Govind ji ki kheer in Hindi Philosophy by सुप्रिया सिंह books and stories PDF | गोविंद जी की खीर।

Featured Books
Categories
Share

गोविंद जी की खीर।



गोविंद जी का पूरा ध्यान किचिन से आने वाली सुगंध पर ही लगा है । 75 साल के हो गए हैं पर खाने -पीने के मामले में अपने 5 वर्षीय पोते से भी छोटे हैं । भूख और नियत दोनों पर कोई नियंत्रण नहीं है । पोते -पोती की चॉकलेट चुरा कर खाने में भी इनको कोई शर्म महसूस नहीं होती ।

बेटे से जिद्द करके स्मार्ट फोन मंगवा लिया है । ना ना ऐसा नहीं है कि इनके पास फोन नहीं था ।था पर किसी टीन एजर बच्चे की तरह इनको भी चस्का लगा है व्हाट्सएप का । किसी के हाथों में देखा फिर घर पर आकर मुँह फुला कर बैठ गए । जब तक शाम को नया स्मार्टफोन नहीं ले लिया कैकेयी बनकर कोप भवन में ही रहे पर खाने पीने में कोई कटौती वहाँ भी नहीं रही । बेचारा बेटा महीने के बीच में न जाने कैसे उनकी जिद्द पूरी कर पाया ।

ऐसे ही गोविंद जी को जिस बात की सनक सवार हो जाती वो पूरी होनी ही चाहिए नहीं तो सबको बताने में भी पीछे नहीं रहते कि बेटे -बहू उनका खयाल नहीं रखते ।

बचपन मे अपने भाई बहनों में सबसे छोटे गोविंद जी अपनी माँ के बेहद लाडले थे । माँ चोरी से उनको दूध मलाई खिलाती । बस्ते में चव्वन्नी लिए बिना कभी स्कूल कभी नहीं गए । जवानी में पत्नी ने भी बच्चों से छिपा कर उनकी खाने- पीने की जरूरतों को अलग से पूरा किया । अब पत्नी भी इस संसार को अलविदा कह चुकी थीं । पर जीवन भर की आदतों से इस उम्र में पीछा छुटाने में न उन्हें कोई दिलचस्पी थी और न जरूरत ।

दो बेटे हैं ,एक महानगर में बड़े पद पर है दूसरा उनके साथ रहता है । छोटी सी नौकरी में अपने परिवार के पालन करने के साथ बाबू जी कि आये दिन की जिद्द को पूरा करता और बुरा बेटा होने का ताना सहता ।

दूसरे बेटे के साथ गुजारा नहीं है ये बात गोविंद जी भी जानते थे पर बड़े बेटे से इस बात को कहते नहीं थे । एक धौस हमेशा बनी रहती थी छोटे के साथ चले जाने की ।

आज भी बहू पता नहीं क्या -क्या बना रही है ? खीर की खुशबू को अपनी नाक में घुसने से बहुत बेचैनी महसूस कर रहे हैं । दो बार बहू से पूंछ चुके हैं क्या बना रही हो ?

पर आज शायद वो भी नाराज सी है कल तक दोंनो पति पत्नी के बीच अच्छी -खासी लड़ाई करवाके अब वो भूल भी चुके हैं । बिटटू अभी छोटा है उससे ही पूंछू । नेहा तो बताएगी भी नहीं । अपनी माँ की चमची है उन्न्ह ......बनी रहे मैं बिट्टू से पूंछ लेता हूँ ।

ए बिट्टू सुन!""क्या है?

ये तेरी माँ आज क्या पकवान बना रही है ?

नहीं बताता..… कल मेरे बैग से चॉकलेट आपने खाई थी न मैं जानता हूँ ।

अरे तो थोड़ी सी खा ली । इतनी सी बात पर नहीं बतायेगा । देख नई चॉकलेट लेकर दूँगा ।

अच्छा....!!

बिट्टू उनकी गोद में आकर बैठ गया । कानपुर वाली मौसी आ रही हैं । तो माँ उनके लिए खाना बना रही है ।

अब लाओ मेरी नई चॉकलेट ।

चल जा अपनी पढ़ाई कर । उसे गोद से उतारते हुए बोले ।

ठीक है क्या -क्या बना है ? ये तो बताया ही नहीं और अब बताऊंगा भी नहीं । कह कर बिट्टू चीभ निकालकर उन्हें चिढा कर भाग गया ।

गोविंद जी को भी गलती का अहसास हुआ । पहले ही पता कर लेना था अब तो बिट्टू भी नहीं बतायेगा ।क्या करूँ कैसे पता करूँ ?

हां मैं जल्दी से नहा कर पूजा कर लेता हूँ तब तो बहु को खाना देना ही पड़ेगा । अपनी सोच पर खुश हो वो नहाने चल पड़े ।

पूजा में भी भगवान से ज्यादा खीर ही याद आरही थी । जोर जोर से घण्टी की आवाज करने के बाद भी आज बहु की बाबू जी खाना लग गया की आवाज नहीं आयी ।

तभी बहु की आवाज ने उनका ध्यान अपनी ओर खींचा । नेहा ! मैं स्टेशन जा रही हूँ । देखना किचिन में गर्म खीर रखी है बिट्टू का खयाल रखना अपने ऊपर गिरा ना ले ।

बहु तो चली भी गयी ....मेरा खाना ?

दो तीन बार किचिन तक चक्कर काट आये । खाना तो रखा है जो खुद ले लूँ तो ?

नहीं -नहीं .......अभी आएगी माफ़ी मांगेगी फिर गर्म पूड़ी भी सेकेगी । खीर के साथ गर्म पूड़ी ना हो तो मजा नहीं आता ।

सुबह से शाम होने को थीबहू की बहन भी आ चुकी थी और सबके खाने पीने की आवाजें भी आरही थी । नेहा आयी थी एक बार बुलाने पर नाराजगी दिखाने के लिए चादर ओढ़े डले रहे । आखिर सम्मान भी कोई चीज है । बहु अभी तक आयी क्यों नहीं । दो - तीन बार झाँक भी आये ।

रात का खाना -पीना शुरू हो गया पेट में चूहे जरूरत से ज्यादा उछल- कूद मचा रहे थे। किसी को इस बूढ़े की सुध नहीं है । ये भी नहीं सोचा कि मुझे खीर कितनी पसंद है ।ये कमबख्त फोन वाले इतना भी नहीं हुआ इनसे कि हम बूढो के लिए इसी से खाना निकल आये यही कर देते । अब खाने की फ़ोटो देखने से कोई फायदा हुआ है किसी को आजतक ।

आज टीवी देखने का मन भी नहीं हुआ । बेटे ने पत्नी से पूंछा बाबूजी ने ख़ाना खाया ?

नहीं !...शायद तबियत ठीक नहीं है । दिन में नेहा गयी थी बुलाने पर आए नहीं । अभी भी बाहर नहीं निकले हैं । आप खा लो फिर उन्हें डॉक्टर से दवा दिला लाना ।

बाबू जी और खाना ना खाएं ? बेटे का दिल इस बात को स्वीकार नहीं कर सका । पत्नी से थाली लगाने को बोल कर बाबूजी के कमरे में पहुंचा । बाबूजी गुब्बारा बने हुए थे पर भूख के मारे उनकी आँखों में आँसू थे जो बेटे से छिपे नहीं रह सके ।

बाबू जी । उठिए आपकी पसंद की खीर बनी है आज । खाई क्यों नहीं ।

बस मन ना है । अब कल छोटे के पास चला जाऊँगा । बहुत दिन रह लिया तुम लोंगो के साथ ।

कोई गलती हुई बाबू ? आपकी बहू ने कुछ कहा ?

न किसी ने कुछ नहीं कहा अब जाना है बस ।उन्होंने ठुनकते हुए जवाब दिया ।

अच्छा ठीक है चले जाना पर अभी खाना खा लो । कह कर बेटे ने खीर का चम्मच उनके मुँह में डाल दिया ।

दो चम्मच में उन्हें साक्षात स्वर्ग मिल गया । अब आप खा लो ।कहते हुए बेटा उठ गया तभी पीछे से बाबूजी की आवाज आई ।

सुनो बहूसे कहो गर्म पूड़ी तल दे । गर्म पूड़ी के बिना खीर अच्छी नहीं लगती ।

कॉपीराइट सुप्रिया सिंह ।