Vo Karvat Fer kar so Gayi in Hindi Moral Stories by Vijay Vibhor books and stories PDF | वो करवट फेर कर सो गयी

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वो करवट फेर कर सो गयी

राकेश और सरस्वती का विवाह बहुत कम उम्र में हो गया था । सच में तो कानून की दृष्टि से उनके विवाह की उम्र पूरी होने से कुछ पहले ही । दूसरा सच ये भी था कि शिक्षा प्राप्ति की जिस उम्र में लड़के–लड़कियाँ पढ़ाई की तरफ कम और विपरीत लिंग की तरफ ज्यादा ध्यान देने लगते हैं, जिसके कारण अकसर लड़कों के या तो नम्बर कम आते हैं या फिर वे फेल ही हो जाते हैं । उस उम्र में ही राकेश के माता–पिता ने राकेश की शादी सरस्वती से कर दी, ताकि राकेश का ध्यान बाहर आवारागर्दी और लड़कियों में न लग कर पढ़ाई में, अपनी पत्नी में ही लग जाए । माता–पिता ने तो अपनी समझ के अनुसार उनको एक सामाजिक मान्यता प्राप्त बंधन में बांध कर पूर्ण आजादी प्रदान कर दी थी । सरस्वती के माता–पिता ने भी इसी शर्त पर सरस्वती की शादी की थी कि उसकी पढ़ाई आगे भी जारी रखी जाएगी । तय समय पर शादी हुई । सरस्वती के माता–पिता ने अपनी क्षमता के अनुसार शादी की सभी सामाजिक रस्मों को पूरा किया । इतना सब करने के बाद भी शायद वे राकेश के माता–पिता को सभी सुख–सुविधाओं से परिपूर्ण घर में कुछ खाली–खाली सा नज़र आने लगा था । बेटे की शादी हो चुकी थी और सुख–सुविधाएँ जस की तस बनी रही । उनमें कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई थी । सरस्वती के माता–पिता राकेश के माता–पिता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे । इसी वजह से शादी के बाद राकेश और सरस्वती की शिक्षा रुक गई ।

इसे विधि की विड़म्बना कहें या सामाजिक दरिद्रता, जिस माता–पिता ने बड़ी धूम–धाम से उनकी शादी की थी, उन्होंने ही अपनी शान का प्रश्न बना कर, उन्हें दूध से मक्खी की भांति निकाल फेंका । इधर राकेश ने अपनी ससुराल में सम्पर्क कर उन्हें सारे घटनाक्रम से अवगत करवाया, तो उनका भी सीधा और सटीक जवाब आया कि हमने सरस्वती की शादी तुमसे की है । अब उसके जीवनयापन, सुख–दुख के तुम ही साथी हो । हमें तो उसकी मृत्यु के बाद ही सूचना देना । सरस्वती के माता–पिता का टका सा जवाब सुनकर राकेश तो हक्का–बक्का रह गया, परन्तु सरस्वती पर इसका कोई असर नहीं हुआ । वह तो उम्र और प्यार की उस खुमारी के दौर से गुजर रही थी जिसमें प्रेमी–प्रेमिका इस संसार से दूर कहीं अपनी एक अलग ही दुनिया बसाने की ख्वाहिश रखते हैं । प्यार ही उनके लिए खाना, प्यार ही ओढ़ना और प्यार ही बिछौना होता है ।

जितनी कम उम्र में उनका विवाह हुआ, उतनी जल्दी ही उनको अपने–पराए, दुनियादारी का पता चल गया । संकट की घड़ी में सभी रिश्तेदारों ने उनसे दूरी बना ली थी । फिर भी इस मुफलिसी के दौर में दोनों एक दूसरे की चाहत में मस्त रहते थे । जीवन की गाड़ी चलाने के लिए दोनों खूब मेहनत करते । लेकिन गुजारा बड़ी ही मुश्किल से चल पाता । घर में जो थोड़ा बहुत खाने को होता, तो दोनों की कोशिश रहती कि उसका साथी भरपेट खाए, एक दूसरे की खुशी में ही दोनों की खुशी होती थी । जैसे पहला–पहला प्यार भुलाए नहीं भूलता, उसी प्रकार उन दोनों का एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण थाय क्योंकि भारतीय परम्परा के अनुसार उनकी शादी पहले हुई और प्यार बाद में हुआ । उनके व्यवहार से लगता था जैसे स्वयं अर्धनारीश्वर भगवान धरती पर अवतरित हुए हों । दोनों के इसी आचरण को देख–देखकर पास–पड़ोस के लोग अपने घरों में इनके प्यार और त्याग के बारे में चर्चा करते थकते नहीं थे ।

वक्त अपनी रफ़्तार से चलता जा रहा था । राकेश और सरस्वती दिन–रात कड़ी मेहनत करते, किन्तु फिर भी काम नहीं चलता था । भविष्य में तो परिवार भी बड़ा होगा उस समय कैसे गुजारा होगा ? इसी की चिन्ता दोनों को सताने लगी । एक शाम दोनों बैठे यूं ही विचार–मंथन कर रहे थे, दोनों में सहमति बनी कि इस प्रकार आधी–अधूरी शिक्षा से तो जिन्दगी नहीं चल सकती । यदि जीवन में कुछ करना है, तो शिक्षा पूरी होना बहुत जरूरी है । ताकि किसी अच्छी सरकारी नौकरी के लिए प्रयास किया जा सके । दोनों शिक्षा पूरी करने की बात पर तो सहमत थे लेकिन दोनों के बीच एक गंभीर समस्या आन खड़ी हुई कि अपनी शिक्षा पूरी करे कौन ? काफी देर तक बहस और समझाने–बुझाने के बाद निश्चय किया गया कि सरस्वती को अपनी शिक्षा पूरी करनी चाहिए । राकेश का मानना था कि आज के समाज में स्त्री का शिक्षित होना बेहद जरूरी है । कल को यदि समय से पहले उसे कुछ हो जाता है तो उसके बाद अपनी शिक्षा के सहारे सरस्वती अपने परिवार को भली प्रकार से संभाल सकती है । आय के सीमित साधनों और महंगाई के चलते किसी एक की शिक्षा पर खर्च करना बड़ा ही मुश्किल हो रहा था । फिर भी उन दोनों ने हार नहीं मानी । शिक्षा पूरी करने का जो बीड़ा उठाया था, उसे पूरा करने के लिए कमर कस रखी थी । राकेश अब ओवर टाइम करता । उसके अतिरिक्त उसे कहीं भी अपने लायक कोई काम मिलता, उसे भी वह कर लेता था । कुल मिलाकर वह प्रतिदिन 12–15 घंटे काम करता था । इधर सरस्वती भी अपनी शिक्षा पर पूरा ध्यान रखे हुए थी । एक क्षण भी वह व्यर्थ नहीं गंवाती थी । घर का, रसोई का सारा काम खत्म कर अपनी शिक्षा पर ध्यान देती । उसके बाद यदि कुछ समय बच जाता तो वह राकेश के काम में हाथ बंटा देती । राकेश भी वक्त मिलते ही रसोई और घर के काम में सरस्वती का हाथ बंटा देता था, ताकि वह अपनी शिक्षा पर पूरा ध्यान दे सके और उसे पढ़ाई में कोई परेशानी न हो ।

इन सब झमेलों में कभी–कभी दोनों में छोटी मोटी नोक–झांेक भी हो जाती थी । गृहस्थी नाम ही उस चिड़िया का है जहाँ पर दो लोगों के बीच प्यार होता है तो कभी कभार नोक–झोंक की भी गुंजाइश रहती है, लेकिन दोनों में प्यार इतना था कि ये नोक–झोंक बहुत लम्बी नहीं खिंच पाती थी । उन दोनों ने अपने जीवन को इस प्रकार ढाल रखा था कि चाहे कितना भी झगड़ा दोनों के बीच हो, किन्तु बिस्तर में वो एक दूसरे से पीठ फेर कर नहीं सोते थे, ताकि झगड़ा होने पर भी सुलह की गुंजाइश बची रहे । पीठ फेर कर न सोने का एक सुखद परिणाम ये होता था कि उनके झगड़े की जिन्दगी ज्यादा से ज्यादा 4–5 घंटे की ही होती थी । इतनी देर बाद उनमें प्यार भरी सुलह हो ही जाती थी ।

कहते हैं जिस घर में प्यार–प्रेम, शांति और सहयोग हो, वहाँ पर लक्ष्मी का बास होता है । ईमानदार और मेहनती लोगों को उनकी मेहनत का मीठा फल जरूर मिलता है । हाँ, उसे मिलने में समय जरूर लग सकता है । जो लोग पूरी शिद्दत से किसी काम को करते हैं उसे सारी कायनात पूरा करने के लिए जोर लगा देती है । सरस्वती और राकेश के आपसी प्रेम और मेहनत का फल भी उन्हें मिला । सरस्वती ने अव्वल दर्जे से अपनी उच्च शिक्षा पूर्ण की और शिक्षा पूर्ण करते ही उसे उच्च सरकारी नौकरी भी मिल गई । आजकल नौकरी के लिए लोग लाखों रूपये जेब में डाले घूमते हैं और फिर भी उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिलती, किन्तु सरस्वती को ये नौकरी अपनी काबिलियत के कारण और बिना रिश्वत एक रूपया दिये ही मिली थी । अब मुफलिसी और संघर्ष का दौर लगभग खत्म हो गया था, किन्तु दोनों एक दूसरे पर निर्भर तो थे ही । राकेश अपनी प्राईवेट नौकरी करता रहा । उसे आफिस वर्क का अनुभव ज्यादा था, लेकिन अब वह उतना ही काम करता जितने की उसे जरूरत होती । अतिरिक्त काम करना उसने छोड़ दिया था, क्योंकि उसकी जीवन संगिनी भी अब गृहस्थी के बोझ को बराबर ढो रही थी । सरस्वती की नौकरी नई–नई थी । उसे अनुभव भी कम था । इसलिए कभी–कभी वह राकेश की मदद ले लेती थी और राकेश भी पूरी लगन से उसके काम में हाथ बंटाता था ।

एक बार सरस्वती को अपने निजी काम के लिए कोई पत्र लिखना था । उसने राकेश को मदद करने के लिए कहा । राकेश ने बड़ी मेहनत से पत्र लिखा ताकि उसमें कोई गलती न रहे । सरस्वती ने जब वह पत्र पढ़ा तो कहा –

‘सारा पत्र बिलकुल ठीक लिखा है आपने, सिर्फ पत्र के अन्त में जो आपने ॅ/व श्री राकेश लिखा है, ये नहीं लिखना था । सिर्फ सरस्वती से ही काम चल जायेगा ।’

राकेश – ‘मेरा नाम लिखने में तुम्हें आपत्ति क्या है ?’

सरस्वती – ‘नहीं ये अच्छा नहीं लगता ।’

इस छोटी सी बात ने एक बहस का रूप ले लिया और ये बहस रबड़ की भांति बड़ी होती चली गई । उस रात दोनों ने ही खाना नहीं खाया और आज तो एक नियम भी टूटा । बिस्तर में सरस्वती करवट फेर कर लेटी थी । राकेश ने काफी देर उसका इंतजार किया, सरस्वती अब करवट पलटे, अब करवट पलटे, उसकी ओर मुंह करे । किन्तु उसका इन्तज़ार इन्तज़ार ही रहा और न जाने कब उसी इन्तजार में उसकी भी आँख लग गयी ।