Nigrani in Hindi Moral Stories by Santosh Srivastav books and stories PDF | निगरानी

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निगरानी

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ट्रेन रवाना होने तक रमाकांत चिंतित थे । पूरी बोगी लगभग खाली, महिला यात्री तो एक भी नहीं। लेकिन उन्होंने बेटी सोनल के सामने अपनी चिंता प्रकट नहीं होने दी । दिलासा देते रहे "मेरी बहादुर सोनल, तेरे दिल्ली पहुँचते तक मैं फोन पर तेरा इंतजार करता रहूँगा। "

ट्रेन ने प्लेटफार्म पार ही किया था कि वे चार अपनी सीट ढूंढते हुए उसकी सीट के सामने आ बैठे। तीन इस तरफ चौथा सामने। चारों ने सीट के नीचे अपने बैग, अटैचियाँ जमाईं और आराम से बैठ गए।

उनके बीच खुद को अकेला पा सोनल को घबराहट हुई । वह यूपीएससी के सीएसई एक्जाम की परीक्षा के लिए दिल्ली जा रही है। भारी प्रतिस्पर्धा है इस क्षेत्र में। मगर वह जी जान से लगी है अपने इस सपने को सच करने में।

सपना रमाकांत का भी है। उनकी बेटी कलेक्टर बने । उसकी कोचिंग के भारी खर्च के लिए उन्होंने क्या कुछ नहीं किया। भविष्य के लिए जुड़े रुपयों तक की परवाह नहीं की। हॉस्टल से जब सोनल फोन पर बताती-

"पापा कोचिंग से बहुत जानकारी मिल रही है। सारी सूचनाएं, खबरें, वर्षों के पेपर और स्टडी मैटेरियल कोचिंग में हमें मिलते हैं। देखना पापा इस बार मेरा सिलेक्शन हो कर रहेगा। सोनल के उत्साह से वे भी उत्साहित हो जाते। मन ही मन उस दिन को याद करते जब सोनल की माँ सोनल को गोद में खिलाते हुए कहा था-

" मेरी प्यारी सोना बिटिया। देखना कलेक्टर बनेगी एक दिन। हम दोनों पर खूब रुआब गाँठेंगी। है न सोना बिटिया । "

वे उनके कैंसर पीड़ित चेहरे की सप्रयास चमकती आँखों को देखते ही रह जाते। उनकी मृत्यु के बाद 12 साल के अभिषेक और 10 साल की सोनल को रमाकांत ने बिन माँ के पाल पोस कर बड़ा किया । सगे संबंधी कहते रहे कि दूसरी शादी कर लो पर उन्होंने उन दोनों की खातिर शादी नहीं की। अभिषेक विदेशी कंपनी में कार्यरत है। महंगे पैकेज मिलते हैं उसे। लेकिन उसमें भविष्य की क्या गारंटी? विदेश जाने की लाखों रुपयों की चकाचौंध अलबत्ता इंसान को भरमाय रखती है। सोनाल ने खुद को इस चकाचौंध से दूर रखा।

" कहाँ तक जाएंगी आप ?"

"जी?" पल भर वह अचकचाई फिर सामान्य दिखने की कोशिश करते हुए बोली "दिल्ली"

" आप चाहें तो लोअर बर्थ ले सकती हैं। हम ऊपर वाली बर्थ पर सो जाएंगे। हमें तो अमृतसर तक जाना है। "

" जी शुक्रिया, मैं कंफर्टेबल हूँ। सोनल ने पर्स उठाया और वॉशरूम चली गई। वॉशरूम से उसने रमाकांत को फोन लगाया-" पापा, मेरे सामने की सीटों पर चार मुस्लिम हैं । उनके साथ कोई लेडी नहीं है और पापा वे बार-बार मुझसे बात करने की कोशिश कर रहे हैं । "

सुनकर वे भी घबरा गए । आजकल ऐसी घटनाएं घट रही हैं। अखबार ऐसे ही समाचारों से भरे रहते हैं । लेकिन अपनी घबराहट उन्होंने प्रगट नहीं होने दी। वे उसे तसल्ली देते हुए बोले '"घबराओ मत बेटा, गार्ड को बोल कर रखो । जरा भी संदेह हो तो तुरंत रेलवे पुलिस को फोन करना । मैं भी यहाँ से पुलिस को कांटेक्ट करता हूँ। सिचुएशन पहले से बता दो तो बेहतर है। कोई भरोसा नहीं इनका,कब क्या कर बैठें।

रमाकांत की बातें सुन और भी डर गई सोनल। वॉशरूम से निकल उसने पूरी बोगी का जायजा लिया। न अटेंडेंट था, न गार्ड । आठ दस मुसाफिर ही होंगे। जो आसपास से बेखबर अपने अपने मोबाइल में मुब्तिला थे। महिला मुसाफिर एक भी दिखाई नहीं दी। अपनी सीट पर आने से पहले सोनल ने चेहरे पर सामान्य स्थिति लाने की कोशिश की । वह क्यों जाहिर होने दे कि वह घबराई हुई है ।

वाह सोनल जी, आप प्रशासनिक पद पर कार्य करने को तत्पर हैं । जिले का पूरा प्रशासन आपके हाथ में होगा और एक छोटी सी सिचुएशन हैंडल नहीं कर पा रही हैं?"

उसने अपने भीतर से उठे सवाल का जवाब भी दिया-" नहीं मैं डर नहीं रही हूँ। बस जरा एक्स्ट्रा सावधानी बरत रही हूँ। "

उसने अपना बैग उठाकर ऊपर अपनी सीट पर रख लिया। लैपटॉप सामने रखकर मोबाइल में हॉटस्पॉट ऑन करने लगी। बैग के कारण लैपटॉप खोलने में दिक्कत हो रही थी।

"सीट के नीचे ठीक ही तो रखा था बैग। अब आप सोएंगी कैसे? परेशानी होगी आपको। " सामने वाली सीट पर बैठे हुए ने कहा ।

जी तो चाहा कह दे आप से मतलब। लेकिन चुप रही । मन में आशंका भी थी कि उनकी अवहेलना करेगी तो जाने क्या कर बैठें। मन का डर, संदेह, अवहेलना तो बिल्कुल प्रगट नहीं होने देना है । ऊपर चढ़ने से पहले सोनल ने जूते उतारकर बैग के ऊपर रख लिए। सीट पर आकर वह सहज दिखने की कोशिश करने लगी। भूख जोरदार लगी थी। रानी ने मेथी के पराठे और आलू की भुजिया अचार के साथ पैक कर दी थी। "खा लेना बिटिया, नहीं तो भूखी सो जाओ । "

माँ के समय की नौकरानी अब भी उसी तरह पूरे घर का काम संभालती है जैसे उनके समय संभालती थी । अब वह भी घर के सदस्य जैसी हो गई है। वे चारों अपना अपना टिफिन खोल कर खाना शेयर करने लगे।

" आप भी लीजिए । "उनमें से एक ने टिफिन उसकी ओर बढ़ाया। "

" जी मेरे पास है । शुक्रिया । "बेहद नम्रता से सोनल ने कहा और अपना टिफिन खोल लिया । वे चारों हँसते, बतियाते खाते रहे। टिफिन तो खोल लिया था सोनल ने पर घबराहट के मारे खाया नहीं जा रहा था। एक दो निवाले लेकर उसने टिफिन बंद कर दिया और ढेर सारा पानी पी गई । उसका गंतव्य सुबह होते होते आ पाएगा । क्योंकि ट्रेन लेट चल रही है। कैसे बीतेगी पूरी रात और पूरी रात जागने के बाद सुबह 11 बजे पेपर कैसे देगी। भूख तो मर चुकी थी। रिवीजन की अलग टेंशन। सोचा था ट्रेन में एक बार रिवीजन कर ही लेगी पर जैसे ही लैपटॉप खोला नीचे से बैग सरकाने की आवाज आई। वह गहरे संदेह में पड़ गई । उसे बार-बार सीट के नीचे रखा उनका बैग खींचकर खोलना शंका में डाल रहा था। पता नहीं बैग में क्या रखे हैं। खाना खाकर उन्होंने बिस्तर लगाया। काफी देर तक आधे झुके हुए कंबल चादर मिलाते रहे । लेटने से पहले उन्होंने लाइट ऑफ कर पर्दे खींच लिए। सोनल को लगा उसके शरीर का खून जम गया है। उसने अपनी तरफ का पर्दा सरका दिया। अब डिब्बे की रोशनी काफी हद तक केबिन को रोशन किए थी। लैपटॉप बंद कर वह घुटने मोड़ लेट हो गई पर उसका दिल ट्रेन की रफ्तार जैसा उतनी ही तेजी से धड़क रहा था । इस वक्त वह सीट पर अकेली चारों ओर से मुस्लिम पुरुषों से घिरी। जरा सा भी खटका होता वह आँ खें फाड़ फाड़ कर देखने लगती। पहले हरकतें थीं, अब सन्नाटा जो दहशत फैला रहा था। घंटे भर बाद वॉशरूम जाने के लिए बर्थ से नीचे उतरी। देखा तीनों जाग रहे थे । न जाने क्या योजना बना रहे हैं । उसने पापा को फोन लगाना चाहा पर यह सोचकर रुक गई कि इतनी रात को उन्हें डिस्टर्ब करना ठीक नहीं । सो गए होंगे वे। वैसे भी उन्हें नींद मुश्किल से आती है। माँ के जाने के बाद उन्हें नींद की गोली लेनी पड़ती थी लेकिन बाद में उन गोलियों की वजह से दूसरी बीमारियां हो गईं। सो कर उठने पर सिर भारी रहने लगा और धीरे-धीरे भूख बढ़ती गई। फिर एक दिन वेलकम अंकल ने सलाह दी। "सोने से पहले पैर धो लिया करो और गर्म दूध पी लिया करो। नींद अच्छी आएगी। " वेलकम अंकल (वेलकम अंकल पापा के दोस्त सतीश अंकल को वह वेलकम अंकल कहती थी। वह हर बार उसे देखते ही कहते थे वेलकम डार्लिंग) का यह नुस्खा काम कर गया। अब पापा गहरी नींद सोते हैं। उसने मोबाइल देखा तो पापा का मैसेज था "बेटा आज न पैर धोए न दूध पिया। जाग रहा हूँ । जागूंगा । जब तक तू दिल्ली नहीं पहुंच जाएगी । जरूरत लगे तो फोन कर लेना। "

सोनल का दिल भर आया उसने मैसेज टाइप किया "मैं ठीक हूँ पापा। लव यू। "

लौटी तो देखा बाजू वाली सीट का चौथा आदमी अपना बैग निकाल कर सीट पर रख रहा था । उसने जूते पहने, टोपी लगाई और अल्लाह कहते हुए बैग उठाकर चला गया।

हे भगवान, बम रखने गया है क्या! अब क्या होगा! टिकट कलेक्टर भी नहीं दिख रहा । एक बार भी नहीं आया। कहीं उनसे मिला हुआ तो नहीं है। वे नीचे की सीट क्यों ऑफर कर रहे थे। कहीं उनका इरादा । वह पसीने पसीने हो उठी। काँपते पैरों से वह बर्थ पर चढ़ी । तेजी से आधी बोतल पानी पी लिया। जितना ज्यादा पानी पी रही है उतनी ही बार वॉशरूम जाना पड़ रहा है। ठीक भी तो है बार बार उतर कर स्थिति का जायजा आसानी से ले सकती है । उसने नैपकिन से चेहरा थपथपाया और चादर ओढ़ कर लेट गई। अभी पूरी तरह लेट भी नहीं पाई थी कि उसे पास एकदम पास खुस्फुसाहट सुनाई दी। बाजू वाली सीट का चौथा आदमी था जो सामने वाली सीट पर लेटे आदमी से कुछ कह रहा था । उसके कहने पर लेटा हुआ आदमी उठ कर उसके साथ कहीं चला गया। वह बुरी तरह डर गई। किसी भी पल कुछ भी घटित हो जाने के लिए खुद को तैयार करती रही । शक्ति बटोरती रही । बचपन में जब तीसरी कक्षा में पढ़ती थी तो घर के सामने वाले पार्क में खेलने से डरती थी। वहाँ बहुत बड़ा पीपल का झाड़ था जिसकी सघन डालिया साँय साँय की आवाज के साथ हवा में झूमती रहतीं। उसने न जाने कहाँ पढा था कि पीपल के पेड़ पर भूत रहते हैं। वह पीपल वाले पार्क में इसीलिए नहीं जाती थी। तब माँ ने उसे हनुमान चालीसा लाकर दिया था। "याद कर ले इसे । जब भी डर लगे जोर-जोर से इसका पाठ करना। " हनुमान चालीसा उसे कंठस्थ था। इस वक्त भी उसने मन ही मन पाठ किया और चादर ओढ़ ली। फिर लगा मुँह ढका रहेगा तो वह देख नहीं पाई उनको जो अब दो ही थे लेकिन थोड़ी देर में तीसरा आ गया था और अपनी सीट पर इत्मीनान से लेट गया था।

गाड़ी रुकी कोई स्टेशन था। उसने घड़ी देखी। रात के तीन बज रहे थे। चाय वाला चाय चाय चिल्ला रहा था। तीनों ने चाय ली। चाय पीते हुए वे धीरे-धीरे लगभग फुसफुसाते हुए कुछ कह रहे थे। सोनल ने अपनी संपूर्ण शक्ति उस खुसफुसाहट में लगा दी । पर कुछ भी समझ नहीं आया। रतजगे के कारण उसकी आंखें चिरमिरा रही थीं। सोचा था रिवीजन के बाद आराम से सो जाएगी ताकि सुबह तरोताजा उठे। इस बार पास होना ही है । वह जी तोड़ मेहनत कर रही थी। उस जैसे जाने कितने इसी तरह मेहनत कर रहे होंगे। चंद नौकरियों के लिए हजारों प्रत्याशी। आखिर मंजिल मिले भी तो कैसे? अचानक शोरगुल से वह बुरी तरह डर गई । हड़बड़ा कर सीट पर बैठ गई। पता चला गाड़ी किसी कस्बे के पास से गुजर रही थी। जहाँ किसी महंत का प्रवचन लाउडस्पीकर पर चल रहा था। बस अब और उससे तनाव बर्दाश्त नहीं हो रहा है । उन तीनों के बीच में खुद को जाल में फंसा पा रही है। सारी रात के रतजगे से उसका सिर भारी था। आँखें चुभ रही थीं। थोड़ी देर बाद उसका फोन बजा । करवट बदलकर वह फोन पर धीमी आवाज में बात करने लगी । सोनल ने अपनी पूरी ताकत कानों पर लगा दी। ताकि सुन सके कि उनमें क्या बात हो रही है। "तबरेज अली आप समझते क्यों नहीं, टाइम निकल गया तो कुछ हासिल नहीं होगा । ......हमें रिजल्ट चाहिए बेकार की बातों में समय मत गंवाइए। ...... हाँ हम समझते हैं पर जबान भी तो कोई चीज होती है..... जबान देकर मुकरना..... हम नहीं कर पाए तो सलीम खान दूसरे को सौंप देगा, उसे इंसानों की कमी है क्या ......

सोनल पसीने पसीने हो उठी । निश्चय ही इनका सूत्र आतंक से जुड़ा है। फोन पर की सारी बातें संदेहास्पद हैं। एक एक वाक्य के कई कई अर्थ निकल रहे हैं। उसने चादर में मुँह घुसा कर अपनी सहेली जूही को मैसेज टाइप किया। सारी बातें लिख दीं। जूही का जवाब आया "अब तो मामला तुझ तक ही सीमित नहीं रहा । अब तो यह देश का मसला हो गया । निश्चय ही वह लोग किसी आतंकवादी साजिश को रचने जा रहे हैं। "

" तब क्या करना चाहिए ?"

तेरी सिचुएशन कुछ भी करने लायक नहीं है सोनल । बस नजर रख उन पर और धैर्य से काम ले। ओके । "

सोनल ने चादर में से मुँह निकाला। तब तक फोन दूसरे के हाथ आ चुका था। हाँ तबरेज भाई,जाकर मामला सलटाएई, हालात काफी गर्म चल रहे हैं .......जी हाँ, समझते हैं हम। पूरी तैयारी से आ रहे हैं। आप मौके पर मिल जाना। "

सोनल के काटो तो खून नहीं। स्थिति साफ है । भयंकर साजिश रच रहे हैं यह। कैसी भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं? यह समझ रहे हैं कि उनकी यह संकेतो वाली भाषा वह समझेगी नहीं। गले में फिर कांटे से चुभे। वह सूखा गला बार-बार पानी से तर करती रही । उसे फिर वॉशरूम जाने की आवश्यकता महसूस हुई। पानी भी खत्म हो चुका था। इस बार वह जप्त किए लेटी रही। नीचे की बर्थ में हलचल जारी थी। वह लगातार जूही को हर सिचुएशन का मैसेज किए जा रही थी। उसे पता है पापा भी चिंता के मारे जाग रहे होंगे। बोगी में जाने कहाँ से कहकहो की आवाजें आ रही थीं। वह डरी हुई थी इसलिए कहकहे भी दहशत भरे लग रहे थे ।

मोबाइल से पता लग रहा था ट्रेन किस स्थान किस स्टेशन से गुजर रही है। थोड़ी देर बाद जूही के मैसेज आना भी बंद हो गए । वह भी उसके संग कहाँ तक जागती । सोनल की पलकें एक मिनट को भी नहीं मुंदी। उसे पलकें मूँदन में घबराहट महसूस हो रही थी। न जाने अगले पल क्या हो। जैसे तूफान आने के पहले का सन्नाटा उसके आसपास तैनात था कि अचानक मोबाइल पर दिल्ली स्टेशन लिखा आने लगा । वह हड़बड़ा कर उठी। झपट कर बैग उतारा। लैपटॉप का बैग पीठ पर टांगा । ट्रेन प्लेटफार्म पर रेंग रही थी ।

उनमें से एक ने उसके हाथ से बैग लेना चाहा

"चलिए मैं आपका बैग उतार देता हूँ। "नहीं नहीं मैं उतार लूंगी । "

" संभालकर आपा । ट्रेन रुक जाने दीजिए। 15 मिनट रुकेगी यहाँ ट्रेन। कोई लेने आएगा क्या ? रात भर हम भी नहीं सो पाए। चार मनचले झांसी से चढ़े थे। 1 से 4 नंबर की सीट पर। ताश खेलते रहे। शराब पीते रहे। अब्बू तो उधर ही खाली सीट पर रात भर बैठे उनकी निगरानी करते रहे। पूरी बोगी में आप अकेली। फ़र्ज़ तो अपना भी बनता है न आपा। "

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