Ajnabi in Hindi Horror Stories by Saroj Verma books and stories PDF | अजनबी

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अजनबी

मेरा गांव झांसी से साठ किलोमीटर दूर है और मेरी ट्रेन का रिजर्वेशन झांसी से था दिल्ली तक के लिए, मैं अपने मां बाबूजी से मिलने गई थी।।
गांव से जल्दी निकल आई थी क्योंकि गांव से फिर झांसी आने के लिए साधन नहीं मिलता, रोडवेज बसें नहीं मिलती, प्राइवेट साधन ही मिलते है जो चलते कम और रूकते ज्यादा है और जब तक ठूंस के ना भर लिए जाएं तो चलने का नाम नहीं लेते, मुझे एक रोडवेज बस मिल गई थी झांसी तक के लिए तो मैं पांच बजे ही झांसी पहुंच गई फिर वहां से ओटो में स्टेशन।
मेरी ट्रेन रात नौ बजे की थी, मैंने सोचा अभी तो बहुत टाइम है ट्रेन के लिए, चलो कुछ किताबे ही खरीद कर पढ़ लेते हैं, मैंने मंजूर एहतेशाम की सूखा बरगद खरीदी,एक कोल्डड्रिंक और एक चिप्स का पैकेट खरीदकर वेंटिग रूम में पहुंच गई,वेंटिग रूम की बेंचो में इक्का दुक्का लोग ही बैठे थे।।
मैंने किताब पढ़ना शुरू किया,किताब बहुत ही इंट्रस्टिंग थी,मैं पढ़ती गई, मैंने अपना बैग सर से लगाया और बेंच पर लेट कर पढ़ने लगी, एकाएक मुझे नींद आ गई।।
थोड़ी देर बाद मेरी आंख खुली, मैंने अपनी हैंडवाच देखी तो शाम के सात बज गए थे,वेंटिंग रूम खाली था,बस बगल वाली बेंच में एक अठारह -उन्नीस साल का लड़का बैठा था।।
उसने मुझे देखकर स्माइल पास की, मैंने भी हल्का सी मुस्कुराहट पास कर दी, उसने कानों में हेडफोन लगा रखे थे एक कैंप लगा रखी थी,व्हाइट टी शर्ट,ओपेन शर्ट चेक वाली ,जींस और पूमा के शूज पहन रखे थे और हाथों में एक न्यूज पेपर है जो उसने अब तक उसका रोल बना दिया था।।
उसने अपना इंटरोडक्शन दिया __
hi!आय एम पूरब सिंह...
मैंने कहा,मैं शोभना....
उसने कहा,मैं इंजीनियरिंग स्टूडेंट हूं, खजुराहो घूमने आया था,मैं दिल्ली से हूं।।
मैंने कहा,मैं बैंक में पी.ओ. हूं, झांसी के पास मेरा मायका है मैं अपने मां-बाप से मिलने आई थी, अभी वापस दिल्ली जा रही हूं, वैसे मेरे हसबैंड इंजिनियर है।
उसने कहा,ओह ...दैट्स ग्रेट...
उसने अपनी फैमिली के बारे में बताया कि वो इकलौता है अपने घर में, मम्मी पापा है,बस...
मैंने भी कहा, मेरी दो बेटियां हैं...
बस ऐसे ही बातें होती रही, घड़ी देखी तो आठ बज रहे थे, मैंने सोचा खाना खा लेते हैं, मैंने खाना निकाला और उससे पूछा कि__ तुम भी खाना खा लो...
वो बोला...मैं खाना नहीं खाता।।
मुझे हंसी आ गई, मैंने कहा कि खाना नहीं खाते तो जिंदा कैसे रहते हो...
वो बोला, मैं जिंदा कहां हूं...
मैंने कहा मजाक मत करो लो खालो, उसने खाने से मना कर दिया।।
मैंने खाना खा लिया और हाथ धोने वेटिंग रूम के वाशरूम में चली गई,वापस आई तो उसकी जगह पर वो वहां नहीं था तभी मेरे हसबैंड का फोन आया कि उनके एक सहकर्मी की बहन का बेटा खजुराहो गया था घूमने दो दिन के लिए कहकर गया था एक हफ्ते हो गए अभी तक नहीं लौटा, इकलौता लड़का है,मैंने थोड़ी देर हसबैंड से बातें करके फोन काट दिया।।
वो अपना न्यूजपेपर बेंच पर छोड़कर चला गया था तभी एक आदमी उसी बेंच पर आकर बोला बहनजी ये आपका है, मैंने कहा नहीं फिर भी मन हुआ कि उस न्यूज पेपर को ले लूं और मैंने ले लिया।।
वो न्यूज पेपर दो तीन पहले का था, जिसमें एक गुमनाम इंसान के बारे में एक सूचना लिखी थी कि ये लाश हमें रेलवे ट्रैक पर मिली थी,इसके पोकेट में आई कार्ड मिला जिसमें लिखा था इसका नाम पूरब सिंह है और इंजीनियरिंग कॉलेज दिल्ली का छात्र है,कालेज के पते की सहायता से पुलिस इसके घरवालों के बारे में जानने का प्रयास कर रही है।
मैं वो खबर पढ़ कर बाहर की ओर भागी उसे ढूंढने,देखा तो वो रेलवे ट्रैक पर खड़ा था और सामने से बहुत रफ्तार में ट्रेन आ रही थी उसने मुझे बाय किया और जब तक कि मैं उसे रोक पाती ट्रेन उस पर चढ़ गई लेकिन ट्रेन के गुजरने के बाद वहां कुछ भी नहीं था और वो ट्रैक के दूसरे साइड वाले प्लेटफार्म से बाय करते हुए गायब हो गया,शायद उसने मुझे चुना था अपने मरने की सूचना देने के लिए।।

the end___
saroj Verma___