Pariyo Ka ped - 3 in Hindi Children Stories by Arvind Kumar Sahu books and stories PDF | परियों का पेड़ - 3

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परियों का पेड़ - 3

परियों का पेड़

(3)

कहानी फूलपरी की

“बहुत पहले की बात है | हिमालय पर्वत की घाटियों में फूलपुर नामक एक राज्य था | उस राज्य में फूलों जैसी सुंदर और कोमल एक राजकुमारी भी थी | वह बहुत ही परोपकारी और दयालु थी | उसे रंग - बिरंगे फूलों और बच्चों से बहुत प्यार था | उसका मानना था कि बच्चे भी फूलों की तरह ही कोमल और सुन्दर होते हैं |

वह प्रतिदिन अपने राज्य के अनेक गांवों में घूमने जाती | वहाँ खाली पड़ी जमीन पर रंग – बिरंगे, सुन्दर और सुगन्धित फूलों के बीज बिखराती | छोटे – छोटे बच्चों के पास जाती | उन्हें अनेक तरह के खिलौने बाँटती, मिठाइयाँ खिलाती | फिर उनके साथ मिल-जुलकर खूब खेलती | बच्चे उससे बहुत खुश होते थे | पूरे राज्य में वह फूलों वाली राजकुमारी के नाम से प्रसिद्ध हो गई थी |

राजकुमारी की अच्छाइयों के कारण सारी प्रजा उसके गुण गाती थी | लेकिन उस राज्य की नई रानी और राजकुमारी की सौतेली माँ को उसका इस तरह लोकप्रिय होना पसंद न था | उसे लगता था कि यदि यही स्थिति रही तो राजा उसके अयोग्य पुत्र को युवराज बनाने के बजाय इस राजकुमारी को ही राजगद्दी सौंप देंगे | इसी कारण रानी ने एक दिन धोखे से राजकुमारी को पहाड़ से नीचे फिंकवा दिया | ताकि न तो राजकुमारी जीवित रहेगी, न उसको राजगद्दी मिलेगी |

लेकिन होनी को कौन टाल सकता है ? जहाँ से राजकुमारी नीचे गिराई गई, वहाँ गहराई में फूलों की घाटी थी | वहाँ हजारों रंग के फूल हमेशा खिले रहते थे | लेकिन फूलों को इस बात का मलाल रहता था कि इतनी गहराई में कोई तितली भी उनके साथ खेलने नहीं आती |

फूलों ने उस दिन राजकुमारी को नीचे गिरते देखा तो उन्हें बड़ी दया आई | तुरन्त सारे फूलों ने आपस में सलाह करके एक निर्णय लिया | फिर वे सब एक मोटी चादर की तरह पहाड़ की तलहटी में पसर गए | राजकुमारी जब पहाड़ से नीचे गिरी, तो नर्म और मुलायम फूलों की मोटी चादर ने उसे बचा लिया | राजकुमारी को बिलकुल भी चोट नहीं आयी | स्वयं को सही सलामत देखकर राजकुमारी बहुत प्रसन्न हुई | उसने फूलों को विशेष धन्यवाद कहा |

जब फूलों ने राजकुमारी से इस तरह नीचे गिरने का कारण पूछा तो उसने सारी बात बता दी | फूलों को भी वह राजकुमारी बड़ी सुंदर और परोपकारी लगी | उन्होने राजकुमारी को समझाया कि अब किसी भी तरह इतनी गहरी घाटी से ऊपर उसका निकल पाना संभव नहीं है | ......और यदि वह किसी तरह ऊपर पहुँच भी गई, तो उसकी सौतेली माँ उसे फिर से मार डालने का प्रयास जरूर करेगी | मनुष्य के रूप में रहने के लिए इस निर्जन घाटी में भोजन – पानी की समस्या भी आड़े आएगी | इससे अच्छा होता कि राजकुमारी भी किसी सुन्दर फूल का रूप धारण करके इसी घाटी में बस जाती | रूप परिवर्तित करने में फूल उसकी मदद कर सकते थे |

इस बात से राजकुमारी फिर उदास हो गयी | उसने कहा कि उसे किसी पौधे की तरह हमेशा एक ही स्थान पर खड़ा रहना अच्छा नहीं लगेगा | वह तो घूम – फिर कर दूसरों का दुख - सुख देखती है | जरूरत मंदों की सेवा करती है | फूलों के बीज बोती है | सुगंध फैलाती है | यदि वह ऐसा नहीं कर पायेगी तो कभी प्रसन्न भी नहीं रह सकेगी |

राजकुमारी का कहना सही था | अतः फूलों ने आपस में सलाह करके उसे उड़ने वाली तितली बनने का सुझाव दिया | यह सुझाव राजकुमारी को ज्यादा ठीक लगा | इस परिस्थिति में राजकुमारी भला और क्या करती ? देर तक माथापच्ची के बाद भी कोई और विकल्प नहीं मिला तो वह मान गई |

तब फूलों ने राजकुमारी को रंग बिरंगे और सुंदर पंखों वाली एक बड़ी सी तितली बना दिया | अब राजकुमारी तितली बनकर पूरी घाटी में घूमने लगी | वह घूम - घूम कर फूलों का मीठा – मीठा रस पीती | अपने पंखों से दूर – दूर तक उनका पराग फैलाती | फिर तितली बनने का एक फायदा यह भी हुआ कि जब भी उसका मन होता तो खूब ऊँचाई पर उड़ते हुए घाटी से बाहर भी निकल आती |

इधर अपनी प्रिय राजकुमारी के अचानक गायब होने से फूलपुर राज्य के बच्चे दुखी हो गये थे | अब उनके साथ सुख – दुख बाँटने और खेलने वाला कोई नहीं था | वहाँ के फूल भी अब मुरझाकर गायब होने लगे थे | क्योंकि उनकी देख- रेख करने वाला कोई नहीं था | इन सब बच्चों और फूलों के साथ ही वहाँ का राजा भी बहुत दुखी था | क्योंकि राजगद्दी की योग्य उत्तराधिकारी उसकी प्रिय बेटी जाने कहाँ खो गयी थी ? बहुत खोजने से भी उसका पता नहीं चल रहा था |

इधर तितली बनने के बाद भी राजकुमारी कुछ नहीं भूली थी | वह जब भी घाटी से बाहर आती तो अपने राज्य की धरती पर भी जरूर घूमती | वह हर उस गाँव में जाती, जहाँ उसने बच्चों को प्यार किया था | लेकिन अब वहाँ के बच्चे उसे तितली के रूप में नहीं पहचान पाते थे, अतः वह उनके साथ खेल भी नहीं पाती थी |

लेकिन वह इतना जरूर करती थी कि प्रत्येक गाँव में अपने पंखों से चिपका कर लाये घाटी के फूलों वाले पराग और नन्हें बीज जरूर फैला देती | इससे उसके राज्य में फिर से कई तरह के नए - नए फूल पैदा होने लगे | अब उसके राज्य की धरती फिर से नए – नए, रंग बिरंगे और सुंदर फूलों से ढंकने लगी | ये फूल बच्चों को उनकी प्यारी राजकुमारी फूलपरी की याद ताजा करवा देते थे | बच्चे रोज भगवान से प्रार्थना करते कि उनकी राजकुमारी लौट आये |

फिर एक दिन की बात ........|

घूमते - घूमते यह तितली अपने राजकीय बाग में जा पहुँची | वहाँ टहल रही नई रानी ने इतनी सुंदर और अनोखी तितली कभी नहीं देखी थी | उसने नौकरों को तुरंत आदेश दिया कि इसे पकड़कर उसके पास लाया जाये | तितली बनी राजकुमारी ने पहचान लिया कि यही उसकी सौतेली माँ है | सो, वह बुरी तरह डर गयी कि अब फिर उसे पकड़कर मारने की कोशिश की जाएगी |

तितली बनी राजकुमारी के पीछे नौकरों के दौड़ते ही वह डर के मारे थर – थर काँप उठी | जान बचाने के लिए इधर – उधर भागने लगी | तभी उसने सामने से आते हुए राजा को देखा | घबराहट में वह उनके कन्धे से टकराते – टकराते बची | यह राजा ही उसका पिता था | तितली उनको भी पहचान गयी | फिर तो वह निडर होकर रुकी आँके उनके कंधे पर ही जाकर बैठ गई |

“पिताजी ! पिताजी !” – वह राजा के कान में फुसफुसाई |

“क....क...कौन है ?” – राजा को सहसा अपने कानों पर विश्वास नही हुआ | लेकिन वह अपनी प्यारी बेटी की मधुर आवाज को भला कैसे भूल सकता था ?

तितली प्रसन्नता पूर्वक बोली – “पिताजी ! मैं हूँ आपकी बेटी फूलकुँवर |”

“फूल कुँवर ! तुम इस रूप में ?” – राजा ने भी उसको पहचान लिया | बेटी की इस दशा पर उसकी आँखों मे आश्चर्य के साथ ही ममता के आँसू भर आये | कहने लगे – “मुझे बताओ बेटी ! क्या हुआ था तुम्हारे साथ ?”

अब फूल कुँवर ने राजा के कानों में सौतेली माँ के षड्यंत्र की सारी बात बता दी | पूरी बात सुनकर राजा बहुत क्रोधित हुआ | उसने तुरन्त रानी को बुलाया | सख्ती से अपनी बेटी के बारे में पूछा तो उसने डरकर अपना अपराध स्वीकार कर लिया | राजा के क्रोध की सीमा न रही | उसने दोषी रानी को तुरन्त अपने राज्य से निकल जाने की सजा सुनाई | फिर तो रानी को सैनिकों ने पकड़ लिया और राज्य से बाहर निकालने के लिए अपने साथ लेकर चले गए |

अब राजा ने इस तितली को ही अपनी प्यारी बेटी मानकर राजगद्दी सौंपने का निश्चय कर लिया | सम्पूर्ण राज्य में उसके राज्याभिषेक की घोषणा करवा दी | प्रजा ने सुना तो अपनी प्रिय राजकुमारी को देखने के लिए दौड़ पड़ी | समारोह स्थल राजकुमारी के जयकारों से गूँजने लगा |

इस अनोखी तितली के राज्याभिषेक के लिए राजदरबार को विशिष्ट फूलों से अच्छी तरह सजाया गया था | सिंहासन पर अनोखे, सुंदर और सुगन्धित फूलों की खूब मोटी चादर बिछायी गई | अब राजा ने इस तितली राजकुमारी को अपनी गद्दी सौंपने की घोषणा करते हुए उसे सिंहासन पर बैठा दिया |

तितली के सिंहासन पर बैठते ही एक चमत्कार हुआ | वहाँ के सारे फूल खुशी से उछलने लगे | ये फूल घाटी के फूलों वाले बीजों से पैदा हुए थे | उन्होने समझ लिया था कि यह उचित अवसर है | अतः झट से उन्होने तितली को फिर से असली मानुषी राजकुमारी बना दिया | वही सुन्दर चेहरा, वही मोहक मुस्कान उसके चेहरे पर सजी हुई थी | लेकिन बड़े आश्चर्य की बात थी कि उसके पंख गायब नहीं हुए | ये फूलों की घाटी के जीवन का असर था | उसके पंख उसके मानुषी शरीर के अनुपात में अधिक बड़े और ज्यादा सुंदर हो गए थे | अब वह राजकुमारी एक सुन्दर परी के रूप में परिवर्तित हो चुकी थी |

लोगों ने यह चमत्कार देखा तो उसको ‘फूल परी’ कहते हुए जय - जयकार करने लगे | उनकी फूल कुँवर अब रानी फूलपरी बनकर सारे राज्य में फिर से घूमने लगी | फूल चहकने लगे और बच्चों के जीवन में फिर से खुशियाँ लौट आयीं | वह राजकुमारी फूल परी के रूप में पुनर्जीवित होने से हमेशा के लिये बच्चों की कहानियों में अमर हो गयी |

कहानी पूरी होते – होते राजू की आँखें नींद से बोझिल हो उठी थी | वह सोने ही वाला था तभी उसके पिताजी ने कुछ ऐसा बताया कि वह चौंककर उछल पड़ा |-

--------क्रमशः