Hara hua aadmi in Hindi Fiction Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | हारा हुआ आदमी

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हारा हुआ आदमी

जनवरी
आज का दिन बेहद ठंंडा था।पिछले दो दिनो से शीत लहर चल रही थी।आसमान बादलो से ढका हुआ था।आज भी सूर्य देवता के दर्शन नही हुए थे।
कल रात बरसात हुई थी।बरसात की वजह से आज का दिन और ज्यादा ठंडा हो गया था।
टन टन---कालेज का घंटा लगातार बज रहा था।नििशा हििंदी की लेकचरार थी।उसका पहला पीरियड कमरा नम्बर पॉच मे पडता था।उसे बीए प्रथम वर्ष की कलास लेनीी पडती थी।
निशा तीस साल की थी।पर दििखने मे चालीस की लगती थी।उसके सिर के कुछ बालो से सफेदी झलकने लगी थीऔऱ चेहरेे से गंंभीरता।
निशा धीरे धीरे चलकर अपने कलास के पास पहुंची थी।उसे कलास की लडकियाँ बाहर बरामदे मे ही खडी मिल गई।
"मेम टू कोल्ड"रेखा नजाकत से कंधे सिकोडते हुए बोली"ऐसे ठंडे मौसम मे पढाई।ना बाबा"।
रेखा ने अजीब सा मुह बनाकर पास खडी लडकियों को देखा था।
"मैडम आज कलास मत लीजिए"लता, निशा से बोली"इतनी ठंड मे पढऩे का बिल्कुल मन नही है।।"
"यस मैडम"रेखा औऱ लता की बात का समर्थन करते हुए दूसरी लडकियां भी बोली"प्लीज मैडम।आज छुट्टी कर दीजिए"।
"सर्दियां के मौसम मे तो हर दिन ठंडा होता हैं।कया ठंड की वजह से दूसरे काम छोड देती हो?यहां स ज्यादा ठंड यूरोप अमेरिका मे पडती है।बहुत सी जगह पारा शून्य से नीचे चला गया है।सियाचीन मे पारा शून्य से पचास डिग्री नीचे चल रहा है।फिर भी हमारे बहादुर जवान चौबीसों घंटे देश की रक्षा मे तैनात रहते है।"
निशा लडकियों की छुट्टी की मॉग ठुकराते हुए बोली"अंदर चलो।दूसरी कलासे भी तो लग रही है"।
निशा कलास रूम मे आकर कुर्सी पर बैठे गई।
बेचारी लडकियां कया करती?उनका मन पढने का नही था।वे तो कलासरुम मे घुसना ही नही चाहती थी।लेकिन मैडम अंदर आकर बैठ गई थी।इसलिए न चाहते हुए भी उन्हें अंदर आना पडा था।
निशा ने उपस्थिति रजिस्टर खोलकर पहले हाजिरी ली थी।फिर उठकर खडी हो गई।
वास्तव मे आज सर्दी औऱ दिनो की अपेक्षा जयादा थी।ऐसी ठंड मे निशा का मन भी पढाने का नही था।वह स्वयं घर पहुंचकर लिहाफ मे दुबक जाना चाहती थी।पर चाहते हुए भी वह ऐसा नहीं कर सकी।ठंड की वजह से पिछले दो दिन भी उसे छुट्टी करनी पडी थी।इसलिए लगातार तीसरे दिन छुट्टी करना उचित नही लगा।लडकियों का मन पढऩे का नही था,उसका पढाने का।फिर भी उसे कलास लेनी पडी थी।
"आज हम बिहारी के दोहे पढेंगे। वह किताब खोलते हुये बोली।
अचानक पास वाले कमरे से लडकियों के चिल्लाने की आवाजे आयी।जिसमें निशा की आवाज दबकर रह गई।पास वाले कमरे से लडकियां शोर मचाती हुई बाहर निकली।पास की कलास छूटते ही दूसरी कलासे भी छूटने लगी।दूसरी कलासेज की लडकियों को जाती देखकर निशा की कलास की लडकियां भी बोली,"मैडम अब तो सबकी छुट्टी हो गई"।
और निशा को भी छुट्टी करनी पडी थी।
छुट्टी होते ही सब लडकियां अपना अपना बेग उठाकर ऐसे भागी,मानो वर्षो से पिन्जरे मे बंद पंछी मौका मिलते ही फुर्र से उड जाये।
निशा किताबें उठाकर स्टाफ रूम की तरफ चल पडी।
"आओ निशा"निशा को स्टाफ रुम मे प्रवेश करता देखकर मनोरमा, चम्पा से बोली,"पॉच गिलास मे कर लो"।
चम्पा कॉलेज मे पियोन थी।उसका रंग सॉवला औऱ नैननकश साधारण थे, लेकिन वह बनठनकर रहती थी।निशा किताबें टेबल पर रखकर कुर्सी पर बैठ गई थी।