The Author आयुषी सिंह Follow Current Read मुझे याद रखना - 4 By आयुषी सिंह Hindi Horror Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books વિશ્વની ઉત્તમ પ્રેતકથાઓ બ્રિટનના એક ગ્રાઉન્ડમાં પ્રતિવર્ષ મૃત સૈનિકો પ્રેત રૂપે પ્રક... ઈર્ષા ईर्ष्यी घृणि न संतुष्टः क्रोधिनो नित्यशङ्कितः | परभाग... સિટાડેલ : હની બની સિટાડેલ : હની બની- રાકેશ ઠક્કર નિર્દેશક રાજ એન્ડ ડિક... જીવન એ કોઈ પરીકથા નથી - 6 ( છેલ્લો ભાગ ) "જીવન એ કોઈ પરીકથા નથી"( સાત હપ્તાની ટુંકી ધારાવાહિક)( ભાગ -... ભાગવત રહસ્ય - 117 ભાગવત રહસ્ય-૧૧૭ જગતમાં શિવજી જેવો કોઈ ઉદાર થયો નથી. અને થવ... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Novel by आयुषी सिंह in Hindi Horror Stories Total Episodes : 6 Share मुझे याद रखना - 4 (20) 3.5k 10.4k वह चुड़ैल हवा में उड़कर मेरी कार के बोनेट पर बैठ गई और बिना देर किए उसने काँच तोड़ दिया और एक झटके में ड्राइवर का सिर धड़ से अलग कर दिया, और फिर एक ही झटके में उसके खून की एक एक बूँद पी गई। इतना सब देखने के बाद मैं जड़ हो गया था, मैंने सोचा आज तो मेरा मरना तय है और अगर आज मरना ही है तो क्यों न बचने की आखिरी कोशिश कर लूँ। यह सोचकर मैंने मंदिर की तरफ भागना शुरू किया और अब मुझे मंदिर न सिर्फ दिख रहा था बल्कि मैं मंदिर से कुछ ही कदम की दूरी पर था पर एक बार फिर मेरी किस्मत मेरे साथ खेलने लगी और वह चुड़ैल मेरे सामने आकर खड़ी हो गई और उसने मुझे हवा में उछाल कर मंदिर की दूसरी दिशा में फेंक दिया और गायब हो गई, मेरे सिर के घाव से दोबारा खून बहने लगा, सड़क पर गिरने से मेरे हाथ पैर बुरी तरह छिल गए, पर मैंने हार नहीं मानी सोचा अगर मरना ही है तो क्यों न लड़ते हुए मरुँ न कि हारकर और एक बार फिर मैं मंदिर की तरफ भागा। इस बार मैं बस मंदिर से एक कदम की दूरी पर था पर तभी वो चुड़ैल फिर मेरे सामने आ गई, मुझे लगा जैसे यह मुझे भगा भगा के मारना चाहती है। इतने में उसने पिछली बार की तरह हवा में हाथ हिलाया जैसे किसी को बुला रही हो और इस बार दो काली, नुकीली लकड़ियां मेरे पैर में हो रहे घाव में धंस गई, मैं जैसे तैसे उठा और वो फिर मेरी तरफ लपकी पर इस बार मैंने सीधे मंदिर में छलाँग लगा दी।जब मैंने आँखे खोली तो देखा मैं एक कमरे में हूँ, पूरा कमरा दीयों की रोशनी में जगमगा रहा है, मैं जमीन पर लेटा हुआ हूँ, मेरी चोटों पर कुछ भूरे रंग का लेप लगा हुआ है। मुझे इतनी चोटें लगी हुई थी कि मैं उठ भी नहीं पा रहा था, तभी सामने अंधेरे में से एक मानवाकृति दिखाई दी पर यह चुड़ैल नहीं थी और पास आने पर पता चला ये कोई महात्मा या पुजारी हैं। उन्होने नारंगी रंग का लिबास पहन रखा था, वे मेरे पास आए और बोले " मैं इस मंदिर का पुजारी हूँ, तुम्हें मंदिर में बेहोश देखा तो इस कमरे में ले आया, तुम्हारी चोटों पर लेप लगा दिया है, जल्दी ठीक हो जाओगे। "" बाबा मैं अभी कहाँ हूँ? "" यह कमरा मंदिर में ही बना हुआ है यहाँ हर साल इसी महीने में कई सिद्ध महात्मा आते हैं, उनके विश्राम के लिए यह कमरा बना है। पर यह बताओ तुम्हें इतनी चोटें कैसे लगीं, कौन हो तुम? "" बाबा मैं पुलिस में हूँ, मेरा नाम हर्षद है, कुछ दिन पहले ही यहाँ तबादले पर आया हूँ। और यह सब चोटें...... बाबा एक चुड़ैल मेरे पीछे पड़ गई है, मेरा उससे दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है फिर भी पता नहीं क्यों वो मुझे मारना चाहती है, मुझे यहाँ वापस आए कुछ दिन ही हुए हैं पर इतने दिनों से वो हर रोज मुझे परेशान कर रही है, पहले मारती है फिर ठीक होने का इंतजार करती है, फिर मारती है, पता नहीं मैंने उसका क्या बिगाड़ा है। मेरी मदद करिए बाबा, मुझे उस चुड़ैल से बचा लीजिए। " कहकर मैं रोने लगा, मैं जिंदगी में पहली बार खुद को इतना हारा हुआ महसूस कर रहा था।" बेटा मुझे उतनी सिद्धियाँ प्राप्त नहीं हैं, मैं तो एक छोटा सा पुजारी हूँ पर हाँ जो महात्मा यहाँ आते हैं वे तुम्हें जरूर उस चुड़ैल से बचा सकते हैं, जब तक वे यहाँ नहीं आते तुम यहाँ से कहीं दूर चले जाओ, मैं उनसे तुम्हारे लिए मदद माँगूगा और जब वे तुम्हें बुलाएं तब तुम वापस यहाँ आ जाना, मैं तुम्हें फोन करके बता दूँगा। "" बाबा जब तक मेरी चोट ठीक नहीं हो जाती, क्या बस तब तक मैं यहाँ रुक सकता हूँ, बाबा अगर मैं मंदिर से बाहर निकल गया तो वो मुझे मार डालेगी, मुझे बस एक बार अपने परिवार से मिलना है, मुझे कैसे भी मेरे घर तक सही सलामत पहुंचा दीजिए बाबा। " मैं हाथ जोड़कर विनती करने लगा और पुजारी जी वहाँ से उठकर चले गए जब वे लौट कर आए तो देखा उनके हाथ में एक लाल धाग है। उस धागे को दिखाते हुए उन्होने कहा " बेटा यह हनुमान जी का पवित्र धागा है जिसको वर्षों तक सिद्ध करने के बाद एक महात्मा ने मुझे लोगों को भूत बाधा से बचाने के लिए दिया था। आज से यह तुम्हारी रक्षा करेगा। " कहकर वह धागा उन्होने मेरे हाथ में बाँध दिया। " अब तुम चाहो तो मंदिर से बाहर निकल सकते हो, अब वह चुड़ैल तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकती पर हाँ डरा सकती है तो तुम डरना मत क्योंकि इस धागे के होते वह तुम्हें छू भी नहीं पाएगी।पर बेटा एक बात याद रखना यह धागा तुम्हें उस चुड़ैल से बचा सकता है पर छुटकारा नहीं दिला सकता इसलिए जब मैं तुम्हें बुलाऊ तब तुम तुरन्त उन महात्माओं से मिलने आना। "मैं अगली सुबह ही अपने क्वार्टर पहुंच गया और पैकिंग करने लगा, मुझे छुट्टियाँ मिल गई थी। मैंने अमन और रागिनी को अपने जाने की और महेश की मौत की खबर दी तो अमन ने कहा " सर हमें महेश की मौत के केस को एक ऐक्सीडेंटल डेथ करार करके बंद कर देना चाहिए क्योंकि उस लड़की की तरह महेश की हत्या के भी कोई सबूत नहीं मिलेंगे। " " ठीक है अमन तुम केस बंद कर देना, मैं वापस आकर मिलता हूँ। "मुझे देहरादून से हरिद्वार पहुंचते पहुंचते दोपहर का एक बज गया। मैं जैसे ही घर पर पहुंचा, मम्मी, पापा, भैया, भाभी सबने मुझे घेर लिया। माँ ने कहा " क्या हो गया है तुझे इतना कमजोर कैसे हो गया तू? "मैं सोचकर आया था कि घर पर सबको सब कुछ सच सच बता दूँगा पर आते ही मैं सबको परेशान नहीं करना चाहता था इसलिए माँ से कहा " माँ इतने दिन बहुत दौड़ भाग की तो बहुत थका रहा तभी तो छुट्टी लेकर आ गया यहाँ। "भाभी ने कहा " हर्षद तुम्हें पता भी है मम्मी ने तुम्हारे लिए आज तुम्हारी पसंद का सारा खाना खुद बनाया है। "मैं सच में कुछ वक्त के लिए अपनी सारी परेशानियां भूल गया था। इतने में ही किसी ने मेरा कान मरोड़ दिया, मुझे लगा चुड़ैल यहाँ भी आ गई और जब मुड़कर देखा तो भैया थे, मुझे हंसी आ गई। " कहाँ गए थे आप दोनों मैं आ गया तो मुझसे मिले भी नहीं? " मैंने भैया और पापा से मजाक करते हुए कहा।भैया ने डाँटना शुरू कर दिया " क्या हाल कर रखा है अपना, तू तो इतना बड़ा भुक्कड़ है तो डाइटिंग करने लगा क्या, अनन्या से कॉम्पिटिशन कर रहा है क्या? "पर पापा मेरे बेस्ट फ्रैंड है, हमेशा की तरह समझ गए मैं किसी परेशानी में हूँ तो उन्होने सब से कह दिया " देखो अभी तो आया है पहले इसे खाना खिलाओ तब आराम से बात करना। "इसी तरह सबसे बात करते करते रात हो गई और सब अपने अपने कमरे में सोने चले गए। और मैंने सोचा कल सुबह सबको बता दूँगा कि एक चुड़ैल मेरे पीछे पड़ी हुई है और मेरी जान लेना चाहती है।अगली सुबह मैं जल्दी उठ गया और सोचा अब सबको बता देता हूँ पर सुबह ही भैया ने कह दिया " आज मेरे साथ बाजार चलना " बाजार से लौटते हुए ही अनन्या ने मिलने बुला लिया। सारा दिन ऐसे ही निकल गया फिर सोचा कल सुबह बताउंगा। पर अगले सात दिन तक घर में सब इतने खुश थे कि मैं किसी से इतनी बड़ी बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।आठवें दिन मैंने सुबह ही सबको बुला कर कहा " मुझे आप सबको एक बात बतानी है? " पर तभी अनन्या की मम्मी का फोन आ गया। " हर्षद जल्दी से घर आओ पता नहीं अनन्या को क्या हो गया है, अजीब सी बातें कर रही है, कभी रो रही है, कभी चिल्ला रही है। "" ठीक है आंटी मैं आता हूँ " मैं जाने लगा तो पापा मम्मी भी साथ चलने के लिए कहने लगे पर एक बार फिर मुझे " तीन अशुभ होता है " माँ की बात याद आ गई और मैंने भैया को भी साथ चलने के लिए कहा। हम जैसे ही अनन्या के घर पहुंचे हम सबको बहुत बड़ा झटका लगा.........उसके घर में दाखिल होते ही चिता जलने जैसी बू आने लगी, अनन्या अपने हाथ पैरों पर चल रही थी..... किसी जानवर की तरह, उसके बाल उसके चेहरे पर फैले हुए थे, उसकी आँखें लाल पड़ चुकी थीं और वह बस चिल्लती जा रही थी। मुझे देखते ही वह मेरे सामने आकर खड़ी हो गई और बोली " सबको बताना चाहता था मैं तेरे पीछे पड़ गई हूँ धागे से तूने खुद को तो बचा लिया पर अपने परिवार को कैसे बचाएगा.......अब देख मैं केसे तेरी सजा इन सबको देती हूँ.......और तुम सब मुझे याद रखना " मैंने तुरन्त अनन्या को पकड़ लिया और वह चिल्लाते हुए बेहोश हो गई पर मैं समझ गया यह चुड़ैल थी जो अनन्या पर हावी हो गई थी और जब मैंने अनन्या को पकड़ा तो अभिमंत्रित धागे की शक्तियों के कारण चुड़ैल चली गई। जब अनन्या होश में आई तो सबका ध्यान मुझ पर गया कि अनन्या मुझसे ऐसे क्यों बात कर रही थी। " य.. य... यह सब क्या है ?" अनन्या की मम्मी रोते हुए बोली। तब मैंने अनन्या, अपने और उसके पापा मम्मी और अपने भैया को सब कुछ बता दिया......उसकी लाल आँखें, एक लड़की को जलाते लोग, मेरा तीन दिन में तीन बार हॉस्पीटल जाना, महेश की मौत, मेरा पुजारी जी से मिलना, उनका मुझे धागा देना, मैंने उन्हें शुरू से लेकर अब तक की हर बात, सब कुछ बता दिया।यह सब सुनकर सब परेशान हो गए माँ और अनन्या बस रोए जा रही थी पापा बोले " तो अब कैसे छुटकारा मिले उस चुड़ैल से? "" अब तो जब पुजारी जी उन महात्माओं से बात करेंगे तभी कुछ हो सकता है पर तब तक हम सभी को अपना ध्यान रखना होगा। " मैंने माँ के आँसू पोंछते हुए कहा। मेरी सारी बातें सुनकर अनन्या ने कहा " हर्षद....चाहे जो हो जाए तुम कभी यह धागा मत उतारना......वो हमें तो शायद छोड़ भी दे पर तुम्हें किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगी। "तभी मेरे फोन पर कॉल आया, मेरे दोस्त अजय का जो मेरे घर के सामने रहता है " हर्षद जल्दी घर आ तेरे घर से अजीब सी आवाजें आ रही हैं। " मैंने कहा " हाँ मैं आता हूँ"तभी मूझे याद आया भाभी घर पर अकेली हैं, तो क्या चुड़ैल ने अब भाभी पर कब्जा कर लिया है? हम सभी घर पहुंचकर दरवाजा खटखटाने लगे, पर भाभी ने दरवाजा नहीं खोला। मजबूरन मुझे और भैया को दरवाजा तोड़ना पड़ा, और फिर वही चिता जलने जैसी बू आने लगी.......... वहाँ जो दृश्य हमने देखा, हम सभी की आँखें फटी की फटी रह गयीं........ भाभी पंखे पर बैठी हुई थीं और हम सबको देखकर वे नीचे आकर चिल्लाने लगीं और अनन्या की तरह वे भी किसी जानवर की तरह अपने हाथ पैरों पर चलने लगीं और एकदम से अनन्या को धक्का दे दिया, मैंने उसे खड़ा किया, इतने में भाभी के अंदर वह चुड़ैल उनका सिर दीवार से मारने लगी, जब भैया उन्हें रोकने लगे तो उस चुड़ैल ने भैया को भी हवा में उछाल दिया और अपने बालों से एक घेरे जैसा कुछ बनाया और मम्मी पापा अनन्या और उसके मम्मी पापा की तरफ फेंक दिया जिससे वे पांचों एक घेरे में बंद हो गए और चीखने लगे। भैया सीढ़ियों के पास गिरे हुए थे और चुड़ैल ने वापस भाभी पर कब्जा कर लिया और भाभी अपना सिर दीवार से मारने लगीं और उनके अंदर से वह चुड़ैल घुर्राते हुए बोली " बोल अब भी अपना यह धागा नहीं उतारेगा या फिर मार दूँ इसे और तू एक एक कर के इन सबको मरता देख "मैं भैया की आँखों में भाभी को खोने का डर साफ साफ देख सकता था। भैया भाभी ने हमेशा से मेरे लिए बहुत कुछ किया है और मैं उनको इस तरह नहीं देख पा रहा था। मैंने एक नजर माँ, पापा, भैया, अनन्या और भाभी को देखा और अपने हाथ में पहना हुआ धागा भाभी के हाथ पर बाँध दिया, भाभी बेहोश हो गई। चुड़ैल ने भाभी को छोड़ दिया था और मेरे सिर के कुछ बाल तोड़ लिए और अपने हाथ से इशारा किया और एक काले कपड़े के पुतला उसके हाथ में आ गया। उसने उस पुतले के ऊपर मेरे बाल रखे और गायब हो गई। उसके जाते ही अनन्या, माँ पापा और उसके माँ पापा उस घेरे से बाहर निकल आये। भैया ने भाभी को कमरे में छोड़ा और हम सब एक साथ बैठ गए, डर के मारे किसी से कुछ बोला भी नहीं जा रहा था बस सब एक दूसरे को देख रहे थे कि शायद कोई इस चुप्पी को तोड़े। अचानक से मेरेे फोन पर कॉल आया.....पुजारी जी का फोन था..... मैंने रिसीव किया तो वो बोले " बेटा मैंने महात्मा जी से तुम्हारे बारे में बात कर ली है उन्होने कहा है कि जितने भी लोगों को उस चुड़ैल ने देखा है, सब जल्द से जल्द आ जाओ। " " ठीक है पुजारी जी मैं सबके साथ आता हूँ। "मैंने फोन रखा और सबको बता दिया कि " हम सबको आज ही देहरादून के लिए निकलना होगा। " क्रमशः ©आयुषी सिंह ‹ Previous Chapterमुझे याद रखना - 3 › Next Chapter मुझे याद रखना - 5 Download Our App