Bhadukada - 18 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 18

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भदूकड़ा - 18

कुन्ती झपाटे से अपनी अटारी में पहुंची. पीछे-पीछे बड़के दादाजी पहुंचे.

’क्या बात है? इस तरह भरी समाज से उठा के लाने का मतलब?’ दादाजी को कुन्ती की हरकत पसन्द नहीं आई थी, ये उनकी आवाज़ से स्पष्ट था.

’देखिये, वो सुमित्रा वहां न केवल ठाठ से रह रही, बल्कि पढ़ाई भी कर रही. और अब तो उसकी नौकरी भी लगने वाली. और मैं यहां बैठ के कंडे पाथ रही. तो कान खोल के सुन लीजिये, मैं भी आगे पढ़ाई करूंगी, और नौकरी भी. ये मेरा फ़ैसला है, सलाह नहीं मांगी है.’ एक सांस में कह गयी कुन्ती, अपनी बात.

’तो जब तय कर लिया है, फिर पूछना क्या? मैने पढ़ने को तो कभी मना किया ही नहीं. बिल्कुल पढ़ो. पढ़ोगी, तो दुनिया भर की खुराफ़ातों से भी दूर हो जायेगा तुम्हारा दिमाग़.’ हांलांकि दूसरा वाक्य दादाजी ने दबी ज़बान से कहा था लेकिन कुन्ती ने सुन लिया.

’हां हां हम ही तो खुराफ़ातें करते हैं. बाक़ी सब तो दूध के धुले हैं.’ तमक के कहा कुन्ती ने.

’नहीं मेरा वो मतलब नहीं था. भर दो तुम बीटीसी का फ़ॉर्म.’ दादाजी ने बात बिगड़े, उसके पहले ही ख़त्म करने के अन्दाज़ में कहा.

फ़ॉर्म भरे ही जा रहे थे, सो अगले ही दिन कुन्ती का भी बीटीसी का फ़ॉर्म भर गया. अब तक कुन्ती भी दो बेटों की मां बन चुकी थी. दूसरा बेटा अभी बहुत छोटा था, लेकिन सुमित्रा के साथ होड़ करने के आगे कुन्ती को कहां नज़र आया दुधमुंहा बेटा? अब कुन्ती जब देखो तब किताबों में डूबी रहती, और छुटका यहां-वहां भटकता घूमता. उसे भूख लगी है, प्यास लगी है, या उसे नहलाना-धुलाना है, कोई फ़िक्र न थी कुन्ती को. पास आता तो झिड़क देती. वो तो भला हो इस परिवार का, जहां ज़बर्दस्त एकता थी और उस छुटके को उसकी चाचियों ने सम्भाल लिया. उसकी भूख-प्यास की चिन्ता अपने सिर ले ली.

पढ़ाई के चक्कर में कुन्ती की खुराफ़ातें सचमुच ही कम हो गयीं. कमी तो इसलिये भी आई क्योंकि अब सुमित्रा वहां नहीं थी. सारा गुड़तान तो सुमित्रा के खिलाफ़ ही रचती थी कुन्ती! सुमित्रा का रिज़ल्ट आने वाला था और कुन्ती की पूरी कोशिश यही थी, कि उसका रिज़ल्ट , आने वाले साल में सुमित्रा से बेहतर बने. पढ़ने की इस होड़ ने दादाजी को, जो खुद भी पढ़ाई पसन्द इंसान थे, को खुश ही किया. कम से कम ये होड़ किसी को नीचा तो नहीं दिखा रही थी.... इस होड़ से कुन्ती का व्यक्तित्व खाई में तो न गिरेगा....!
कुन्ती ने फ़ॉर्म भरा है, ये सुन के सुमित्रा भी बहुत खुश हुई. वो तो वैसे भी बहन की हर खुशी में उससे ज़्यादा खुश होती थी. अभी भी हुई. इतने दिनों में, कुन्ती के प्रति जो थोड़ा सा मलाल उसके मन में आया था, वो भी धुल गया था. सुमित्रा ने सोचा था, कि उसकी नियुक्त्ति के पहले वो एक बार गांव जा के कुन्ती को गले लगायेगी और पढ़ाई फ़िर शुरु करने के लिये बहुत बधाई भी देगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.अगले पन्द्रह दिनों में ही सुमित्रा को अपनी नियुक्ति पर जाना था, जो ग्वालियर से दस किमी दूर एक गांव के प्राथमिक विद्यालय में हुई थी, प्राइमरी टीचर के रूप में.
(क्रमश)