पतझड़ का मौसम शुरू हो चुका था।
एक पीपल के पेड़ से पीले हो चुके पत्ते नीचे जमीन पर गिर रहे थे। कुछ बूढ़े हो रहे पत्तो का रंग बदलना शुरू हो चुका था। कुछ नई हरी हरी , सुंदर छोटी छोटी पत्तियां दुनिया को देखने के लिए अपनी आंखें खोलना शुरू कर चुकी थी। सारी छोटी छोटी पत्तियाँ आसपास के अदभुत नझारो को देख कर खिलखिला रही थी। नई दुनिया को देखने के लिए उत्सुक थी। हवा के झोंके के साथ झूम रही थी और कुछ पिले हो चुके पत्ते अपना आशरा छोड़ रहे थे।
एक छोटी सी पत्ती, जो अपनी आंखें खोल कर अपने आसपास के नए दोस्तो के साथ दुनिया देखने को बेताब थी, खुश थी, अचानक रोने लगी।
पास में ही एक पीली पत्ती , जो बूढ़ी हो चुकी है उसने इस नए जीवन को प्यार से पूछा - " ए प्यारी पत्ती! क्यो रो रही हो? किसीने कुछ कहा क्या? कही किसी कीड़े ने तो नही काट लिया न? देखु तो जरा।
यह सुनकर अपना दिल हलका करते हुए, अपना दर्द सुनाते हुए बोली - " आप हमें छोड़ कर क्यो जा रहे हो?अगर आप सब चले जाओगे तो हमे इस दुनिया मे जीना, रहना कौन सिखाएगा? आप के आशिर्वाद के बिना हम कैसे खुश रह पाएंगे? हमे छोड़कर मत जाओ?"
तब पीला पत्ता मुस्कुराते हुए बोला - "उदास मत हो प्यारी पत्ती। हमारी तो उम्र हो चुकी है। आज नही तो कल हमे यहाँ से जाना ही है। तुम अकेली थोड़ी हो? ओर भी तो पत्तियाँ है, कुछ बड़े पत्ते भी। देखो अपने आसपास।"
छोटी पट्टी अपने आसपास देखकर बोली, हाँ वो तो है ही। लेकिन जो भी हम से बड़े है वो आज नही तो कल हमे छोड़कर चले ही जायेंगे न?"
"हम तुम्हे छोड़कर कहाँ जा रहे है? सोचो अगर हम सब यही रहे तो ये पेड़ इतना सारा बोझ कैसे उठा पायेगा? ओर हम तो यही है। इसी पेड़ के नीचे गिरकर इसी मिट्टी की मदद से हम खाद बन जाएंगे। जिससे तुम्हे और आने वाली नई पत्तियों को भी पोषण देते रहेंगे।" - पीली पत्ती ने उत्तर दिया।
नई पत्ती यह सुनकर जैसे किसी का हाथ अपने सिर पर किसी ने हमेशा के लिए रख दिया हो ऐसा सुकून पाती है।
पीली पत्ती आगे समझाते हुए बोली -" याद रहे, बड़ो के साथ रहने के ख्याल में अपना फर्ज मत भूलना। हमारा काम है इस धरती के जहर को लेकर अमृत लौटाना। हमारी रचना ही खुदा ने इसी हेतु से की है। बारिश, धूप, हवाए रूप बदलकर मुश्किले लेकर आएंगे। तुम्हारी परीक्षा लेंगे। लेकिन तुम्हे हारना नही है। कुछ पाने की ख्वाईश मत रखना। हमारे घर पर पंछी अपना घर बनाएंगे। उनकी मीठी आवाज, पेड़ के नीचे छाँव पाने के लिए उठते बैठते मुसाफिर , जीवो की संतोष की आवाज में ही सच्ची खुशी है। और यहाँ के जूठे मोह के आकर्षण में मत आना। ईश्वर के दिए फर्ज रूपी कार्य से जो मुकर जाता है , वही उसकी बनाई हुई सुंदर दुनिया के नाश का कारण बनता है। इसीलिए किसी भी मोह से आकर्षित हुए बिना अपना फर्ज निभाना है। दुसरो के लिए जिया जाए, वही जीवन है। इस खुशी का अनुभव करो। और हाँ, वख्त होते ही हमारी तरह माँ धरती की गोद मे वापस जरूर आना। माँ के प्यार में सींचते हुए खाद बनकर ओर पेड़ पौधों को भी तो पोषण देना है न!
नई पत्ती अपना फर्ज निभाने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुकी है। और उत्सुकता से बोली- "जी जरूर। आप के बताए रास्ते पर ही चलूंगी। शुक्रिया । "
पवन का झोंका आया और पीली पत्ती बोली। -" लो , मेरा वख्त आ गया। अलविदा।"
और मेरी कही बातो को मत भूलना। - कहती हुई पीली पत्ती पवन के साथ लहराती हुई धरा पर गिर गई।
नई पट्टी बड़े मान सम्मान के साथ मन ही मन बोली- अलविदा। अपना फर्ज निभाकर में जरूर वापस आउंगी। माँ धरती का प्यार पाने के लिए।