आज के दौर के सशक्त कहानीकारों के बारे में जब मैं सोचता हूँ तो ज़हन में आए नामों में एक नाम योगिता यादव जी का भी होता है। यूँ तो अंतर्जाल पर या फिर साझा संकलनों में उनकी कुछ रचनाएँ मैं पहले भी पढ़ चुका हूँ लेकिन अब जा कर मुझे उनका पूरा कहानी संकलन "क्लीन चिट" पढ़ने का मौका मिला।
सहज, सरल...प्रवाहमयी भाषा में लिखी गयी इस संकलन की कहानियों में खासी रवानगी है। अपने साथ..अपने सफ़र पर ले जाती हुई ये कहानियाँ कहीं पर भी पाठक को बोझिल नहीं करती हैं और वो उन्हें एक के बाद एक पढ़ता हुआ किताब को बिना खत्म किए चैन नहीं लेने पाता।
इस कहानी संकलन की एक कहानी में जहाँ एक तरफ ऐसे सामाजिक तुग़लकी फरमानों के खिलाफ एक बेटी का विद्रोह है जिसको जारी करने की कोई तुक ही नहीं थी वनहीं दूसरी तरफ एक कहानी में 84 के दंगों में दोषियों को अदालत द्वारा क्लीन चिट दिए जाने की ख़बर को आधार बना कर एक सशक्त प्रेम कथा का सारा ताना-बाना रचा गया है।
इस संकलन की किसी कहानी में बड़े निजी स्कूलों द्वारा बच्चों के भबिष्य से होने वाले खिलवाड़ को बोन्साई वृक्ष के माध्यम से सांकेतिक रूप में दिखाया है तो किसी कहानी में आधुनिक पढ़े-लिखे तबके को भी ग्रह नक्षत्रों के चक्कर में फँस उल्टे सीधे उपाय अपनाते हुए दिखाया गया है। किसी कहानी में दूर के ढोल सुहावने दिखते हुए भी सुहावने नहीं निकलते तो आँखें मूंद उन्हें ही सुहावना मान लिया जाता है तो किसी कहानी में कश्मीर में गली-मोहल्लों से बच्चों के गायब होने की कहानी को विस्तार दिया गया है तो किसी कहानी में वक्त ज़रूरत के हिसाब से भेड़ियों द्वारा रूप और चोला बदलने की कहानी है।
किसी कहानी में संयुक्त परिवार में खुद का बच्चा ना होने की वजह से हिस्सा ना मिलने के डर से एक युवती नाजायज़ रिश्ते से एक बच्चे की माँ तो बन जाती है मगर फिर भी क्या उसे, उसका हक़ मिल पाता है?
इस संकलन की कुछ कहानियों में मुझे अलग तरह के ट्रीटमेंट दिखाई दिए जैसे...कहानी 'नेपथ्य में' का ट्रीटमेंट मुझे उसके शीर्षकानुसार नाटक के जैसा ही लगा। कहानी 'नागपाश' मुझे आम पाठक की नज़र से थोड़ी कॉम्प्लीकेटेड लगी। अपनी समझ के हिसाब से अगर देखूँ तो एक कहानी "काँच के छह बरस' मुझे थोड़ी कन्फ्यूजिंग लगी लेकिन मैं जल्द ही इसे फिर से पढ़ना चाहूँगा क्योंकि कुछ कहानियाँ धीरे-धीरे परत दर परत आपकी समझ के हिसाब से खुद को खोलने वाली होती हैं।
कहने का तात्पर्य ये कि पूरे संकलन में कई छोटे-बड़े लेकिन महत्त्वपूर्ण मुद्दों को आधार बना कर सभी कहानियों का ताना बाना बुना गया है। शिल्प के हिसाब से अगर देखें तो कसी हुई बुनावट एवं चुस्त भाषा शैली पाठक को अपनी तरफ आकर्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती।
इस संकलन में कुल 19 कहानियाँ हैं जिनमें से कुछ कहानियों ने मुझे बहुत प्रभावित किया। उनके नाम इस प्रकार हैं:
• क्लीन चिट
• साइन बोर्ड
• 108वाँ मनका
• शो पीस
• झीनी-झीनी बिनी रे चदरिया
• ग़ैर बाग से
132 पृष्ठीय इस संग्रणीय संकलन के हार्ड बाउंड संस्करण को छापा है भारतीय ज्ञानपीठ ने और इसका मूल्य रखा गया है ₹180/- जो कि किताब की क्वालिटी और कंटैंट के हिसाब से बहुत ही कम है। आने वाले भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं।