“दोस्तो, मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि आज हम यहाँ पिकनिक मनाने के लिए आए हैं | यह सब हमारे मैनेजर साहब की वजह से ही हो पाया है | मैंने तो बस एक पहल की थी और बाकी सब अपने आप होता ही चला गया | जैसा कि मुझे कहा गया है कि मैं आपको बता दूँ कि हम यहाँ से शाम छह बजे के करीब निकलेगें | आप अपने-अपने ग्रुप में घूम-फिर व मस्ती कर सकते हैं | मैनजमेंट की तरफ से कोई प्रतिबन्ध नहीं है | बस आप से यह प्रार्थना कि आप इस इलाके से बाहर नहीं जाएं | जंगल विभाग के कर्मचारियों को बिना बताए या उन्हें साथ में लेकर ही जंगल के ज्यादा अंदर जाएं | हम सब लोग यहाँ लंच के लिए दोपहर दो बजे इकठ्ठा होंगे | लंच के बाद हमने कई तरह की रोचक प्रतियोगिताओं व कार्यक्रमों का आयोजन किया हुआ है, जिसके बारे में विस्तार से आपको लंच के समय ही बताया जाएगा | अब आप सब मौज-मस्ती कर सकते हैं | एक बार फिर मैं आपको याद कराना चाहूँगा कि आपको दोपहर दो बजे तक वापिस आना है |” कह कर टीटू मैनेजर साहब से हाथ मिलाकर और उनकी पत्नी को नमस्कार कर मेरे पास आ जाता है|
“चल भाई वो सामने रेस्टोरेंट है | वहाँ से कुछ खाने-पीने का सामान ले लेते हैं|”
मैं और टीटू रेस्टोरेंट में घुसने ही लगतें हैं कि पीछे से देवा की आवाज़ सुनाई पड़ती है “यार तुम दोनों हमें वहाँ पीछे क्यों छोड़ आए |”
हमने पीछे मुड़ कर देखा तो देवा प्रीति और उसकी सहेली अलका के साथ खड़ा था | मेरे पीछे मुड़ते ही, देवा तेज़ी से पास आकर मेरे कान में धीरे से बोला “आज कुछ कर जिससे मेरी बात बन जाए |” मेरे कुछ बोलने से पहले, प्रीति और अलका को देखते हुए ज़ोर से बोलता है “यार, ये वहाँ अकेली बोर हो रहीं थी तो मैं इन्हें भी ले आया, क्यों ठीक किया?”
मैं कुछ बोलता, इससे पहले ही टीटू बोल पड़ता है “भाई, तू कभी कुछ गलत करता है | ये पागल दुनिया ही तुझे समझ नहीं पाती |” कह कर टीटू के साथ हम सब हँस पड़ते है | टीटू के साथ मैं खाने-पीने का सामान लेने दुकान के अन्दर जाते हुए देवा को कहता हूँ “हम सामान ले कर आते हैं जब तक तुम जंगल की तरफ चलो |”
*
दूर से दिखने वाला जंगल, पास पहुँचने पर और भी हर-भरा व सुंदर दिख रहा था | हमने ऐसा घना और हरा-भरा जंगल हमने सिर्फ़ पहाड़ी इलाकों या फिल्मों में ही देखा था | थोड़ी-सा आगे चलने पर, पक्की सड़क खत्म हो कर कच्ची पगडंडी में बदल जाती है और कुछ दूर जाकर वह पगडंडी भी खत्म हो जाती है |
हम घने जंगल के बीचों-बीच पहुँच जाते हैं | हल्की-हल्की चलती ठंडी हवा, उस ठंडे मौसम को और भी ठंडा कर रही थी | वहाँ का नज़ारा देखने लायक था | घने पेड़ों के बीच से आती धूप देख हम मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं | कभी-कभार पक्षियों का कलरव सुनने को मिल जाता था वरना चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ था | पगडंडी न होने के कारण पेड़ों के बीच से चलने पर हमारे पैरों के नीचे पत्तों के दबने से आती आवाज़ उस सन्नाटे को कुछ भयावह-सा बना रही थी |
मैं सबको देखते हुए बोलता हूँ “यहाँ घूमते-घूमते क्यों न हम अपनी ज़िन्दगी के कुछ ऐसे अनुभव एक दूसरे को सुनाएँ जिसको याद कर हम आज भी रोमांचित या फिर डर जाते हैं|”
प्रीति और अलका खुश होते हुए एक साथ बोलीं “हाँ यह आइडिया अच्छा हैं | टाइम भी पास हो जाएगा और मज़ा भी आएगा |”
टीटू बोला “यार मेरे पास इतने किस्से हैं कि सारा दिन निकल जाएगा लेकिन किस्से खत्म नहीं होंगे |”
देवा बोला “बहुत मज़ाकिया या फिर डरावने किस्से ही सुनाने हैं |”
टीटू हँसते हुए बोला “भाई मेरे पास डरावने तो नहीं, हँसने वाले किस्से तो बहुत हैं | मैं तुम्हें एक ऑफिसर के साथ हुए मेरे अनुभव को सुनाता हूँ |” कह कर टीटू कुछ याद करते हुए आसमान की तरफ देखते हुए बोलना शुरू हो जाता है |
“इस कम्पनी से पहले मैं एक बड़े अस्पताल के एकाउंट्स विभाग में काम करता था | वहाँ नौकरी शुरू करने के कुछ दिन बाद ही हमारे एकाउंट्स विभाग में नए विभागाध्यक्ष(head of department) ने ज्वाइन किया | हमारे बॉस का व्यक्तित्व (personality) और वेश-भूषा देख कर कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता था कि वह एकाउंट्स विभाग में काम करते हैं | अब तुम सोच रहे होगे कि ऐसा क्या था उस आदमी में? असल में उनका कद मेरे हिसाब से छह फुट के करीब होगा और कद के हिसाब से ही उनकी सेहत भी थी | उन्हें ज्यादात्तर पूरी बाजू की शर्ट को कोहनी तक चढ़ा कर रखने का शौक था | वह दाएं हाथ में सोने का मोटा-सा कड़ा पहनते थे और जब भी किसी से बात करते थे तो बाएं हाथ से दाएं हाथ के कड़े को ज्यादात्तर ऊपर कोहनी की तरफ चढ़ाते रहते थे |
जब तक वह सामने वाले से बोलते नहीं थे तब तक सामने वाला उनकी personality और हाव-भाव देख कर पूरी तरह से डर जाता था | लेकिन उनके बात शुरू करते ही सब गुड़-गोबर हो जाता था |”
देवा हैरान होते हुए बोला “ऐसा क्या बोलते थे |”
टीटू हँसते हुए बोला “किसी से मिलने पर खुद ही हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाना.......|”
देवा बीच में ही बोल पड़ा “ये अच्छी बात है | इसमें गलत क्या है |”
टीटू खिसियाते हुए बोला “सुनेगा या तू ही बोलेगा ?”
“अच्छा sorry, बोल |”
“हाथ बढ़ाना तक तो ठीक है | लेकिन औरत जैसी आवाज़ में बोलना ‘और भाई क्या हाल-चाल हैं |’ सारी personality की वाट लगा देता था | ये तो कुछ नहीं, उनका तकिया-कलाम था ‘अपना कर के कर लो, कर कराके के कर लो’ | अब सुनो वो इसका प्रयोग कैसे करते थे | एक बार हम अपने ऑफिस के बाहर खड़े थे | वह बोले “भट्टी साब आपने देखा, अभी एक छोटा सा सांप इस नाली में से निकला और अपना करके उस नाली में घुस गया |” हम तीन-चार लोग खड़े थे सब अपनी हंसी बहुत मुश्किल से रोक पाए |
अब एक बार का किस्सा सुनो “मुझे और मेरे एक सहकर्मी को उन्होंने अपने कमरे में बुलाया | गर्मी के दिन थे, उनके कमरे में कूलर चल रहा था जिसकी आवाज़ काफी आ रही थी | हमारे बैठते ही उन्होंने बोलना शुरू किया ‘आज मुझे मेडिकल सुपरिटेंडेंट साहिब ने बुलाया था वह कह रहे थे कि तुम्हारे एकाउंट्स के लोग आजकल अपना कर के बहुत कर रहे हैं | वह कह रहे थे कि भाई ऐसा नहीं चलेगा | सब ऐसे कैसे अपना करके कर लेंगे | मैंने उनसे बोला नहीं सर मैं देखता हूँ | मैं ऐसा करके नहीं करने दूंगा | तुम लोग भी थोड़ा ध्यान दो..... |’ उसके बाद वह क्या बोलते रहे हम दोनों को कूलर की आवाज़ में कुछ समझ नहीं आया | हम दोनों हाँ, हाँ करते रहे और कुछ देर बोलने के बाद वह बोले ‘ठीक है, तुम लोग भी थोड़ा ध्यान दो और सबको बोलो कि सब अपना करके न करें, ठीक है |’ हम दोनों उठे और बाहर आ गये | बाहर आकर मैंने अपने सहकर्मी से पूछा कि साब क्या कहना चाहते थे तो वह हँसते हुए बोला ‘अपना करके कुछ मत करो जो करना है वह कर करा के करो |’”
यह सुन कर हम सब हँसने लगे | टीटू हँसते हुए बोला “एक और किस्सा सुनो, एक बार सुबह-सुबह उन्होंने हम सबको अपने कमरे में बुलाया और बोले “मुझे आज डिप्टी मेडिकल सुपरिटेंडेंट ने फ़ोन पर बोला कि आपके एकाउंट्स के सब लोग अपना करके कर रहे हैं तो मैंने बोला कि नहीं सर ऐसा कुछ नहीं हैं | हमारे यहाँ तो सब कर करा के कर रहे हैं |” हम सब उनकी बात सुन कर मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे | मेरे साथ बैठे एक सहकर्मी ने मुझे कोहनी मार कर धीरे से बोला ‘यार असली बात तो पूछ |’ उसकी बात सुन कर मैं उनसे बोला ‘सर वह कहना क्या चाहते थे |’ यह बात सुन कर वह बोले ‘भट्टी साहिब वह कह रहे थे की आप सब लोग अपना करके ऑफिस लेट आते हो और इसका बुरा असर कर करा के दूसरे ऑफिस पर भी पड़ रहा है | अब देखो न तुम थोड़ा बहुत लेट आते हो तो कोई बात नहीं, तुम कर करा के शाम को लेट जाते भी हो लेकिन अब इन मैडम को देखो ये तो इतने पास रहती हैं और फिर भी लेट आती हैं | ये कर करा के कुछ धंधा कर रही हों तो समझ में आता है लेकिन अगर खुद ही कर करा के लेट आ रही हैं तो बहुत ही गलत बात है...........|” कह कर खुद ही टीटू ज़ोर-ज़ोर से हँसना शुरू हो जाता है और हम सब का भी हँस-हँस कर पेट में दर्द हो जाता है |
टीटू हँसते हुए बोला “उनके बहुत किस्से हैं और सुनोगे या अपना कर करा के कोई और भी सुनाएगा |”
मैं हँसते हुए बोला “भाई आज कर करा के इतना कर लिया बहुत है|”
देवा बोला “ये सुहाना मौसम और जंगल का ये सुंदर नज़ारा, ऐसे में क्या ही मज़ा आता कि सफ़ेद कपड़ों में हाथ में बड़ी सी मोमबत्ती लेकर गाना गाती हुई कोई भूतनी या चुड़ैल दूर से आती दिख जाती और मेरे साथ कर करा के कुछ कर लेती |”
प्रीति बोली “सुन कर ही डर लगता है और अगर सामने आ जाए, तो मेरी जान ही निकल जाएगी |”
मैं मुस्कुराते हुए बोलता हूँ “इसी बहाने कोई तो चिपटेगा |”
देवा हँस कर प्रीति को देखते हुए बोलता है “हाँ भाई तू सही कहता है, इंसान न सही, भूतनी ही सही |”
अचानक, तभी किसी के चीखने की आवाज़ आती है | जैसे ही मैं पीछे मुड़कर देखने की कोशिश करता हूँ, मेरा पैर रास्ते में पत्तों के नीचे पड़ी किसी चीज में अटक जाता है | मैं काफ़ी सम्भलने की कोशिश करने के बावजूद फिसल कर गिर जाता हूँ | गिरते ही मेरा सिर पेड़ की जड़ से टकरा जाता है | सिर में भयंकर दर्द से मेरी आँखे बन्द हो जाती हैं |
मेरी आँख खुलती है तो मैं अपने आप को किसी जानी पहचानी जगह पर पाता हूँ | शायद इस जगह पर मैं बचपन में बेहोशी की हालत में आया था | वह एक अज़ीब-सी जगह थी, जहाँ पर चारों तरफ़ हल्की-हल्की दूधिया रोशनी थी | वातावरण में एक अज़ीब-सी ठंडक थी और चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ था | दूर कहीं से बहुत हल्की-सी आवाज़ आ रही थी | जैसे कोई चीज घूम रही हो | मैंने ध्यान से देखा तो मेरे पैर के नीचे जमीन नहीं थी और मैं हवा में तैर रहा था | उस दूधिया रोशनी में मैंने जब ध्यान से देखा तो पाया कि मेरे चारों तरफ़ बड़ी-बड़ी गोल आकृति की गेंदे घूम रहीं थीं | मैं हवा में तैरते हुए कुछ आगे बढ़ा तो देखा कि वह गेंदे मेरे चारों तरफ नहीं बल्कि एक बड़े से प्रकाश पुंज के इर्द-गिर्द घूम रहीं थी | मैं तैरते हुए थोड़ा ऊपर की तरफ़ जाता हूँ तो मुझे देख कर हैरानी होती है कि ऐसे सैंकड़ों प्रकाश पुंज हैं | वैसी हजारों गेंदें उन सैंकड़ों प्रकाश पुंज के चारों ओर घूम रहीं थी |
दूर बहुत दूर एक काला-सा धब्बा दिख रहा था | उसमें कई बिंदु खोते जा रहे थे | मैं कोतुहल वश उस तरफ उड़ने लगता हूँ | काफी आगे जाने पर मैं देख कर हैरान हो जाता हूँ कि उस काले गोल धब्बे में बहुत से छोटे बड़े पत्थर तो कई बहुत बड़े-बड़े गोले जाने के बाद गायब हो रहे थे |
मैं भी तैरते हुए उसी काले धब्बे में घुस जाता हूँ | कुछ देर तक मेरे आस-पास बिल्कुल अँधेरा था लेकिन कुछ देर के बाद मुझे दूर एक प्रकाश पुंज दिखता है | धीरे-धीरे मैं उसके नज़दीक पहुँचने की कोशिश करता हूँ | नज़दीक आने पर उस प्रकाश पुंज से आती वह रोशनी कुछ अलग-सी लगी | जिसे मैं कोई शब्द नहीं दे सकता | उस दूधिया रोशनी में ठंडक और सुकून-सा महसूस हो रहा था | अचानक एक दनदनाता हुआ पत्थर मेरे सिर पर आ लगता है, जिसके कारण सिर में तेज़ दर्द के साथ बेहोशी छाने लगती है |
दूर से किसी कार या ट्रक के ज़ोर से ब्रेक मारने की आवाज़ के साथ ही औरत और बच्चों के चिल्लाने से मेरी बेहोशी टूटती है | उठने की कोशिश करते हुए देखता हूँ कि मैं हरे-भरे जंगल के बीचों-बीच से निकलने वाली सड़क के पास घास पर गिरा हुआ था |
इससे पहले मैं कुछ और सोच पाता | मेरा ध्यान सड़क पर पड़ी उस लहुलुहान औरत पर पड़ता है, जिसे शायद किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी थी | मैं हिम्मत जुटा कर उठता हूँ और दूर सड़क के दूसरे कोने पर पड़ी उस औरत की तरफ दौड़ता हूँ | जैसे ही मैं उस औरत के पास पहुँचता हूँ, वहाँ पता नहीं कहाँ से तीन छोटी लडकियां आ जाती हैं | मुझे उस औरत के पास खड़ा देख वह तीनों रोते हुए मुझसे लिपट कर और भी ज़ोर से रोने लगती हैं|
मैं उन रोते-बिलखते हुए बच्चों के आँसू पोंछ ही रहा था कि मुझे गाड़ी की आवाज़ सुनाई पड़ती है | मैं दूर से आती उस सफेद रंग की गाड़ी को रोकने और मदद के लिए आगे बढ़ता हूँ कि वह गाड़ी खुद-ब-खुद ही पास आ कर रुक जाती है |
गाड़ी का दरवाज़ा खुलता है और एक स्वर्ग की अप्सरा से भी सुंदर महिला, सफेद साड़ी और ब्लाउज़ पहने हुए उतरती है | मैं स्तब्ध-सा उसे देखता ही रह जाता हूँ | उस महिला ने वह सफ़ेद साड़ी जिस पर हल्के सुनहरी रंग के फूल पत्ते बने हुए थे, बड़े ही सलीके से बाँध रखी थी | उसका चेहरा एक अलौकिक चमक से दमक रहा था और उस चमक में वह सफेद रंग की बिंदी चार चाँद लगा रही थी | अचानक मेरी नज़र उसके गले पर पड़ी और मैं ज़ोर से चिल्लाया “अरे ! आप तो डॉक्टर हैं, आइए इन्हें देखिये...” कह कर पीछे मुड़ता हूँ तो देख कर हैरान हो जाता हूँ कि वहाँ सड़क पर वह औरत और बच्चे हैं ही नहीं ?
वह औरत मुस्कुराते हुए मेरे पास आती है | मेरा हाथ पकड़ कर अपनी गाड़ी में बैठाते हुए कहती है “शायद आप गिर गए हैं, इसलिए ही आप कुछ भूल रहे हैं | सोच कुछ रहें हैं और बोल कुछ रहे हैं | कोई बात नहीं, घाव कुछ ख़ास गहरा नही है |” कह कर गाड़ी के कप बोर्ड से दवा का डिब्बा निकाल कर कहती है “आप आँख बंद कर लीजिये और शांत हो जाइये | यह दवा थोड़ा-सा लगेगी” | मैं आँख बंद कर बैठ जाता हूँ कि तभी मुझे फिर से बहुत तेज़ सिर में दर्द होने लगता है | अचानक मुझे किसी के चीखने की आवाज़ आती है “अबे सो गया है या फिर मर गया है |”
जैसे ही आँख खोलता हूँ तो हैरान हो जाता हूँ | देवा, टीटू, प्रीति और उसकी सहेली मुझ पर झुके हुए बड़ी हैरानी से देख रहे थे | मैं उनको धक्का देकर उठने की कोशिश करता हूँ और फिर से गिर जाता हूँ |
मुझे देख कर हैरानी होती है कि मेरा पैर पत्तों के नीचे पेड़ की जड़ से अभी भी उलझा हुआ था | आँख के ऊपर सिर में अभी भी दर्द महसूस हो रहा था और पैरों में अज़ीब-सी खिंचावट महसूस हो रही थी | मुझे हैरानी से इधर-उधर देखते हुए टीटू गुस्से से बोलता है “अबे हमें देख, इधर उधर क्या देख रहा रहा है | साले, पांच मिनट हो गए तुझे हिलाते-हिलाते और दिखा ऐसे रहा है जैसे हम कोई भूत हों…. |”
देवा मुझे हैरानी से देखते हुए बोला “मुझे तो लगता है यह असल में किसी सुंदर-सी भूतनी से मिल कर आया है | तभी हमें पहचानने से इंकार कर रहा है....|”
प्रीति देवा को इशारे से चुप कराती है और मेरा हाथ पकड़ कर उठाते हुए बोलती है “आपने तो हमें डरा ही दिया था | थोड़ी देर और न उठते तो, हम तो मर ही जाते |”
देवा प्रीति को देखते हुए बोला “हम तो आपको मरता देख कर ही मर जाते|”
“इसे मरते देख तू क्यों मर जाता |” टीटू अपने कंधे हिलाते हुए कहता है |
“अगर यह दहशत से मर जाती तो इसे देख मुझे दहशत नहीं होती, क्या ?”
“कभी-कभी तो देव जी ठीक बोलते है | आप इस पर भी इनकी खिंचाई कर रहे हैं |” प्रीति टीटू को देख कर कहती है |
“हाँ जी, आप ठीक कह रही है | देखिये कितना लगाव है इन्हें अपने सहकर्मियो से | चलो कोई तो देवा जी की कद्र करने वाला मिला |” मुस्कुराते हुए टीटू बोला |
“आप भी, बात को कहाँ से कहाँ ले जाते हैं ”, प्रीति मुस्कुराते हुए कहती है|
टीटू हँसते हुए बोला “जिसके लिए तुम सब मर रहे हो, उसकी भी तो सुनो|”
मैं अपनी आँखों पर हाथ रखते हुए बोला “मुझे तो खुद ही समझ नहीं आ रहा है कि आख़िर मैंने क्या और क्यों देखा ? हर घटना एक दूसरे से बिल्कुल जुदा थी |” कह कर मैं उन्हें वह सब बताता हूँ, जो मैंने अभी बेहोशी में देखा और महसूस किया था |
अलका कुछ घबराते हुए बोली “मुझे तो लगता है कि तुमने कोई भूतनी देखी है | तुम लोग मेरी मानो तो यहाँ से निकल लो|”
टीटू हँसते हुए बोला “अरे! यार चिंता न करो | सरदार तुम्हारे साथ है | डरते क्यों हो?”
देवा डरते हुए बोला “अबे सरदार, भूतनियां, भूतनियां होती हैं | हिन्दू या सरदार नहीं, मैं तो कहता हूँ, यहाँ से निकल लो |”
टीटू के बहुत कहने के बावजूद भी हम और आगे जाने का इरादा छोड़ कर वापसी की तरफ चल पड़ते हैं |
*
वापिस आते हुए रास्ते में अलका बोली “मैं तुम्हें एक सच्ची घटना सुनाती हूँ, जो मेरे सगे भाई के साथ हुई |” फिर वह एक लम्बा-सा सांस लेकर धाराप्रवाह बोलने लगती है “मेरे भाई को वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी का बहुत शौक है | मेरे भैया का नाम शोभित है प्यार से सब उसे शोभू कहते हैं | शोभू की एक महिला मित्र है जिसका नाम रिहाना है | वह भाई के ऑफिस में ही काम करती है और उसको भी भाई की तरह ही फोटोग्राफी का बहुत शौक है | शोभू के स्कूल के दो दोस्त जिनका नाम नितिन और नरेश है | उन दोनों को भूतहा कही जाने वाली जगहों पर जाने और आत्माओं की रिकॉर्डिंग करने का शौक है |
वह चारों आज से करीब एक साल पहले जून के महीने में सुंदरबन के जंगलों में वाइल्ड फोटोग्राफी के लिए गये थे | मैं तुम्हें भैया और उनके दोस्तों के साथ आपबीती उनकी जुबानी सुनाती हूँ |
*
बादलों के गड़गड़ाने की आवाज़ सुन कर अपना सामान उतारते हुए रिहाना बोली “यहाँ तो जून के महीने में कभी बारिश नहीं होती | फिर आज यह तूफ़ान की आहट कैसे ? ज़रूर यह नितिन के कारण ही हो रहा है|”
शोभू हँसते हुए बोला “नितिन बच कर रहना, रिहू अबकी बार तुझे नहीं छोड़ने वाली | शुरुआत यहाँ उतरते ही हो गयी है | क्यों रिहू सही बात है|”
रिहाना मुस्कुराते हुए बोली “पिछली बार नितिन ने मेरी बहुत उतारी थी | अबकी बार उसे दो गुना झेलना ही पड़ेगा |
नरेश, शोभू को आँख मारते हुए रिहाना से बोला “मैडम, तूफ़ान का इससे क्या लेना-देना ?”
रिहाना सामान उतार कर गाड़ी का दरवाज़ा बंद करते हुए बोली “पहली बार नितिन अपनी नई सफारी गाड़ी जंगल के सफर पर लाने के लिए तैयार हुआ और रास्ते में मुझे और नरेश को ड्राइविंग भी करने दी | इतना बहुत है तूफ़ान आने के लिए |”
नरेश अपना बैग कंधे पर लटकाते हुए बोला “मुझ पर तो एक बार पहले भी मेहरबानी कर चुका है | हैरानी की बात है कि तुम दोनों का तो आपस में कुत्ते-बिल्ली का बैर था | वह कैसे ठीक हो गया ?”
शोभू नितिन को देखते हुए बोला “मुझे लगता है, नितिन को अब समझ आ चुका है|”
नरेश अपनी हंसी दबाते हुए बोला “क्या?”
“दोनों शायद एक ही श्रेणी में आ गये....|”
शोभू की बात को बीच में ही काटते हुए नरेश बोला “आ भी गये हों पर, एक गली में तो एक ही रहता है...|”
नितिन बात को अनसुना करते हुए बोला “मुझे यहाँ का वातावरण कुछ ठीक नहीं लग रहा है | कुछ बोझिल-बोझिल-सा लग रहा है | जैसे यहाँ ऊपरी हवा का साया हो |”
शोभू हँसते हुए बोला “तुम लोग असाधारण गतिविधियों(paranormal activity) की फोटोग्राफी करते-करते खुद भी असाधारण(paranormal) हो गये हो | इसलिए इस शांत जगह को देख कर उल्टा ही सोच रहे हो.....|”
नरेश आँख बन्द कर लम्बी सांस लेकर आसपास के वातावरण को महसूस करते हुए बोला “भाई बात तो ठीक कह रहा है | मुझे भी कुछ ऐसा ही एहसास हो रहा है |”
रिहू दोनों की बात सुन कर हँसते हुए बोली “अच्छा, अब ड्रामेबाजी छोड़ो और जल्दी से सामान उठाओ | रात को जल्दी सोएंगे तभी कल सुबह-सुबह जंगल में जा सकेंगे |”
हँसते हुए सब सामान उठा कर अपने-अपने कमरे में चले जाते हैं |
*
सुबह रिहाना सबके दरवाज़े ज़ोर-ज़ोर से खड़काते हुए बोलती है “जल्दी करो, नाश्ता तैयार हो गया है |”
शोभू, नितिन कैंटीन में आकर ब्रेकफास्ट का आर्डर देते हैं | नितिन शोभू को देखते हुए बोला “छोटू नाश्ता भी ले आएगा और तुम्हारी महारानी अभी तक नहीं पहुंची | सुबह तो सबको जगाती फिर रही थी |”
रिहाना नरेश के साथ कैंटीन में दाखिल होते हुए शोभू को देख कर बोली “ये जरूर मेरी ही बुराई कर रहा होगा |” रिहाना और नरेश के कुर्सी पर बैठते ही छोटू नाश्ता ले आता है | शोभू को अपनी प्लेट में ब्रेड-बटर रखता देख रिहाना बोली “तुमने ज़वाब नहीं दिया |”
रिहाना की बात सुन शोभू असमंजस में पड़ जाता है | फिर सिर पर हाथ फेरते हुए बोलने ही लगता है कि रिहाना हाथ के इशारे से चुप कराते हुए बोली “तुमने बोलने में इतना समय ले लिया | इसका मतलब है कि तुम अपने दोस्त का ही पक्ष लोगे | लेकिन, यह भी साफ़ हो गया कि यह मेरी ही बुराई ही कर रहा था |”
“रिहाना तुम फिर शुरू हो गयीं |” नरेश बोल कर एक लम्बा सांस लेते हुए, कुछ गंभीर भाव से कहता है “दोस्तों पता नहीं जब से हम लोग यहाँ आयें हैं | मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है | मेरी इस बात पर, कुछ बोलने से पहले यह जरूर सोचना कि क्या मैंने पहले कभी ऐसा कहा है? नितिन से पूछो कि मैंने तब भी कुछ नहीं कहा था जब हम दोनों राज़स्थान के उस भूतहा किले में गये थे.....|”
नितिन, नरेश के कंधे को सहलाते हुए कहता है “भाई तू कुछ ज्यादा ही senti हो रहा है | मुझे भी कल कुछ लग रहा था | लेकिन आज ऐसा कुछ नहीं है|”
नरेश, नितिन की बात को अनसुना करते हुए, रिहाना और शोभू को देखते हुए गम्भीर भाव से बोला “अगर आप लोग मेरी बात से असहमत हो तो कोई बात नहीं |” फिर एक लम्बी सांस लेते हुए बोला “लेकिन मेरी यह बात तो मान लो कि आज जंगल न जा कर, यहीं कुछ देर के लिए आस-पास घूम लेते हैं | मैं ऐसा इसलिए भी कह रहा हूँ कि रात भर बारिश होने के कारण इस समय जंगल में बहुत फिसलन होगी |”
यह सुन कर शोभू गुस्से में अपनी जगह से उठते हुए बोला “जिसकी भी फट नहीं रही है वह मेरे साथ चले, बाकी इसके साथ रहें |”
शोभू के कैंटीन से बाहर निकलते ही सब उठ कर उसके पीछे-पीछे चल पड़ते हैं | शोभू सब को अपने पीछे आते देख रुक जाता है और नरेश से मुस्कुरा कर बोलता है “क्यों, फटी सिल गई |”
नरेश, सुन कर मुस्कुराते हुए बोलता है “भाई मेरा फर्ज़ था तुम लोगों को समझाना | बाकी अच्छे या बुरे दोनों समय में-मैं हमेशा साथ था और साथ रहूँगा |”
*
जंगल का दृश्य काफ़ी सुंदर था | वहाँ सब तरफ़ हरियाली ही हरियाली थी | पेड़ों पर सैंकड़ों पक्षी इधर से उधर शोर करते हुए कभी पेड़ पर तो कभी आसमान में उड़ रहे थे | ऐसा लग रहा था जैसे वह हरियाली और प्रदूषण रहित वातावरण को देख, खुश हो कर दौड़ लगा रहे हों | हम सब पक्षियों की ऐसी अठखेलियाँ देख मन्त्र मुग्ध हो चुपचाप गाइड के पीछे-पीछे चल रहे थे | जगह-जगह, रुक कर शोभू फोटो खींचता जा रहा था | गाइड वहाँ के पक्षियों, पेड़, पौधों और जानवरों के बारे में विस्तार से बता रहा था |
गाइड जंगल के बीचो-बीच एक पहाड़ी के पास रुक कर, सबकी तरफ देखते हुए कहता है “साहिब, आप सब ने जंगल के लगभग हर पशु पक्षी और अच्छी जगहों की फोटो खींच लीं है | अगर आप कहें तो यहाँ से वापिस चलते हैं |”
शोभू “दोस्त, इस पहाड़ी पर ऊपर चल कर कुछ फोटो लेकर वापिस चल पड़ेंगे....|”
“साहिब इस पहाड़ी पर जैसे-जैसे आप ऊपर चढ़ते जाएंगे, आप को जमीन में अज़ीब-सी चिकनाहट और फिसलन दिखेगी | आपको हैरानी होगी कि जो हरियाली और सुन्दरता आपको नीचे से इस पहाड़ी पर दिख रही है वह ऊपर नहीं है | ऐसा इसलिए है कि ऊपर पहाड़ी समतल है और पूरी दलदल से भरी होने के बावजूद पेड़ सूखे हुए हैं |” फिर कुछ रुक कर सोचते हुए बोला “साहिब, आप को सुन कर बहुत अज़ीब लगेगा और शायद हंसी भी आएगी | लेकिन यह सत्य है कि कई लोग ऊपर से फिसल कर पहाड़ी के दूसरी तरफ घने जंगल में कहीं खो गए और फिर कभी नहीं लौटे|”
रिहाना अज़ीब-सा मुँह बनाते हुए बोली “तुम लोगों ने उन्हें ढूँढ़ा नहीं?”
“मैडम हम लोगों में से कोई भी उस तरफ नहीं जाता है | हम सब का मानना है कि उस तरफ जंगल में आत्माओं का साया है |”
यह सुन कर हँसते हुए नितिन, शोभू को देखते हुए बोला “यार, ऐसे कैसे हो सकता है कि नीचे से इतनी सुन्दर दिख रही पहाड़ी ऊपर से खोखली होगी |” फिर धीरे से शोभू के पास आकर बोलता है “यार ये बेवकूफ बना रहा है और जल्दी वापिस जाना चाहता है |”
यह सुन कर शोभू गाइड को कहता है “भैया, चलो ऊपर चलेंगे | तुमने जो कहा है अब उसे देखना तो पड़ेगा ही |”
“ठीक है साहिब |” कह कर गाइड अनमने मन से उनके साथ चलने को तैयार हो जाता है | फिर अचानक रुक कर कहता है “साहिब आप लोगों से एक हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि वहाँ पहुँच कर जैसा मैं कहूँगा वैसा ही करना होगा |”
सब ‘हाँ’ में सिर हिला देते हैं |
शोभू मुस्कुराते हुए गाइड को देख कर बोला “इन दोनों को देख रहे हो | ये ऐसे बहुत से काम करते हैं और भूत इनको देख कर भाग जाते हैं इसलिए हमें बहलाओ नहीं और चलो |”
पहाड़ी के ऊपर चढ़ते हुए दृश्य देखने लायक था | चारों तरफ हरियाली की चादर बिछी हुई दिख रही थी | वहाँ की मिट्टी से आती हुई सोंधी-सोंधी खुशबु उस दृश्य को और भी मनोहारी बना रही थी | यह देख कर रिहाना बोली “जब यहाँ इतनी हरियाली है तो ऊपर तो और भी होगी | वहाँ पर फोटोग्राफी करने का मज़ा ही कुछ और आएगा |”
जगह-जगह रुक कर हम फ़ोटो खींचते हुए चल रहे थे | गाइड के चेहरे पर गुस्से और दहशत, दोनों के मिलेजुले भाव थे | वह अचानक घड़ी देखकर ज़ोर से चिल्लाया “सुनिए, शाम होने को है | कृपया अब वापिस चलिए |”
शोभू अपने दोस्तों को देख कर बोला “क्यों, आगे जाना है कि नहीं?”
सब शोभू की बात सुन एक साथ बोलते हैं “हाँ, हम आगे चलेंगे |”
गाइड सबकी बात सुन कर परेशान हो जाता है और झुंझला कर बोलता है “आप मेरी बात मानिए | मैं जो भी कह रहा हूँ वही सच है | मेरी आप से हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि यहाँ से ही लौट चलो, आगे ख़तरा है |”
सब उसकी बात सुन कर हँसते हुए बोले “भैया, तुम नीचे भी यह ही कह रहे थे | अब चुपचाप चलो, शाम होने से पहले वापिस भी आना है |” गाइड अनमने मन से मुँह लटकाए ऊपर की तरफ चल पड़ता है | सब उसके पीछे मुस्कुराते हुए चल रहे थे |
*
नितिन का कहना था कि जैसे ही हम पहाड़ी के ऊपर पहुंचे तो देख कर हैरान हो गये कि नीचे से नुकीली दिखने वाली पहाड़ी ऊपर से समतल थी | उस समतल जगह और उसके आसपास कुछ दूर तक ढलान वाली जगह के पेड़ बिल्कुल सूखे हुए थे | देख कर हैरानी हो रही थी कि उन पेड़ो की जड़ों के चारों तरफ अच्छी खासी घास थी लेकिन पेड़ बिल्कुल सूख चुके थे | थोड़ा और आगे आने पर हमने देखा कि वहाँ की मिट्टी कुछ ज्यादा ही चिकनी थी और जगह-जगह पर दलदल था | वहाँ दूर-दूर तक कोई पशु-पक्षी नहीं दिख रहा था और एक अज़ीब-सा सन्नाटा था |
गाइड एक जगह रुका और पीछे मुड़ कर हम सबको देखते हुए बोला “साहिब यहाँ पर ध्यान रखिएगा कि किसी भी हालात में आपको सूखे पेड़ को हाथ नहीं लगाना है | हमारे बुजुर्गों का मानना है कि यह पेड़ शापित हो गये हैं और यह कुछ भी बुरा कर सकते हैं | इसलिए मेरी मानो तो यहीं से वापिस चलते हैं |”
यह सुन शोभू हँसते हुए बोला “सुन कर हैरानी होती है कि आज भी तुम और तुम्हारे गाँव वाले घिसी-पिटी पुरानी दंत कथाओं में विशवास रखते हैं | तुम इन दोनों को देख रहे हो | यह हर महीने किसी ऐसी ही जगह पर जा कर वहाँ की फोटोग्राफी और आवाजें रिकॉर्ड करते हैं | पूछो इन से, वह सब जगहें डरावनी जरूर होती हैं लेकिन आज तक इनका आमना-सामना किसी भूत-प्रेत से नहीं हुआ |”
यह सुन कर गाइड बोला “साहिब, कुछ लोगों में पिछले जन्म की अच्छी शक्तियाँ होती हैं जिससे उनके सामने बुरी शक्तियाँ नहीं आती हैं | लेकिन ऐसा सब के साथ नहीं होता है और ऐसी कोशिश हर किसी को करनी भी नहीं चाहिए | यही हमारे बड़े बुजुर्ग कहते हैं |”
शोभू हँसते हुए कहता है “ठीक है भाई तुम आगे जाने के लिए मना कर रहे हो तो हम मान जाते हैं और यहीं से वापिस चलते हैं | लेकिन तुम्हारी शापित पेड़ वाली बात को तो जरूर जांचेंगे |”
शोभू, नितिन और नरेश को इशारा करता है कि तुम अपने पास वाले पेड़ों को लिपट जाओ | गाइड के मना करने के बावजूद नितिन और नरेश पेड़ों से चिपक जाते हैं | जब कुछ देर तक कुछ नहीं होता है तो वह छोड़ देते हैं | शोभू हँसते हुए गाइड को बोला “हाँ भाई, क्या हुआ तुम्हारी दंत कथाओं का |”
गाइड हाथ जोड़ते हुए बोला “आप से प्रार्थना है कि आप इन बातों का मज़ाक ना बनाएँ | यह बातें पूर्णतः सत्य हैं | जैसा मैंने पहले कहा कि कुछ लोगों के पास पिछले जन्म की अच्छी शक्तियां होती हैं और हो सकता हैं उन में से यह दोनों हों|”
शोभू यह सुन हँसते हुए बोला “तुम्हारा मतलब है कि मेरे पास ऐसी शक्तियां नहीं हैं |” कहते हुए, बिना किसी को देखे वह पास के सूखे पेड़ से चिपट जाता है | जैसे ही वह उस पेड़ से चिपटता है | वह पेड़ ज़ोर से हिलना शुरू हो जाता है और फिर झटके से वह पेड़ उसे खाई की तरफ धकेल देता है |
यह सब कुछ इतनी तेज़ी से होता है कि किसी को कुछ भी सोचने समझने का मौका ही नहीं मिलता | जब तक सब होश में आते, शोभू का दूर-दूर तक नामो-निशान तक नहीं था | हम सब का डर के मारे चेहरा पीला पड़ गया था | हम चाह कर भी कुछ बोलने की हालत में नहीं थे | यह सब देख गाइड ज़ोर से चिल्लाता है “भागो यहाँ से, यदि जान बचानी है |”
वहाँ सब पेड़ों में कुछ अज़ीब-सी हलचल होने लगती है | यह देख कोई भी कुछ नहीं बोलता है और गाइड के पीछे-पीछे सब भाग लेते हैं | पहाड़ी से उतरने तक कोई भी रुकता नहीं है और न ही कोई पीछे मुड़ कर देखता है |
हम पहली बार इतना डर गये थे कि कुछ भी समझ नहीं आ रहा था | सांस पर काबू पाते हुए नितिन बोला “भाई, क्या यह सपना था ?”
“भाई शोभू |” नरेश अपनी सांस पर काबू पाते हुए कहता है |
उन दोनों की बात सुन कर अपनी सांस पर काबू पाते हुए रिहाना बोली “तुम लोग अपनी बातें किए जा रहे हो, शोभू का कुछ सोचो वह कैसे आएगा |”
नितिन अपना सिर झटकते हुए बोला “तुम उसकी चिंता मत करो | वह पहले इस से भी बुरी जगहों में फंस चुका है | उसकी हिम्मत और दिमाग़ का कोई ज़वाब नहीं, तुम्हें उस पर भरोसा हो या न हो मुझे है |”
नरेश रिहाना के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला “उसके बैग में दो दिन तक का खाना पानी और सब जरूरी सामान है | इसलिए आप चिंता न करें बस भगवान् से प्रार्थना करें कि उसे शारीरिक रूप से कोई तकलीफ़ न हो |”
“क्या वह पेड़ सचमुच शापित थे ?” रिहाना उन दोनों की तरफ देखते हुए कहती है|
“हमारे साथ ऐसा पहली बार हुआ है | यह सब उस गाइड की वजह से ही हुआ है | मेरे हिसाब से वहाँ जमीन ही कुछ ऐसी होगी | मुझे तो इन दंत कथाओं पर विश्वास नहीं होता |” नितिन, नरेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है |
नितिन रिहाना के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला “भरोसा रखो हम जो कह रहे है, वह ही सच है |”
वह शाम हम सब ने बहुत बैचेनी से बिताई | रात का खाना भी हमने बहुत ही अनमने ढंग से खाया और अपने-अपने कमरे में बिना किसी से बात किये चले गए|
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हम ही जानते हैं कि हमने वो चार दिन कैसे काटे | बार-बार ऑफिस से और घर से फ़ोन पर फ़ोन आ रहे थे | हम झूठ बोल-बोल कर थक चुके थे और उधर रिहाना का रो-रो कर बुरा हाल था | हम इन चार दिनों में न अच्छी तरह सो पाए और न ही कुछ खा पाए | हमारी मदद करने को कोई भी तैयार नहीं था | यहाँ तक कि पुलिस वाले भी हमारे साथ चलने को तैयार नहीं थे | हम बिना किसी मदद के अकेले उस घने जंगल में कैसे जाते |
हमें परेशान देख एक शाम गेस्टहाउस के चौकीदार ने बताया कि हमारी मदद सिर्फ़ फौजी ही कर पाएंगे और उनका कैंप पास की पहाड़ी पर है | यह सुनकर हमारी जान में जान आई | हम उसी शाम, वहाँ गए और उनसे मदद मांगी | हमारी किस्मत अच्छी थी कि वह हमारी मदद करने को तैयार हो गए |
अगले ही दिन सुबह-सुबह वह जंगल गए और रात होते-होते हमारे शोभू को सही सलामत जंगल से ले आए | शोभू को देख हमारी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा | हम तीनो उससे लिपट कर पता नहीं कितनी देर रोते रहे |
नितिन का ध्यान तब टूटा जब गेस्ट हाउस के मैनेजर ने उसकी पीठ थपथपाई | उसने पीछे मुड़ कर देखा तो मैनेजर ने उसे इशारा कर अपने साथ चलने को कहा | नितिन उन तीनों को कमरे में चलने का इशारा कर मैनेजर के साथ चल देता है | रास्ते में चलते हुए मैनेजर बोला “फौज की वह टीम जो जंगल में गई थी आपका इंतज़ार कर रही है | आप लोग भी अज़ीब हो कम से कम उनका धन्यवाद तो कर देते......|”
“सर आप सही कह रहे हैं | हम लोग तो बस अपने शोभू को सही सलामत देख ऐसे खो गये कि कुछ याद ही नहीं रहा |”
नितिन का कहना था कि मुझे देख कर उनकी टीम का लीडर मेरे पास आया और बोला “आप लोग बहुत खुश नसीब हैं कि आपका दोस्त बिल्कुल सही सलामत वापिस आ गया | पूछना तो नहीं चाहिए.....क्या आपका दोस्त मानसिक रोगी है ?”
मेरे पूछने पर कि उसने ऐसा क्या कर दिया | वह बोला “आपका दोस्त हमारे साथ बहुत अज़ीब ढ़ंग से पेश आया |” उसकी बात सुन कर पहले तो मुझे भी हैरानी हुई लेकिन फिर मैंने हँसते हुए कहा “सर, वह हम सबसे अलग है | जहाँ हम सब की डर से फट जाती है | वह ऐसी मुश्किल से मुश्किल जगह पर भी मज़ाक कर लेता है |”
वह मुस्कुराते हुए बोला “भाई, हमें मज़ाक और बीमार का पता आप लोगों से ज्यादा अच्छे तरीके से लग जाता है |” कह कर वह अपने साथी फौजीयों की ओर मुड़ा और उन्हें चलने का इशारा कर जैसे ही आगे बढ़ा तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर कहा “सर आज शाम का खाना तो हमारे साथ खाइए | हम आपके लिए और तो कुछ नहीं कर सकते कम से कम यह मौका तो दीजिए |”
वह अपनी टोपी ठीक करते हुए बोला “दोस्त हमारा तो यह काम रोज का है | आप पर कोई एहसान नहीं किया | ज़िन्दगी रही तो फिर मिलेंगे |” उसकी बात सुन कर मेरी आँखों में आंसू आ गए | पूरी टीम मुझ से हाथ मिला कर चली गई और मैं देर खड़ा उन्हें देखता रहा|
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सुंदरबन से आने के बाद शोभू की हालत दिन-प्रतिदिन खराब ही होती गयी | कभी वह रात को तो कभी दिन में अचानक बैठे-बैठे शून्य में देखते हुए बातें करने लग जाता था और कभी अचानक हँसने लग जाता था | सुबह कई बार हमने देखा कि उसका बिस्तर और उसके कपड़े पूरी तरह से अस्त-व्यस्त होते थे | यह जब घटना चार पांच बार हुई तो पिता जी ने, माँ या मुझे भाई के कमरे में सुबह उसे उठाने जाने को मना कर दिया था |
भाई की गिरती सेहत और अज़ीब-सी ख़ामोशी और पागलपन देख कर हमने उसे कई डॉक्टर्स और मनोचिकित्सक को दिखाया लेकिन इलाज के बावजूद भी भाई की सेहत और मानसिक हालत दिन-प्रतिदिन गिरती ही जा रही थी |
एक दिन दुःखी होकर पिताजी ने डॉक्टर से कह ही दिया कि आप तो कहते थे यह जल्द ही ठीक हो जायेगा लेकिन इस पर तो इलाज का कुछ भी असर नहीं दिख रहा है | यह सुनकर डॉक्टर विचलित होते हुए बोला ‘यही तो मुझे भी समझ नहीं आ रहा है खैर कोई बात नहीं, ऐसे पेशंट्स का इलाज सिर्फ मेरे मनोचिकित्सक मित्र के पास ही होता है कहते हुए उन्होंने उसका कार्ड दे दिया |
हमने बहुत अनमने ढंग से उस मनोचिकित्सक से इलाज शुरू किया | लेकिन लगभग एक महीने में ही भाई बिल्कुल ठीक हो गया था | इलाज के बाद जब वह सामान्य हुआ तो उसने जो कुछ भी बताया वह होश उड़ाने वाला था |
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शोभू ने बताया कि वह जब पहाड़ी से नीचे फिसला तो कुछ देर तक मुझे होश रहा लेकिन फिर क्या हुआ याद नहीं | जब होश आया तो सबसे पहले मेरा हाथ सिर पर गया | मेरे सिर पर एक तैलीय कपड़ा बंधा था जिस में से काफ़ी बदबू आ रही थी | मैंने झटके से वह कपड़ा सिर से उतार कर फैंका तो अपने आस पास का नज़ारा देख कर हैरान हो गया | मैं एक चौड़े से फट्टे पर लेटा हुआ था और वह लकड़ी का फट्टा दो बहुत ऊँचे पेड़ो के बीच एक मचान की तरह बंधा था | आस-पास ध्यान से देखा तो पेड़ के साथ रस्सी की सीढ़ी लटक रही थी | मैंने लपक कर सीढ़ी पकड़ी और नीचे उतर आया | नीचे उतरने के बाद मुझे शरीर के हर अंग में दर्द तो महसूस हो रहा था लेकिन पूरे शरीर में कहीं भी चोट या खरोंच तक का निशान नहीं था | मैंने ध्यान से देखा तो मेरे कपड़े तक बिल्कुल साफ़ थे |
मैं हैरानी से इधर-उधर देख ही रहा था तो मेरी नज़र एक झोंपड़ी पर पड़ी जो उन दोनों पेड़ों के साथ ही थी | लकड़ी की उस झोंपड़ी का दरवाज़ा टूटा हुआ था | मैं धीरे-धीरे कदम रखता हुआ झोंपड़ी के पास पहुँचा | बहुत सावधानी के साथ मैंने अंदर झाँका | अंदर कोई नहीं था, बस एक लोहे का पुराना पलंग रखा हुआ था | उस पलंग पर बहुत ही पुराना और लगभग उधड़ा सा गद्दा और कई जगह से फटी चादर बिछी थी | पलंग के पास ही पानी का घड़ा और पुराना-सा लोहे का ट्रंक था | वह बिस्तर और ट्रंक देख कर ऐसा लगता था कि वह किसी फौजी का है |
अचानक वहाँ पक्षियों के शोर मचाने की आवाज़ आने लगी | मैं इधर-उधर हैरानी से देख ही रहा था कि मेरी नजर सामने से आती युवती पर पड़ी | उसकी नजरें नीचे ज़मीन की तरफ थी इसलिए वह मुझे देख नहीं पाई थी | वह शायद अभी नहा कर आई थी | उसके बाल गीले और खुले हुए थे | उसने बिना बाजू की फौजी जाकिट व हाफ पेंट पहनी हुई थी जिसमें वह बहुत सुंदर लग रही थी |
उस युवती की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी तो वह ठिठक-सी गयी | फिर वह अपने पर काबू पाते हुए तेज़ी से मेरी ओर भागती हुई आई और मुझ से लिपट गई | धीरे-धीरे उसकी बाहें मेरे शरीर पर अपनी पकड़ कसती जा रहीं थी | मैं उसका पूरा शरीर महसूस कर पा रहा था | मुझे कुछ अज़ीब-सा लगा कि उसका शरीर गर्म होने की बजाए ठंडा था और उसके शरीर से एक अलग तरह की गंध आ रही थी जैसे किसी बहुत पुरानी जगह से आती है | उस गंध से न चाहते हुए भी मुझे मदहोशी-सी छा रही थी | अचानक वह युवती मुझसे अलग होते हुए बोली “सिद्धू आख़िर तुम्हें होश आ ही गया |”
सिद्धू नाम सुन कर मेरी मदहोशी टूटी | उससे अलग होते हुए मैं बोला “मेरा नाम सिद्धू नहीं, शोभू है और आप कौन ?”
वह हँसते हुए बोली “आपने पहचाना नहीं मैं गोगी हूँ |”
मैं बड़ी हैरानी से उसकी ओर देखते हुए बोला “मैं तो आपको नहीं जानता?”
वह हँसते हुए बोली “आप यहाँ बैठिए |” कह कर उसने मुझे वहीँ पड़े एक बड़े से पत्थर पर बैठाया और फिर मेरे साथ ही उस पत्थर पर बैठते हुए वह बोली “मैं तो मज़ाक कर रही थी | आप शायद पहाड़ी से फिसल गये थे और फ़िसलते हुए आप यहीं पास में गिर कर बेहोश हो गये थे | मैं बहुत मुश्किल से आपको यहाँ तक लेकर आई थी | मुझे लगा कि शायद आपके सिर में चोट लगी है | इसलिए मैंने आपके सिर पर कस कर कपड़ा बाँध दिया था |”
मैंने हैरान होते हुए उससे पूछा “मैं अगर बेहोश था तो फिर इतनी ऊपर मचान पर कैसे चढ़ा |”
वह कुछ सकपकाते हुए बोली “शाम होते-होते आपकी थोड़ी-सी बेहोश टूटी थी | नीचे जंगली जानवरों का डर था इसलिए मैं आपको सहारा देकर ऊपर ले आई थी | ऊपर पहुँचते ही आप फिर से बेहोश हो गये थे |”
“मेरा बैग?”
“कौन सा बैग?”
“मेरे साथ मेरा बैग भी था, उसमें मेरा बहुत सामान था |”
“जहाँ आप गिरे थे वहाँ मुझे तो कोई बैग नहीं दिखा |”
“अच्छा, हो सकता है कहीं पेड़ या झाड़ियों में अटक गया हो |”
“हाँ, हाँ, बिल्कुल हो सकता है |”
“आप इस खतरनाक जंगल में अकेली.......|”
वह कुछ सकपकाते हुए जल्दी से बोली “आप मेरी ड्रेस से अंदाजा नहीं लगा पाए | कोई बात नहीं मैं ख़ुद ही बता देती हूँ | मैं एक फौजी हूँ | यहाँ पिछले कुछ समय से संदिग्ध गतिविधियां चल रही हैं उन्ही पर नज़र रखने के लिए इस जंगल में आई हूँ |”
“जब यह जगह फ़ौजी निगरानी की है तो फिर उजड़ी हुई क्यों है | यहाँ पर पूरा सामान तक नहीं है और आपको अकेले यहाँ इतने बड़े और खतरनाक जंगल में क्यों भेजा गया|”
“नहीं, ऐसी बात नहीं है | हम तीन लोग थे लेकिन एक दिन जब मैं पास ही नदी में नहाने के लिए गयी हुई थी तो पीछे से आतंकवादिओं ने हमारे कैंप पर हमला बोल दिया | उस हमले में मेरे दोनों साथी मारे गए | जाते हुए आतंकवादी यहाँ का सारा सामान अपने साथ ले गये |”
वह फिर कुछ रुक कर रुंधे गले से बोली “मैं यह जगह छोड़ कर नहीं जा सकती और मेरे पास कोई साधन भी नहीं है कि मैं अपने बेस कैंप को इतला कर पाऊं |” वह आँसू पोंछते हुए मुस्कुरा कर बोली “हमें आर्मी में सिखाया जाता है कि कितनी भी मुश्किल हो आपको अपनी जगह जिन्दा रहते नहीं छोड़नी | मैं उसी का पालन कर रही हूँ |”
“कृपया माफ़ करिएगा | मेरा मकसद आपको चोट पहुँचाना नहीं था|”
वह मुस्कुरा कर बोली “इसमें माफ़ करने जैसी कोई बात नहीं है | आपका शंकित होना उचित ही है |”
“आप यहाँ कब तक रहेंगी |”
“हमें यहाँ एक महीने के लिए ही भेजा जाता है | दो-तीन दिन में जब दूसरी पार्टी डियूटी पर आएगी तभी हम लोग यहाँ से जा पाएंगे |” कह कर वह मुझे जंगल के बारे में बताने लगी |
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वह रोज रात को ऊपर मचान पर आकर मेरे साथ लेट जाती थी | कुछ देर बाद जब वह मेरी तरफ करवट बदल कर अपनी बाहें मेरे गले में डालती थी तो उसके शरीर से आती गंध से न चाहते हुए भी मुझे नींद आ जाती थी | मैं अगले दिन दोपहर में ही सो कर उठ पाता था | जब भी मैं उठता था तो मेरे सारे कपड़े अस्तव्यस्त होते थे और शरीर में अज़ीब-सा दर्द और कमज़ोरी महसूस होती थी |
मुझे बहुत हैरानी होती थी कि जब भी मैं मचान से नीचे उतरता था तो वह हमेशा सामने से मुस्कुराते हुए आती दिखती थी | वह हर बार पास आते ही मुझसे लिपट कर कहती थी कि रात कैसे बीती | उसके लिपटते ही मेरे शरीर से सारी कमजोरी गायब हो जाती थी और मैं सब कुछ भूल जाता था | यह सब मैं आज याद कर पा रहा हूँ | उस समय तो मुझे उसके साथ रहते हुए कुछ भी अज़ीब सा नहीं लगता था | मेरा दिमाग़ पूरी तरह से शून्य हो जाता था और वही सच लगती थी |
मैं जब तक गोगी के साथ वहाँ जंगल में रहा मुझे उसकी कई बातें समझ नहीं आईं | वह जब भी मेरे साथ जंगल में घूमती थी तो वहाँ चारों तरफ अज़ीब-सी हल चल मच जाती थी | यह बात जब मैंने उससे पूछी तो उसका कहना था कि यहाँ जीने के लिए पशु पक्षियों का शिकार करना पड़ता है | शायद इसलिए यह मुझसे डरते हैं और इनको लगता है कि यह औरत फिर से शिकार को निकल पड़ी है |
वह रोज जंगल में शिकार करने की लिए जाती थी और मेरे कई बार कहने के बावजूद भी मुझे अपने साथ लेकर नही गई | उसका कहना था कि यहाँ कब कहाँ से मुसीबत मौत बन कर सामने आ जाए पता नहीं |
मैंने उससे कई बार यह भी पूछने की कोशिश की, कि वह किस जानवर का और कहाँ से इतना अच्छा पका हुआ और स्वादिष्ट गोश्त ले कर आती है | लेकिन वह हर बार इस बात को टाल जाती थी | काफी पूछने पर एक बार उसने बताया कि यहाँ से दो किलोमीटर दूर एक छोटी सी नदी है और उसने नदी के दूसरे किनारे पर खाना बनाने का सामान रखा हुआ है और वह उसने इसलिए किया है ताकि खाना बनाते हुए धुएं को देख कर अगर कोई आ भी जाए तो वह यहाँ तक न पहुँच सके | उसकी बातें सुन कर कुछ ठीक भी लगता था और कुछ शक भी होता था, लेकिन उस पर भरोसा करने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं था |
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उस दिन जब सुबह मेरी नींद खुली तो उठते ही मेरा ध्यान अपने कपड़ों पर गया | मेरे कपड़े कुछ ज्यादा ही अस्तव्यस्त थे या यूँ कहें तो मैं लगभग नंगा ही था | शरीर और कपड़ों में से उस औरत के जिस्म की गंध कुछ ज्यादा ही आ रही थी |
मैं जब मचान से नीचे उतर कर आया तो मुझे और दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा कमजोरी महसूस हो रही थी | मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं तीन चार दिनों से न तो सो पाया हूँ और न ही मैंने कुछ खाया है |
जंगल पूरी तरह से शांत था | कहीं से भी पशु या पक्षी की आवाज़ नहीं आ रही थी | मैंने सोचा अभी वह आएगी तो देखना कैसे जंगल में कोलाहल मच जाएगा | आज तो मुझे भूख भी कुछ ज्यादा लगी है | अभी गोगी गर्मागर्म खाना लाएगी तो सारा खा जाऊँगा|
मैं यह सोचा ही था कि अचानक चार फौजी जवानों ने मुझे चारों तरफ से घेर लिया | मेरे कुछ बोलने से पहले ही उन में से एक जवान ने अपने हाथ में पकड़ी फोटो से मेरा चेहरा मिलाया और कुछ इशारा किया | उसके इशारा करते ही दूसरे जवान ने आगे बढ़ कर मेरे मुँह और हाथ पर पट्टी बाँध दी | वह मुझे करीब-करीब आधा किलोमीटर घसीटते हुए अपनी जीप तक ले गए | मुझे जीप में बिठाते हुए उन्होंने शांत रहने का इशारा किया और जीप तेज़ी से चलाते हुए वहाँ से निकल पड़े | करीब दो घंटे के रास्ते में मैंने कई बार इशारा कर बोलने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया |
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हम जब उस जंगल से बाहर निकल आये तो उन में से एक जवान ने मेरी पट्टियाँ खोलीं और बोला “अब बोलो, तुम क्या कहना चाहते हो |”
“आपकी जो फौजी पोस्ट जंगल में हैं उस पर आतंकवादियो ने हमला कर दिया था | उस हमले में दो जवान शहीद भी हो गये हैं | बस एक औरत फौजी ही बची है | उसने ही मुझे तीन-चार दिन अपने संरक्षण में रखा और खाना-वाना खिलाया |” मेरी बात सुन कर वह सब बहुत देर तक हँसते रहे |
मेरे पूछने पर कि वह सब क्यों हँस रहे हैं तो उन में से एक बोला “यहाँ जंगल में हमारी कोई फौजी पोस्ट नहीं है और तुम्हारी हालत देख कर तो लगता कि तुम तीन-चार दिन से न तो सोये हो और न ही तुमने कुछ खाया है |”
मैंने रास्ते भर उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वह सब हँसते रहे लेकिन बोले कुछ नहीं |
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यह सब बातें सुन देवा से रहा नहीं गया और बीच में ही बोल पड़ा “अरे यार, एक घंटे से पका रही हो यह बताओ कि भूतनी कब आएगी |”
अलका बोली “जैसे तुम लोगों को कुछ समझ नहीं आया वैसे ही हम सब को भी पहले तो कुछ समझ नहीं आया | लेकिन भाई को ठीक करने वाले डॉक्टर ने कहा कि इस घटना के पीछे की छिपी कहानी जानने के लिए हमें वापिस सुंदरबन जाना होगा और वहीँ से हमें पता लगेगा कि असल बात क्या है |”
हम लोग हिम्मत कर वापिस सुंदरबन गये और कई दिन वहाँ रहे | वहाँ लोगों से राज़ पता करने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई सफलता हासिल नहीं हुई | आख़िर एक दिन हमने उस फौजी कैंप में जाकर सच्चाई जानने की कोशिश की तो वहाँ से जो कुछ भी सुनने को मिला, वह सुन कर तो हमारे होश ही उड़ गये थे |
एक जवान ने हमें बताया कि एक फ़ौजी पति को अपनी पत्नी के बदचलन होने पता चला तो उसे पहले तो यकीन ही नहीं हुआ | लेकिन जब उसने इसके बारे में खुद जांच-पड़ताल की तो सच्चाई वह बर्दाश्त नहीं कर पाया | उसने अपने एक दोस्त से मिल कर अपनी पत्नी को सुंदरबन ले जा कर ठिकाने लगाने की सोची | वह तीनो सुन्दरबन तो गये लेकिन वापिस कोई नहीं लौटा |
उन्हें खोजने के लिए पुलिस और फ़ौज की एक मिलीजुली टीम सुन्दरबन के जंगल में गई | उस खोजी दल को दो जवानो की लाशें क्षत-विक्षत हालत में मिलीं लेकिन न तो वह औरत और न ही उसकी लाश मिली |
उस जवान का यह भी कहना था कि उसने एक फौजी औरत के कई किस्से गाँव वालो से सुने हैं | यह सब सुन कर तो लगता है कि शायद वह औरत ही अब भूतनी बन कर लोगों को अपनी हवस का शिकार बना रही है |
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“गौरव, गौरव..... कहाँ हो बेटा ?” बाहर से आती आवाज़ सुन, गौरव, अपने पापा की वह पर्सनल डायरी जो वह इतनी देर से पढ़ रहा था, बंद कर अपने बैग में रखते हुए बोला “अम्मा, मैं यहाँ अप्पा के कमरे में हूँ |”
सोनिया “तुम अप्पा के कमरे में इतनी देर से क्या कर रहे थे ?”
“मैं, पा की अलमारी से अपने सर्टिफिकेट लेने आया था |” कह कर वह जल्दी से वहाँ से निकल जाता है |
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