बच्चों को सुनाएँ – 3
आवारा लड़का
आर ० के ० लाल
दस साल का एक गरीब लड़का राजन था। घर में वह अपने माता - पिता के साथ बहुत खुश था। उसके पिता फेरी लगाकर समान बेंचते और तीनों का पेट पालते । उसकी मां भी लोगों के घर पर काम करती थी और राजन को स्कूल भेजती। अचानक उसकी मां बहुत बीमार हो गई, उचित समय पर इलाज न मिल पाने के कारण वह चल बसी। उसके पिता उस पर बहुत ध्यान देते, कहते यह मेरा नाम रोशन करेगा। उसे संस्कार की अच्छी अच्छी बातें सिखाते । कुछ दिन बाद उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली। उसकी नयी माँ उसे बिलकुल प्यार नहीं करती और उसके पिता को भी बहकाती की वह तो आवारा लड़का है और उसका स्कूल छुड़ा दिया ।
एक सड़क दुर्घटना में राजन के पिता और उसकी नई मां दोनों की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। उसकी उम्र बहुत छोटी थी इसलिए उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? कोई सहारा भी नहीं मिल रहा था। उसका व्यवहार बिल्कुल बदल गया था। कम उम्र में भी बहुत ज्यादा गंभीर भी हो गया था। पिता के रखे सामानों को राजन अपनी चाची को बेच देता था, बदले में वे उसे कुछ खाना दे देती । सामान खत्म होते ही चाची ने कहा, “बेटा तुम तो जानते हो कि मेरी हालत ऐसी नहीं है कि तुम्हें सहारा दे सकूं”। राजन ने कहा कि देखता हूं क्या होता है।
एक दिन राजन पास के रेलवे स्टेशन चला गया और वहाँ उदास एक बेंच पर बैठ गया। उसे बहुत कस कर भूंख लगी थी इसलिए सामने चाय की दुकान की ओर ललचाई नजरों से निहार रहा था। चाय वाला समझ गया, उसे एक काम करने वाला सस्ता लड़का चाहिए था। वह उसे काम पर लगा लेता है। काम के बदले केवल शाम को चाय और चार पूड़ीयाँ देने को कहता है। राजन मजबूरी में तैयार हो जाता है। उसने देखा कि वह दुकानदार चाय बनाने के लिए ज़्यादातर रंग का इस्तेमाल करता है, दूध की जगह पोस्टर कलर डालता है और चीनी की जगह सेकरिन केमिकल। राजन की आत्मा कह रही थी यह गलत है। उसे अपने पिता की बात याद आती कि भूंखों मर जाना पर बेईमानी न करना ।राजन ने काम करने से मना कर दिया और भूखा ही वहीं एक बेंच पर सो गया ।
रात में उसके पास उसी के उम्र के चार पांच लड़के आए । उसने राजन से हमदर्दी दिखाते हुए कहा, “चलो मेरे साथ। हम तुम्हें काम दिलाते हैं, खाना भी मिलेगा” । राजन ने सोचा कि भगवान ने आज उसकी सुन ली है। लड़कों ने राजन को एक आदमी से मिलवाया जिसने उसे ट्रेन में सफाई का काम दे दिया। राजन ने सोचा अच्छा काम होगा। ट्रेन आने पर सभी बच्चे उसमें चढ गए। सभी अलग अलग कंपार्टमेंट की सफाई करने लगे। सफाई से खुश होकर लोग उनके हाथ पर एक या दो रुपये रख देते थे। इस तरह अगले स्टेशन तक उन्होंने लगभग चार सौ रुपए कमा लिए। दूसरे स्टेशन से गाड़ी चली तो राजन ने देखा कि उनमें से दो बच्चे एक एक सूटकेस लेकर ट्रेन से कूद कर भागे। रात का समय था , वह चलती ट्रेन से कूद नहीं कुछ सका तो एक लड़के ने उसे बाहर धकेल दिया। ट्रेन अभी प्लेटफार्म पर धीरे चल रही थी फिर भी राजन को काफी चोट आई। सूटकेस लेकर भाग रहा लड़का पता नहीं कहां गायब हो गया था। राजन को यह सब ठीक नहीं लग रहा था। वह ही प्लेटफॉर्म पर बैठ गया।
उन आवारा लड़कों में से एक दो लड़के फिर उसके पास आए और कहा, “चलो अब हमें बोतल एकत्रित करके पानी बेंचना है”। उसने देखा कि बच्चे रेलवे ट्रैक के किनारे से फेंकी गयी बोतलें उठाने लगे और उसमें नल का पानी भरने लगे। राजन ने कहा मैं यह काम भी नहीं कर सकता। तुम लोगों को गंदा पानी पिलाते हो और कभी-कभी तो लोगों का सामान ले करके भाग जाते हो। इतना सुनते ही उनमें से एक लड़का राजन की जम कर पिटाई करने लगा। बोला कि देखते हैं बेटा कैसे काम नहीं करते हो वह लड़का एक पुलिसवाले के पास जाकर न जाने क्याबोला और पुलिस वाला राजन को पकड़ ले गया । उसे कुछ समझ में नहीं आया। पुलिस वाले ने उसे मारा पीटा भी । उसने बताया कि उन लड़कों उसकी ट्रेन में चोरी करने की शिकायत की थी। राजन ने प्रण कर लिया कि वह इन आवारा बच्चों का साथ नहीं करेगा चाहे वो मर ही क्यों न जाए। फिर वह प्लेटफार्म पर नहीं गया और बाहर ही बैठा रहा। तभी एक महिला का सामान सड़क पर गिर गया तो उसने राजन को पैसा लेकर अपना समान घर पहुंचाने को कहा । राजन को लगा भगवान ने उसे मेहनत कर के कमाने का मौका दिया है। परंतु उसके बाद इस तरह का काम उसे नहीं मिला। एक दिन वह पास के मंदिर के सामने बैठा था जहां एक पुजारी पूजा के बाद भाव- विह्वल हो कर कह रहा था "हे प्रभु तुम सब से प्यार करने वाले हो, दया लुटाने वाले हो”। जब राजन ने भगवान पर चढ़े एक फल को उठाना चाहा तो वही पुजारी आकर उसको झापड़ मारने लगा।
कुछ दिनों बाद जेठ की तपती दोपहरी में राजन ने कस्बे के बाहर रास्ते में देखा कि एक वृद्ध मूर्छित है। अरे यह तो वहीं पुजारी है जिसने उसे थप्पड़ मारा था। वह उन्हे खींच कर एक छायादार वृक्ष के नीचे ले गया और चेहरे पर जल का छिड़काव किया । पुजारी उस बालक को पहचान गया और कहा, “तुम तो बहुत अच्छे लड़के हो, उस दिन मुझे लगा था कि तुम चोर हो” । राजन ने कहा कोई बात नहीं। पुजारी उसे कुछ खाने को देना चाहता है मगर उसने कुछ स्वीकार नहीं किया । वह उससे कहता रहा कि मैं केवल मेहनत की कमाई का खाऊंगा। क्या आप कुछ काम दे सकते हैं? पुजारी उससे कहता है यह मंदिर मेरा नहीं है सेठ जी ने मुझे काम पर रखा है और पूजा के बदले मुझे पगार देते हैं। हाँ ! मालिक को अपनी गाड़ी साफ करने के लिए एक नौकर की जरूरत है। क्या तुम काम करोगे? रोजाना तुम्हें दस रुपये मिलेंगे। राजन काम करने लगा , वह प्रतिदिन आठ रुपए का नाश्ता कर लेता और दो रुपए बचा लेता था जिससे वह अपने पिता की तरह धंधा करना चाहता था।
सेठानी बहुत धार्मिक एवं दयालु महिला थी । कभी-कभी वह अपना सामान ले जाने के लिए राजन को कहती। सेठानी उसे कुछ खाने को देती मगर वह कोई सामान नहीं लेता था वह कहता कि पिता की मृत्यु के बाद मैंने कसम खाई थी कि मैं मेहनत करके ही खाऊँगा । आप अगर कुछ हमें देना चाहती हैं तो इसके बदले में अपने बच्चों की पुरानी किताबें दे दीजिए मुझे पढ़ने का बहुत मन करता है। इस प्रकार राजन स्वयं कुछ पढ़ता लिखता। बचत के थोड़े पैसे इकट्ठा करके राजन अपने को अमीर समझने लगा था। अब वह मंदिर के सामने, जब तक सेठानी पूजा करती गुब्बारे बेचता और कहता कि मैं धीरे-धीरे अपना रोजगार बढ़ा लूंगा और एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनना बन जाऊंगा। सेठानी उसे समझाती कि बेटा यह बात तो सही है कि तुम अपनी लगन और ईमानदारी से तरक्की कर सकते हो, मगर इस तरह तो बहुत समय लग जाएगा। समय बहुत ही मूल्यवान होता है। किसी कारोबार में कितना समय लगेगा यह भी महत्वपूर्ण है। मैं चाहती हूं कि तुम मुझसे कुछ आर्थिक मदद लेकर अपना कारोबार शुरू करो। मैं तुम्हारे पढ़ने की भी व्यवस्था कर सकती हूं। शायद यह ईश्वर की इच्छा है कि मैं तुम्हारी मदद करूं । राजन किसी तरह से मदद लेने को तैयार नहीं हो रहा था परंतु सेठानी ने उसे राजी करा लिया। उसने केवल पाँच सौ रुपये लिए और सामान ले कर सड़क के किनारे बेंचने लगा। पहली दफा तो लोग उसका कुछ समान ही छीन ले गए। उसे कोई फायदा नहीं हुआ। राजन ने रोते हुये सेठानी को केवल चार सौ रुपये दिये। सेठानी ने उसे प्यार से समझाया कि तुम असफलता से इस तरह हार जाओगे तो जीवन में मुसीबतों से कैसे लड़ोगे। अपनी असफलताओं से सीखो और अबकी बार नए तरीके से शुरू करो।
इस बार उसे अच्छा खासा मुनाफा हुआ। अब तो वह उत्साहित हो गया था और उसकी हिम्मत भी खुल गई थी अब उसने एक ट्राली खरीद ली और चाय बेचने का काम करने लग गया। अपनी पढ़ाई भी साथ साठ रख जारी रखी और ओपेन स्कूल से इंटर की परीक्षा भी पास कर ली। आज वह एक ही स्कूल में टीचर बन गया है परंतु शाम को वह अभी भी चाय की दुकान पर जरूर बैठता है। राजन की लगन और ईमानदारी से ही सब संभव हुआ है, वरना वह भी उन आवारा बच्चों के चक्कर में फंस कर अपराधी बन जाता।
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