परियों का पेड़
(9)
विश्वास के पथ पर
राजू को विश्वास था कि यह वही रास्ता है, जिससे होकर वह रात में परियों के पेड़ तक गया था | इस रास्ते का पूरा मानचित्र उसके मस्तिष्क में अच्छी तरह अंकित हो गया था | उसे सब कुछ पूरी तरह याद था | जंगल की एक – एक पहाड़ियां, फिसलन भरी ढलानें, विशाल पेड़ों और झड़ियों से घिरी पगडंडियाँ | गहरी अँधेरी गुफा, विशालकाय हहराती हुई नदी और ऊँचाई से गिरकर बहता हुआ भयंकर झरना | अंधेरे में विचरण करते, चमकती घूरती आँखों वाले तरह – तरह के डरावने जंगली जीव – जन्तु, पशु और पक्षी भी |
लेकिन राजू आज प्रत्येक आसन्न संकट से निडर अपने पथ पर बढ़ा चला जा रहा था | जैसे जादुई पेड़ की परियाँ उसे खींचे ले जा रही हों | उसको यह भी ध्यान नहीं था कि घर न पहुँचने से उसके पिता जी कितने परेशान होंगे ? वह कभी भी उनको बिना बताये कहीं नहीं जाता था | आज उसको इस बात की भी कोई चिन्ता नहीं थी कि उसे रास्ता दिखाने वाला या उसकी सुरक्षा करने वाला कोई भी सयाना उसके साथ नहीं था |
वह पूरी तरह अकेला था | कल रात की तरह परी रानी भी आज उसके साथ नहीं थी | किन्तु ढलती शाम में राजू को क्षितिज की ओर एक अजीब सी रोशनी अवश्य दिख रही थी | ऐसा लगता था कि ये रोशनी सीधे परियों के पेड़ का रास्ता दिखा रही थी | राजू रास्ते में चाहे जिस जगह होता, सामने चाहे जिस चट्टान या पेड़ की आड़ होती, राजू जब भी ऊपर की ओर नजर उठाता तो उसे वह चमकती रोशनी दिख ही जाती थी |
इस चमकती रोशनी का यह साफ मतलब था कि निश्चित रूप से कोई अनजानी शक्ति या फिर सचमुच परी रानी उसका मार्ग दर्शन कर रही थी | फिर भी ये सफर कल जितना आसान न था | राजू के पैदल चलते पाँव कल रात की तरह हवा में नहीं उड़ रहे थे | उसका प्रत्येक कदम सख्त और पथरीली जमीन पर ही पड़ रहा था | पैरों में स्कूल वाले जूते पहने होने के बाद भी उसको कंकड़ों और काँटों की चुभन का अहसास कई बार हो रहा था |
लेकिन ये परिस्थितियाँ, ये परेशानियाँ राजू के लिए जैसे परीक्षा की घड़ी थी | वह किसी दीवाने की तरह अपनी धुन में आगे ही आगे बढ़ता चला जा रहा था |
दिन ढलता गया, राजू चलता गया | ढलती हुई शाम के साथ दिन में खूबसूरत दिखने वाला जंगल उतना ही भयानक होने लगता है | इतने घने जंगल में अब सूरज का बचा – खुचा उजाला भी नहीं पहुँच पा रहा था | सूरज डूबने से पहले ही वहाँ अंधेरे का अहसास होने लगा था | तरह – तरह के जंगली जानवरों की भयानक आवाजें उसका पीछा करने लगी थी | जिन्हें सुनते ही अच्छे – अच्छों के दिल बैठने लगते हैं, दहलने लगते हैं |
लेकिन राजू ने तो मानो अपने कानों में रुई ठूँस रखी थी |
“सीधे चले आओ – आगे बढ़ते चले आओ .......|” – उसको लग रहा था कि परी रानी लगातार उसे बुला रही थी | राजू को परी रानी की जादुई आवाज के अलावा कुछ और सुनाई ही नहीं दे रहा था | राह दिखाने वाली उस चमकीली रोशनी के अलावा कुछ और दिखाई भी नहीं दे रहा था | रास्ते की हर बाधा वह साहस के साथ पार करता जा रहा था |
जंगल की घनी झाड़ियाँ बार – बार उसका रास्ता रोक रही थी | झाड़ियों से निपटने के लिए उसने लकड़ी का एक मजबूत डंडा तोड़कर हाथ में ले लिया | अब रास्ते में आने वाली झाड़ियाँ जहाँ भी उसका रास्ता रोकने की कोशिश करती, वह डंडे को तलवार की तरह भाँजने लगता | सड़ाक – सड़ाक की चाबुक जैसी आवाजें होती और ...... बस, झाड़ियाँ तितर - बितर हो जाती | आगे का रास्ता बन जाता | वह तेजी से आगे बढ़ जाता |
राजू आगे और आगे बढ़ता चला जा रहा था | तभी घने पेड़ों के बीच उसे अंगारों की तरह जलती हुई दो आँखें दिखी | वह जैसे – जैसे आगे बढ़ रहा था, उन लाल सुर्ख आँखों की चमक बढ़ती जा रही थी | फिर सर्र – सर्र, सूं – सूं की कुछ अजीब सी आवाजें भी सुनाई पड़ी | जैसे झड़ियों के बीच से कोई धीरे – धीरे से आगे बढ़ रहा हो |
लेकिन वहाँ कौन था ? यह ठीक से समझ में नहीं आ रहा था |
इस अनजाने भय को अनदेखा कर वह आगे ही बढ़ता रहा | लेकिन तभी उस भयानक सी जलती आँखों वाले जीव ने उसको अपने लपेटे में ले लिया | उस अचानक हमले से असावधान राजू पलक झपकते ही उसके पाश में बंध चुका था | जाने कितनी दूर से घात लगाये था वह शिकारी | राजू उस आक्रमणकारी के चंगुल में फँस कर जमीन पर गिर गया | फिर संभलने और जान बचाने के प्रयास में लोटपोट हो गया, धूल - धूसरित होने लगा | उसकी पकड़ से छूटने के लिए बुरी तरह छटपटाने लगा था |
जब अनजाने ही राजू के हाथ उसके हवा भरे ट्यूब जैसे शरीर पर फिसले और उसकी फिसलती हुई खुरदरी त्वचा का अहसास हुआ, तब कहीं जाकर उसकी समझ में आया कि यह एक अजगर था | जिन्दा निगल जाने वाला बहुत ही भयंकर और खतरनाक जीव |
ऐसा भयंकर जीव उसने एक दिन जंगल में पिताजी के साथ गुजरते हुए उजाले में देखा था | इस विशालकाय और मोटे-ताजे साँप ने एक हिरण के बच्चे को दबोच लिया था, फिर देखते ही देखते उसे समूचा ही निगलकर वापस झड़ियों में घुस गया था | पिताजी ने दूर से दिखाते हुए अजगर के रूप में उसकी पहचान करायी थी और ऐसे जीवों से हमेशा बचकर निकलने हेतु सावधान भी किया था | ......किन्तु आज अपनी असावधानी से वह इस अजगर के पाश में बुरी तरह फँस चुका था |
इस अजगर के मुँह से गरम – गरम तेज साँसों की फुफकारें ऐसे निकल रही थी, मानो आग के छोटे – छोटे भभूके हों, बवंडर हों | अजगर बार – बार राजू की ओर अपना मुँह घुमाकर फुफकार मारने की कोशिश कर रहा था | राजू अजगर की साँसों से अपने चेहरे को बड़ी मुश्किल से बचा पा रहा था | अगर एक भी फुफकार उसके चेहरे पर पड़ जाती, तो निश्चित था कि वह झुलस जाता या अपना होश खो बैठता |
राजू जैसे छोटे बच्चे के लिए उस दरिन्दे से निपटना बहुत मुश्किल था | अजगर के पाश में राजू को धीरे – धीरे अपना दम घुटता हुआ लग रहा था | अजगर का शरीर उसकी तेज साँसों के साथ धीरे – धीरे फूल कर मोटा हो रहा था | जैसे किसी वाहन की रबर से बनी ट्यूब में हवा भरते समय होता है | ...और उसी के साथ – साथ राजू के शरीर पर अजगर के मोटे रस्से जैसे शरीर की कसावट भी धीरे – धीरे बढ़ती जा रही थी |
राजू ने अपने को छुड़ाने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सका | उसे लगा कि जल्द ही इस पकड़ से वह नहीं छूटा तो उसकी हड्डियाँ कड़कड़ा कर टूट जायेंगी | इस अजगर के फंदे में उसके प्राण निकल जायेंगे | लेकिन उसका कोई वश नहीं चल रहा था |
आखिरकार , राजू को कुछ क्षणों के लिए ही सही, इस बात का अफसोस होने लगा कि वह क्यों अकेले इस भयानक जंगल के सफर पर निकला ? क्यों अपने से बड़े और शुभचिंतक की सलाह उसने नहीं माना ? पिताजी की चेतावनी एक बार फिर उसके कानों मे गूंज गयी थी – “तुम अकेले जंगल में जाने का कभी दुस्साहस मत करना ……….|”
लेकिन अब क्या हो सकता था? वह तो इस सफर पर निकल चुका था और मुसीबत मे फँस भी चुका था | लेकिन वह अंतिम साँसों तक हिम्मत भी नहीं हारना चाहता था | उसका विवेक इस बड़े संकट से निकलने के लिए बड़ी तेजी से सोच रहा था कि क्या करे ? कैसे करे?
अब तक अजगर शायद अंतिम बार अपनी सारी शक्ति समेट रहा था | वह फिर से सिर घुमाकर अपना मुँह राजू की ओर करने की कोशिश कर रहा था | तभी राजू को अचानक याद आया कि परी रानी ने कहा था कि वह उस की सुरक्षा करेंगी | अतः, घबराये हुए राजू ने सच्चे मन से परी रानी को याद करना शुरू कर दिया – “परी माँssss ! बचाओsssss |”
परी माँ को याद करते ही जैसे आसमान में बिजली कौंधी | उसकी चमक से झलकी रोशनी में राजू को पास ही अपना लकड़ी वाला डंडा दिख गया | जिससे वह झड़ियों पर वार करके रास्ता बनाता आया था | अजगर के हमले के समय यह डंडा उसके हाथ से छूट गया था |
अचानक उसे अपने स्कूल के एक अध्यापक का यह कथन याद आया कि अगर किसी शिकार को अजगर अपने पाश में जकड़ ले तो उसे सामान्य ताकत से छुड़ाना सम्भव नहीं होता | लेकिन यदि उसके शरीर में कोई नुकीला हथियार चुभो दिया जाय तो उसकी ऊर्जा हवा के साथ बाहर निकलने लगती है और उसकी पकड़ कमजोर पड़ जाती है |
यह प्रतिक्रिया ठीक वैसी ही होती है, जैसे हवा से ठसाठस भरी हुई किसी ट्यूब का पंचर होना | हवा निकलना शुरू होते ही ट्यूब पस्त पड़ जाती है अर्थात वह किसी निर्जीव के समान कमजोर हो जाती है |
यह किसी की प्रेरणा ही थी या फिर मन लगाकर पढ़ाई करने का प्रतिफल, ….. कि यह पाठ याद आते ही राजू के थकते- हारते शरीर में एक अनोखी ऊर्जा का संचार होने लगा | उसका आत्मविश्वास मानो लौट आया था |
डूबते को तिनके का सहारा ही काफी होता है | राजू के जीवन के लिए भी यह सबक आशा की किरण बन गया | उसके दोनों हाथ अब भी खाली थे, जो अजगर की जकड़न से बचे हुए थे | अभी तक हाथों से सीधी ताकत लगाकर वह अजगर से छूटने का प्रयास कर रहा था | अब उसने किसी प्रकार हाथ बढ़ाकर उस डंडे को पकड़ने का प्रयास शुरू किया | डंडा पास ही था | जल्द ही उसका हाथ पहुँच गया | फिर उसने जल्द ही डंडे पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली |
इस बीच अजगर ने अपना मुँह फाड़कर राजू की ओर कर लिया था | राजू ने बिना अधिक सोचे, उस डंडे को सीधा अजगर के मुँह में घुसेड़ दिया | हलक में डंडा फँसने से अजगर बिलबिला उठा | उसकी पकड़ थोड़ी सी ढीली हुई | पकड़ ढीली होते ही राजू ने भी अपनी ताकत कुछ और समेटी | फिर पूरी ताकत लगाकर दोनों हाथों से डंडे को उसके मुँह में अत्यधिक भीतर तक ठूँसता ही चला गया |
डंडा आगे से कुछ नुकीला था | अतः वह जल्द ही अजगर की नाजुक गर्दन को फाड़ते हुए आर -पार निकल गया | अजगर बड़े ज़ोर से तड़पा | सूंsss सूं ssss की आवाज़ के साथ उसके गर्दन के नीचे से रक्त की फुहार छूट पड़ी थी | अजगर के शरीर में छेद हो जाने से अन्दर एकत्र की हुई हवा रूपी ऊर्जा बाहर निकल गई | जैसे मोटर साइकिल के किसी पहिये का ट्यूब पंक्चर हो गया हो |
फिर तो दर्द से तड़पते अजगर की पकड़ जल्द ही ढीली पड़ गयी और राजू उसकी जकड़न से निकल गया | छूटते ही राजू ने पास पड़ा एक बड़ा सा पत्थर उठाकर अजगर के मुँह पर दे मारा | डंडा तो पहले ही उसके मुँह में घुसा हुआ था, ऊपर से यह पत्थर की मार | बेहाल हुआ अजगर तड़प कर एक ओर लुढ़क गया |
---------क्रमशः