परियों का पेड़
(5)
ममता की चाह
लेकिन उसके पिताजी आगे कहते जा रहे थे – “फिर यह भी तो है कि तुम उस भयानक जंगल में कैसे जा सकते हो ? तुम सचमुच में वहाँ जाने की कभी कोशिश भी मत करना | अकेले तो एक सीमा से आगे जाने की मेरी भी हिम्मत नहीं पड़ती, जबकि मेरी बड़ी सी कुल्हाड़ी मेरी सुरक्षा के लिए हमेशा मेरे साथ होती है | तुम तो अभी छोटे से बच्चे ही हो |”
- “ओह बापू ! तब तो मैं उस पेड़ तक कभी नहीं जा पाऊँगा ?”
“हाँ, तुम ऐसा करने की कभी कोशिश भी मत करना, वरना किसी बड़े खतरे में फँस जाओगे ।” – पिताजी ने समझाने के साथ ही राजू को चेतावनी भी दी |
“परी रानी अपनी मर्जी से न जाने कब मुझे बुलायेंगी ? पता नहीं कभी बुलायेंगी भी या नहीं ? - राजू बड़बड़ा कर चुप हो गया |
राजू के पिताजी को लगा कि अब राजू निराश मन से ही सही, किन्तु चुपचाप सोने की कोशिश करने लगा है | राजू से बातचीत पूरी तरह खत्म हो गई थी | अतः वे भी उसे सोता हुआ समझ कर खुद भी सोने चले गये | उनका बिस्तर भी पास में ही लगा हुआ था |
.......लेकिन इस अद्भुत आख्यान को सुनने के बाद, अब नींद तो राजू की आँखों से मानों कोसों दूर चली गई थी | वह चुपचाप लेटे हुए बार – बार बेचैनी से करवट बदल रहा था | उस के दिमाग में परियों का विचार बुरी तरह हलचल मचाए हुए था | वह बार – बार उन्हीं परियों की दुनिया के बारे में सोच रहा था |.........और फिर उन्ही के विचारों में खोता हुआ निद्रा देवी की गोद में समाता चला गया |
फिर देर रात ........ | एक हल्की आहट से राजू की आँख खुल गई | ....और उसने जो कुछ भी सामने देखा, वह बड़ा ही अद्भुत और रहस्यमय था |
राजू को झमझमाती हुई तेज प्रकाश की किरणें अपने कमरे में आती हुई दिखाई दी, फिर पूर्णमासी जैसा तेज और दूधिया उजाला पूरे कमरे में फैल गया था | उसने देखा कि आस - पास का सारा वातावरण जगमगा उठा है | कमरे में रखी हर वस्तु उस चमकीले प्रकाश से चमक रही है | ऐसा लग रहा था कि कमरे में स्थित सारी चीजें सोने और चाँदी में परिवर्तित हो गयी थी |
राजू ने देखा कि उसके आस - पास न जाने कहाँ से रुई के फाहे जैसे नर्म, मुलायम और अनोखी ठंडक का अहसास कराने वाले बादल मंडराने लगे थे | उस चमकते हुए प्रकाश के आस - पास चारों ओर बादल ही बादल छा गये थे | कमरे का सारा सामान उसकी चारपाई समेत मानों उन बादलों पर ही तैरने लगा था |
चारपाई ?? हाँ, ....जैसे ही उसका ध्यान अपनी चारपाई की ओर गया, वह आश्चर्य से अभिभूत हो उठा | उसकी चारपाई तो एक खूबसूरत पलंग में परिवर्तित हो चुकी थी | उसके हर हिस्से से चन्दन की लकड़ी की महक सुवासित हो रही थी | अत्यंत कलात्मक नक्काशी से परिपूर्ण वह पलंग किसी राजसी शयनकक्ष का हिस्सा बन चुका था | अब वहाँ की हर वस्तु खूबसूरत लगने लगी थी | राजू ने अपने बिस्तर पर दृष्टि डाली | उसको बार – बार टटोल कर और सहलाकर देखा | उस पर से पुराना गद्दा और थोड़ी सी फटी हुई रज़ाई गायब थी और उन की जगह एक नया और बेहद नर्म - मुलायम रेशमी बिस्तर चमचमा रहा था | यह अनोखा बिस्तर उसके शरीर को एक नया, आनन्ददायक और गुदगुदा सा अहसास दे रहा था |
“अरे ! यह तो किसी महाराजा का बिस्तर बन गया है | लेकिन ये हो क्या रहा है ?” – क्षण भर के लिए अपने बिस्तर को आश्चर्यपूर्वक टटोलता हुआ राजू सोचने लगा |
क्या सचमुच ऐसा कोई चमत्कार हो गया है या उसका भ्रम मात्र है ?
......राजू ने वास्तविकता का अहसास करने के लिए जान -बूझकर अपने आपको एक चिकोटी सी काटी | दर्द से उसकी चीख निकल गयी | इसका मतलब था कि वह अपने होश – हवास में था | उसने आवाज देकर बापू को जगाने की कोशिश की | लेकिन आश्चर्य, उसकी आवाज उसके गले से बाहर ही नहीं निकली| राजू की चिकोटी वाली चीख भी उसके गले में ही घुट कर कहीं खो गयी थी |
उसके पिताजी का बिस्तर अब भी पास ही दिख रहा था | वो बड़े चैन से और पूरी तरह दीन – दुनिया से बेखबर सोये पड़े थे | उसने करवट बदलकर पिताजी के बिस्तर की ओर हाथ बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन बुरी तरह नाकाम रहा | बिलकुल पास होने के बावजूद उसका हाथ उनके बिस्तर तक नहीं पहुँच पा रहा था | समझ में नहीं आ रहा था कि उसका हाथ ही इतना छोटा है या फिर पिताजी का बिस्तर कुछ ज्यादा दूर हो गया है ?
भारी दुविधा में उसने बिस्तर से उठकर पिताजी तक पहुँचने की कोशिश की | अब तो और ज्यादा हैरान हो पड़ा | उसने पाया कि कमरे के अन्य सामानों के बीच वह हवा में ही तैर रहा था | उसका यह नया लगने वाला अद्भुत बिस्तर भी बादलों के एक समूह जैसा ही था, जो अस्थिर रूप से हवा में तैर रहा था | लेकिन बड़े आश्चर्य की बात थी कि भारी जिज्ञासा के बावजूद उसे भय जैसा कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था |
- “आखिर ये कैसा चमत्कार है ? किसने किया होगा यह सब ?”
अभी राजू इसी अकस्मात सोच में डूबा हुआ था कि तभी एक और घटना हुई |
राजू ने देखा | उस झमाझम प्रकाश के बीचों - बीच कमरे की सामने वाली दीवाल में एक झरोखा जैसा प्रकट हुआ | फिर उसी झरोखे के रास्ते बादलों की धुन्ध को फाड़ती हुई एक देवी जैसी आकृति प्रकट हुई | जो पलक झपकते ही कमरे के भीतर आती हुई उसके ठीक सामने हवा में स्थिर हो गयी थी | जैसे किसी ने हवा में इंद्रधनुष की जगह बड़ी कुशलता से उस देवी का चित्र रच दिया हो | राजू कुछ पलों के लिये सब कुछ भूलकर उसे अपलक देखता ही रह गया |
उस देवी का रंग केसर मिले दूध के जैसा गोरा – चिट्टा था | आकर्षक नैन – नक्श वाला चेहरा अत्यंत सुंदर और तेजवान था | उसके बाल सफ़ेद चाँदी जैसे चमक रहे थे | सिर पर सोने का जगमगाता हुआ मुकुट शोभायमान हो रहा था, जिसमें जड़े हुए हीरे, जवाहर आदि रत्नों से रंग बिरंगी प्रकाश की किरणें बिखर रही थी | उसने बहुत ही कीमती लगने वाले राजसी कपड़े पहन रखे थे | उसका सारा शरीर सोने – चाँदी के गहनों से लदा हुआ था | किसी को एक साथ इतने गहने पहने हुए राजू ने पहले कभी नहीं देखा था |
......और जो सबसे खास बात थी,
.......वो यह कि उसके एक हाथ में हीरे - मोतियों से जड़ी हुई एक असाधारण छड़ी थी | अब राजू को समझ आया कि कमरे में फैला हुआ अद्भुद प्रकाश उसी छड़ी से निकल रहा था | वह छड़ी पूरी तरह जादुई लग रही थी | अचानक घटित हुई इस घटना से राजू समझ नहीं पा रहा था कि वह कौन थी ?
उसके आकर्षण से राजू उनींदा हुआ जा रहा था | एक सम्मोहक कुहासा उसके चारों ओर तैर रहा था | आँखें बार – बार मुंद जा रही थी | उसने किसी प्रकार अपने को होश में रखने की कोशिश करते हुए पूछा – “देवी ! तुम कौन हो और यहाँ कैसे आयी ? दरवाजा तो अंदर से बंद हैं |”
इस बार राजू को अपनी आवाज गले से बाहर निकलती हुई तो प्रतीत हुई, लेकिन यह भी महसूस हो गया कि यह आवाज स्वयं राजू और उसके सामने खड़ी उस देवी के अलावा किसी और को सुनाई नहीं पड़ेगी |
“हाँ, दरवाजा तो बंद हैं, लेकिन मैं कहीं भी सीधा रास्ता बनाकर अपनी मर्जी से आ जा सकती हूँ | किसी दीवार के आर – पार भी |” – उसने जवाब दिया |
“अच्छा ...?” – सम्मोहित से राजू ने आश्चर्य से कहा |
उसकी आवाज से राजू और भी मंत्रमुग्ध हो उठा था | उसकी आवाज थी ही इतनी मधुर, ....मानों वन में कोई कोयल कूक उठी हो | ......या फिर कुछ ऐसी, जैसे किसी ने सुमधुर वीणा के तार छेड़ दिये हों, ....या फिर किसी मंदिर की घंटियाँ बज उठी हों |
राजू कुछ पलों के लिये शान्त और प्रतीक्षारत रहा, लेकिन उसके पहले सवाल का जवाब अभी नहीं मिला था |
अतः फिर से पूछने लगा – “तुम कौन हो देवी ?...और कहाँ से आयी हो ?”
वह देवी कुछ देर तक राजू के भोले और मासूम चेहरे को देखती रही | फिर कहने लगी – “बहुत दूर, इस धरती से बहुत दूर, ..... वहाँ चाँद - सितारों की दुनिया से....... |” उसने दूर आकाश की ओर एक सीधी उंगली उठाई |
उसकी एक ओर उठी हुई सीधी उँगली का पीछा करते हुए राजू की आँखें भी उसी दिशा में उठती - घूमती चली गयी थी | अब राजू चमत्कृत सा उसकी उठी हुई उंगली की दिशा में अपलक देख रहा था | कितना अद्भुत दृश्य था ?
राजू के कमरे में पक्की छत होने बावजूद इस समय उसको खुला आसमान साफ दिख रहा था | उस आसमान में हजारों – लाखों सितारों का एक पूरा समूह झिलमिला रहा था | अनेक ग्रह – नक्षत्र चारों ओर चक्कर काट रहे थे | उसे लगा, मानो उसके कमरे में ही पूरी आकाश गंगा उतर आयी हो | इन सितारों के अनोखे और चमकते प्रकाश के बीच इस समय पूर्णिमा का चंद्र भी धुंधलाया हुआ दिख रहा था |
सम्मोहित सा राजू काफी देर तक यह मनमोहक दृश्य देखता ही रह गया | काफी देर बाद जब उसकी चेतना वापस लौटी, तो उसकी दृष्टि फिर से उस देवी के चेहरे पर ठहर गयी | अब राजू को अपना प्रश्न फिर याद आया – “तुमने अभी तक यह नहीं बताया कि तुम हो कौन ?”
“तुम्हें क्या लगता है कि मैं कौन हो सकती हूँ ? वैसे तो प्रायः मेरे बारे में ही सोचते रहते हो |” – उस देवी या दिव्य स्त्री ने प्रश्न के जवाब में प्रतिप्रश्न कर दिया था |
“अं ss हाँ ...?? मुझे तो कुछ याद नहीं पड़ता कि मैं तुम्हारे बारे में कब सोचता रहता हूँ ?” – राजू के माथे पर बल पड़ गये | अब राजू स्वयं सोचने पर विवश हो गया था |
“सोचो – सोचो | एक बार फिर अच्छी तरह याद करके सोचो |” – दिव्य स्त्री ने मुस्कराते हुए उसे प्रोत्साहित करने का प्रयास किया |
राजू कभी अपने माथे पर तो कभी अपनी ठुड्डी पर उँगली रखकर सोचने लगा | लेकिन उसे इस दिव्य स्त्री के बारे में कुछ याद नहीं आया | फिर उसे लगा कि पहले तो सबसे ज्यादा मैं अपनी माँ के बारे में सोचा करता था | लेकिन यह मेरी माँ कैसे हो सकती है ? मेरी माँ तो कब की भगवान के घर जा चुकी है और उसके पास तो इतने सुंदर कपड़े और गहने भी नहीं होते थे | क्या उसकी माँ ऐसा रूप बदलकर उसके पास आ सकती है ?
-----------क्रमशः