विनय कुमार सिंघल की कवितायेँ याने हंसती है मेरी कवितायेँ एक माँ की तरह
यशवंत कोठारी
हिंदी अंग्रेजी,गणित ,ज्योतिष,पत्रकारिता, वकालत आदि विषयों के ज्ञाता विनय कुमार सिंघल जी से फेस बुक पर मित्रता हुईं ,फिर फोन पर चर्चा ,फिर विचारो का आदान प्रदान और एक दिन उन्होंने अपने सुपुत्र के हाथो अपने ताज़ा कविता संकलन भेजे.इन कविताओं से गुजरना एक देविक अनुभव रहा.वे साहित्य से इतर क्षेत्र में काम करते हैं,मगर उनको कविता की गहरी समझ है.इन कविताओं में कला ,पर्यावरण है,पोराणिक कथाओं पर विचार है.गजलों में भी कवि ने नयी जमीन तोड़ी है.
कवि का प्रथम संकलन निशिता की दीप्ती है .इस में कवि की छोटी बड़ी ४८ कवितायेँ है.कवि ने मन की बात भी कहीं है.चन्द्र प्रभा सूद की समीक्षा भी है.कवि अपनी एक कविता में मोक्ष की बात कहता है जो कवि-मन के अध्यात्म को बता ता है.राजनीति में मानव मूल्यों की भी चर्चा कवि करता है. इस संकलन की कविता-मानव और राज निति है.कवि हमेशा ही उद्विग्न रहता है , निरंतर बढती बैचेनी में कवि कहता है-
राग- द्वेष में आकंठ डूबा हुआ मैं
निरंतर शांति खोज रहा हूँ .
कवि ने बार बार कृष्ण ,व महाभारत के पात्रों को उठाया है जो कवि की बैचेनी को दिखा ता है,युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है यह बात भी कवि कहता है.युद्ध के बाद भी संधि ही होतीहै. संधि से शांति मिलती है तो फिर युद्ध क्यों?कवि बार बार प्रकृति की और जाता है,प्रकृति उसे बुलाती है ,वो नत मस्तक होकर आनद लेता है ,प्रभु की आवाज़ सुनता है ,यहीं अलोकिक सौन्दर्य है.यही मानवता की पहचान है.
कवि कृष्ण पर कई बार लिखता है यह अलोकिक प्रेम है जो कवि दर्शाता है.कवि दीपावली के दीपों के द्वारा अँधेरे को दूर करने का प्रयास करता है.तमसो माँ ज्योतिर्गमय का उदघोष कवि करता है.
कवि ने ५० वर्षों तक साधना की है व इस के निचोड़ स्वरुप कुछ कविता संकलन आये है.लेखक ने जीवन में कई तरह से संघर्ष किया है जो बार बार उनकी कविताओं में नज़र आता है.
उनका दूसरा संकलन परिभाषित द्वन्द है जिसमे में कवि शिव स्तुति से पाठ शुरू करता है ,शिव कलाओं के अधिष्ठाता है ,वे सबका कल्याण करते हैं,आगे कवि सरस्वती वंदना करता है.अपने अकेलेपन की चर्चा करता है.वह पतझड़ के प्रति भाव व्यक्त करता है.
एक गजल में कवि कहता है –
हमको अपने देश में,अजीब मंजर मिले .
वास्तव में ये मंजर हम सब देखते हैं मगर वाणी देने का काम केवल कवि करता है.
शिखंडी पर लिखी कविता में कवि कहता है-
कलियुग में शिखंडी ही शिखंडी होंगे,
वास्तव में आज यहीं हालत है हर व्यक्ति कही न कहीं शिखंडी है.
कवि फिर कहता है –
मुझे सदा सुधापयी
अपनों ने डसा है.
सच में आज हर व्यक्ति अपनों के जहर से मारा जा रहा है.
कवि ने प्रकृति पर भी अपनी कलम चलाई है.कवि प्रजातंत्र ,ग्रामीण जीवन, व मौन को भी अभिव्यक्ति देता है.
पेशे से वकील मन से कवि सिंघल का तीसरा काव्य संकलन मुखरित संवेदनाएं है.इस की कवितायेँ कवि को अपने जीवन लोक की चिंता से रूबरू करती है.यहाँ भी कवि शिव आरधना से शुरू होता है.मृत्यु पर भी कवि मुखर है ,क्योकि मृत्यु शांत,व् अपरिहार्य है.
क्षुधा और आहार में कवि कहता है-हमलोग भूख बोते है
और उसी भूख को काटते है.कवि यहाँ पर दार्शनिक हो जाता है.जीवन व संसार की नश्वरता कवि मन को मुखर करती है.कवि ने निर्वाण के रूप में व्यंग्य रचना भी लिखी है.मूक प्रकृति में कवि प्रकृति की वाचालता को संबोधित करता है.कवि का मन अशांत है,यह बिंदु कविता में बार बार उभर कर आता है.कवि अपनी सौन्दर्य जिज्ञासा को बनाये रखता है.वह बार बार प्रकृति,प्रेम,जीवन और मानवता की बात कहता है.फाख्ता नामक कविता में बिंब के सहारे कवि ऋतु गान की बात करता है जो,पाठक को बांधे रखती है.कौवों का कलरव भी कवि को आकर्षित करता है.कवि भूख की निष्ठुरता की चर्चा करना भी नहिं भुलता .
नारी नामक कविता में इस अबूझ पहेली पर कवि ने कलम चलाई है ,कवि कहता है-
सब कुछ है और कुछ भी नहीं यही रहस्यवाद कवि को गंभीर और दर्शन वादी बनाता है.नारी पर ही एक अन्य कविता अभिशप्त नारी है जो संकलन की अच्छी कविताओं में शामिल है.
मेरी कविता शीर्षक से कवि कहता है-
हंसती है मेरी कविता
........एक माँ और दोस्त की तरह.
कवि धर्म अध्यात्म ,दर्शन रहस्य ,प्रकृति,पर्यावरण पौराणिक कथा ,मानव मूल्य ,आदि सभी की चर्चा करता है,वर्षों उन्होंने छात्रों को पढाया है ,मार्गदर्शन किया है,जीवन को करीब से देखा व समझा है इसी कारन कवि की ये कविताये,मन को ख़ुशी,आनंद व् प्रेम का सन्देश देती है.कवि के हिंदी अंग्रेजी व् उर्दू के कुल १७ संकलन पाईप लाईन में है जो कवि की यात्रा के अगले पड़ाव होंगे.सिंघल जी ने कई पत्रिकाओं व् पुस्तकों का संपादन भी किया है.इस सा रे अनुभव से वे समाज व पाठक को लाभान्वित करना चाहते हैं ,वे इन कविताओं के माध्यम से सफल भी हुए हैं ,मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ .हाँ एक बात उनको गद्ध लिखना चाहिए क्योकि कवि की असली पहचान तो गध् य लेखन ही है. इन काव्य संकलनों को अ यन प्रकाशन कानपुर ने छापा है.प्रोडक्शन व् गेटअप अच्छा है.कवर नयनाभिराम है,.कवि को बधाई व् शुभकामनायें
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यशवंत कोठारी ,८६,लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बाहर ,जयपुर-३०२००२
मो९४१४४६१२०७