AAO CHALE PARIVERTAN KI OR - PART-8 in Hindi Fiction Stories by Anil Sainger books and stories PDF | आओ चलें परिवर्तन की ओर... - 8

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आओ चलें परिवर्तन की ओर... - 8

आज नई कम्पनी में ज्वाइन करने के लिए जब मैं ऑफिस में पहुँचा तो रिसेप्शन पर बैठी सुंदर लड़की ने उठ कर मेरा स्वागत किया और बोली “सर, GM सर आज थोड़ी देर से आएंगे | वह मुझे बोल कर गए थे कि आप जैसे ही आएं तो मैं आपको आपका केबिन दिखा दूँ , साथ ही आपकी टीम से आपको मिलवा दूँ |”

मेरे ‘हाँ’ में सिर हिलाने पर वह मेरी टीम के लोगो से परिचय करवा कर मुझे मेरे केबिन में बिठा जाती है | अपने सहकर्मियों से बात करते-करते और वहाँ के काम और कार्यशैली को समझते हुए कब दोपहर हो जाती है, पता ही नहीं चलता है |

सहकर्मियों के जाने के बाद मैं कुछ सुस्ताने के लिए उठता ही हूँ कि हमारे GM साहिब एक व्यक्ति के साथ केबिन में प्रवेश करते हैं |

GM साहिब “आपका इस ऑफिस में स्वागत है | आपको यहाँ का माहौल और अपनी टीम के साथ मिलकर कैसा लग रहा है |”

मैं बोला “अच्छा लगा सर |”

GM साहिब बोले “मैं तो तुम्हें इनसे मिलवाना ही भूल गया |” कह कर वह उस व्यक्ति की तरफ इशारा करते हुए बोले “यह यहाँ की जान और तुम्हारे सहकर्मी हैं | यह भी तुम्हारे समकक्ष पद के ही हैं बस डिपार्टमेंट अलग है | तुम पर्सोनल में हो और ये मार्केटिंग और प्लानिंग डिपार्टमेंट में हैं|”

मेरी उस व्यक्ति पर जब नजर पड़ी तो मैं उसे देखता ही रह गया | उस व्यक्ति का रंग जरूर सांवला था लेकिन बड़ी-बड़ी आँखे व माथे को पूरा ढके उसके काले-काले बाल, उसके चेहरे में एक अज़ीब-सी कशिश पैदा कर रहे थे | उसकी पेंट और शर्ट के रंग का मेल बहुत ही अच्छा था |

मुझे स्तब्ध देख उसने ही हाथ आगे बढ़ा कर बोला “मेरा नाम सोमेश है और मुझे पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि हम पहले भी मिल चुके हैं |”

मैं बोला “मैं अक्षित | आप सही कह रहे हैं | कई बार ऐसा होता है कि आप किसी से पहली बार ही चाहे क्यों न मिले हो लेकिन लगता है जैसे पहले भी कई बार मिल चुके हैं |”

सोमेश मुस्कुराते हुए हाथ मिला कर बोला “आप ठीक कह रहे हैं |”

GM साहिब घड़ी देख कर बोले “सभी लोग हॉल में पहुँच चुके होंगे, कृपया चलिए |” कह कर वह मुझे व सोमेश को हॉल की तरफ चलने का इशारा करते हैं | हॉल में पहुँचते ही सब लोग अपनी कुर्सियों से उठ कर खड़े हो जाते हैं और GM साहिब मुझे पहली कतार में रखी कुर्सी पर बैठने को कह कर सोमेश के साथ हॉल में बनी स्टेज पर चढ़ जाते हैं |

GM साहिब कोने में रखे माइक के पास जाकर सभा को सम्बोधित करते हुए कहते हैं “दोस्तों, जैसा कि आप सब जानते ही हैं, पिछले महीने से हमने एक नया कार्यक्रम personality development शुरू किया है | मुझे कहते हुए ख़ुशी का अनुभव हो रहा है कि उसके नतीजे भी आने शुरू हो गये हैं | इस महीने आप सब की लग्न और मेहनत से हमारे व्यापार में पांच से सात प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है | इस सबका श्रेय आप सबको और सोमेश को जाता है | मैं आपका ज्यादा समय न लेते हुए सोमेश को आमंत्रित करता हूँ कि वह आ कर आपका मार्ग दर्शन करें |” सोमेश को इशारा कर वह मेरे पास खाली पड़ी कुर्सी पर आकर बैठ जाते हैं |

सोमेश माइक पर आकर बोलता है “दोस्तों, मैंने पिछली बार अपना भाषण जहाँ से छोड़ा था वहीं से शुरू कर रहा हूँ | हमारे पूर्वजों ने जब इस समाज की रचना की होगी तो जो भी नियम बनाए होंगे वह बहुत सोच समझ और काफी अनुसन्धान और अनुभव के बाद ही बनाए होंगे |

समय बीतते-बीतते कुछ नियम और कानून समाज ने नये जोड़े और कुछ समयनुसार छोड़ भी दिए | हाँ, गलत नियमों के खिलाफ़ जिसने भी पहले आवाज़ उठाई, उनमें से कुछ के साथ बुरा भी हुआ लेकिन कुछ को बहुत वाह-वाही भी मिली|

परिवर्तन प्रकृति का नियम है, जो समयनुसार नहीं बदलता है वह टूट जाता है या तोड़ दिया जाता है | यह जीवन एक नदी की तरह है, जिसका धर्म है चलते ही रहना | नदी यदि रुक जाएगी तो अपना स्वरुप ही खो देगी | तब हम उसे नदी नहीं तालाब कहते हैं | ठीक उसी तरह हमारा यह जीवन भी है | रुक गया तो वह मर गया माना जाता है |

प्रकृति से सीख कर ही हम आज आदिमानव से आधुनिक मानव की यात्रा पूरी कर पाएं हैं | यह यात्रा परिवर्तन के बिना सम्भव ही नहीं थी | हमें इस आधुनिक युग में पहुँच कर भी निरंतर परिवर्तनशील रहना है | आज समाज में फैली बुराईयों व अविश्वास को दूर कर सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने के लिए भी हमें अपने अंदर और बाहर परिवर्तन करने होंगे तभी हम और आगे जा पाएंगे |

सूरज सुबह निकलता है और शाम को ढल जाता है | सूरज के ढलते ही चारों तरफ अँधेरा अपने पैर पसार लेता है | अँधेरा होने का यह मतलब नहीं है कि सूरज अब है ही नहीं | इसका यह मतलब है कि सूरज हमें रोशनी देकर अब धरती के दूसरे कोने को रोशनी और जीवन देने पहुँच गया है क्योंकि वह सब का है और उसका धर्म है सबको एक समान देखना और एक समान रोशनी और जीवन देना | सूर्य को अपने होने या न होने की विशेषताएं बताने की आवश्यकता नहीं पड़ती | उसी प्रकार हमें भी होना चाहिए | हमें हर परिस्थिति और हर व्यक्ति से समान व्यवहार करना चाहिए | हमें अपने गुण और कार्य इतने ऊपर उठाने चाहिए कि हमारे कार्य बोलें न की हम, ठीक सूर्य की तरह |

हमें सबसे पहले अपने आप को बदलना होगा और उसके बाद समाज मजबूरन बदल जाएगा | ऐसा इसलिए नहीं हो पा रहा है क्योंकि हम अपने अधिकारों के प्रति तो बहुत सचेत हैं लेकिन कर्तव्यों के प्रति नहीं हैं |

आप इसको इस तरह से भी समझ सकते हैं कि यदि आप की गली, मौहल्ले से कूड़ा नहीं उठाया गया है तो आप इसे अपने अधिकार का हनन मान कर झंडा उठा लेते हैं | परन्तु क्या आपने अपने ऑफिस, गली या मौहल्ले में गंदगी न फैलाने के कर्तव्य का पालन किया है | ऐसे हजारों उदाहरण हैं जहाँ आप अपने अधिकारों के लिए आवाज़ तो उठाते हैं लेकिन जब बात आपके कर्तव्य पालन की आती है तो आप यह कह कर बचने की कोशिश करते हैं कि खाली मेरे करने से क्या होता है | यह कहते हुए कभी आपने सोचा है कि सब यही सोच कर अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते और इसलिए आज हम आगे जाने की बजाय पीछे की ओर जा रहे हैं |

आप जब एक अंगुली उठाते हैं तो तीन अंगुलियां आप की तरफ अपने आप उठ जाती हैं और इसमें भी चार चाँद तब लग जाते हैं जब हमें कुछ पॉवर मिल जाती है | तब हम अपने कर्तव्यों को छोड़कर, अधिकारों का नाजायज फायदा उठाना शुरू कर देते हैं | इसके उदाहरण हैं, हम अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों, अपने मातहत काम करने वालों या फिर आम जनता पर अपने ताक़तवर होने, पैसा या औहदा बड़ा होने का बेवजह रौब मारते हैं | जो डर जाता है, उससे या उसका नाजायज फायदा उठाते हैं | लेकिन जब हम पर ऐसा दबाव पड़ता है तो हम दुःखी हो जाते हैं | हम यह सब रोक सिर्फ़ तभी सकते हैं, जब हम अपने सारे फर्ज़ या कर्तव्य उसी निष्ठा यानि ईमानदारी से निभाएं जिसकी अपेक्षा हम दूसरे से करते हैं |

हमें स्वयं को बदलने के लिये कुछ ज्यादा मेहनत नहीं करनी है | हमें रोज़ाना की ज़िन्दगी में छोटे-छोटे परिवर्तन लाने हैं | देखिए फिर कैसे सब कुछ अपने आप बदलना शुरू होगा | परिवर्तन यहाँ तक हो जाएगा कि हम सबको अपने अधिकारों के लिये लड़ने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी |

मेरा यह सब बातें कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना था कि आपको अपने कर्तव्य का पालन करते हुए मन की शान्ति और ख़ुशी का अनुभव होगा | वह अनुभव आपको ध्यान लगाने में सहायक होगा | अब आप कहेंगे कि यह ध्यान क्या होता है | ध्यान लगाना तो बहुत मुश्किल है | अब मैं बताता हूँ कि ध्यान लगाना क्यों जरुरी है और कितना आसान है |

हमारे जीवन में ध्यान का बहुत महत्त्व है | सब कुछ ध्यान पर केन्द्रित है, चाहे आप किसी भी विभाग या पद पर कार्य कर रहे हैं | आप यदि पूर्णतः समर्पित हो कर करेंगे तो वह कार्य सही ढ़ंग से सम्पन्न हो जाएगा|

ध्यान शब्द कोई नया नहीं है | आप याद करो, आप बचपन से सुनते आ रहे हो | माँ, अध्यापक और आज तक लगभग सभी यही कहते आ रहे है | ध्यान से, ध्यान लगा कर पढ़ो, ध्यान से लिखो, ध्यान से काम करो, अरे ध्यान से चलो, गाड़ी ध्यान से चलाओ इत्यादि, इत्यादि |

उस ध्यान और इस ध्यान में कोई फर्क नहीं है | ध्यान से पढ़ते हुए भी आपके दिमाग़ या सोच में पढ़ाई के अलावा और कोई विचार नहीं आना चाहिए वैसे ही इस ध्यान में भी आपको एकाग्र चित्त हो कर यह ध्यान रखना है कि आपके दिमाग़ में कोई भी सोच या विचार न आए |

आपका ध्येय ईश्वर को पाना न भी हो या आप ईश्वर को न भी मानते हो और किसी भी धर्म या जाति के हों, तो भी आप रोज ध्यान यानि मेडिटेशन के लिए बैठें | मेडिटेशन शुरू करने के कुछ ही समय बाद हर परिस्थिति में आप सुख और सुकून का अनुभव करेंगे जोकि ईश्वर पाने जैसा ही है | यह सुख और सुकून आपको अपने आप ही बदल देगा और फिर आपका परिवार, ऑफिस और समाज आपको देखकर खुद-ब-खुद बदलने लग जाएगा |

मेडिटेशन या ध्यान का कोई नियम क़ानून नहीं है | आपको जिस समय भी सुविधा हो, आपने कुछ भी खाया या पी रखा हो या कुछ भी कर रखा हो | कोई नहाने या पवित्र होने या कोई भी विशिष्ट मुद्रा या आसन या फिर दिशा में बैठने की आवश्यकता नहीं है | मेडिटेशन या ध्यान पर किसी धर्म का वर्चस्व या अधिकार नहीं है और आपको किसी भगवान् या ईश्वर का नाम लेने की भी आवश्यकता नहीं है | ध्यान सिर्फ़ आपके मन या आत्मा और उस अलौकिक शक्ति के बीच का सम्बन्ध है और इस सम्बन्ध में धर्म और शरीर आता ही नहीं है |

हम में से किसी ने भी उस अलौकिक शक्ति को नहीं देखा है कि वह कैसी है, उसका धर्म या जात या फिर रंग रूप कैसा है ? वह शक्ति हमारी भाषा बोलती है या फिर कोई और भाषा ? इसलिए इन सब बन्धनों को तोड़ कर उस अलौकिक शक्ति के साथ जुड़ पाओ या न पाओ लेकिन अपने अंदर के सुकून और विश्वास से जुड़ो जो इस जीवन में आपको ऊँचाईयों और सफलता की ओर ले जाएगा |

आज के लिए बस इतना ही | अब आप कुछ समय के लिए मेरे साथ आँख बन्द कर ध्यान लगाने की कोशिश करें | ऐसा करते हुए आपको बहुत से ऐसे काम या बातें याद आएगी जो आप भूल चुके थे | कोई बात नहीं, जो भी विचार आ रहे हैं उन्हें आने दीजिये लेकिन आपको फिर एकाग्र हो कर ध्यान लगाना है | फिर ध्यान टूटेगा और फिर आप को कोशिश करनी है | आपको यह कोशिश करते रहना है | बस एक ही कोशिश जारी रहनी चाहिए और वह है कि आपको कोशिश करते रहना है | एक दिन आपको सफलता जरूर मिलेगी |

जब आप अपने चित्त को स्थिर कर लेंगे और उस शून्य की तरफ अग्रसर होंगे तो वह शून्यता ही आपको, आपके शरीर, दिमाग़ और सोच को नियंत्रित करेगी | इस नियंत्रण से आप और आपकी दिनचर्या सुधरेगी | अतः हर परिस्थिति में चाहे सुख हो या दुःख दोनों में एक सा बर्ताव करेंगे और सिर्फ़ अपने कर्म पर ही ध्यान देंगे | आपके अंदर आए इस सुधार से परिवार, पास-पड़ोस, समाज, राज्य, देश और फिर विश्व सुधरेगा | धन्यवाद

*

सोमेश से मिलने के बाद मैंने हर हालात में जीना सीख लिया था | सोमेश का ज़िन्दगी के प्रति एक अलग ही नजरिया था | उसका कहना था कि जो आज है उसे अच्छे से जियो और जो कुछ अच्छा सोचना या करना है वह आज करो क्योंकि कल हमने जो भी आज किया है वही मिलेगा | अच्छा करने बाद भी यदि बीते कल में बुरा मिला था तो भी जो बीत गया उसके बारे में सोच-सोच कर अपना आज मत खराब करो | क्योंकि जब आज खराब हो गया तो आने वाला कल तो अपने आप ही खराब हो जाएगा | इसका यह मतलब भी नहीं है कि बीते कल से आपने कोई सबक ही नहीं लेना | अपनी नाकामयाबी से सबक लेकर उसका हल खोजना है और उस खोजे हल पर आज से ही कार्य शुरू करना है |

सोमेश के साथ चलते हुए पिछले चार पांच महीने से सब कुछ अच्छा चल रहा था | एक दिन अचानक पिताजी की तबियत खराब हुई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा और वहाँ जाकर यह पता लगा कि उनके हार्ट में 90 फीसदी ब्लॉकेज है | वह कुछ दिन में ठीक हो कर तो आ गये लेकिन अस्पताल से आने के बाद से उन्होंने एक जिद पकड़ ली कि मैं जल्द से जल्द शादी कर लूँ | उनके ज्यादा कहने पर मैंने शादी के लिए ‘हाँ’ कर दी | यह सुनकर पिताजी खुश हो गये और मुझे रोज की बहसबाजी से छुटकारा मिल गया |

*

शादी के पहले साल के अंदर ही हमारे यहाँ एक छोटी-सी गुड़िया ने जन्म लिया | उसे देखकर सब खुश थे और मैं सबको खुश देखकर खुश था | सोमेश और उसकी पत्नी यह जानते थे कि मैं किस तरह अपनी पत्नी के साथ निभा रहा था | मैं यह सब सोमेश व अपने माता-पिता की वजह से ही निभा रहा था |

लगभग दो साल के बाद ही हमारे घर दूसरी औलाद ने जन्म लिया और वह भी दो जुड़वाँ कन्याओं ने | मेरी माँ व पत्नी दोनों को तीनो बेटियों से कोई ख़ास लगाव नहीं नज़र आता था जबकि मुझे तीनो ही बहुत प्रिय लगती थीं | मैं अपनी बेटियों के सहारे ही अपने घर में अपनी पत्नी के साथ पराया हो कर रह रहा था |

पहली बेटी अभी पांच साल की ही थी कि एक दिन अचानक पिताजी चल बसे | पिताजी के देहांत के बाद मुझ पर सारे घर की जिम्मेवारी आ गई | उनके रहते मैंने कभी भी किसी भी बात पर ध्यान नहीं दिया था और न ही उन्होंने मुझे कभी कोई जिम्मेवारी सौंपी थी | समाजिक रीति-रिवाज और हर रोज़ की नई समस्या से मैं बहुत मुश्किल से जूझ पा रहा था |

मैं अपने आप को पूरी तरह से नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा था और इस कोशिश में सोमेश व उसकी पत्नी ने मेरा बहुत साथ दिया | उनके साथ के कारण ही मैं परेशान होकर भी खुश था | उन दोनों ने बिना रिश्ते के भी मुझे जो प्यार और दुलार दिया मैं ज़िन्दगी रहते कभी भूल नहीं सकता |

सोमेश ने ही मुझे अध्यात्म और ध्यान की शिक्षा दी | हम घंटों मेडिटेशन या फिर धार्मिक ग्रन्थों पर वाद-विवाद किया करते | उसने मुझे कई बार कहा कि मुझ में कुछ अलग अलौकिक शक्ति है लेकिन वह सुप्तावस्था में है | सिर्फ़ ध्यान से या फिर ईश्वरीय कृपा से ही जागृत हो पाएगी | जिस दिन भी ऐसा होगा उस दिन से मेरे अंदर अपने आप बदलाव शुरू हो जाएंगे | यह कब होगा मालूम नहीं |

*

अभी दोनो छोटी बेटीयाँ छह साल की ही थीं कि एक दिन तीनो बच्चों को स्कूल बस में चढ़ाने गई मेरी पत्नी को दूसरी तरफ से आते हुए बेलगाम ट्रक ने टक्कर मार दी | वह टक्कर इतनी घातक साबित हुई कि उसी रात उसकी मृत्यु हो गई |

सोमेश की शादी को दस साल हो गये थे परन्तु उनका कोई बच्चा नहीं था | इतेफाक की बात है कि उसी साल भाभी गर्भवती हुयीं | मेरे साथ हुए इस हादसे के समय वह छह माह की गर्भवती थी | यह हादसा देखकर उसी रात उनकी तबियत बिगड़ गई और सुबह होने तक असमय गर्भपात हो गया |

हम दोनों के साथ एक ही समय में मुसीबत आन खड़ी हई | पांच-छह महीने में हम तीनों ने आपसी मदद और साथ से अपने आप को इस सदमे से निकाल ही लिया | मीतू भाभी ने मेरे बच्चों को कभी भी माँ की कमी का अहसास नहीं होने दिया | वह दिन भर मीतू के पास रहते थे और रात को बच्चे मेरे ऑफिस से आने के बाद और छुट्टी वाले दिन हमारे घर पर ही रहते थे |

पत्नी की मृत्यु के पहले चार साल तो बच्चों की देखभाल में कब गुजर गये पता ही नहीं चला | लेकिन अब पिछले एक साल से बच्चों और मुझे दोनों को अज़ीब सा अकेलापन सताने लगा था |

रात में कभी-कभी बच्चे वह घटना याद आने पर अचानक नींद से जाग जाया करते थे | जब यह कई बार हुआ तो मैंने बच्चों के साथ मेडिटेशन करना शुरू किया ताकि उनको और मुझे मन की शान्ति मिल सके | इसका असर मुझ पर व बच्चों पर काफी अच्छा हुआ|

*

एक दिन मेडिटेशन करते हुए मैं फिर से किसी अलग जगह पहुँच जाता हूँ और फिर मुझे वही सब दिखता है जो मैं पहले भी कई बार देख चुका था | चारों तरफ दूधिया प्रकाश फैला हुआ था और वहाँ मैं अकेला हवा मैं तैर रहा था मेरे चारों तरफ गोल-गोल गेंदे घूम रहीं थीं | मैं पास आती एक गेंद पर पैर रख देता हूँ तो वह गेंद घूमना बन्द कर देती है | अचानक वह तेज़ी से हवा में तैरने लगती है और फिर उड़ती हुई आसमान की ओर ऊपर उठने लगती है | वह गेंद मुझे लेकर एक ऐसी जगह पहुँच जाती है, जहाँ आसमान में एक बहुत बड़ा काला गहरा गड्ढा (Black hole) था | वह गड्ढा पास आने वाली हर चीज को जैसे ग्रसता जा रहा था | मेरा शरीर भी उसी में प्रवेश कर जाता है | काफी अंदर जाने के बाद दूर आसमान में तारे के समान एक प्रकाश बिंदु दिखने लगता है | जैसे-जैसे मैं उसके पास पहुँचता जाता हूँ वह बिंदु एक बहुत बड़े प्रकाश पुंज में परिवर्तित हो जाता है |

वह गोल आकृति का प्रकाश पुंज जो की सूर्य की तरह चमक रहा था | लेकिन उसका प्रकाश सूर्य की तरह ना हो कर चन्द्रमा की भांति राहत तथा दिल को सुकून व ठंडक पहुँचाने वाला था | पास आने पर उस प्रकाश पुंज का अब कोई आकार नहीं रह गया था | कुछ ही दूरी पर एक सफ़ेद दूध की तरह चमकने वाला फर्श दिखता है | मैं वहाँ पहुँच कर चौकोर चबूतरे के आकार वाली जगह पर खड़ा हो जाता हूँ | अचानक चबूतरे से थोड़ी दूरी पर उस दूधिया प्रकाश में से कभी-कभी निकलने वाली नीली व पीली किरणे तेज़ी से रंग परिवर्तन करने लगती हैं | धीरे-धीरे उस दूधिया प्रकाश में से बाहर निकल कर वह किरणें मेरे शरीर में प्रवेश करने लगती हैं | कुछ किरणें एक गोलाकार आवर्ती बना कर मेरे पूरे शरीर को ढक लेती हैं | दूर से देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी हलके से नीले व पीले से गोलाकार प्रकाश पुंज में बैठा सोने की तरह दमक रहा हूँ | मुझे हैरानी होती है कि मैं वहाँ भी हूँ और दूर खड़ा यह नज़ारा भी देख रहा हूँ |

चबूतरे से थोड़ी दूरी पर उस दूधिया प्रकाश में से कभी-कभी निकलने वाली नीली व पीली किरणे मेरे सामने आकर रंग परिवर्तन करते हुए एक व्यक्ति में परिवर्तित हो जाती हैं | उस व्यक्ति ने सफ़ेद लम्बा चोगा पहना हुआ था व उसकी सफेद लम्बी दाड़ी और बड़ी बड़ी आखें थीं | चेहरे पर लालिमा और एक अज़ीब सा अलौकिक तेज़ था | उस व्यक्ति के चेहरे पर हल्की-सी विस्मय भरी मुस्कुराहट थी | वह मुझे कुछ कहना ही चाह रहे थे कि मेरा ध्यान अचानक टूट जाता है और फिर काफी कोशिश के बाद भी नहीं लग पाता है |

*

मैंने असिस्टेंट जनरल मैनेजर पद के लिए कई जगह आवेदन भेजा हुआ था | उस दिन मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा जब मुझे फ़ोन आया कि आपको इस पद के लिए चुन लिया गया है | मैंने जल्द ही वहाँ पदभार सम्भाल लिया, तनख्वाह भी काफी बढ़ गयी थी |

अभी मुझे असिस्टेंट जनरल मैनेजर बने लगभग एक साल ही हुआ था | एक दिन ऑफिस जाने पर पता लगा कि मेरी तरक्की कर मुझे जनरल मेनेजर तो बना दिया गया है लेकिन अगले कुछ समय के लिए मुझे नए शुरू हुए बॉम्बे ऑफिस को सम्भालना है |

यह खबर जब मैंने घर पर दी तो सबने एक सुर में कहा कि ऐसा मौका फिर नहीं आएगा | मुझे यह मौका छोड़ना नहीं चाहिए और इसमें सबसे ज्यादा ज़ोर भाभी ने ही दिया | भाभी का कहना था कि हम लोग यहाँ हैं और अब बेटियों को भी किसी तरह की परेशानी नहीं है सो आप जाएँ | आख़िर मैं बहुत अनमने मन से बॉम्बे के लिए रवाना हो गया |

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