Darinde ki wapsi in Hindi Horror Stories by सोनू समाधिया रसिक books and stories PDF | दरिंदे की वापसी - A Horror mystery

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दरिंदे की वापसी - A Horror mystery

👹दरिंदे की वापसी 👹
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A_horror_mystery

⚔️लेखक :- सोनू समाधिया रसिक 🇮🇳


रमण मिश्रा एक सेवानिवृत्त शासकीय प्रोफेसर थे। अरबों सम्पत्तियों के मालिक रमण मिश्रा कुछ दिनों पहले हुए एक दुखद कार दुर्घटना में अपनी पत्नी और एकलौते बेटे को खो दिया। मिश्रा जी को भी बहुत चोटें आईं थी मगर वो सही सलामत बच गये थे।
मिश्रा जी के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। ऎसी परिस्थिति में उनके छोटे भाई सुरेश और उसके बच्चों ने उसका साथ दिया।
अपने बेटेऔर पत्नी की मौत से मिश्रा जी को गहरा सदमा पहुंचा। दुख से उनका नाता इतनी तल्लीनता से जुड़ गया कि अब उनको संसार से मोह न रहा।
सारा दिन तन्हा अपने कमरे में टंगी अपनी पत्नी और बेटे की तस्वीर को निहारते हुए आंसू बहाते रहते।
वो खुद को कोसते रहते कि काश उसी दुर्घटना में उनकी भी मौत हो जाती। लेकिन ईश्वर उन्हें न जाने किस गुनाह की सजा दे रहा है। अगर मेरा बेटा होता तो क्या वो इस बूढ़े की आँखों में आँसू देख पाता? बिल्कुल नहीं।
परछाइ की तरह हमेशा साथ रहने वाली उनकी पत्नी की नमौजूदगी और अकेलापन उन्हें काटने को दौड़ता। उनके बिरह की पीड़ा के सामने उनके चोटों की पीड़ा नगण्य थी।
उनको समय से पहले खाना मिलने की जगह अब दो वक़्त का खाना भी समय पर नहीं मिलता था।
छोटे भाई के लड़के और पत्नी सब अपने कामों में व्यस्त रहते थे।
मिश्रा जी ने स्वस्थ होने के बाद अपने छोटे भाई से अपने वसीहत के बारे में बात की।
उन्होने अपनी सारी संपत्ति अपने छोटे भाई के नाम में करने और १० करोड़ रुपए अनाथालय ट्रस्ट को दान करने का फैसला किया जो सारी संपत्ति का ४० प्रतिशत था।
ये फैसला रमण मिश्रा के छोटे भाई और उसकी फैमिली को रास नहीं आया।
रमण जी का छोटा भाई स्वभाव से कपटी और धूर्त था। उसी की तरह उसकी संताने अय्यास और आवारा थी।

अगले दिन सुबह.........

"सुरेश!" - रमण मिश्रा ने तैयार होते हुए आवाज लगाई।

"हाँ! भाई साहब!"

"सूरज को बोल दो। मुझे प्लैटफॉर्म तक छोड़ आए।"

"क्या हुआ भाई साहब। कहाँ जा रहे हो?" - सुरेश ने हैरान होते हुए पूछा।

"ट्रस्ट से फ़ोन आया है। वहाँ जाना है दान देने के लिए।"

"जी भैया! अभी बोल देता हूँ।"

सुरेश, रमण मिश्रा जी को घूरता हुआ। वहां से चला गया। वो हर हाल में नहीं चाहता था कि वो पैसे ट्रस्ट को दान किए जाएँ।

कुछ देर बाद सूरज कार लेकर मिश्रा के कमरे के सामने पहुंच गया। मिश्रा जी कार में बैठ कर प्लैटफॉर्म की ओर निकल गए।
वहाँ खड़ी सुरेश की पत्नी सुरेश के पास पहुंच गई।

"अब क्या होगा जी! ये जेठ जी बिल्कुल सठिया गयें हैं। उन्हें इतनी रकम दान देने की क्या जरूरत थी। आप भी तो उनके सगे भाई हो। हमें ही दे देते। कितने दिनों से पड़े पड़े खाना खिला रहें हैं। कोई और खिला देगा क्या मुफत में।"

"शांत भी हो जाओ सूरज की माँ। हमने सब प्लान कर लिया है। अब देखना जायदाद भी अपनी और सारी रकम अपनी और साथ ही अपने रास्ते का काँटा भी साफ़।"-सुरेश ने अपनी पत्नी की ओर मुस्कुराते हुए कहा।

सुरेश ने अपने कमरे में जाकर अपनी जेब से मोबाइल निकाला और कोई नंबर मिलाया।

" हैलो! सुरेश बोल रहा हूँ। पैसों के साथ मेरा भाई भी है। पहले तो बच गया था लेकिन अब नहीं बचना चाहिए उसे भी उसके बेटे और पत्नी के पास पहुंचा दो। इस बार तुमको १० लाख रुपये की जगह २० लाख रुपये दूँगा।"

कुछ घंटों के बाद.....

सूरज कार को पार्क करके सुरेश के पास जाकर बोला-" आपने उस बुड्ढे को क्यूँ जाने दिया। क्या हम उनके कोई नहीं हैं? क्या हम भूखे मरेंगे।"

" ठण्डी रख बेटा! काहे इतने उतावले हो रहे हो। आपके बापू ने सारा इंतजाम कर दिया है। उस रमण बाबू को ठिकाने लगाने के लिए।बस कल सुबह का इंतजार कर।" - सुरेश ने सूरज को समझाया।

रमण मिश्रा ट्रेन की जिस आरक्षित बोगी में बैठे थे उसमें उनके अलावा कोई और नहीं था। रात के २ बज चुके थे। मिश्रा की वृद्ध आँखों से नींद कोसों दूर थी। वो गुमसुम खिड़की से बाहर का नजारा देख रहे थे। जो उनके अकेलेपन का साथ दे रहे थे।
ट्रेन सुनसान, ख़ामोश रात के अंधेरे में पहाड़ों और जंगलों से शोर मचाती हुई तेज़ गति से गुजर रही थी। खिड़की से आती तेज़ हवाएँ मिश्रा के आँसुओं को सुखा रही थी। मिश्रा को अब हवाओं में अपने बेटे की मौजूदगी का आभास हो रहा था क्योंकि वही उनके आँसुओं को उनके बेटे की तरह पोंछ और सर को सहला रहीं थी।

मिश्रा को ट्रेन की खिड़की से एक रहस्यमयी और विस्मयकारी नजारा दिखा। उन्हे बाहर अंधेरे में ट्रेन के ट्रैक पर किसी सूट बूट पहने हुए इंसान की परछाई दिख रही थी। जो ट्रेन की गति से उसके साथ दौड़ रही थी। वह परछाई मिश्रा की बोगी के गेट के पास दिखाई दे रही थी।
मिश्रा के लिए यह असंभव और सोच से परे था। उन्होनें इसे अपना भ्रम समझा और इसका कारण अपने विषाद और तनाव को समझा। लेकिन ये गतिविधि कुछ सेकंड की न होकर कई मिनिटों तक जारी रही।
अब मिश्रा के जहन में खौफ की लहर दौड़ गई। उनके शरीर में सिहरन दौड़ गई और उनके रौंगटे खड़े हो गए थे।
तभी ट्रेन टनल में दाखिल हो गई ट्रेन की तेज़ आवाज की टनल की प्रतिध्वनि की वजह से बहुत शोर उत्पन्न कर रही थी।
रमण मिश्रा का दिल जोरों से धड़क रहा था।
तभी बोगी के ऊपर किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ आई। जैसे कोई बोगी के ऊपर गिरा या फिर कूदा हो। मिश्रा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
उसी वक़्त बोगी के गेट के टूटने की आवाज आई। मिश्रा ने घबरा कर गेट की ओर देखा तो सन्न रह गए। वहां कोई काला सूट बूट पहने कोई अजनबी व्यक्ति आहिस्ता आहिस्ता बिना बोले उनकी ओर आ रहा है।
ऎसा खौफनाक मंजर देखकर मिश्रा के पसीने छूट गए। उनको समझते हुए देर नहीं लगी कि ये कोई लुटेरा है जो उनके पैसे लूटने आया है। मिश्रा ने अपने ब्रीफकेस की ओर देखा और उसे उठाकर अपनी गोद में छिपा लिया।

"कौन हो तुम और क्या चाहते हो? तुम चाहे जो भी हो। मैं तुमको अपने ब्रीफकेस नहीं दूंगा।"
मिश्रा ने हिम्मत से जबाब दिया और खुद को बोगी के एक कोने में सटा लिया। लेकिन वह शख्स बिना किसी झिझक के उनकी ओर बढ़ता जा रहा था। जैसे उसने कुछ सुना ही न हो।

उसी पल तीन नकाबपोश हथियारों से लैस उस बोगी में दाखिल होते हैं। जो लुटेरे थे।

" दोनों अपने हाथ ऊपर कर लो और अगर जान प्यारी है तो, तुम्हारे पास जो भी है। उसे मुझे सौंप दो।" - तीनों ने अपनी बंदूकें मिश्रा और उस अजनबी व्यक्ति की ओर तान लीं।

एक लुटेरे ने मिश्रा के सर पर जोरदार प्रहार किया और उनका ब्रीफकेस छीन लिया। मिश्रा बेहोश होकर वही गिर पड़े। मगर वो अजनबी व्यक्ति को बुत बना खड़ा देखकर अचंभित रह गए। तभी एक लुटेरे ने उसके पास जाकर एक मुक्का मारा जिससे वह व्यक्ति घुटनों के बल बैठ गया।

तभी उस व्यक्ति के सांसें तेज़ हो गई और देखते ही देखते उसकी साँसें एक जंगली जानवर की भयानक आवाजों में तब्दील होने लगी।

ऎसे डरावने दृश्य को देख कर तीनों लुटेरों ने उस व्यक्ति पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी।
मगर ये सब उस व्यक्ति पर बेअसर थी वो कोई इंसान नहीं बल्कि एक खौफनाक चेहरे वाला खून का प्यासा दरिंदा था।
कुछ सेकंड के तक गोलीबारी करने के लिए बाद एक लुटेरे ने उस दरिंदे के पीठ पर चाकू से हमला किया लेकिन वो हमला भी बेअसर रहा। तभी वह दरिंदा अचानक मुड़ा और एक भयानक आवाज निकालते हुए अपने खूनी पंजों से लुटेरे की गर्दन पकड़ कर उसे हवा में उठा लेता है। कुछ देर तक तड़पने के बाद वह लुटेरा हमेशा के लिए शांत हो गया उसकी गर्दन से दरिंदे के खूनी नाखूनों के घुसने की वजह से ढेर सारा खून नीचे जमा हो चुका था।
उस दरिंदे ने उस लुटेरे को दूर फेंक दिया और घुटनों के बल बैठ कर खून को बेहताशा चाटने लगा। जैसे कोई जानवर कई दिनों से प्यासा हो।

तभी दूसरे ने उस पर फिर से फायर करना चालू कर दिया। दरिंदे ने उसे भी धक्का दिया जिससे वह दूर जा गिरा। दरिंदे ने उसे भी अपना शिकार बना लिया और उसकी चीड़ फाड़ कर के उसका भी खून पी लिया।
तभी मिश्रा को होश आ गया वो उस हैवान को समझ नहीं पा रहे थे कि वो शैतान है या फिर रक्षक।

तीसरा लुटेरा गेट की ओट में छिपा हुआ डर से कांप रहा था। दरिंदे ने गुर्राते हुए चारों ओर देखा और उसने अपनी साँसों को तेज़ करते हुए उस लुटेरे की गंध सूंघने लगा। उसका चेहरा खून से सना हुआ था उसके चेहरे से घृणित और दुर्गंध युक्त द्रव टपक रहा था।

जैसे ही वह गेट के पास पहुंचा तो लुटेरे ने उसके चेहरे पर चाकू से वार किया। चाकू उसकी आँख में घुस चुका था। लेकिन उस दरिंदे को उससे कोई असर नहीं पड़ा। उसने चाकू निकाल कर फेंक दिया और गुस्से से लुटेरे को पकड़ लिया।
उसने लुटेरे की गर्दन को अपने नुकीले दाँतों से फाड़ कर सारा खून चूस लिया और मृत लुटेरे को ट्रेन से बाहर फेंक दिया।

"कौन हो तुम?" - मिश्रा ने कपकपाती आवाज में पूछा।

उस दरिंदे ने मिश्रा की ओर देखा और गुर्राते हुए उनकी ओर बढ़ा और मिश्रा के पास जाकर एक छलाँग दी मिश्रा की खौफ के मारे आँखे बंद हो गईं थीं। मिश्रा के कानों में काँच टूटने की आवाज आई तो उन्होंने अपनी आँखें खोलकर देखा तो कोई भी नहीं था वहाँ। वो हैवान एमरजेंसी खिड़की से बाहर जा चुका था।

आख़िरकार 'वो कौन था?' शख्स जिसने उनकी जान बचाई ये सवाल मिश्रा के दिमाग में घूमने लगा था।

अगली सुबह...........

रमण मिश्रा को महसूस हुआ कि कोई उनके सर पर हाथ फेर रहा है। उन्होने आँखे खोल कर देखा कि वो अपने कमरे में बेड पर है और उनका बेटा सरस उनका सिर सहला रहा है। ये देख रमण मिश्रा तुरंत उठकर बैठ गए और सरस को गले से लगा कर रोने लगे।

"बेटा कहाँ थे इतने दिनों से अपने पापा से दूर कितना रोया मैं तुम्हारी और तुम्हारी माँ की याद में। सबने मुझे अकेला कर दिया था। सब बोलते हैं कि तू मर गया था उस एक्सिडेंट में।"

रमण मिश्रा को इतनी खुशी हुई कि उन्होंने सरस पर सवालों की झड़ी लगा दी।

"पिता जी सुनिए न। मैं अब आपका बेटा सरस नहीं रहा। सब लोग सही कहते हैं कि मैं मर चुका हूँ। मैं सिर्फ आपके लिए यहां आया हूं। मैं कोई इंसान नहीं सिर्फ सरस की परछाई एक प्रेत हूँ।"

" ये क्या कह रहे हो मेरे बेटे।"

"हां! पिता जी ये सच है और मैं आपको सच बताने आया हूँ। मुझे किसने मारा है। "

" क्या? किसी ने नहीं मारा तुझे। तू तो उस दिन कार एक्सिडेंट में मर गया था और तेरी माँ भी। "


" नहीं। मैं भी बच गया था उस दिन। मुझे याद है जब मैं सड़क पर पड़ा लहूलुहान तड़प रहा था तो सुरेश चाचा ने मुझे बचाने की जगह मुझे मरने के लिए छोड़ दिया था।"

तभी कमरे का गेट खुलता है और सुरेश अपनी पत्नी और बेटे के साथ रमण के पास आया।

" भैया! ये लीजिए। जायदाद के कागजात हैं। इनपे आप हस्ताक्षर कर दीजिए और हम सबको अपना आशीर्वाद देकर सेवा करने का मौका दीजिए।"-सुरेश ने जायदाद के कागजात और पेन रमण की ओर बढ़ाते हुए कहा।

"सुरेश! मुझे इतना बेवकूफ़ मत समझ। मैंने तुझे अपना छोटा भाई समझा सब कुछ तेरे नाम कर दिया और तूने मेरा बेटा मुझसे छीन लिया। हत्यारे, नालायक तुझे एक कौड़ी भी नहीं दूंगा अपनी जायदाद की। चला जा मेरी आँखों के सामने से।"
इतना कहकर रमण मिश्रा ने सारे कागजात फाड़ दिए। ये देख सुरेश और सूरज आग बबूला हो गए। तभी गुस्से में आकर सुरेश ने पिस्टल निकाली और रमण के सर पर तान ली।

" मुझे पता था कि तू मुझे जिंदा रहते हुए कुछ भी नहीं देगा। इसलिए तुझे हर वक़्त मारने का प्लान बनाया लेकिन सब फैल। तेरी कार का एक्सिडेंट, ट्रेन में तुझपे हमला। लेकिन तेरी फूटी किस्मत देखो मेरे हांथों मरना लिखा है।तेरी किस्मत में।
आज कौन बचायेगा तुझे मेरे हांथों से हां।"

रमण को अपने भाई से ऎसे वर्ताव की बिल्कुल अपेक्षा नहीं थी। सामने सुरेश की पत्नी और सूरज, सुरेश की बातों पर हंस रहे थे।

" पापाजी मार डालो इस बुड्ढे को। ख़त्म कर दो इसका खेल। इसके मरने के बाद सब कुछ हमारा होगा।"

तभी धमाके के साथ सुरेश के पिस्टल से गोली निकली मगर रमण को गोली नहीं लगी रमण ने अपनी आंखे खोलकर सामने देखा कि बुलेट सरस के हांथों में थी।

और तभी प्रकट हुआ एक खूंखार बहसी दरिंदा। सारा कमरा एक भयंकर जंगली जानवर की आवाज से गूंज उठा दरिंदे को दहाड़ से सुरेश के हाथों से पिस्टल छूट गई और सब जान बचाने के लिए गेट की ओर दौड़े। मगर तब तक कमरे का गेट अपने आप बंद हो गए।

कुछ क्षण के लिए कमरा भयानक और दहशत भरी चीखों से गूंजता रहा और फिर सब शांत हो गया।
कमरे में चारों तरफ खून और मांस के टुकड़े बिखरे हुए पड़े थे।
रमण निश्तब्ध हो बेड से इस खूनी खेल को देख रहे थे। इस खूनी कृत्य और उस प्रतिशोध की ज्वाला में तप्त उस उग्र दरिंदे को रोकना उनके बस की बात नही थी।

वह दरिंदा अभी तक सुरेश की क्षितविक्षत लाश से खून चूस रहा था।

ये कोई और नहीं खुद रमण का अपना बेटा सरस था। जो कुछ समय पहले उनके लिए पहेली और खौफ का सबब बना हुआ था।

तभी वह दरिंदा रमण के पास आया। वह अब सरस के रूप में था। उसने खून में सने हुए अपने हांथों को चाटते हुए रमण के बिल्कुल करीब जाते हुए कहा - "अब आप अपने और अपनी जायदाद के लिए एक अच्छा वारिस ढूंढीये।"


"हाँ! मेरे बेटे।"

२ दिन बाद रमण अनाथालय से एक लड़के पारस को गोद ले लिया उसने एक सड़क दुर्घटना में अपने माता पिता को खो दिया था।

पारस, रमण की बुढ़ापे में अच्छे से देखभाल कर रहा था। उसके इस काम को देखकर सरस कहीं दूर बैठा मुस्कुरा रहा था।

✝️समाप्त ✝️



जय श्री राधे कृष्णा 🚩 🌻