Amar Prem -- 5 in Hindi Love Stories by Vandana Gupta books and stories PDF | अमर प्रेम -- 5

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अमर प्रेम -- 5

अमर प्रेम

प्रेम और विरह का स्वरुप

(5)

जब समीर ने इतना आश्वासन दिलाया तब अर्चना ने हिम्मत करके राख में दबी चिंगारी का समीर को दर्शन कराने की ठान ली और वादा लिया यदि वो नाराज भी होगा तो उसे कह देगा मगर उसे छोड़कर नहीं जाएगा क्योंकि अर्चना के लिए उसके पति और बच्चों का जीवन में क्या महत्त्व है वो कोई नहीं समझ सकता, वो उन्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती और जो खलिश उसे राख किये जा रही है वो बताने पर हो सकता है तूफ़ान की ज़द में सारा घर आ जाए इसलिए बचाने के हर सम्भव उपाय पहले ही करना चाहती थी। अर्चना ने शुरू से लेकर आखिर तक अपने और अजय के रिश्ते के बारे में समीर को बताना शुरू कर दिया, कैसे अजय उसकी ज़िन्दगी में आया, कैसे एक दूसरे के फैन बने और फिर कैसे अजय ने उसे बोध कराया सच्चा प्रेम क्या होता है, बेशक वो प्यार समीर और बच्चों से करती है, वो उसका जीवन हैं, उसके जीने का मकसद हैं मगर एक आत्मिक रिश्ते का क्या महत्त्व होता है उसका अहसास सिर्फ अजय ने कराया और जब उसे ये अहसास हुआ तो उसे लगा जैसे वो समीर से भी दगा कर रही है और अजय को भी धोखा दे रही है, एक अजब सी उहापोह में फंस गयी थी वो दूसरी तरफ अजय की कोई खैर खबर नहीं थी इसलिए खुद को अपराधी महसूस कर रही थी और इसी अपराधबोध ने उसके जीने के सारे समीकरण बिगाड़ दिए और इस हाल में पहुंचा दिया।

“समीर यदि तुम्हें लगता है या तुम्हें मुझ पर विश्वास न हो तो बता देना मगर मैं तन और मन से सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ही हूँ, अजय से जो रिश्ता है वो आत्मिक है, जहाँ वासना का कोई स्थान नहीं है, वहाँ सिर्फ भावनाएं भ्रमण करती हैं, वहाँ सिर्फ कोमल अहसासों की जुगलबंदी है कि कोई है ऐसा जो आपको आपसे ज्यादा जानता है, कोई है ऐसा जो बिना कहे सब सुनता है, जो तुम्हारा शुभचिंतक है, तुम्हारा हितैषी है और देखो ये सब सिर्फ आत्मिक स्तर पर ही है क्योंकि देखो कभी कभी होता है हम किन्ही भावों में विचरण करते हैं तो उन भावों में कहीं अटक जाते हैं और आगे राह दिखायी नहीं देती तब तुम जैसा ही कोई हाथ पकड़ वहाँ से आगे की राह दिखा सकता है और समीर इस कार्य में अजय निपुण है क्योंकि हम दोनों का भावनात्मक स्तर समान है, जो गूढ़ता, गहराई किसी चित्र में छुपी होती है उसे या तो चित्रकार ही समझ सकता है या उसका सबसे बड़ा प्रशंसक या वो जो उस स्तर तक खुद को उसमे ले गया हो और अजय और मेरा सिर्फ इतना सा ही रिश्ता है जिसमे शरीर मायने ही नहीं रखता, अगर मायने कुछ रखता है तो हमारी भावनाएं, संवेदनाए और सोच का समान स्तर।“

“क्या ऐसा करना गुनाह है ? क्या इस हद तक जाने से मर्यादाएं भंग होती हैं ? क्या इससे तुम्हारे और मेरे जीवन में कोई फर्क आ सकता है ? क्या इससे हमारा रिश्ता अटूट नहीं रहेगा ? दो किनारे बस साथ साथ बहना चाहते हैं बस भावनाओं के पुल पर, क्या इतनी चाहना हमारे जीवन को, हमारे विश्वास के पुल को धराशायी कर सकती है समीर ?”

“ अब तुम पर है समीर तुम इस रिश्ते को किस दृष्टि से देखते हो क्योंकि आज मैंने तुम्हें सब सच बता दिया और काफी हद तक आज खुद को हल्का महसूस कर रही हूँ क्योंकि कहीं न कहीं घुटन की एक चादर ने मुझे लपेट रखा था जिससे मैं बाहर तो आना चाहती थी मगर आने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था” ,कह अर्चना चुप हो गयी और समीर की तरफ देखने लगी।

उधर समीर के सामने तो जैसे एक के बाद एक तूफ़ान आकर गुज़र रहे थे, बिलकुल किंकर्तव्य विमूढ़ सा हो गया था, सुन्न हो गयी थी उसकी चेतना, आखिर ये कौन सा राज फाश कर दिया अर्चना ने जो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था वो हो गया था, न वो कुछ कहने की स्थिति में था ना ही चुप रहने की, एक अजब सी स्थिति हो गयी और कमरे का सन्नाटा भी आपस में गुफ्तगू करने से कतराने लगा तब अर्चना ने हिम्मत करके समीर को पकड़ कर हिलाया और कहा, “

“ समीर, मैं इसी वजह से कुछ नहीं बता पा रही थी क्योंकि जानती हूँ कोई भी इंसान हो इतना बड़ा सच गले से नीचे नहीं उतार सकता, आखिर तुम भगवान नहीं एक इंसान ही हो कैसे खुद को अलग रख सकते हो इस सत्य से कि उसकी पत्नी का कहीं भावनात्मक लगाव हो किसी और से और वो उसे स्वीकार भी ले मगर समीर ये भी एक कड़वा सत्य है कि ऐसा है और अब हम इसे बदल नहीं सकते सिवाय स्वीकारने के या जो तुम्हें उचित लगे वो कहो मगर चुप मत रहो तुम्हारी चुप्पी मुझे और आहत कर रही है। शायद तुम्हारी जगह मैं भी होती तो मेरा भी यही हाल होता ये मैं जानती हूँ मगर मजबूर हूँ तुम्हें किसी भी कीमत पर खो नहीं सकती तुम बच्चे मेरी ज़िन्दगी हो तो दूसरी तरफ़ अजय मेरी ज़िन्दगी का मसीहा, मैं खुद दो नावों की सवारी कर रही हूँ और कर रही थी तभी तो मेरी ये दशा हुयी, शायद तुम मेरी स्थिति समझ सको बस यही कह सकती हूँ ।बेशक तुम्हारी अपराधिनी हूँ इसलिये तुम्हारी हर सज़ा मुझे मंज़ूर होगी।“

समीर पर तो मानो वज्रपात ही हुआ था और उबरने के लिए उसे कुछ वक्त तो चाहिए ही था ये अर्चना जानती थी इसलिए कुछ देर के लिए समीर को अकेला छोड़ कर किचन में चली गयी थी। इधर समीर को तो मानो काटो तो खून नहीं वाला हाल हो गया था, वो विश्वास नहीं कर पा रहा था जो उसने कानो से सुना वो सत्य है मगर सत्य तो सत्य ही रहता है उसका रूप कब बदला है बेशक कितना ही कड़वा हो और उसे ये स्वीकारना ही होगा कि अर्चना का एक हिस्सा उससे कट गया है फिर चाहे मन का एक कोना ही क्यों न हो मगर इसे भी स्वीकारना आसान नहीं था तो दूसरी तरफ ना स्वीकारने पर अर्चना को खो भी नहीं सकता था, दोनों तरफ खुद को ही हारता देख रहा था समीर।

समीर की बुद्धि, दिल, दिमाग सब सुन्न पड गये थे मगर इस स्थिति में कब तक रह सकता था इसलिये जरूरी था खुद को उससे बाहर निकालना मगर जैसे चोट बार बार उसके दिमाग पर लग रही थी और दर्द दिल में उठ रहा था, सोच के झंझावात झंझोडे दे रहे थे उसकी तर्क शक्ति को तभी अचानक एक बरसों पुरानी बात याद आ गयी और उसने सोचा भी नहीं था कि ज़िन्दगी में कभी उसके साथ ऐसा भी हो सकता है ।

बात उन दिनों की है जब वो, विनीत और राकेश होस्टल में रहा करते थे तब एक दिन अचानक स्त्री पुरुष संबंधों पर एक डिबेट का कार्यक्रम था और उसमें समीर के दोस्त राकेश ने भाग लेना था और राकेश ठहरा अफ़लातूनी किस्म का इंसान, वो सोचता था वहाँ से जहाँ सोच आकर रुक जाती थी, जिसके आगे दुनिया ही खत्म हुयी दिखती थी वहाँ से उसकी दुनिया जन्म लिया करती थी और डिबेट तैयार करने में वो समीर और विनीत के साथ बहस विमर्श करता रहता था ताकि उसकी डिबेट में कोई कमी न रहे और इसी संदर्भ में अचानक उसने एक ऐसा प्रश्न विनीत की तरफ़ उछाला जो आज तक किसी ने किसी को नहीं पूछा होगा और न ही ऐसा करने की सोची होगी और समीर मूकदर्शक बन सुनता रहा जब राकेश बोला:

आज एक सोच ने जन्म लिया है यार, पता नहीं तू या दुनिया उसे कैसे ले मगर सोचता हूँ कि काश ऐसा हो सके तो आधे से ज्यादा परिवार सुख शांति का जीवन बसर कर सकें........कहते कहते राकेश सोच में डूब गया.

अरे ऐसी कौन सी सोच ने तुझे जादू की पुडिया थमा दी कि तू दुनिया की मुश्किलात का हल ढूँढने लगा...........बोल ना राकेश..........अबे साइंटिस्ट कहाँ खो गया, अब कुछ बोल भी, कहते हुए विनीत राकेश को देखने लगा.

हलकी सी मुस्कान बिखेरता हुआ, आँखों में गहराई लिए राकेश बोला,देख विनीत, आधे से ज्यादा रिश्ते आपस में आई दूरी की वजह से टूट जाते हैं खास तौर से पति पत्नी का रिश्ता.......दोनों एक उम्र तक तो एक दूसरे को झेल लेते हैं मगर उसके बाद जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तब दोनों में एक ठंडापन सा आने लगता है, एक दूसरे से कटने लगते हैं, छोटी छोटी बातें इतना उग्र रूप धारण कर लेती हैं कि परिवार बिखर जाते हैं मगर कोई भी उस मोड़ पर अपनी हार स्वीकार नहीं करना चाहता.इसे ज़िन्दगी का अहम् बना लेता है और अपने अहम् से कोई नीचे नहीं आना चाहता, एक पल के लिए रुकते हुए राकेश बोला,"ऐसे में अगर कुछ ऐसा हो जाये जिससे ज़िन्दगी में नयी ऊर्जा का संचार हो जाए तो क्या वो रिश्ते जो इतने सालों से एक दूसरे से बंधे थे, टूटने से बच ना जाएँ.

इतना सुनकर विनीत बोला," बात तो सही है मगर महाराज ये भी बताइए कि कैसे होगा ये सब ? कौन सा जादू का मंतर फेर कर रिश्तों को टूटने से बचाया जा सकता है."

“देख, आज कल ज्यादातर रिश्ते किसी दूसरे के ज़िन्दगी में आने से टूटते हैं, ये तो मानता है ना तू.ज्यादातर मामले ये ही होते हैं. अनैतिक सम्बन्ध भी ज्यादातर एक उम्र के बाद ही पनपते हैं जब रिश्तों में बासीपन महसूस होने लगता है या दोनों अपनी ही दुनिया में मस्त होजाते हैं और दूसरे से अपेक्षा रखते हैं कि वो उन्हें अब तक नहीं समझा तो ऐसे रिश्ते का बोझ क्या ढोना ?तब इंसान दूसरी तरफ, जहाँ उसकी सोच और उसे समझने वाला कोई मिलता है तो उसकी तरफ उसका रुझान बढ़ने लगता है और कब ऐसे रिश्ते मर्यादा की सीमाएं पार कर लेते हैं और फिर अच्छा भला घर कब टूट जाता है, पता भी नहीं चलता. मगर अपने जीवन साथी से कोई कुछ नहीं कहता कि एक दूसरे से वो क्या चाहते हैं और शायद दोनों में से कोई एक दूसरे से इतने वर्ष साथ रहने के बाद कहने की इच्छा भी नहीं रखता ये सोचकर कि जो अब तक नहीं समझा वो अब कहने पर क्या समझेगा ? और बस आपस में दूरियां बढ़ने लगती हैं और फिर धीरे धीरे जब किसी का जीवन में प्रवेश होता है तो वो उसे अपना सा लगने लगता है...........और यहीं घर परिवार टूटने लगता है.”

“ हाँ, आजकल तो यही देखने में ज्यादा आ रहा है वरना तो ज़िन्दगी कभी हँसते तो कभी रोते सभी गुजार ही लेते हैं मगर किसी दूसरे का दखल अपनी शादी शुदा ज़िन्दगी में कोई नहीं चाहता.”

“ तो फिर सोच अगर ये दखल एक सकारात्मक रूप ले ले तो ?”

“ अरे वो कैसे?” चौंकता हुआ विनीत बोला.

*****