Karm path par - 9 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 9

Featured Books
Categories
Share

कर्म पथ पर - 9



कर्म पथ पर
Chapter 9




मानस को जेल भिजवाने के बाद से ही श्यामलाल बहुत खुश थे। उन्हें लग रहा था कि यह केस जीत कर उन्होंने खुद को अंग्रेज़ी हुकूमत की नज़रों में चढ़ा लिया है। बाकी जो कुछ रही सही कसर है वह जय के नाटक से पूरी हो जाएगी।
इतने सालों में पहली बार उन्हें अपने बेटे जय पर गर्व हो रहा था। अब तक‌ उसने सिर्फ उनकी दौलत खर्च करने का काम ही किया था। लेकिन ‌इस नाटक में अभिनय कर वह उनके कद को और बढ़ाने वाला था।
श्यामलाल को नाटक के मंचन से बहुत उम्मीदें थीं। इसलिए वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। वह स्वयं ही नाटक की तैयारियों के बारे में पूँछताछ करते रहते थे।
अब नाटक के मंचन में बहुत कम समय बचा था। अतः उन्होंने इंद्र को तैयारियों का जायजा लेने के लिए बुलवाया था। आज इतवार था। सुबह के आठ बजे थे। श्यामलाल अपने बागीचे में बैठे थे। भोला चाय लेकर आया तो उन्होंने पूँछा,
"जय जाग गया ?"
"नहीं...."
श्यामलाल कुछ कहने जा रहे थे तभी इंद्र आ गया। कुर्सी पर बैठते हुए बोला,
"नमस्ते चाचाजी, आपने बुलाया था।"
"हाँ.... जानना चाहता था कि सब कुछ कैसा चल रहा है। देखो, इस नाटक का सफल होना बहुत ज़रूरी है। मैंने राजस्व विभाग के अधिकारी जॉन हैमिल्टन को विशेष अतिथि के तौर पर बुलाया है। मेरे क्लब के भी कुछ मित्र आने वाले हैं। कोई गलती नहीं होनी चाहिए।"
"चाचाजी हमने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी है। पात्रों का चयन उम्दा है। मंच सज्जा पर भी खास ध्यान दिया है। सबने जम कर रिहर्सल किया है। नायक के तौर पर ‌जय का अभिनय तो कमाल का है।"
श्यामलाल ने खुश होकर कहा,
"बहुत खूब.... तो मैं उम्मीद करूँ कि हैमिल्टन साहब खुश होकर ही जाएंगे।"
"जी चाचाजी, हमसे तो कोई गलती नहीं होगी पर...."
इंद्र द्वारा अपना वाक्य अधूरा छोड़ देने से श्यामलाल परेशान हो गए। उन्होंने कहा,
"अब इस पर का क्या मतलब है ?"
इंद्र ने उन्हें वृंदा और उसके साथी द्वारा विलास रंगशाला में जो कुछ किया गया, सब विस्तार से बता दिया।
"चाचाजी हमने तो अपनी तरफ से सब ठीक ही किया है। लेकिन अगर उस दिन वह लड़की वृंदा सचमुच अपने साथियों के साथ धरने पर बैठ गई तो रंग में भंग पड़ जाएगा।"
इंद्र की बात सुनकर श्यामलाल भी चिंता में पड़ गए। कुछ देर तक सोचने के बाद बोले,
"बात तो गंभीर है। पर तुम लोग अपनी तैयारी करते रहो। मैं देखता हूँ कि क्या हो सकता है।"
कुछ ‌देर और बात करके इंद्र चला गया। श्यामलाल वृंदा द्वारा दी गई धमकी के बारे में सोंचने लगे। उन्हें अपने साथी वकील रहमतुल्लाह खान की याद आई।‌ रहमतुल्लाह के डेप्युटी पुलिस सुप्रीटेंडेंट नीदर सोल से अच्छे संबंध थे। श्यामलाल रहमतुल्लाह से मिलने के लिए तैयार होने चले गए।
रहमतुल्लाह खान खानदानी रईस थे। मिर्ज़ा मंडी में उनकी पुश्तैनी हवेली थी। रहमतुल्लाह भी श्यामलाल की तरह अंग्रेज़ी तौर तरीके पसंद करने वालों में से थे। वह भी एक माने हुए वकील थे।
रहमतुल्लाह खान और श्यामलाल के बीच अच्छे पारिवारिक संबंध थे। रहमतुल्लाह श्यामलाल से दो साल बड़े थे। इसलिए श्यामलाल उन्हें भाईजान कह कर बुलाते थे। पर रहमतुल्लाह खान की बेगम शौकत खानम श्यामलाल को अपना देवर नहीं बल्कि बहनोई मानती थीं। इसका कारण था कि श्यामलाल की मरहूम पत्नी सुशीला और वो खुर्जा की रहने वाली थीं। वो सुशीला को अपनी बहन की तरह मानती थीं।
श्यामलाल की मुलाकात अक्सर रहमतुल्लाह से कोर्ट में या क्लब में हो जाया करती थी। पर वह एक अर्से के बाद रहमतुल्लाह की हवेली पर जा रहे थे। कोई डेढ़ साल पहले वो रहमतुल्लाह के पोते की सुन्नत पर रखी गई दावत में शिरकत करने गए थे। इसलिए रास्ते में रुक कर उन्होंने कुछ फल व मिठाई खरीदी। खासकर शौकत खानम के लिए रबड़ी ‌जो उन्हें बहुत पसंद थी।
जब वह हवेली पर पहुँचे तो रहमतुल्लाह ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। अपने खादिम जुम्मन को बुला कर उन्होंने श्यामलाल द्वारा लाए गए फल और मिठाई अंदर भिजवाते हुए कहा,
"बेगम साहिबा से कहो कि उनके बहनोई श्यामलाल आए हैं।"
जुम्मन भीतर चला गया। रहमतुल्लाह ने तारीफ करते हुए कहा,
"एक बार फिर तुमने ‌अपना झंडा गाड़ दिया। उस लड़के ‌मानस को सज़ा दिला कर तुमने इन उद्दंड लड़कों के दिल में खौफ पैदा कर दिया।"
"शुक्रिया भाईजान, इन लोगों को ये बताना ज़रूरी है कि वो ‌बेकार ही समाज की शांति भंग कर रहे हैं।"
"शुक्र है अल्लाह का कि हमारी औलादों के दिमाग ठिकाने हैं।"
"हाँ भाईजान, सचमुच ऊपर वाले का करम है।‌ आपका भतीजा जय भी यही मानता है कि ये सभी भटके हुए लोग हैं।"
"बहुत खूब ! आजकल क्या कर रहे हैं साहबज़ादे ?"
"आप तो वाकिफ हैं कि जय शुरू से ही गीत संगीत, नाटकों का शौकीन रहा है। हाल ही में जय ने अपने एक दोस्त इंद्रजीत खन्ना के साथ मिलकर थिएटर ग्रुप की शुरुआत की है। जो पहला नाटक वो लोग पेश करने वाले हैं वह इसी मौज़ूं पर है। नाटक में मानस जैसे लड़कों को भटका हुआ बताया गया ‌है। जय खुद प्रमुख किरदार निभा रहा है। अगले हफ्ते पहला शो है। आप बेगम साहिबा को लेकर ज़रुर आइएगा"
श्यामलाल जब रहमतुल्लाह को नाटक के पहले शो में आने की दावत दे रहे थे तभी शौकत खानम बैठक में आईं। उन्होंने श्यामलाल से कहा,
"किस चीज़ की दावत दे रहे हैं आप ? कहीं हमारे भांजे जय की शादी तो नहीं हो रही है ?"
श्यामलाल ने खड़े होकर उन्हें सलाम किया। बैठते हुए बोले,
"नहीं, अभी तो जनाब से इस बारे में बात भी करो तो भाग लेते हैं। मैं तो आपको उनके नाटक के पहले शो के लिए दावत दे रहा था।"
"माशाअल्लाह ! बड़े ज़हीन हैं हमारे जय।"
"बस आप लोगों की दुआ है।"
रहमतुल्लाह ने कहा,
"हम बेगम साहिबा को लेकर ज़रूर आएंगे।"
"भाईजान, सारी तैयारियां अच्छी तरह से हो गई हैं। विलास रंगशाला में शो है। पर एक दिक्कत है।"
"कैसी दिक्कत ?"
श्यामलाल ने रहमतुल्लाह को वृंदा की धमकी के बारे में बता दिया।
"भाईजान, आप डेप्युटी सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस नीदर सोल को जानते हैं। देखिए अगर कुछ हो सके तो ? पहले शो में चीफ गेस्ट के तौर पर राजस्व विभाग के अधिकारी जॉन हैमिल्टन तशरीफ़ लाने वाले हैं।"
रहमतुल्लाह ने भरोसा दिलाते हुए कहा,
"परेशान ना हो। वह लड़की विलास रंगशाला के आसपास भी नहीं फटक पाएगी।"
शौकत खानम चाय भिजवाने की बात कह कर भीतर चली गईं। जाते हुए कह गईं कि इतने वक्त के बाद आना हुआ है। खाना खाकर ही जाएं।
कुछ देर में जुम्मन चाय लेकर आया। चाय पीते हुए श्यामलाल और रहमतुल्लाह वर्तमान परिस्थितियों पर बातचीत करने लगे।
एक लड़के ने कमरे में प्रवेश किया। वह रहमतुल्लाह का बड़ा पोता जुनैद अली खान था। जुनैद की उम्र बारह बरस थी। उसने बड़े अदब के साथ श्यामलाल को सलाम किया। श्यामलाल ने उसे अपने पास बुलाया।
"जुनैद तुम तो काफी बड़े हो गए। किस दर्जे में हो ?"
"जी, सिक्सथ क्लास में हूँ। लामार्टीनियर कॉलेज में।"
"वाह ! जीते रहो। खूब तरक्की करो।"
जुनैद ने उतने ही अदब से शुक्रिया कहा। रहमतुल्लाह बड़े गर्व से बोले,
"जुनैद मियां पढ़ने में तो अच्छे हैं ही। पर क्रिकेट के भी बेहतर खिलाड़ी हैं।"
श्यामलाल ने जुनैद की पीठ थपथपाई। जुनैद ने मुस्कुराते हुए कहा,
"दादाजान, मैं आपसे इजाज़त मांगने आया था।"
"किस बात की इजाज़त ?"
"आज स्कूल के ग्राउंड में क्रिकेट ‌मैच शुरू हो रहा है। तीन दिन चलेगा। मैं कप्तान हूँ टीम का। आपसे पूँछने आया था कि मैं ‌जाऊँ।"

रहमतुल्लाह ने अपने ‌ड्राइवर छेदीलाल को बुला कर हुक्म दिया कि जुनैद को स्कूल ग्राउंड लेकर जाओ। मैच खत्म होने पर वापस लेकर आना। जुनैद छेदीलाल के साथ चला गया। श्यामलाल फिर रहमतुल्लाह से बात करने लगे।
दोपहर का खाना खाकर जब वह घर लौट रहे थे तो वह इस बात से पूरी तरह निश्चिंत थे कि अब वृंदा कोई गड़बड़ नहीं कर पाएगी।