Risate Ghaav - 6 in Hindi Fiction Stories by Ashish Dalal books and stories PDF | रिसते घाव (भाग-६)

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रिसते घाव (भाग-६)

भाग-६

सुरभि को विदायी लिए हुए पन्द्रह हो चुके थे । राजीव ने काफी समझा बुझाकर श्वेता को अपने साथ ही रहने को मना लिया था । वैसे भी इस्कोन आइकोन वाल फ्लैट सुरभि ने किराये पर ही लिया था इसलिए भी श्वेता का वहाँ अकेले रहना अब राजीव को मन्जूर न था । जिन्दगी में अपनी बहन के संग अन्याय होने की अनुभूति कई बार होने के बावजूद वह प्रायश्चित के तौर पर सुरभि के जीते जी कभी कोई न्यायसंगत फैसला न ले पाया । आज पहली बार सुरभि की मौत के बाद प्रायश्चित के तौर पर श्वेता को सारी वह खुशियाँ दे देना चाहता था जो वह चाहकर भी अपनी बहन की झोली में न डाल सका था ।
श्वेता ने कुछ ही दिनों में अपनी जॉब वापस शुरु कर दी और अपने मामा के घर में खुद को एडजस्ट करने का यत्न करने लगी । आकृति भी अपने सेकेण्ड ईयर के इन्तहान की तैयारी में जुट गई । राजीव भी पिछली बातों को एक बुरा सपना मानकर भूलकर अपने कामों में व्यस्त रहने की कोशिश करने लगा । धीरे धीरे रागिनी भी श्वेता के साथ मन के तार जोड़ते हुए उसकी पसन्द ना पसन्द को जानने लगी थी ।
आज लगभग डेढ़ महीने के बाद राजीव ने रात को सोते वक्त अपने पसंदीदा बॉडी स्प्रे से अपनी देह को महकाया और बेड पर आकर लेट गया । रागिनी अपने काम पूरे कर बेडरूम में आयी तो एक परिचित सी महकती खुशबू को पाकर वह अपने पति के इरादों को भांप गई । वह चुपचाप आकर राजीव की बगल में लेट गई । राजीव ने अपना हाथ रागिनी के सिर के नीचे फैलाते हुए उसे अपने और नजदीक खींच लिया और रागिनी ने अपना सिर राजीव के सीने पर रख दिया ।
‘तुमसे कुछ दिनों से एक बात कहनी थी ....’ रागिनी ने राजीव को आज बेहद खुश जानकर एक बात कहनी चाही ।
‘ऐसी तो क्या बात है जिसे कहने के लिए तुम्हें इन्तजार करना पड़ रहा है ?’ राजीव ने मुस्कुराते हुए पूछा ।
‘बात श्वेता को लेकर है । वह रोज घण्टों तक किसी से मोबाइल पर बातें करती रहती है ।’ रागिनी ने अपनी बात की शुरुआत करते हुए कहा ।
‘इसमें चिन्ता करने जैसी क्या बात है ? वह खुद समझदार है ।’ राजीव ने रागिनी की जुल्फों के संग अठखेलियाँ करते हुए लापरवाहीपूर्वक जवाब दिया ।
‘मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता । एक तो उसकी जॉब का समय बड़ा ही विचित्र सा है । आधी रात को भला कोई नौकरी से छूटने का समय होता है किसी लड़की का ?’ रागिनी की उँगलियाँ राजीव के सीने के बालों पर घूम रही थी ।
‘आजकल का ट्रेण्ड ही ऐसा है । बीपीओ कम्पनी के जॉब टाईमिंग्स ऐसे ही होते है । यू.के. के दिन के समय अनुसार चलना होता है श्वेता को । वहाँ अपने दोपहर को सुबह का समय होता है ।’ राजीव ने रागिनी को समझाते हुए कहा ।
‘वो सब ठीक है पर पिछले कुछ दिनों से वह कम्पनी की केब में नहीं आती जाती । कोई लड़का उसे लेने और वापस छोड़ने आता है । इसी से मुझे चिन्ता होती है । कहीं कुछ ऐसा वैसा न कर बैठे । हमारी भी अपनी जवान बेटी है घर में । फिर आज कहकर गई है ऑफिस से सुबह ४ बजे आएगी । पार्टी है ऑफिस में ।’ रागिनी ने मुद्दे की बात छेड़ते हुए कहा ।
‘तुम चिन्ता मत करों । उसे सुरभि दीदी वाली गलती नहीं दोहराने दूँगा । जो कुछ भी होगा उससे बातकर सब सैटल कर दूँगा ।’ राजीव ने कहा लेकिन कुछ पुरानी बातें जेहन में आते ही उसके चेहरे की रंगत बदल गई । उसने अपना हाथ रागिनी के सिर के नीचे से हटा लिया ।
‘फिर भी । मुझे तो चिन्ता लगी रहती है । जवान बेटी की माँ जो ठहरी ।’ रागिनी अब राजीव से दूरी बनाकर लेटी हुई थी ।
‘अभी तो सिर्फ मेरी पत्नी और भूतपूर्व प्रेमिका हो । भूल गई हम भी तो इसी दौर से गुजरे थे और परिवार वालों के तमाम विरोधों के बावजूद शादी करके ही माने थे । इस मामले में आजकल की जनरेशन बड़ी स्मार्ट है और हमें भी उनके रास्ते में बाधा नहीं बनना चाहिए ।’ कहते हुए राजीव ने अपना चेहरा रागिनी के चेहरे पर झुका लिया ।
‘हूं ....उ ...म... छोड़ो भी अब ।’ रागिनी ने राजीव की पकड़ से छूटने का झूठा नाटक किया और सामने दीवार पर लगी घड़ी के दोनों काँटे नजदीक आकर एक हो गए ।