Karm path par - 3 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कर्म पथ पर - 3

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कर्म पथ पर - 3




कर्म पथ पर

Chapter 3


कैसरबाग में श्यामलाल टंडन का शानदार बंगला था। श्यामलाल का रहन सहन पश्चिमी तौर तरीकों पर आधारित था। उनका खान पान, लिबास और बोली सभी कुछ अंग्रेज़ी था।
अंग्रेज़ों की तरह ही वह वक्त के बहुत पाबंद थे। उनके हर काम का नियत समय था। वह उसी के अनुसार काम करते थे। कारिंदों से काम में ज़रा सी भी चूक होती थी तो उनकी खैर नहीं होती थी।
यह समय उनके क्लब जाने का था। क्लब जाने से पहले वह बंगले के गार्डन में बैठ कर चाय पीते थे। लेकिन आज भोला को चाय लेकर आने में देर हो गई थी। भोला जानता था कि आज उसकी खैर नहीं है। वह चाय की ट्रे लेकर पहुँचा तो श्यामलाल ने उसे गुस्से से घूरा। उनका इस तरह गुस्से से घूरना डांट से कम नहीं था।
भोला ने कांपते हुए हाथों से ट्रे मेज़ पर रखी और सफाई देते हुए बोला,
"साहब, आज दोपहर को सिर पिरा रहा था। इसलिए ‌सो गए थे। उठने में देर हो गई।"
"बहानेबाजी बंद करो चाय बनाओ।"
भोला फौरन रोज़ की तरह चाय बनाने लगा। चाय बना कर उसने श्यामलाल की तरफ प्याला बढ़ा दिया।
चाय की चुस्की लेते हुए श्यामलाल ने पूँछा,
"जय घर पर ही है या कहीं बाहर गया है ?"
"छोटे मालिक तो दोपहर से ही अपने दोस्त के साथ अपने कमरे में हैं।"
"ठीक है तुम जाओ।"
भोला के जाने के बाद श्यामलाल अपने बेटे जय के बारे ‌में सोंचने लगे। वक्त की पाबंदी तो उसने सीखी ही नहीं थी। वह अपनी मर्जी के अनुसार काम करता था।
शुरुआत में वो अक्सर उसे उसके तौर तरीकों के लिए टोकते थे। पर जब उन्होंने देखा कि जय पर उनकी बातों का कोई असर नहीं होता है तो ‌उन्होंने कुछ भी कहना छोड़ दिया।
जय बहुत ही शौकीन मिजाज़ था। सूट बूट पहनना, इत्र लगाना, गीत संगीत की महफिलों में जाना ही उसके काम थे। इसके अलावा वह अपने पिता की तरह क्लब भी जाता था।
भगवान ने उसे अच्छी शक्ल सूरत दी थी। क्लब में आने वाली कई गोरी मेम और हिंदुस्तानी लड़कियां उस पर फिदा रहती थीं। पर शौकीन मिजाज़ जय किसी को भी भाव नहीं देता था।
क्लब में ही उसकी मुलाकात इंद्रजीत खन्ना से हुई थी। इंद्र कुछ समय तक बंबई जाकर फिल्मों में अपनी किस्मत आजमा चुका था। वहाँ कोई बात नहीं बनी तो वापस लौट आया। वह अक्सर पैसे वाले लोगों की खोज में रहता था। अतः शहर के प्रमुख क्लब में उसका आना जाना था। वहीं उसकी मुलाकात जय से हुई। थिएटर में रुचि रखने वाले जय में उसे उम्मीद नज़र आई। वह उसका दोस्त बन गया। जय भी अपना शौक पूरा करना चाहता था। दोनों ने अपना ग्रुप बना लिया।
घर आने के बाद से ही जय अपने मित्र इंद्र के साथ कमरे में बैठा ग्रुप के पहले नाटक की कहानी पर विचार कर ‌रहा था। नाटक की कहानी को लेकर उनके मन में कई तरह के ‌विचार आए थे। लेकिन कभी जय को वो विचार पसंद नहीं आता तो कभी इंद्र किसी को लेकर अपनी नापसंदगी जाहिर करता।
इस समय जय और इंद दोनों ही अपने विचारों में खोए थे। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।‌ जय ने झल्लाकर कहा।
"क्या बात है ? बोला था ना कि परेशान मत करना।"
बाहर से भोला की आवाज़ आई।
"छोटे मालिक, दोपहर में भी आप लोगन ने कुछ नहीं खाया। अब चाय लाए हैं। वह तो पी लो।"
जय भोला को डांटने जा रहा था। पर इंद्र उसे रोकते हुए बोला,
"अरे ले आने दो चाय। हम कहानी का चुनाव करने में ऐसे डूब गए कि भूख प्यास भी भूल गए। मुझे तो अब भूख लग रही है।"
इंद्र की बात सुनकर जय को भी महसूस हुआ कि वह भी भूखा है। इंद्र ने उठकर दरवाज़ा खोल दिया। भोला चाय की ट्रे लेकर भीतर आया। चाय के साथ खाने के लिए बिस्किट व केक थे।
भोला चाय बनाते हुए इंद्र से बोला,
"आपके प्याले में कितनी चीनी डालूँ ?"
इंद्र ने एक उंगली उठाकर इशारा किया। दोनों को चाय का प्याला पकड़ाने के बाद भोला ने जय से पूँछा,
"और कुछ चाहिए छोटे मालिक ?"
"हमारे दोस्त इंद्र आज रात का खाना खाकर जाएंगे। खानसामा से कहो कि कुछ अच्छा बनाए।"
जय का आदेश लेकर भोला चला गया। चाय पीते हुए इंद्र बोला,
"पेट‌ में कुछ पड़ते ही दिमाग काम करने लगा।"
"वो कैसे ?"
"देखो, चाचाजी की चाहत है कि अंग्रेज़ उन्हें राय बहादुर का खिताब दें। हम अपने नाटक के ज़रिए उनकी मदद कर सकते हैं।"
"अब हमारे नाटक का, पापा को राय बहादुर का खिताब मिलने से क्या ताल्लुक है ?"
इंद्र ने चाय का प्याला रखा और समझाने की मुद्रा में आ गया।
"आजकल अंग्रेज़ों को देश से निकालने के लिए कितना बवाल मचा हुआ है। आज सुबह ही हम उस लड़की से टकराए थे। ये सब लोग अंग्रेज़ी हुकूमत की नाक में बेवजह दम किए हुए हैं।"
जय उसकी बात समझने की कोशिश कर रहा था। इंद्र ने अपनी बात जारी रखी।
"अंग्रेज़ी हुकूमत किसी भी तरह इन्हें कुचलना चाहती है। अब अगर हम अपने नाटक के माध्यम से यह कहें कि ये सभी लड़के लड़कियां जो सड़कों पर ऊधम करते घूमते हैं, दरअसल बदमाश और भटके हुए हैं तो सोंचो अंग्रेज़ी हुकूमत हमसे कितनी खुश हो जाएगी।"
इंद्र की बात में दम तो था। लेकिन जय अभी भी यह नहीं समझ पा रहा था कि इससे उसके पिता के राय बहादुर के खिताब का क्या संबंध है। इंद्र ने उसे समझाते हुए आगे कहा,
"मैं एक ऐसी कहानी लिखता हूँ जिसमें नायक भटक कर पहले अंग्रेज़ी हुकूमत की खिलाफत करता है। पर बाद में अपनी भूल का एहसास होने पर अंग्रेज़ी हुकूमत का साथ देता है। तुम नायक की भूमिका करना। हम चाचाजी से कहेंगे कि पहले शो में वह अपने किसी अंग्रेज़ अधिकारी दोस्त को आमंत्रित करें। फिर तो वह अधिकारी खुश होकर चाचाजी की सिफारिश करेगा।"
जय को पूरी बात समझ में आ गई थी। वह बहुत खुश था कि अब वह अपने पिता को यह बात बताएगा तो वह भी खुश हो जाएंगे। अपने पिता को खुश करने का उसके पास यह सुनहरा अवसर था। पर उसकी नज़र जब इंद पर पड़ी तो वह कुछ परेशान सा दिखा। जय ने कारण पूँछा तो उसने बताया,
"किसी अंग्रेज़ अधिकारी को न्योता देने का मतलब है कि हमें किसी अच्छे थिएटर में अपना मंचन करना होगा। अच्छे कलाकारों की टीम चुननी होगी। इस सबमें बहुत खर्च होगा। मैं उसी का हिसाब लगा रहा था। हमारे पास उतना बजट नहीं है।"
अभी तक जय यह सोंच रहा था कि अपने पिता को सारी बात बता कर खुश कर देगा। लेकिन अब उसे लग रहा था कि यह अवसर भी हाथ से निकलने वाला है।
इंद्र उसके मन की बात समझ रहा था। वह बोला,
"एक उपाय है। तुम चाचाजी को सब बताओ। बात उनके फायदे की है। हो सकता है कि वो हमारी मदद कर दें।"
जय सही समय देख कर अपने पिता से बात करने को तैयार हो गया।

श्यामलाल ने पूरी बात सुनी। उन्हें अंग्रेज़ी हुकूमत की नज़रों में खुद को स्थापित करने का यह अच्छा उपाय लगा। वह पैसों से मदद करने को तैयार हो गए।

जय और इंद्र दोनों अपने नाटक की तैयारी में जोर शोर से जुटे थे। पटकथा और संवाद लिखने एवं पात्रों का चुनाव करने में दो माह का समय लगा था। जय नायक की भूमिका कर रहा था। इस समय सभी पूरी लगन के साथ रिहर्सल में जुटे थे। पंद्रह दिन के बाद नाटक का पहला शो था। शो की पूरी व्यवस्था हो चुकी थी। शहर के कई गणमान्य लोगों को आमंत्रण भेजा गया था। मुख्य अतिथि के तौर पर राजस्व विभाग के एक अंग्रेज़ अधिकारी को बुलाया गया था।
नाटक की कहानी क्रांतिकारी युवक युवतियों पर आधारित थी। कहानी के अनुसार सभी क्रांतिकारी बहके हुए लोग थे जो कुछ लोगों के बहकावे में आकर देश में अशांति का माहौल बना रहे थे। जय ऐसे ही बहके क्रांतिकारी की भूमिका में था जिसे अंत में अपनी गलती का एहसास हो जाता है।
रिहर्सल करते हुए सभी बहुत थक गए थे। अतः तय हुआ कि कल सभी सही समय पर आकर रिहर्सल करेंगे। जय बहुत थक गया था। वह क्लब में जाकर अपने आपको तरोताज़ा करना चाहता था। लेकिन दिन भर के रिहर्सल के बाद सीधे क्लब नहीं जा सकता था। अतः वह तैयार होने के लिए अपने घर चला गया।
नहा धोकर वह तैयार हो रहा था तभी वृंदा का चेहरा उसकी आँखों के सामने घूम गया। वैसे यह पहली बार नहीं हुआ था। उस दिन से जब उसने कार से सटी खड़ी वृंदा को झिड़का था, उसका चेहरा रह रह कर उसकी आँखों में तैरने लगता था। लेकिन वह इसका कारण नहीं समझ पा रहा था। यह सच था कि वृंदा देखने में सुंदर थी। किंतु उसके आसपास तो अक्सर सुंदर लड़कियां मडराती रहती थीं। पर इस वक्त वह इस बारे में नहीं सोंचना चाहता था। वह तैयार होकर क्लब के लिए निकल गया।