लड़का ही वंश चलाएगा, यही सोच सबसे बड़ा कारण है, नारी के साथ होने वाले शोषण का, यही से नारी के शोषण का जन्म हुआ है, इसे मिटाना होगा, इसे खत्म करना होगा, इसे खत्म कर दिया तो नारी के आधे से ज्यादा शोषण तो यूं ही खत्म हो जायेगे| सब पापों की जड़- सब कर्मों की जड़ हमारी सोच है, हमारी सोच से ही सब चलता है, हमारे सोच से ही सब बदलेगा |नारी के शोषण का, नारी के अपमान का कारण ये वंश लड़के से ही चलता है, की सोच है| यही मेन कारण है, नारी के शोषण का | लड़का-लड़का-लड़का आखिर क्या है लड़का? ऐसा क्या है आपके लड़के में जो आपकी लड़की में नहीं है ,समान परवरिश कीजिए फिर देखिए कि कौन अच्छा है?, कौन सच्चा है?, कौन बुरा है|, बिना समान परवरिश के, खुद से लड़कियों के लिए गलतफहमी रखना उनका हक न देना ,उनको मान न देना, आपको पाप की ओर ले जाएगा, आप कितना भी गंगा नहा लें, आपके पाप ना धोयेंगे|

आप कितना भी धर्म-कांड कर ले |

आप कितना भी कर्म-कांड कर ले |

यदि बेटी के साथ भेदभाव किया तो आपके सब पुण्य, पाप में बदल जाएंगे |

सब कर्म धुल जाएंगे, आप जीरो हो जाएंगे|

(पूरे जीवन आपने अच्छे कर्म किए और मरने के बाद जब आप ईश्वर के यहां पहुंचेंगे तो आपने सोच रखा है कि आप टॉप करेंगे, आपने पूरे जीवन में बहुत कुछ किया, गरीबों की सहायता की, दान किया ,पुण्य कमाये, मंदिर गए परंतु अपनी बेटी से भेदभाव के कारण आपके सारे पुण्य जीरो हो जाएंगे, जीरो मतलब कुछ भी नहीं, आपका जीवन व्यर्थ हो गया है, जिस मकसद से प्रभु ने आपको भेजा था वह मकसद भी बेकार हो गया और बेटी के भेदभाव के कारण आप को फिर से जन्म लेना पड़ेगा और ज्यादा जन्म लेना पड़ेगा ऐसा मत कीजिए |अपने जीवन को दांव पर मत लगाइए, जीवन अनमोल है, जीवन के धेय को समझिए, जीवन के उद्देश्य को समझिए) -----

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"बेटा-बेटी में भेदभाव मत कीजिये |

बेटी को पराया धन मत कहिये |

बेटी से बैर मत करिये |

बेटी से बैर मत रखिये |

बेटी को जन्म से पूर्व मत मारिये |

बेटा-बेटी को समान शिक्षा दे |"

फिर देखिये आपका परिवार क्या रंग लाता है?

हर मुश्किल दूर होगी |

हर सपना पूरा होगा |

हर अपना -अपना होगा |

हर महफिल अपनी होगी |

जमीं-आसमां सब अपने होंगे |

जमीं-आसमां सब अच्छे होंगे ||"

----अध्याय १८."कहाँ है हक़?"-----

कानून बनने के बाद भी भाई-बहन में बराबर की संपत्ति(चल-अचल) नहीं बटती, यानी की संपत्ति का बंटवारा नहीं किया जाता | वो सोचती है कि मैं यदि संपत्ति लूंगी तो मेरा भाई ,मां-बाप से रिश्ता टूट जाएगा और भाई भी यही सोचता है की बहन ने यदि संपत्ति ली तो मैं बहन से रिश्ता तोड़ दूंगा |

कानून बन गया पालन कौन करता है?, कितने % लोगों ने स्वेच्छा से बंटवारा किया है और कौन बहन संपत्ति लेना चाहती है? परंतु उसकी शादी उसकी मर्जी से भी नहीं कराई जाती या जिस घर में शादी की जाती यदि कभी बहन के यहां कोई कष्ट हो जाता है या दुर्घटना हो जाती है तो कितने भाई लोग बहन की मदद करते हैं तो क्यों न अनिवार्य रूप से यह नियम लगाया जाये की संपत्ति बाटनी ही होगी, क्या भाई-भाई हिस्सा नहीं लेते तो भाई-बहन के हिस्से लेने में क्या समस्या है? संपत्ति की बात के अलावा न तो उसे समान शिक्षा दी जाती है (यह समान शिक्षा का % बहुत कम है अभी )और न ही समान परवरिश की जाती है इतना भेदभाव क्यों, क्यों इतनी नफरत क्यों है? मेरी यह बातें लोगों को खराब लगेगी, मैं खराब लगने के लिए ही लिख रहा हूं ताकि आप को खराब लगे आपको दर्द हो, आप समझे किसी भी तरह समझे, मेरा यही मकसद है, मेरा यही मकसद है कि नारी का अपमान न हो, नारी का सम्मान हो, हर स्तर पर सम्मान हो और उसको अधिकार मिले, जब उसको उसके पूरे अधिकार मिलेंगे तभी उसको शोषण से आजादी मिलेगी|

आज जरूरत है उसके अधिकारों की,उसके स्वतंत्रता की, उसके मान-सम्मान की, ताकि वह अपना सर उठाकर जी सके, ताकि वह मुसीबत पड़ने पर, दुनिया से ताल से ताल मिला कर आगे बढ़ सके और अपने परिवार को आगे बढ़ा सकें|

------

"आज जरुरत है, उसे मजबूत बनाने की |

आज जरुरत है, उसे पैरों में खड़ा करने की |

आज जरुरत है, उसे मान-सम्मान देने की |

आज जरुरत है, उसे समझने की |

आज जरुरत है, उसे आगे बढ़ाने की |"

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क्योंकि नारी कितनी महान है, इसे समझना ही होगा ------

नारी की महानता को समझिए, पूरी फैमिली कहीं टूर पर गई, पिकनिक पर गए, पूरा सुबह से शाम तक घूमने के बाद घर लौटे तो थक कर चूर-चूर हो गए यहां तक ली बैठा भी नहीं जा रहा, बस मन कर रहा है कि सो जाओ परंतु भूख लग रही है ऐसे में भी नारी आपके लिए ,मां/पत्नी आपके लिए खाना बनाती है, आपको खाना खिलाएगी, जबकि आप के साथ वो भी गयी थी और वो भी बहुत थकी हुवी है, फिर भी बिना कोई शिकायत के हंसते-हंसते आपको खाना बना कर प्यार से खिलाती है, आप खुद को नारी से ज्यादा ताकतवर समझते हैं ,शारीरिक तौर पर फिर भी आप थक चुके होते है, टूट चुके होते हैं तब सोचिये की नारी की ऐसे में क्या हालत होगी? फिर भी वो चाहे थोड़ा सा खाना बनाये, चाहे वह खिचड़ी ही क्यों न बनाये, पर वह आपको/परिवार को खाना बना कर खिलाती है, यह महानता है नारी की |इसे समझना ही होगा, इसका मान नारी जाति को देना ही होगा, तभी हम नारी के ऋर से थोड़ा-बहुत मुक्ति पा सकेंगे|

----अध्याय १९."कद्र कहां है?"----

घरेलू शोषण प्राय: नारियों पर पुरुषों द्वारा ही किया जाता है, क्यों?

शारीरिक व मानसिक शोषण से उसको नौकरानी बना कर रखना, बिना पगार के काम करना ऐसा क्यों होता है?

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ऐसा पुरुष के अहम के कारण, पुरुष अपने को मर्द समझता है की सोच के कारण, औरत न तो बढ़ी है, न बराबर की है, औरत कुछ भी कर ले और हमेशा नीचे ही रहेगी, ऐसी सोच के चलते औरत के अधिकारों को पुरुष मारता रहता है |

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"ओ अहम भरने वाले पुरुष, तू बता जरा |

ओ मर्द बनने वाले पुरुष, तू बता जरा |

उसकी गलती पर तू मारे हैं|

उसकी गलती पर जग उठाए हैं|

पर तेरी गलती का क्या है, रे?

पर तेरी गलती का क्या है, रे?

तेरी गलती का क्या दंड है?

तू बता जरा, तू बता जरा|

तू क्या दूध का धुला है?

अरे शराबी तू ,कवाबी तू ,अय्याश तू |

अरे शराबी तू ,कवाबी तू ,अय्याश तू |

एक निहत्थी नारी पर अत्याचार करता है|

ऑफिस पर बॉस की मार खाता है, डांट खाता है, सर झुका कर आ जाता है|

तू पुरुष सुन जरा, तू मेरी कठोर वाणी, तू पुरुष सुन जरा, तू मेरी कठोर वाणी|

मर्द है तू तो क्यों सुनता है बॉस की, तू सुनता है अपने से ताकतवर की |

और घर आकर शेर बन जाता है|

बाहर जाते ही ढेर हो जाता है |

खुद का विश्लेषण करना ही होगा |

खुद की कमियों को मानना ही होगा |

खुद की कमियों को स्वीकार करना ही होगा |

खुद का अहम ख़त्म करना ही होगा |

दूसरों(नारी) की कमियों को अपनी कमियों की तरह स्वीकार करना ही होगा |

तभी हम(पुरुष) नारियों को समझ सकेंगे और उनके साथ न्याय कर सकेंगे |"

----अध्याय २०."इच्छा भी अपनी कहाँ?"-----

आज की नारी की इच्छाओं का ध्यान नहीं रखा जाता है, आम परिवारों में आज भी माताएं -बहने ही शाम की बासी रोटियां ही खाती है क्यों?

लड़का घर पर बैठकर मजे करता है, वहीँ लड़कियों से खूब काम कराया जाता है, लड़के को मलाई, लड़कियों को बासी रोटी क्यों?

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चलिए आपकी सोच की बात कर लेते हैं, आप लड़के को अच्छी परवरिश देते हैं, फिर वह आपसे चिढ़ता क्यों है? फिर वह बुढ़ापे पर आपका सहारा क्यों नहीं बनता? आपके मान-सम्मान का ध्यान क्यों न रखता है? आपने शराब पीने की परवरिश तो नहीं की, फिर वो शराबी कैसे बन गया? वह कवाबी कैसे बन गया? वह कैसे बन गया? आप तो अच्छी परवरिश देते हैं, फिर भी आपका बेटा बिगड़ जाता है, समान परवरिश क्यों नहीं दी जाती? एक को सताया जाता है, रुलाया जाता है, तड़पाया जाता है, वंचित किया जाता है| क्या नारी को दिल में नहीं लगता है कि, वह काम कर रही उसका भाई बैठा है, उसके भाई को मलाई मिल रही है, उसको बासी रोटी, उसको नहीं खलेगा क्या? उसको दिल नहीं है क्या? उसका मन नहीं है क्या? वह क्या पत्थर की मूरत है? रूढ़िवादिता से निकलने का समय आ गया है, उसके अधिकारों का समय आ गया है,समानता का समय आ गया है, स्वतंत्रता का समय आ गया है, आगे बढ़ने का ,परिवार के बढ़ने का, देश के बढ़ने का और पुरुषो की सोच के बढ़ने का समय आ गया है |

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"रूढ़िवादिता ख़त्म करनी ही होगी |

फालतू की रोकटोक, नारियों को दबाकर रखने की सोच को मारना ही होगा |

उसे उसका हक़, मान-सम्मान, अधिकार, स्वतन्त्रा देना ही होगा |

जब-तक ऐसा न होगा तब-तक परिवार, समाज और देश का सच्चा विकास न होगा |

और जब-तक ऐसा न होगा,तब-तक पुरुषो की सोच संकुचित ही रहेगी |

नया समाज बनाना है तो सबको साथ लेकर चलना ही होगा |"

----अध्याय २१."मौका-परस्त पुरुष|"-----

वास्तव में पुरुष नपुंसक होता है और वह नारी को अबला कहता है, पुरुष स्त्री के मौके, मजबूरी का फायदा उठाता है, पुरुष की सबसे बड़ी फितरत यही है कि वह मौके का फायदा उठाना जानता है |पुरुष को जहां जब, कैसे भी हालातों में मौका मिलता है, वह नारियों के मौके का फायदा उठाता है, नारियों की मजबूरी का फायदा उठाता है क्योंकि "आनंद के सिवा उसे कुछ न दिखता है, कुछ न सुनता है, कुछ न याद रहता है | " ऐसा है पुरुष, ऐसा ही है पुरुष, तुच्छ विकृति का ,स्वार्थी, अहंकारी दम भरने वाला, झूठा ,मक्कार ,दूसरों को दर्द तो छोड़ो अपनी पत्नी, मां का दर्द न समझने वाला, ऐसे सभी पुरुष नपुंसक ही है, इतनी बुराइयों के साथ पुरुष जिसे नारी ही जन्म देती है, सजाती है, बनाती है, सॅवारती है, यह पुरुष उसी को गाली देता है, माता पर क्रोध करता है, अपराध बोध कराता है, उसकी स्वतंत्रता का हनन करता है, उसकी अजन्मी बेटियों को मारता है, उसके साथ भेदभाव करता है ऐसा है पुरुष जिसे गाली देने पर गर्व व आत्मविश्वास पैदा होता है और तो और पुरुष जब दुखी होता है, अकेले भी होता है तो जब वो खुद से बात करता है तो भी खुद से गाली देकर बातों को टालता है ,खुद को मजबूत महसूस करने की कोशिश करता है, ऐसा होता है पुरुष और महानता की बस ढींगे हांकता रहता है |

कल्पना कीजिये की यदि नारी की जगह पुरुष बच्चो को जन्म देते होते तो इस महान कार्य के लिए कितना कुछ वसूलते नारियो से और नारियो के महान कार्य के लिए ,सबसे महान कार्य के लिए वो क्या करते है?

"जरा सी बात पर गुस्सा हो जाते है |

जरा सी बात पर मारपीट तक करते है |

जरा सी बात पर गाली तक देते है |

जरा सी बात पर समाज /परिवार /रिश्तेदारों के सामने जलील करते है |

जरा सी बात पर उसका शारीरिक /मानसिक शोषण करते है |"

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हर जगह अपनी चलाते रहते है, केवल अपनी सुनते है आज भी अधिकतर घरों में नारियों को बोलने भी नहीं दिया जाता है, उन्हें बोलने की आजादी नहीं है तो ऐसी स्थिति में परिवार के लिए ,समाज के लिए, देश के लिए वो अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाती है, उन्हें भी हर जगह पर बोलने, योगदान देने की आज की जरुरत है |आज के समय पर वही देश आगे बढ़ेगा, जब पूरी आबादी का योगदान मिलेगा, न की आधी आबादी का, बिना नारियों के योगदान के बिना, हम अपने देश का विकास न कर सकेंगे, मानव जाति को लेकर चलना ही होगा न कि केवल पुरुष जाति देश का विकास कर सकेंगे |

-----

"बिना नारी के योगदान के देश/समाज/परिवार का विकास न होगा |

बिना नारी के योगदान के पुरुष का विकास न होगा |

बिना नारी के योगदान के मान-सम्मान का विकास न होगा |

बिना नारी के योगदान के घर का(जिसे नारियां ही स्वर्ग बनातीं है|) विकास न होगा |

बिना नारी के योगदान के बच्चों का विकास न होगा |

बिना नारी के योगदान के(पत्नी), आपके माँ-बाप खुश न रहेंगे |"

-----

ऐसी होती है महान नारी पर शर्म की बात है की, इतना सब होने के बावजूद वो अपने अधिकारों से वंचित है, शोषित है| आज जरुरत है नारियों को समझने की, उनके दर्द को महसूस करने की, उनको अपना बनाने की, तभी आपका, आपके परिवार का, समाज का और देश का विकास हो पायेगा |

-----अध्याय २२."स्त्री की हालत |"-----

आज भी घर के सभी के खाने के बाद पत्नियां खाना खाती है, घर का पूरा काम करेंगी चाहे वह बीमार हो तब भी और फिर भी पुरुषों की तानाशाही चलती ही रहती है, स्त्री की हालत क्या है? ये समझना ही होगा, परिवार को खिलाने के बाद खाती है कई बार तो उसके खाने को खाना कम पड़ जाता है, फिर भी वह खुशी से कम खाना खा लेती है, खुशी से सो जाती है, खलता उसे तब है जब एक रोटी बढ़ जाने पर पति उसको हजार बातें कह डालता है, पत्नी से ऐसी अपेक्षा की जाती है कि एक रोटी भी न ज्यादा हो जाए, यदि ज्यादा हो जाये तो वही सुबह खाये यदि उसने फेंक दिया तो तहलका मच जाता है, १००० वोल्ट का झटका पति को लग जाता है, हंगामा मच जाता है, गाली-गलौज मारपीट तक हो जाती है, इतने त्याग के बाद भी न सम्मान मिलता है, न प्यार मिलता है और अधिकार भी न मिलता क्यों? क्यों?आखिर क्यों?

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"स्त्री होना क्या श्राप है?

स्त्री होना क्या पाप है?

स्त्री होना क्या जुर्म है?

स्त्री होना क्या उनके हाथ में है?

स्त्री होना क्या गुलामी है?

स्त्री होना क्या, सहते जाना का नाम है?

स्त्री होना क्या हर इच्छा को दबा देना है?

स्त्री होना क्या उसकी आवाज को दबा देना है?

और भी बहुत कुछ है ||"

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जब आप ऑफिस में(या कर्मभूमि में) पूरी ईमानदारी से कार्य करते है या हजार अच्छे काम करने की बाद एक काम गलती से गलत हो जाने पर भी आपका बॉस आपको डाँटता है, एक्शन लेता है तो आपको कितना खराब लगता है और आप टेंशन में चले जाते है, ठीक ऐसे ही पत्नी को जब आप जरा से गलती या अनजानी गलती पर डांटते है तो वो भी इसी दर्द पर चली जाती है, वो भी ये दर्द महसूस करती है, इस दर्द को समझना होगा, इस दर्द को मानना होगा, इस दर्द को एहसास करना होगा. इस दर्द को हर समय बसा कर रखना होगा| हम बुद्विमान पुरुष ऐसा क्यों नहीं करते है? क्यों सताते है पत्नी को? ये समझना ही होगा, पत्नी की वैल्यू/इज्जत करना की होगा |

----- अध्याय २३."नारी मन |"-----

शादी से पूर्व या शादी के बाद पुरुष संबंध रख सकता है, वहीं नारी रख ले तो आफत, पुरुष शादी पूर्व या शादी बाद संबंध रखता है तो खुद को समस्या नहीं होती(पुरुषों को समस्या नहीं) यदि घर वाले को भी पता चलता है तो, गलत है कह के/गुस्सा करके मामला शांत करा देते है, वही नारियां करे तो उसे मारा जाता है ,जान से खत्म कर दिया जाता है, एक ही अपराध के लिए, एक ही पाप के लिए लिंगभेद के आधार पर सजा दी जाती है |आनंद की बात करें, सुख शांति की बात करें, पुरुषों के लिए, औरतों के लिए, ऐसा पुरुष शादी से पूर्व शादी के बाद संबंध रखता है तो उसे तो सोचने का हक नहीं है कि उसकी पत्नी किसी और से संबंध रख रही है, बुरा कर रही है |

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"खुद गलती करते हो और वो गलती तुम्हारे लिए सही है |

वहीं पत्नी /बहन /गर्लफ्रेंड करे तो गलत है क्यों?

ये गलत है तो आपकी गलती सही कैसे हुयी?

ये तो स्वार्थ हुवा, जब मन हुवा सही कहा, जब मन हुवा उसी बात को गलत कहा |

अपने हिसाब से खुद के रूल बनाया |

जहां आपका फायदा उसे सही कहा |

जहां आपके ईगो पर बात आयी ,

जहां आपके मर्द होने की बात आयी |

वहां वो बात गलत हो जाती |

आप कर सकते हो पर नारी नहीं, क्यों?

ये लाइसेंस किसने दिया |

यदि ये करने का लाइसेंस है तो उसे दिखाओ |

अन्यथा ये फालतू की सोच बंद करो |

नारी का समझो और उसका हक़ दो ||"

---अध्याय २४."ख्वाब कहाँ?"-----

सभी पुरुष सुंदर गर्लफ्रेंड और पत्नी चाहते हैं, सभी पुरुष का ख्वाब एक सुंदर स्त्री होती है, आज हमें शादी का मेन मकसद क्या है? शादी क्यों करते हैं? इसको समझना ही होगा ,इसका विश्लेषण करना ही होगा और पुरुषों को ये साफ करना ही होगा की क्या औरत केवल काम की चीज है, जब-तक यह भावना रहेगी, जब-तक यह चीज रहेगी तब-तक स्थिति न सुधरेगी, तब-तक औरतों की स्थिति न बदलेगी, जबकि नारी इतनी महान होती है की उसी के कारण परिवार चलते है वरना परिवार तो न जाने कब टूट जाये, क्योंकि पुरुषो में तो ईगो बहुत ही ज्यादा होता है( पुरुष भी जब इसका विश्लेषण करेगा तो उसे खुद से ग्लानि हो जाएगी, की इतना ज्यादा ईगो है/अहं है|) और परिवार न चल सकेंगे, फिर भी नारी का सम्मान न होता है, उसकी अहमियत न की जाती है, ये दुःख का विषय है, सोचनीय विषय है, निंदनीय विषय है और अमानवीय है |पुरुषों को अपना नजरिया नारी के प्रति बदलना की होगा, उसे उसका ही अधिकार देना ही होगा अन्यथा परिवार में सच्ची खुशियाँ न मिलेगी और परिवार खुश न रहेगा तो पुरुष भी खुश न रहेगा, जिससे परिवार व आप समाज के लिए अपना अच्छा परिणाम न दे पाएंगे और हमारा भारत विश्वगुरु न बन सकेगा |परिवार को ,समाज को और देश को अच्छा बनाने के लिए, नारी को सम्मान व उसके अधिकार देने ही होंगे और ये अधिकार पुरुष अपनी झोली से नहीं देगा, ये नारी के ही अधिकार है, जो उसका हक़ है, जिसे सदियों से पुरुषों ने उसे नहीं दिया है, अब देना ही होगा सोचिये जरा -----

१. कितना अच्छा होगा की पुरुषों की तरह नारी कभी भी, कहीं भी अकेले घूम सके, इसके लिए केवल व केवल पुरुषों को सोच बदलनी है, हर नारी को मौका नहीं समझना उसको(आपको) केवल इतना समझना है की वो भी एक प्राणी है जिसे हमें घूरना नहीं है, उसका पीछा नहीं करना ,उसको परेशान नहीं करना, उस पर नजर नहीं रखना है, उसको देखकर कमेंट नहीं करना है, उसको देखकर अनैतिक पाने की कल्पना नहीं करनी है, उसको असहज फील नहीं कराना है और उसकी स्वतंत्रता का सम्मान करना है| ये सब पुरुषों को कोई कानून पूरी तरह से लागू न करा पायेगा बल्कि पुरुषों को केवल सोच का नजरिया बदलना है और सब ठीक हो जायेगा ,नारी के ऊपर हो रहें अधिकतर अपराध ख़त्म केवल पुरुषो की सोच बदलने व नजरिया बदलने से ख़त्म हो जाएंगे|

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"पुरुष की चाहत है वो |

पुरुष की राहत है वो |

पुरुष का खाव्ब है वो |

पुरुष का मान-सम्मान है वो |

पुरुष का अभिमान है वो |

पुरुष का दिवास्वप्न है वो |

पुरुष का सबकुछ है वो |

फिर भी नारी शोषित है, अपेक्षित है और पिछड़ी है |

फिर भी नारी दुखी है, खामोश है और पिछड़ी है |

ऐसा क्यों है?

वैसा क्यों है?

जैसा भी है ऐसा-वैसा क्यों है?

सोचना ही होगा, विचारना ही होगा |

नारी को बस इंसान समझना ही होगा |

नारी का संसार समझना ही होगा |

नारी को अधिकार देना ही होगा |

नारी को स्वतंत्रता देना ही होगा |

तभी उसका प्यार चुका पाएंगे |

तभी उसका ऋर चुका पाएंगे |

तभी उसका ऋर चुका पाएंगे |

तभी उसका प्यार चुका पाएंगे |"

-----अध्याय २५."कैसी पवित्रता?"-----

समाज कैसी पवित्रता चाहता है? इसे समझना ही होगा/ मानना ही होगा/स्वीकार करना ही होगा और किसी न किसी निष्कर्ष पर पहुंचना ही होगा, जो सभी के लिए(नारी और पुरुष दोनों के लिए) सही हो|

पुरुष चाहता है कि उसकी गर्लफ्रेंड/पत्नी पवित्र हो, चाहे वो कितनी भी अय्याशियों से घिरा हो पर वह यही चाहता है तो ये कतई भी सही नहीं है/ कतई भी जायज नहीं है, एकतरफा नियम से सबका बंटाधार ही होगा तो क्या समाज ऐसी पवित्रता चाहता है? या समाज एकतरफा नियमों वाली सोच चाहता है|

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पुरुष कितना भी अय्याश क्यों न हो? परंतु स्त्री/पत्नी/बहन/मां को पवित्र ही देखना चाहता है क्यों?

खुद कितना ही बड़ा व्यभिचारी, अय्याश, शराबी और कवाबी हो परंतु वह अपनी पत्नी/गर्लफ्रेंड को पवित्र चाहता है, पवित्र चाहना गलत नहीं ,पवित्र पत्नी चाहने का हक़ उसी पुरुष को है जो खुद पवित्र है/हो| अपवित्र पुरुष का पवित्र पत्नी चाहना गलत ही है, यह सही नहीं है और जो ऐसा करते हैं, ऐसे गलत पुरुष को पश्चाताप करना ही होगा |शादी के समय भी पुरुष सर्वगुण संपन्न लड़की चाहता है, अरे भाई अपने तो देख कितने गुण है तेरे में, पैसा या जॉब के अलावा कुछ भी चाहे गुण न हो तो भी बिना गुण वाले पुरुष, तू ही बता कैसे पटेगी सर्वगुण संपन्न से वह आप पर भारी पड़ेगी यह क्यों न सोचते हो?

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एक तरफा काम तो कोई पुरुषों से सीखे|

एक तरफा प्यार में पागलपन कोई पुरुषों से सीखे|

एक तरफा नियम तो कोई पुरुषों से सीखे|

एक तरफा धर्म तो कोई पुरुषों से सीखे| (देवी को पूजते हैं और फिर कन्या भ्रूण हत्या करते हैं /करवाते हैं ,ऐसा विद्वान है पुरुष, ऐसा महान है पुरुष, ऐसा स्वाभिमानी है पुरुष, ऐसा अभिमानी है पुरुष, वहीं औरतों की महानता देखिये की वह अपने पति को भी माफ कर देती है, परंतु पति, पत्नी की जरा सी गलती भी माफ नहीं कर पाता/ बर्दाश्त नहीं कर पाता है| वह किसी से प्रेम तो छोड़ो किसी से थोड़ा से ज्यादा हंसकर बोल दिया तो उसे खराब लग जाता है, उसके लिए भी पिटाई कर देता है, उस बात के लिए उसे सालों साल तक कोसता रहता है| ऐसा पुरुष है, जिसे संभालती हमारी नारियां है ,इसे पहचानती हमारी नारियां है, फिर भी वह चुप है क्यों की वो प्रेम करती है, सच्चा प्रेम करती है, अथाह प्रेम करती हैं |