DNA ki gawahi in Hindi Moral Stories by Shobhana Shyam books and stories PDF | डी एन ए' की गवाही

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डी एन ए' की गवाही

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सुहानी की आँखों से नींद इतनी दूर जा बैठी है, कि वो बुला-बुला कर थक गयी है| पलकों में ऐसे कांटे से उग आये हैं कि आँखों को ढकना भी नामुमकिन हो गया है। एक पल दिल में आक्रोश का बवंडर उठता है तो दूसरे पल दुःख की घटाएँ आँखों में उमड़ आती हैं। हिलक- हिलक कर रो पड़ी सुहानी, क्यों उसी के साथ ये सब हुआ? आखिर उसकी जिंदगी उसकी उम्र की बाकि लड़कियों सी क्यों नहीं थी? क्यों उसका बचपन एक आम बचपन नहीं था? क्यों उसके पास अपनी सहेलियों की तरह अपना कमरा नहीं था? वह पूरा बचपन मॉम के पास सोती थी? क्यों उसे अपनी प्रिंसेस कहने वाला कोई नहीं ? क्यों उसकी ज़िंदगी में पिता का साया नहीं। पिता .....यानि पापा... ये शब्द कहने के लिए उसकी जबान तरसती ही रही। यहां तक कि सुहानी को अपने पापा की शक्ल तक याद नहीं थी और न ही घर में उनकी कोई फोटो थी।

सुहानी के स्कूल से लेकर कालेज के रिकॉर्ड हो या मेडिकल रिकॉर्ड सब जगह बस मॉम का ही नाम रहा| माँ के कॉलम के साथ साथ गार्जियन के कॉलम में भी मॉम का ही नाम और पिता के नाम की जगह बस एक डैश। यही डैश सुहानी की बहुत सारी खुशियाँ के कॉलम में भी रहा। यूं तो मॉम ने उसे खुश रखने में, उसका ख्याल रखने में कोई कोर कसर नहीं रखी| सुहानी की ज़िंदगी में हर चीज हो इसके लिए मॉम ने अपनी सारी ताकत लगा दी। मगर फिर भी कभी न कभी कुछ न कुछ ऐसा हो ही जाता था कि उसे पापा की कमी खलती थी लेकिन मॉम को दुःख न हो इसलिए सुहानी मन ही मन कुढ़ कर रह जाती थी।

सुहानी ने बचपन में मॉम से जब भी अपने पापा के बारे में पूछा तो जवाब मिला। "तुम्हारे पापा इस दुनिया में नहीं है| मैं ही तुम्हारी मम्मी और पापा दोनों हूँ|”

“लेकिन उनका नाम मेरे रिकॉर्ड्स में क्यों नहीं हैं।

क्योंकि तुम्हारे पापा अच्छे आदमी नहीं थे।"

"अच्छे आदमी नहीं थे? क्या अच्छा नहीं था मम्मा?"

"बेटा तू नहीं समझेगी। तुझे कुछ चाहिए तो मुझे बता, मैं हूँ ना।"

धीरे धीरे सुहानी को अकेले मॉम की आदत पड़ गयी और उसने पापा के लिए पूछना छोड़ ही दिया। हालाँकि पिता की कमी उसे कदम-कदम पर खलती रही। लेकिन अब वह पहले की तरह व्याकुल नहीं होती थी। मन मस्तिष्क ने काफी हद तक परिस्थिति के अनुसार खुद को ढाल लिया ।

लेकिन वक्त से उसका ये सुकून सहन नहीं हुआ। उसने इस दबी हुई चिंगारी को फिर से फूंक मार कर जगा दिया।

सुहानी को कालिज में एडमिशन लिए अभी एक सप्ताह ही हुआ था। केमिस्ट्री के पीरियड के बाद सभी फ्रेंड्स गप्पे मार रहे थे। बातों का विषय केमिस्ट्री से होता हुआ केमिस्ट्री के प्रोफ़ेसर की तरफ मुड़ गया। एक लड़की ने कहा, "यार इस उम्र में भी कितने डेशिंग है सर!"

"हाँ यार! मगर काफी देखे हुए से लगते हैं न? मतलब चेहरा बहुत जाना पहचाना सा लगता है।"

"हाँ यार मुझे भी यही लगा,कहाँ देखा है.... कहाँ...?

"अरे ये.. सुहानी... इससे मिलती है शक्ल!"

'हाँ यार! सही कह रही है। डिट्टो! सुहानी की शक्ल है। सुहानी के पापा होते तो ऐसे ही होते।"

सुहानी के पापा होते.... तो न , ये क्या कह दिया नमिता ने ! जबरदस्ती बाँध कर रखी तूफान की पोटली खोल दी।

सुहानी के चेहरे पर उमड़ आये दुःख और आँखों में छलक आयी नमी को देखते ही नमिता ने अपनी जीभ दाँतों तले दबा ली। बाकि लड़के-लड़कियों को तो सुहानी के बारे में ज्यादा नहीं पता था लेकिन उसे तो पता था, वह तो स्कूल से ही उसकी सखी है। नमिता सॉरी कहना चाहती थी कि सुहानी ने इशारे से मना कर दिया। दरअसल सुहानी को कभी भी अपने इस दुःख, इस कमी का प्रदर्शन पसंद नहीं रहा। शायद यह उसने अपनी मॉम से ही सीखा था। सुहानी के बहुत घनिष्ठ मित्रों को ही इस बारे में पता था। केमिस्ट्री के प्रोफेसर से सुहानी की शक्ल ही नहीं, उसके पापा का नाम भी मिलता था। दोनो का नाम मनोज था लेकिन सरनेम अलग था।

उस दिन साइंस डिपार्टमेंट की फ्रेशर पार्टी थी। चारों तरफ मस्ती का माहौल था। डांस से लेकर खाने के दौरान विभाग के पुराने छात्र छात्राओं ने जिस तरह मनोज सर को घेरा हुआ था| उससे उनकी विद्यार्थियों में लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता था। विद्यार्थियों के साथ मनोज सर का व्यवहार काफी सहज और मित्रतापूर्ण था। वे उनके बीच उन्हीं जैसे बने हुए थे, उनके हंसी मजाक और कहकहों में शामिल मनोज सर पर धीरे धीरे नए विद्यार्थी भी फ़िदा हो रहे थे। जब सुहानी के ग्रुप के एक लड़के ने मनोज सर की प्लेट में खोये की बर्फी रखनी चाही तो एक पुराने छात्र ने टोका, "सर खोये की बर्फी नहीं खाते।"

बर्फी देने वाले लड़के के मुँह से निकला, "आज ही दो लोग मिल गए जो खोये की बर्फी नहीं खाते।"

"दूसरा कौन?" के जवाब में उसने कहा, "अपने ग्रुप की सुहानी।"

"लो शक्ल ही नहीं पसंद भी मिलती है दोनों की, वो देखो दोनों की प्लेट पाइनेपल सलाद से भरी है।"

सबके साथ मनोज सर की निगाहें भी सुहानी और उसकी प्लेट की ओर उठ गयी और जैसे वहीं चिपक कर रह गयी। सुहानी उन्हें इस तरह देखते देख अचकचा सी गयी। खाने के बाद अब सब पुडिंग का लुत्फ़ उठा रहे थे। इतनी देर में सुहानी ने देखा, मनोज सर ने भी पुडिंग के बोल को सुहानी की तरह ही बिलकुल नीचे से पांचों उँगलियों के सिरे पर टिकाया हुआ था। खाना खाते हुए किसी कटोरी को पकड़ने का सुहानी का यह अंदाज़ दूसरों से इतना अलग था कि उसको खाते हुए देखने वाले ज्यादातर लोग इसे नोटिस कर ही लेते थे। बचपन में कितनी ही बार उसकी मॉम या नानी उसे टोक देती थी, “सुहानी ठीक से पकड़ा कर, गिरा देगी किसी दिन।” लेकिन सुहानी की आदत नहीं बदली। आज मनोज सर को बोल उसी तरह पकड़े हुए देख कर सुहानी हैरान रह गयी। तभी उसने देखा कि मनोज सर भी उसी को देख रहे हैं।

फ्रेशर पार्टी के बाद से सुहानी ने एक बात नोट की, केमिस्ट्री के पीरियड में मनोज सर की निगाहें उसका पीछा करती रहती। प्रैक्टिकल की क्लास में तो वह बार बार कुछ बताने के बहाने उसके बिलकुल पास आ जाते, तो कभी उसके कंधे पर हाथ रख देते। कहतें हैं औरतों के पास एक छठी इन्द्रिय होती है जो अपने ऊपर पड़ने वाली किसी भी तरह की विशेष निगाह को पहचान ही जाती है। मनोज सर के सुहानी के पास आने और उसे छूने में कोई गलत या कामुक भावना नहीं बल्कि एक तरह का वात्सल्य छिपा है, यह अंदाजा भी सुहानी को जल्दी ही हो गया।

धीरे-धीरे ये बात मनोज सर और सुहानी दोनों ने नोट की कि दोनों की कई आदतें आश्चर्यजनक रूप से मिलती थी। मनोज सर अब सुहानी का कुछ ज्यादा ही ध्यान रखने लगे थे।अक्सर सुहानी को ऐसा लगता कि वो सुहानी से कुछ कहना चाहते है, लेकिन कह नहीं पा रहे हैं। क्या रिश्ता है मनोज सर का और उसका, ये बात सुहानी को बेचैन किये रहती थी। जल्दी ही सुहानी को उसका जवाब मिल गया। उस दिन नानी की तबियत खराब होने की वजह से सुहानी की मॉम दो दिन के लिए उनके पास गयी थी। सुहानी ने मॉम की सारी अलमारी, सारे कागज़ात खंगाल डाले। आखिरकार उसके हाथ एक पुराना राशनकार्ड लग गया जिसमें मनोज सर यानि उसके पापा की फोटो थी। उसका शक सच निकला। आज सुहानी के दिल में मॉम के लिए प्यार नहीं, आक्रोश का समंदर लहरा रहा था।

अब सुहानी को बेसब्री से सुबह का इंतज़ार था। मॉम के आते ही सबसे पहले वो यही पूछेगी, आखिर क्यों किया उन्होंने ये सब। पिता के जिन्दा होते हुए भी उसे पिता के प्यार से क्यों वंचित रखा। सुबह मॉम को घर वापस आते आते बारह बज गए। सुहानी को घर में पाकर उन्होंने पूछा कि वो कालेज क्यों नहीं गयी। बदले में सुहानी ने जब उनकी ओर देखा तो उसकी लाल आंखे और आँसुओं से तर चेहरा देखकर वह घबरा गयीं। "क्या हुआ सुहानी? मेरी बच्ची! तू रो रही है?"

"मत कहिये मुझे अपनी बच्ची?"

"आखिर हुआ क्या है सुहानी? तू ऐसे क्यों बोल रही है? क्या किया है मैंने, पहले ये तो बता ।"

"आपको नहीं मालूम, आपने क्या किया है?" सुहानी की आवाज हिचकियों में डूब गयी। मॉम ने सुहानी को गले से लगाना चाहा ,लेकिन सुहानी ने उन्हें झटक दिया|

मॉम की ऑंखें सवालों में बदल गयी। "आखिर कुछ बताएगी, क्या हुआ है तुझे ?"

" आपने मुझसे झूठ क्यों बोला कि मेरे पापा अब इस दुनिया में नहीं हैं। बताइये मॉम क्यों मुझसे इतना बड़ा झूठ बोला?" "सुहानी बेटा....।"

“मेरे पापा जिन्दा हैं और इसी शहर में हैं। अब बोलिये मॉम! आज आपको बताना ही होगा कि आपने पापा को क्यों छोड़ा? क्यों मुझसे झूठ बोला?"

"सुहानी ये अचानक तुझे क्या हो गया है? मैने तुझे बचपन मैं ही बता दिया था कि वो अच्छे व्यक्ति नहीं थे।

" यही तो जानना चाहती हूँ मैं, क्या बुराई थी उनमें ? आपको मारते थे? बदचलन थे? जुआ ...शराब ? आखिर कौन सी बुराई थी उनमें?"

"मेरी बच्ची! बरसों पहले जब मैने तुझे बताया था, तब तो तुन्हें पलट कर नहीं पूछा, अब आखिर क्या हो गया।"

"क्योंकि अब उनसे मिली हूँ मैं… ।" सुहानी की आवाज काँप रही थी, "मैने आपको बताया था कि हमारे कॉलेज में जो केमिस्ट्री के प्रोफेसर है वो बहुत देखे हुए से लगते हैं और उनकी आदतें, उनकी चाल-ढाल, बात-चीत का लहज़ा सब मुझसे मिलता है? वो पापा ही हैं और वो बहुत अच्छे हैं। सारे स्टूडेंट्स उनको पसंद करते हैं, मुझे तो उनमें अब तक कोई बुराई नज़र नहीं आयी, वो अब भी मुझे बहुत प्यार करते हैं ।"

" ‘अब भी' नहीं…. 'अब ही' कह सुहानी, मैं तेरा दिल तोडना नहीं चाहती थी, मैं तो पहले ही दिन समझ गयी थी लेकिन ....."

"लेकिन क्या मॉम , क्यों आपने मुझे मेरे पापा के प्यार से दूर रखा ? क्यों आपने अपनी निजी नफरत का भार मेरी जिंदगी पर रखा, माना आपने मुझे हर ख़ुशी देने की कोशिश की, लेकिन एक लड़की के लिए पापा तो पापा ही होते हैं , आपने वो जगह क्यों खाली रखी ?"

" सुहानी! मेरी बच्ची! जैसे मुझ पर अब तक विश्वास करती आयी है वैसी ही करती रह , मत खोल इस जहर की पोटली को, कहीं...।"

"जो होगा ,देखा जायेगा मॉम लेकिन आज मैं जान कर ही रहूंगी। "

"तो सुन! आज तुझसे अपनी शक्ल, चाल-ढाल, व्यवहार आदतें मिलती दिखी तो उनका प्यार तुझ पर उमड़ आया लेकिन तेरे जन्म के समय संयोग से किसी और से शक्ल मिलती देख कर तुझे अपनी बेटी मानने तक से इंकार कर दिया था इसी 'अच्छे' आदमी ने, तेरी और मेरी दोनों की गरिमा और रिश्ते को शक के पैरों तले कुचल दिया था इसी अच्छे आदमी ने, तेरे साथ किये इस अन्याय के लिए तू माफ़ कर सकती है तो कर, लेकिन मैं तेरे अस्तित्व पर नाजायज का ठप्पा लगाने वाले इसअच्छे’ आदमी को कभी माफ़ नहीं करुँगी, कभी नहीं .. ।"

सुहानी हतप्रभ सी खड़ी थी उसे एकाएक समझ ही नहीं आया कि वह क्या कहे। मॉम का एक-एक शब्द उसे बिच्छु के डंक सा लग रहा था। मॉम ने उसे अपने गले से लगा लिया

"सुहानी...मेरी बच्ची...मैं इसीलिए तुझे कुछ नहीं बताना चाहती थी, मुझे पता था, तू बर्दाश्त नहीं कर पायेगी| मैं अभागिन तेरी गुनहगार हूँ| तू जो सजा देना चाहे, मुझे मंज़ूर है। बस मुझसे मुँह मत मोड़ना। मेरा तेरे सिवा और कोई नहीं है।”

"मॉम .... मुझे मा... कर दो, मैं आज के बाद उस आदमी की शक्ल भी नहीं देखूंगी......मुझे भी ये 'डी एन ' की गवाही मंजूर नहीं ....” कहते कहते सुहानी ने अपनी मॉम के आँचल में अपना मुँह छिपा लिया