मैं बहुत देर से कसरत कर रही थी और अपने मन को समझा रही थी कि अगर मुझे अगले महीने होने वाले कॉलेज फेस्ट में अच्छा दिखना है तो थोड़ी देर और करना पड़ेगा। तेरह चौदह साल की उम्र में ही मुझे समझ आ गया था मेरी रूह एक ओवरवेट शरीर में कैद है। एक्सरसाइज और डाइटिंग मेरी जिंदगी का तब से हमेशा का सिरदर्द बन गया है। जोर-शोर से शुरू करती हूं ,फिर उक्ताकर छोड़ देती हूं। कोई टोक देता या लगता बहुत से स्टाइल के कपड़ों से वंचित रहना पड़ता है इस मोटापे के कारण तो फिर शुरु कर देती हूं। लोगों को भी याद दिलाने में बड़ा मजा आता है, कहीं गलती से भूल ना जाऊं। कोई कहता," यार देश में भुखमरी का सबसे बड़ा कारण तुम जैसे मोटे ही हो ,कुछ छोड़ो तो दूसरा खाए ना।" अब मोटे तो जन्मजात हंसमुख होते हैं ,तभी तो मोटे होते हैं। बुरा मानने का हक उनके पास नहीं होता, इसलिए ऐसी बातें सुनकर हंस कर टालना एक मजबूरी है। जब रस्सी कूद रहें हो और कोई आकर कहे," मुझे लगा भूकंप आ गया है।" मन तो करता है मुंह नोच लूं लेकिन फिर वही मजबूरी ।ऐसे हंसना पड़ता है जैसे गधे ने पता नहीं कितना हास्य से भरा चुटकुला सुना दिया हो।
तभी रचना कमरे में भागती हुई आई और बोली ,"जल्दी से नहा ले आज तुझे जाना है मेरे साथ सेवासदन।" मैंने गुस्से में कहा," यार थोड़ा पहले बताना चाहिए था ना, अभी आधे घंटे और कसरत करनी है मुझे ।"
रचना जल्दी में थी बोली ,"सविता को कोई जरूरी काम आ गया है। तू जल्दी कर ,मैं नीचे तेरा इंतजार कर रही हूं।" मेरे पास और कोई विकल्प नहीं था ,जिस हॉस्टल में मैं रहती हूं उसकी वार्डन सेवा सदन से जुड़ी हुई है। दिन का खाना मेस से बनवा कर वहां भिजवाती है। कोई भी दो लड़कियों को लेकर जाना होता है। मुझे इसी बात पर गुस्सा आता है,समाज सेवा का खुद को शौक है तो करें औरों को क्यों घसीटती है। हॉस्टल में रहकर वार्डन से पंगा नहीं ले सकते ।रास्ते में मेरा मूड ऑफ देखकर रचना बोली ,"एक बार वहां जाकर तो देख, तेरी सोच और जीवन के मायने बदल जाएंगे।"
और उसने बिल्कुल सही कहा था। वहां बहुत बीमार, जिंदगी के आखिरी पल को भारी कष्टों में बिताते ऐसे लोग रह रहे थे जिनका कोई इलाज संभव नहीं था। उनके लिए जिंदगी दर्द और संघर्ष का दूसरा नाम थी। इतने कष्ट में मैंने किसी को कभी नहीं देखा था। एक स्वस्थ शरीर पाने के लिए ये लोग कुछ भी कुर्बान कर सकते थे ।उनके लिए खूबसूरती और मोटापा जैसे शब्द कोई मायने नहीं रखते थे। उनके पास दूसरे बहुत जरूरी मुद्दे थे जिंदगी में, बीमारी, दर्द गरीबी, अकेलापन और मैं एक बेमतलब के लक्ष्य को लेकर परेशान हो रही थी, स्लिम ट्रिम होकर एक बॉयफ्रेंड बनाना। एक बात मेरी समझ में आ गई थी कि मैं कितनी भी कोशिश कर लूं ,करिश्मा दीपिका जैसा फिगर मेरी कभी नहीं हो सकता है। तो दो-दो घंटे कसरत करके मैं क्यों अपनी उर्जा नष्ट करती हूं।जितना स्वस्थ और चुस्त-दुरुस्त रहने के लिए आवश्यक है उतना वर्कआउट करना चाहिए और बाकी की उर्जा उनकी मदद में लगानी चाहिए जिन्हें साथ और देखभाल की जरूरत है ।आज समझ आया आठ साल से जिस लक्ष्य को पाने के लिए पागल हो रही थी वह कितना बेईमानी था। खूबसूरत शरीर से अधिक आत्मा को संवारना और सहेजना ज्यादा महत्वपूर्ण है। आज मैंने अपनी इस देह को दिल से स्वीकार कर लिया ,आखिर यहीं तो मैं वास करती हूं।