Hara hua aadmi - 2 in Hindi Fiction Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | हारा हुआ आदमी - 2

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हारा हुआ आदमी - 2

"मेरी प्यारी निशा।तुमने आज का अखबार पढा?"नर्मदा अखबार पढ रही थी।अखबार से नजरें हटाकर सामने बैठी निशा को देखते हुए बोली।
"मै अखबार सुबह ही पढ लेती हूूं।"निशा बोली," कया कोई खास खबर है?
"इसका मतलब तूने अखबार ध्यान से नही पढा",नर्मदा चहकते हुए बोोली"आज के अखबार मे तेरे लिए खास खबर है"।
नर्मदा, नििशा की हम उम्र थी।वह शोख,चंंंल औऱ हंसमुख स्वभाव की थी।इसलिए दोनो मे खूब पटती थी।किसी तरह का लुकाव छुपाव दोनो के बीच मे नहीं था।दोनों एक दूसरे के सुुख दुख की साथी थी।
नर्मदा मजाक केे मूड मे होती, तब निशा को ऐसे ही बुुुलाती थी।निशा,नर्मदा की आदत से परिचित थी।इसलिए उसकी बात का बुरा नही मानती थी।आज उसके चेहरे को देखकर लग रहा था, वह बहुत खुश है।
"मै भी तो सुनूं अखबार मे ऐसा कया खास समाचार है"।
चम्पा ने चाय के गिलास मेज पर रख दिए थे।
"मालूम है,आज हमारी राशि मे कया लिखा है?"नर्मदा ने प्रशनसूचक नजरों से निशा को देखा था।
"मै राशियों मे विश्वास नही करती।होता कया है,उनमें?वो ही बातें।जो रोज ऊपर नीचे होती रहती हैं"निशा, नर्मदा को समझाते हुए बोली,"कितनी बार कहा है,राशियों के चक्कर मे मत पडा कर।साइनस की लेकचरार होकर ऐसी बातों मे.विश्वास करती है।"।
"ज्योतिष भी तो साइनस है।गृह नक्षत्रों को देखकर ही राशियों की गणना की जाती है।तू मान या मत मान, मेरा राशिफल हमेशा सच निकलता है।निशा बोली,"मेरा राशिफल आज भी सच निकलेगा।"
"तू बडे विश्वास से कह रही है।ऐसा कया लिखा है,तेरी राशि मे?"
"आज पति पत्नी का मिलन होगा"।नर्मदा ने अखबार मे छपा राशिफल पढा था।
"मेरा राशिफल तो सच हो भी गया"।संस्कृत की लेकचरार नीता बोली थी।"
"कैसे?"इतिहास की लेकचरार ममता ने पूछा था।
"मेरे पतिदेव ने केजुअल लीव ले ली है और आज रात को आ रहे हैं।अभी फोन आया था।मेरा तो आज पति से मिलन होकर रहेगा"नीता के चेहरे पर खुशी झलक रही थी,"हम तीनों की राशि एक है।जब मेरी सच हो रही है,तो तुम्हारी भी जरुर होगी"।
"सही कह रही हो",नीता की बात सुनकर नर्मदा बोली,"मै दावे से कहती हूँ।तू चाहे जो शर्त लगा ले।आज तेरा पति से मिलन जरूर होगा"।
पति का नाम आते ही, निशा का मुंह अजीब कसैला सा हो गया।उसका मन वितृष्णा से भर उठा।ऐसी ठंड मे भी उसे अपने शरीर से पसीना छूटता जान पडा।दिल की धडकन तेज हो गई।चेहरे पर अवसाद की रेखाएं उभर आयी।चेहरा देखकर कोई निशा के दिल मे छिपे राज को जानने का प्रयास करें, उससे पहले निशा ने चाय का गिलास उठाकर होठों से लगा लिया।
निशा को चाय पीती देखकर नर्मदा, ममता और नीता भी चाय पीने लगी।चाय पीकर चारो ने खाली गिलास मेज पर रख दिए।
"घर चला जाए?"ममता बोली।
"हॉ"नीता उठते हुए बोली।
वे चारों स्टाफरुम से कॉलेज के गेट के बाहर चली आयी।वातावरण मे अब भी धुध छायीथी।ठंड की वजह से सडक सुनसान थी।चारों तरफ सन्नाटा पसरा था।ठंड की वजह से आवारा पशु भी नजर नही आ रहे थे।।
रात की बरसात से सडक पर जगह जगह पानी भर गया था।इसलिए उन्हें संभलकर चलना पड रहा था।चौराहे पर आकर नर्मदा, नीता, ममता ने ऑटो पकड़ लिया।ऑटो मे बैठने से पहले नर्मदा बोली,"निशा डियर मेरी बात याद रखना।"
"कया?"निशा ने पूछा था।