Rakt Sambandh in Hindi Classic Stories by Vijay Vibhor books and stories PDF | रक्त सम्बन्ध

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रक्त सम्बन्ध

‘तीस बरस की हो गई है । इस उम्र में कौन तुझसे ब्याह करेगा ?’ मौसी के इन तानों की बौछार के बीच फोन पर मैसेज़ आया, ‘एक युवक घायलावस्था में अस्पताल पहुँचा है । उसे बी पॉजिटिव रक्त की आवश्यकता है ।’ रजनी झट से उठी । अपना पर्स उठाया और मौसी को बड़बड़ करते छोड़ गई ।

रजनी की शक्ल–सूरत बहुत अच्छी नहीं है । ऊपर से रंग की भी काली । शुरू–शुरू में कुछ रिश्ते आए, जिन्हें रजनी ने ठुकरा दिया अपनी उच्च शिक्षा पूरी करने के चक्कर में । बाद में उसकी शिक्षा के स्तर के रिश्ते आने बन्द हो गए । दफ्तर में भी कोई पुरुष साथी उसकी तरफ सिर्फ खेलने के इरादे से ही आगे बढ़ता । जिसे वह भांप जाती और खरी–खोटी सुना देती । इसी कारण उससे सारा स्टॉफ डरता भी था । इस तरह उसका जीवन एक प्रकार से एकाकी–सा हो गया था । जिसका तोड़ उसने सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर भाग लेकर निकाल लिया था । एक स्त्री होते हुए भी अब तक वह लगभग उन्नचास बार रक्तदान कर चुकी थी । आज उसका रक्तदान का अर्/ाशतक पूरा होने वाला था ।

अस्पताल पहुँच कर उसने रक्तदान किया । जैसे ही वह चलने लगी, तो उसके सामने एक अ/ोड़ व्यक्ति हाथ जोड़कर आन खड़ा हुआ । ‘बेटी मैं तुम्हारा यह उपकार कभी नहीं भूल सकूंगा । तुमने मेरे बेटे को अपना रक्तदान कर एक नहीं तीन–तीन जीवों की रक्षा की है ।’

‘नहीं अंकल जी! इसमें उपकार की कोई बात नहीं । रक्त तो हमारे शरीर में लगातार बनता ही रहता है । फिर इसे शरीर में स्टोर करके रखने से क्या लाभ ? यह उचित मा/यम से उचित जरूरतमंद तक पहुँच जाए, तो दोहरा लाभ होता है । एक तो पुण्य की प्राप्ति, दूसरे फालतू के रोगों से मुक्ति ।’

बातों का सिलसिला चल निकला । अ/ोड़ ने रजनी से उसके बारे में बहुत सारी जानकारी हासिल कर ली । अक्सर रजनी किसी के साथ इतना ज्यादा खुल कर बात नहीं करती, लेकिन न जाने उस अधेड़ व्यक्ति की वाणी में क्या जादू था कि वह उसके सभी प्रश्नों का सीधा उत्तर देती रही । बातों–बातों में जब अ/ोड़ को मालूम पड़ा कि रजनी अविवाहित है तो उसने रजनी से आग्रह किया कि जिसे तुमने अपना रक्त दिया है, एक बार उससे मिल तो लो । रजनी उनके इस आग्रह को टाल नहीं सकी । उसने देखा कि लगभग तीस बरस की उम्र का बहुत ही खूबसूरत नौजवान था, जिसे उसने अपना रक्त देकर जीवन दान दिया था । आज तक उसने इतनी बार रक्तदान किया, लेकिन उसे कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि उसका रक्त किसके काम आया ।

रजनी के चेहरे के हाव–भाव को पढ़कर वह अ/ोड़ कहने लगा – “बेटी क्या तुम मुझ पर एक उपकार और कर सकती हो ?”

‘जी कहिए–––– ।’

‘मैं चाहता हूँ जिस लड़के को तुमने अपना रक्त देकर जीवनदान दिया है । उसके आगे के जीवन में भी तुम ही उसकी देखभाल करो ।’

अ/ोड़ का इशारा समझ चुकी थी रजनी, ‘लेकिन अंकल रंग–रूप, नैन–नक्श में मैं उसके किसी भी तरह काबि़ल नहीं हूँ । वह बहुत ही खूबसूरत है । मुझ जैसी कुरूप से शादी करके उसे कोई खुशी नहीं होगी ।’

‘मैं अपने बेटे को अच्छी तरह जानता हूँ । वह बड़ा ही आज्ञाकारी है । मेरी बात को वह कभी नहीं टालेगा । वैसे भी अब तो तुम्हारा उसके साथ रक्त–संबं/ा जुड़ चुका है । इसलिए शादी करने में उसे भी कोई हर्ज़ नहीं होगा ।’

रजनी के चेहरे पर एक अलग ही शर्म की रेखा उभर आयी । अधेड़ भी रजनी जैसी पुत्रव/ाु पाकर आत्मविभोर हो उठा ।