Darmiyana - 6 in Hindi Moral Stories by Subhash Akhil books and stories PDF | दरमियाना - 6

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दरमियाना - 6

दरमियाना

भाग - ६

"अरे... क्या हो गया तुम्हें... भैया... पीछे हटो... क्या हुआ तुम्हें ?" मुझे लगभग धकेलने के बाद वह कुछ सामान्य हुई थी । उसने अपने उसे भीतर आने के लिए कहना नहीं पड़ता था । वह आई और तपाक-से सोफे पर पसर गई । मैंने लाकर पानी दिया, तो उठ कर एक बार वह फिरकी की तरह घूमी, "कैसी लग रही हूँ मैं ?"

वही औरतों वाले सवाल ! मेरा मन हुआ कि कह दूँ -- बला की खूबसूरत !... मगर फिर ध्यान से देखा, तो लगा कि यह साड़ी तो मधुर की है । टोकना मुझे अच्छा नहीं लगा ।... शायद उसी ने इसे दी हो । इसलिए साड़ी का जिक्र न करके उसकी खूबसूरती का जिक्र किया, "क्या बात है यार !... इतना ज्यादा खूबसूरत मैंने तुम्हें पहले नहीं देखा... " कहते-कहते मैंने उसके कंधों पर हाथ रख दिये थे ।

"क्या कर रहे थे ?" उसने सामने से मेरे कंधों पर हाथ रखते हुए, मुझे थोड़ा पीछे हटाने की कोशिश की थी ।

"तुम्हारा इंतजार... " इस बार मैंने एक हाथ उसकी कमर पर डाल कर, दूसरे हाथ से उसकी गर्दन सहलाते हुए अपनी बाहों में भर लिया था । वह कुछ अचकचा गई । मेरे कंधों पर रखे अपने दोनों हाथों से उसने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया था । मेरा एक हाथ अभी भी उसकी कमर पर था, जिसे उसने धीरे-से हटा दिया ।... सोफे पर साथ बैठते हुए अभी भी मेरा दूसरा हाथ उसके कंधे पर था, जिसे मैंने कसा था ।

"ऊँ...हूँ... क्या करते हो ?... छोड़ो मुझे..." वह जैसे लजा कर, सिहरन महसूस कर रही थी । मैं उसके स्त्रियोचित लावण्य पर मोहित था । मधुर के जीवन में आने के बाद पहली बार शायद ऐसा हुआ था । ऐसा क्यों हुआ, यह तो मैं ठीक-ठाक नहीं जानता, पर इतना जरूर जानता हूँ कि मेरा स्पर्श उसे कहीं असहज कर रहा था । मुझे भी शायद ।

मधुर का स्मरण हो आया, तो मैंने उसकी कमर से हाथ हटा लिया । मधुर ने कहा था -- ‘तुम जानते हो, हर स्पर्श कुछ कहता है ।... हर हुस्ऩ का अपना एक अर्थ होता है ।...’ मुझे याद आया, जब भी हमारे बीच कुछ तकरार हो जाती... कुछ समय बाद वह अनायास मेरे सामने आ खड़ी होती । मेरे कंधों पर हाथ रखती ।... मैं हटाता, तो मुझे बलात् अपने में समेट लेती । दोनों हाथों से मेरे सिर-बालों को सहलाती और सीने से लगा लेती ।... मैं धीरे-धीरे शिथिल पड़ जाता । तब ठठा कर हंसती और कहती, "देखा, मैं कहती हूँ न... स्पर्श एक बहुत अच्छी थेरेपी है ।..."

मैंने भी अपनी भावनाओं को स्पर्श करना चाहा । एक आंदोलन-सा जो उठा था, वह धीरे-धीरे शिथिल पड़ गया । बिना किसी विद्रोह के । वह सोफे से उठ खड़ी हुई । अपनी साड़ी को उसने ठीक किया ।

"सॅारी, यार... " यह मैं था । एक गिल्ट के साथ ।

"ऊँ... हूँ... अब छोड़ो भी ।... क्या हुआ था तुम्हें ?... मैं तो भैया कहती हूँ ।... चलो अब छोड़ो ।... लाओ दो सौ रुपये दो... अभी जाना है मुझे ..."

"दो...सौ रुपये ?... किस लिए ?" मुझे याद आया कि इसने पहले भी सौ रुपये लिए थे, मगर लौटा दिये । इस बार दो सौ ! मैं झटके से सामान्य हो गया ।

"फिर कभी बताउँगी... अभी दो... " इस साज-सज्जा के साथ –दो सौ रुपये ! मैं कुछ समझा नहीं था, मगर अविश्वास करने का कुछ कारण भी मेरे पास नहीं था । मैंने दो सौ रुपये निकाल कर उसे दिये, तो उसने मेरे बालों को बिखरा कर कहा था, "थैक्यू..."

मुझे पूरी तरह झकझोर कर वह मेरे घर की सीढ़ियां उतर गई थी । मुझे डूबने-उतराने के लिए अकेला छोड़ कर । उसके लौट जाने के बाद भी मैं काफी देर तक सहज नहीं हो पाया था । बहुत सारे सवाल मेरे जहन में धमाचौकड़ी मचा रहे थे, जिन्हें मैंने उस समय बलात् धकेल दिया था ।

***

शायद उसे भी, क्योंकि फिर काफी दिनों तक न तो वह मेरे घर आयी और न ही मेरे जहन में । अपने गिल्ट की वजह से भी मैं उसकी तरफ ध्यान नहीं दे पा रहा था । मधुर ने एकाध बार पूछा भी था, मगर मैं टाल गया ।

फिर एक दिन जब शाम को मैं ऑफिस जा रहा था, तो मैंने उसे किसी के साथ बाइक पर जाते देखा । वह सात्रे में थी । उसने अपने साथ के युवक को जिस प्रकार पकड़ा हुआ था, वह मेरे लिए सहज स्वीकार्य नहीं था । पता नहीं मेरी ईर्ष्शा थी या उसके कुछ 'अपना होने' का अहसास... और या फिर यूँ ही ! मैंने अपनी गाड़ी उनकी बाइक के आगे लगा कर उन्हें रुकने का संकेत किया था । उन्हें रुकना पड़ा । वह बाइक से उतर कर मेरे पास आई, "हाय भैया ! आप कहाँ जा रहे हो ?"

इससे पहले कि मैं उससे कुछ पुछता, उसी ने सवाल कर डाला था । वह युवक भी तब तक मेरे पास आ गया था । उसके सवाल को नजरअंदाज कर मैंने पूछा था, "तुम ?... यहां ?... यह कौन है ? "

"भैया, ये मेरे ‘गिरिया’ हैं... आई मीन, भाई फ्रेंड !" वह सहज बनी हुई मुस्करा रही थी । मैंने फिर उसकी तरफ विशेष ध्यान नहीं दिया । सीधे उस युवक से ही पूछा था, "कौन हैं आप ? ... कैसे जानते हैं इसे ? "

मगर उसने भी मेरे सवालों को नजरअंदाज करते हुए पूछा था, "आप आशु भैया हैं न ?... मैं जानता हूँ आपको ।... दरअसल, हम आपसे मिलना ही चाह रहे थे । आप तो जानते हैं सब कुछ ।... यह ‘कोती’ है मेरी !... मैं इससे बहुत प्यार करता हूँ । आपके बारे में बताया था इसने ।... भाभी जी और बच्चों के बारे में भी ।... यकीन मानिए, यह आपको बहुत मानती है... और मैं भी ! "

मैं फिर अचकचा गया था । इसने ‘गिरिया’ बताया था इसे... और यह संध्या को ‘कोती’ कह रहा है ।... मुझे तारा के ‘नटराज’ याद आए, जिन्हें मैं कभी नहीं जान पाया । हालांकि रेशमा से भी मैं कभी नहीं पूछ पाया... और उसके संदर्भ में ऐसा कोई नाम कभी जुड़ा नहीं था । फिर यह कैसे जुड़ा है संध्या से ?

"क्या नाम है तुम्हारा ?" मैंने उससे सीधे-सपाट पूछा था, "क्या करते हो ?" सवाल पूछते हुए भी मुझे लगा था कि यह ‘इनमें’ से नहीं है ।

"जी भैया, मैं राहुल हूँ ।... एक ग्लास फैक्ट्री में प्रोडक्शन मैनेजर हूँ ।... बाकी तो आप समझते हैं ।" उसने कहा था, मगर अभी भी मैं कुछ खास नहीं समझ पा रहा था । हाँ, अनुमान जरूर लगा रहा था ।... पर यदि ‘वैसा ही’ कुछ था, तो मेरे छूने से इसे परेशानी क्यों हो रही थी ?... यह मेरी ईर्ष्शा थी शायद या फिर पहले से ही इसका कोई सम्बंध है।

"कैसे जानते हो इसे ?" मैंने पूछा था ।

"जी, बस एक दिन मुलाकात हो गई... तो धीरे-धीरे दोस्ती भी हो गई ।" मेरे पास राहुल से बहस करने का न तो समय था और न ही कोई आधार, क्योंकि जो कुछ वह कह रहा था, उसमें संध्या की मूक सहमति भी स्पष्ट झलक रही थी ।

"अच्छा सुनो !... तुम कल घर आओ, मुझे तुमसे बात करनी है ।" मैंने संध्या से कहा था । राहुल ने भी चलते समय मुझे नमस्कार किया था । किन्तु मैंने उसे कोई ज्यादा भाव नहीं दिया।

अगले दिन संध्या आयी थी -- सात्रे में । घर पर मैं अकेला ही था, रुटीन की तरह । घंटी बजने पर मैंने दरवाजा खोला, तो वह अंदर चली आई थी । उसके रूप-लावण्य को मैंने इस बार ध्यान से नहीं देखा था । न उसने ही मेरी ओर देखा । वह बैठी तो मैंने लाकर पानी दिया । पीकर उसने गिलास रखा, तो मैंने बिना समय गँवाये सीधे पूछा था, "तुम कैसे जानती हो राहुल को ?"

उसने पलक-भर मुझे देखा, फिर नजरें झुका ली थीं ।... यह दोनों तरफ से संबंधों की मर्यादा को रेखांकित करने वाला संकेत था । क्षण-भर की चुप्पी के बाद उसने सायास अपनी नजरें उठाई थीं... और मेरे चेहरे पर टिका दीं, "आप क्या जानते हैं, मेरे बारे में ?"

*****