aao chale parivertan ki or - 1 in Hindi Fiction Stories by Anil Sainger books and stories PDF | आओ चलें परिवर्तन की ओर.... भाग - १

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आओ चलें परिवर्तन की ओर.... भाग - १

आज से करीब बीस-इक्कीस साल पहले कॉलेजिस में लड़कियां बहुत कम हुआ करती थीं और इसी कारण वह हमेशा आकर्षण का केंद्र रहती थीं | उस ज़माने में कॉलेजिस में रैगिंग एक आम बात थी और कॉलेज प्रशासन की तरफ से भी कोई ख़ास रोकटोक नहीं होती थी | मेरे जैसे लड़कों की रैगिंग तो लगभग रोज़ ही होती थी और ज्यादा बुरा तब लगता था जब लड़कियां भी इसमें शामिल हो जाती थीं|

कॉलेज पहुँचने के बाद समझ में आया कि मैं हमेशा से चाहे स्कूल हो या कॉलेज, सबसे पीछे(back bencher) बैठने वाला ही क्यों रहा? क्योंकि मैं बिना संरक्षण (protection) के हर समय डरा और सहमा रहता था और इसी कारण मैं कोई भी निर्णय नहीं ले पाता था | मेरी इसी कमज़ोरी का क्लास में बहुत मज़ाक बनाया जाता था |

मैं कॉलेज के माहौल में अपने आपको धीरे-धीरे समायोजित(adjust) करने की कोशिश करने लगा | कोशिश शुरू करने के कुछ ही समय बाद, मेरी कक्षा के चार सहपाठी मेरे अच्छे दोस्त बन गये थे | हम चारों एक ही विचारधारा और स्वभाव के थे इसलिए हमें इकट्ठे पढ़ना-लिखना, घूमना-फिरना अच्छा लगता था | इसी तरह कॉलेज के माहौल से जूझते हुए कब तीन साल निकल गए पता ही नहीं चला | अंतिम परीक्षा को करीब एक महीना ही रह गया था |

*

हमारी कक्षा में एक लड़की, जिसका नाम पूनम था, बहुत ही सुंदर और आधुनिक(modern) विचारों वाली थी | उसका पहनावा उस ज़माने के हिसाब से बहुत ही आधुनिक था | उसे लड़कों के साथ घूमना-फिरना और मस्ती करना बहुत अच्छा लगता था |

मैं पिछले कुछ समय से महसूस कर रहा था कि मुझे अकेला देख कर पूनम किसी भी बहाने मेरे पास आ कर बैठ जाया करती थी | वह बेझिझक कुछ भी, किसी भी विषय पर बातचीत शुरू कर देती थी | उसके बातचीत के विषय और ढंग से ऐसा लगता था कि उसे मेरे पास बैठना और समय बिताना अच्छा लगता है |

मैंने अभी तक की ज़िन्दगी में घर और पढ़ाई-लिखाई के अलावा कुछ भी नहीं देखा था | कॉलेज के वह चार दोस्त थे जिनके साथ मेरे सम्बन्ध पहली बार अपने माँ-बाप के अलावा बने थे | उनके साथ कैंटीन जाना और वहाँ बैठ कर ब्लैक काफी पीते हुए हंसी-मज़ाक करना बस यही मेरी कॉलेज लाइफ थी |

मैं पहली बार पूनम के साथ कॉलेज से बाहर दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास रिज पार्क में गया | मैंने वह जगह इससे पहले कभी नहीं देखी थी | यहाँ के अज़ीब माहौल में ज्यादातर लड़के-लड़कियाँ एक दूसरे का हाथ पकड़े घूम रहे थे | उन्हें देख पूनम ने जब पहली बार मेरा हाथ पकड़ा तो मेरे पूरे शरीर में सिहरन-सी दौड़ गयी थी | मैं शर्म के मारे न तो पूनम और न किसी और से नज़र मिला पा रहा था|

पार्क में घुमाते हुए वह मुझे एक घने पेड़ के नीचे पड़े पत्थर के बेंच के पास ले गई | उसने इशारा कर मुझे बैठने को कहा | मैं चुपचाप उसके साथ वहाँ बैठ गया | कुछ देर चुप रहने के बाद वह बोली “तुम पहली बार ऐसी जगह पर आए हो ?” मैंने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया | वह मुस्कुराते हुए बोली “हर काम पहली बार से ही शुरू होता है | आज हम यहाँ अकेले हैं | बेझिझक कुछ भी बोलो लेकिन बोलो, चुप मत रहो |”

मैं कांपती आवाज़ में बोला “मेरे पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं है|”

वह बोली “आपके पास बहुत कुछ है बताने को, मुझे नहीं बताना चाहते तो कोई बात नहीं | मैं ही बताती हूँ कि मुझे आपके पास बैठना और बातचीत करना अच्छा लगता है | आप कॉलेज के अन्य लड़कों से बिल्कुल अलग हो | मुझे असल में आप जैसे लड़के ही पसंद हैं |”

मैंने हिम्मत कर उस से पूछ ही लिया “आपको जब मेरे जैसे लड़के पसंद हैं तो फिर ........|”

वह मुस्कुराते हुए बीच में ही मेरी बात काट कर बोली “जो गलती मैं पहले कर चुकी हूँ उसे ठीक करने में कुछ समय तो लगेगा? मैं आपसे इस बारे में अंतिम परीक्षा के बाद ज़रूर बात करुँगी |”

उसने क्या गलती की है, वह अंतिम परीक्षा के बाद क्यों बताएगी, आज क्यों नहीं ? ऐसे कई प्रश्न मेरे दिमाग़ में दौड़ने लगे लेकिन पूछने की हिम्मत नहीं हुई | इसके बाद भी हम वहाँ काफी देर तक बैठे रहे लेकिन बात कुछ नहीं हुई | हम चुप-चाप एक दूसरे को कभी प्रश्न भरी तो कभी प्यार भरी निगाहों से देखते रहे |

कुछ देर बाद वह मुस्कुराते हुए उठकर बोली “ऐसे कितनी देर तक बैठेंगे, चलिए चलते हैं |” उसकी बात सुन कर मैं चुपचाप उठकर खड़ा हो गया | उसने मेरा हाथ फिर से पकड़ा तो मैं सहम गया |

मेरे हाव-भाव देख वह मेरा हाथ छोड़ कर मुस्कुराते हुए बोली “यार तुम तो सचमुच बहुत ही लल्लू हो | शर्म और डर के मारे तुम्हारी हथेली पसीने के कारण बिल्कुल ठंडी हो गयी है | ऐसा मौका जब दोबारा मिले तो छोड़ना नहीं | चलिए ”, कह कर वह आगे बढ़ गई और मैं चुप-चाप उसके पीछे-पीछे चल पड़ा |

हम दोनों उस दिन के बाद कई बार मिले और धीरे-धीरे हमारी नजदीकियां बढ़ने लगीं |

*

अगले दिन जब मैं सुबह कॉलेज पहुंचा तो वहाँ पार्टी का माहौल था | सब कॉलेज के आख़िरी साल की पार्टी की तैयारी में जुटे हुए थे | मैं कॉलेज के अंदर बने पार्क के एक कोने में रखे लकड़ी के बेंच पर बैठा अपने दोस्तों का इंतजार कर रहा था कि अचानक मेरी नज़र दूर से आ रही लड़की पर पड़ी | वह लड़की हाथ हिला कर ‘हैलो’ का इशारा कर रही थी | मैंने अपने आस-पास देखा तो पाया कि मैं वहाँ अकेला ही बैठा था | अतः दूर से आती उस लड़की को बिना पहचाने मैंने भी हाथ हिलाकर अभिवादन किया | जैसे ही वह लड़की पास आई तो मैं उसे देख कर दंग रह गया | वह पूनम थी | आज उसने काले रंग की पेंट और गुलाबी रंग की बिना आस्तीन की कुर्ती पहनी हुई थी | उसकी कुर्ती के ऊपर के दो बटन खुले थे और उसके पास से आती हुई सुगन्धित खुशबु मदहोश कर रही थी |

पूनम मेरी परिस्थिति को समझते हुए मुस्कुरा कर बोली “अक्षित साहिब कहां खो गये, उठो और मेरे साथ भोजनालय(canteen) चलो | तुम से मुझे कुछ बात करनी है |” मैं इस से पहले कि कुछ कह पाता उसने मेरा हाथ पकड़ा और कैंटीन की तरफ लगभग खींचते हुए ले गई |

सुबह कैंटीन लगभग खाली थी | वह मुझे लेकर कोने में रखी एक मेज़ के पास पहुँच कर बोली “मैं चाय लेकर आती हूँ |” वह मेरे ज़वाब का इंतजार किये बिना ही काउंटर की तरफ चली गई |

मैं उसके इस बेबाक स्वभाव को समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर वह मुझसे चाहती क्या है ? उस समय मैंने यह सोच कर सब कुछ अपने दिमाग़ से निकाल दिया कि मुझे तो उसका सामने बैठना, उसे घंटों देखना और उसके शरीर से आती मादक गंध में मदहोश होना अच्छा.....|

पूनम की तेज़ आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा | वह मेरे सामने खड़ी, हँसते हुए बोल रही थी “फिर से कहां खो गये, अब तो मैं भी सामने नहीं बैठी थी |” मेरे देखते ही वह चाय का कप मेरी तरफ बढ़ाते हुए, सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई |

मैं चाय का कप पकड़ कर उत्सुकता(curiosity) से उसकी तरफ देखता हूँ | वह मेरे हाव-भाव समझते हुए बोली “ताड़ो नहीं, चुप-चाप चाय पीओ |”

मैं नज़र झुकाए चाय का घूंट पीकर बोला “कहिये पूनम जी, आप क्या ख़ास बात करना चाहती हैं |”

“ऐसी कोई ख़ास बात नहीं | मैं तो बस तुम से दिल.........|”

“हाँ, तो बोलिए |”

“असल में...........”, वह बोलते-बोलते रुक जाती है |

मैंने पहली बार उसे ऐसी असमंजस की हालत में देखा था | मैं उसे ढाँढस देते हुए बोला “पूनम जी आप और इतनी व्याकुल(confused) | क्या बात है ?”

वह एक लम्बा सांस लेकर बोली “मैं असल में मज़ाक-मज़ाक में तुम्हारे पास आकर बैठती थी | तुमसे बातचीत कर एहसास हुआ कि मैं जिस लड़के की तलाश कर रही थी वह तुम ही हो | तुम में वह सच्चापन, अपनापन और कुछ....वह है, जिसे मैं तलाश रही थी | वह क्या है, मैं शब्दों में ब्यान नहीं कर सकती हूँ.......|”

वह कुछ और बोल पाती इससे पहले ही वह पांच लड़के लड़कियों का समूह (group) वहाँ आ गया, जिनके साथ वह ज्यादातर रहती थी |

उनके आते ही मैं सहम गया था | आँखें नीचे कर के खड़ा हो गया और पूनम मुझे देखे बिना ही उठकर उनके साथ चली गई|

*

एक बात मुझे हमेशा परेशान करती रही | मैं चाहकर भी यह बात उससे पूछ नहीं पाया कि हम दोनों जहाँ कहीं भी मिलते थे, वह लोग वहाँ कैसे पहुँच जाते थे और वह लोग उसे अपने साथ क्यों और कहाँ ले जाते थे ?

एक दो बार हिम्मत करके बातों ही बातों में मैंने उससे पूछा भी लेकिन उसने कभी भी सन्तोषजनक उत्तर नहीं दिया | उसने हमेशा वह यह कह कर टाल दिया कि इन जगहों पर हम लोग अक्सर आते रहतें हैं, इसलिए यह लोग हमें मिल जाते हैं |

मेरे दोस्तों को पूनम और मेरा मिलना-जुलना बिल्कुल पसंद नहीं था | उनका कहना था कि वह मुझे बेवकूफ बना रही है | मुझे जिस दिन उसकी चाल का पता लगेगा, उस दिन मेरे लिए सम्भल पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा | यह जानते हुए भी कि मेरे दोस्त कभी मेरा बुरा नहीं चाहेंगे लेकिन फिर भी मुझे ऐसा लगता था कि ये लोग पूनम की सुन्दरता और उसके बेबाक व्यवहार और आधुनिक स्वभाव से ईर्ष्या कर उसकी बुराई करते हैं |

*

मुझे आज भी याद है, उस दिन आखिरी पेपर था | मैं पेपर देकर अपने स्कूटर की तरफ बढ़ ही रहा था कि पीछे से पूनम की आवाज़ सुनाई दी | मैं रुककर पीछे की तरफ मुड़ा ही था कि वह भागकर आई और मुझ से लिपट गई |

वह कुछ क्षण मेरे लिए स्वर्ग के सुख के बराबर थे | मैं वह सुख अभी पूरी तरह से अनुभव भी नहीं कर पाया था कि वह मुझ से अलग होते हुए बोली “आज मेरे घर चलो वहाँ शांति के साथ अपने दिल का हाल एक दूसरे को सुनाएंगे |”

मैं असमंजस की स्थिति में स्कूटर पर बैठा ही था कि पूनम जल्दी से मेरे स्कूटर पर बैठते हुए बोली “चिंता मत करो, घर पर कोई नहीं है | अब समय बर्बाद मत करो, जल्दी से स्कूटर स्टार्ट करो और निकलो यहाँ से |”

मुझे ऐसा लगा, शायद उसने मेरी मनःस्थिति भांप ली थी इसलिए झेंप मिटाते हुए मैंने जल्दी से स्कूटर स्टार्ट किया और फिर पीछे मुड़ कर बोला “मैडम आपका घर किधर है यह तो बताएं |”

“पहले यहाँ से बाहर निकलो, फिर बताती हूँ |”

कॉलेज से बाहर निकलते ही, वह मेरे बिल्कुल करीब हो, चिपक कर बैठ गई | वह क्षण मेरे लिए स्वर्गीय आनंद से भी कहीं ज्यादा थे | मैं स्कूटर चलाते हुए सोच रहा था कि यह सफर कभी खत्म ही न हो | रास्ते भर वह क्या बोले जा रही थी, मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था |

हम कब उसके घर के पास पहुँच गए पता ही नहीं चला | मुझे इसका एहसास हुआ जब वह मुझसे थोड़ा दूर हो कर बैठते हुए बोली “अगली गली में पहला कोने वाला घर हमारा है | घर से थोड़ी दूर पर ही तुम स्कूटर लगाना |”

घर के नज़दीक पहुँच कर जैसे ही मैंने स्कूटर धीमा किया | वह जल्दी से कूद कर स्कूटर से उतर गई | स्कूटर कहाँ लगाना है, इशारा करते हुए वह अपने घर की तरफ बढ़ गई | मैं कांपते हाथों से स्कूटर खड़ा कर उसके घर की ओर चल दिया | घर में घुसते हुए एक अज़ीब सा डर लग रहा था जिसके कारण मेरे शरीर के सारे रोंगटे खड़े हो गये थे और सांस भी फूल रही थी |

मैं बैठक में पहुंचा ही था कि वह सोफे पर बैठने का इशारा कर बैठक के साथ सटी रसोई में चली गई | थोड़ी देर में वह शरबत का एक गिलास लेकर आई और बोली “तुम खड़े क्यों हो” कह उसने मुझे हल्का-सा धक्का दे कर सोफे पर बैठा दिया |

शरबत का गिलास मेरे हाथ में सौंपते हुए बोली “अक्षित जी इसे अपना ही घर समझें और डरने या चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है | मेरे घर वाले रात से पहले नहीं आने वाले इसलिए आराम से बैठिये |”

“तुम एक ही गिलास क्यों लाई हो |”

“क्यों, अपने गिलास में से मुझे नहीं पीने दोगे ?” वह हँसते हुए बोली|

मैं उसके इस खुलेपन से अपने आपको लाज़वाब-सा महसूस कर रहा था | मुझे चुप देख कर वह मुस्कुराते हुए बोली “मैं अभी कपड़े बदल कर आती हूँ, फिर बैठ कर आराम से बातें करेंगे”, कह वह बैठक से दूर बाईं तरफ कोने वाले कमरे में चली गई |

मैं गिलास को सोफे के साथ रखी छोटी मेज़ पर रखकर, इत्मिनान से सोफे पर पैर फैलाकर लेट जाता हूँ | कब मेरी आँख लग जाती है, मुझे पता ही नहीं चलता | मेरी नींद तब टूटती है, जब मैं अपने दायें कान के पास ताली की आवाज़ सुनता हूँ | मुझे आँखे खोलता देख वह खिलखिला कर हँसते हुए बोलती है “जनाब, आप यहाँ सोने आयें हैं या मुझसे बातें करने | अच्छा, यह बताओ मैं कैसी लग रहीं हूँ |”

मेरी नज़र पूनम पर पड़ती है तो मेरी आँखे फटी की फटी रह जातीं है | उस जमाने में वह पहनावा तो सिर्फ़ फिल्मों में ही देखा था | आज वह सपना, जो सपनों या फिल्मों में ही देखा जा सकता था, मैं अपने सामने देख रहा था | उसने सफ़ेद पारदर्शी बिना बाजू का टॉप पहना हुआ था | उस टॉप की आस्तीन के कटाव कन्धों पर से काफी ऊँचे, और बाजू की तरफ से नीचे और काफी गहरे थे | टॉप का गला गोल तथा काफी गहरा था | उसने टॉप के साथ हल्के नीले रंग की नेकर पहनी हुई थी, जोकि उस टॉप के साथ काफी अच्छी लग रही थी | पहली बार उसे इतने नज़दीक से इस तरह के कपड़ो में देख कर मेरे पूरे शरीर में सिहरन-सी दौड़ जाती है और चाह कर भी मैं कुछ नहीं बोल पाता हूँ |

वह मेरे सामने रखे छोटे सोफे पर बैठ जाती है | अपने खुले बालों को बांधने के लिए पास के स्टूल पर रखे क्लिप को उठा कर अपने बालों में लगाते हुए देखकर मेरे शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं | मैं शर्म के मारे ना तो पूरी तरह उसे देख ही पा रहा था और ना ही पूनम से आँखें मिला पा रहा था |

वह बिना मुझे देखे बोली “अक्षित, अभी मैं जो भी बात कहने जा रही हूँ, उसे अपने तक ही रखना | मैं जानती हूँ कि तुम्हारे दोस्त या कॉलेज के अन्य लोग, मेरे बारे में क्या सोचते हैं या क्या-क्या बातें बनाते हैं | मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है, जब तक कि तुम ऐसा नहीं सोचते या मानते हो.......|”

“जी !”

मेरा मन उसकी बातें सुनने में नहीं लग रहा था लेकिन मेरे पास और कोई विकल्प भी नहीं था | आख़िर दिल मारकर नज़रें झुकाए, उसकी बातें ही सुनने लगा |

“नज़रें झुका कर तो ऐसे बैठे हो जैसे कोई नई-नवेली दुल्हन हो |”

मैं नज़र उठाकर उसे देखते हुए बोलता हूँ “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं |”

वह मेरी आँखों में झांकते हुए बोली “मैं अंदर से क्या हूँ, मैं ही जानती हूँ | मैं जब भी तुम्हें देखती हूँ, मुझे ऐसा लगता है कि मैं अपना भूतकाल देख रहीं हूँ | मैं भी एक समय, तुम्हारी तरह मानसिक परेशानियों से गुज़र रही थी और कोशिश करने के बावजूद भी स्कूल में दूसरे बच्चों के साथ घुल-मिल नहीं पाती थी |

फिर एक दिन मुझे, मेरी ही क्लास के अध्यापक ने सहारा दिया और उनके कारण ही मैं बहुत कम समय में अपनी मानसिक परेशानियों से बाहर आ गयी थी | मुझे लगने लगा था कि अब मेरी ज़िन्दगी, शायद लाइन पर आ जाए | लेकिन जल्द ही, मैं उन मानसिक परेशानियों से भी ज्यादा परेशानियों में घिर गयी थी |

अब न तो वह सहारा रहा और न कोई और रास्ता दिख रहा था | दिनों-दिन मेरा मानसिक संतुलन बिगड़ता जा रहा था और शरीर भी टूटता जा रहा था |

मेरा इस समाज, सामाजिक रिश्तों से मेरा विश्वास उठ सा गया था | इन सब परिस्थितियों से जूझते-जूझते मैं कब बागी हो गई, मुझे पता भी नहीं चला | इस बागीपन का नतीजा ही तुम आज देख रहे हो कि मैं लड़कों की तरह व्यवहार करती हूँ कोई भी चुनौती स्वीकार कर लेती हूँ, चाहे वह कितनी ही मुश्किल क्यों न हो | यहाँ हर कोई एक दूसरे को नोचने और नीचा दिखाने में लगा है, इसलिये काहे को इस समाज की कद्र करो और क्यों इससे डरो ? यह समाज उसे डराता है जो इससे डरता है और जो इससे नहीं डरता उससे यह समाज खुद डरता है |”

कुछ देर चुप रहने के बाद एक लम्बा सांस लेते हुए वह फिर से बोली “लेकिन......अभी भी मुझे अकेले में कभी-कभी अपने आप से और वक्त से डर लगता है कि मैं अपने बागीपन के कारण ज्यादा आगे ही न निकल जाऊँ कि वापिस आना मुश्किल हो जाए | कई बार मुझे लगता है कि मैं अब पूर्ण रूप से अपनी मानसिक परेशानियों से उबर आई हूँ और कई बार लगता है कि मैं, तो इनका सामना करने से अभी भी डरती हूँ तभी तो बागी हो गयी हूँ |”कह कर वह चुप कर जाती है |

वह मेरे सामने बैठकर मुझसे नज़रें मिलाकर बोल रही थी | वह अपनी यादों में इतनी खोई हुई थी कि मुझे देख कर भी देख नहीं पा रही थी | मैं उसके सामने बैठा उसकी सुन्दरता को निहार रहा था | इसी वजह से मेरी उत्तेजना (excitement) बढ़ती जा रही थी | उत्तेजनावश मुझे उसकी बातें बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहीं थी लेकिन उसे रोकने की हिम्मत भी नहीं थी | मैं अभी इसी उधेड़-बुन में फंसा सोच ही रहा था कि मेरा ध्यान पूनम की ज़ोर से आती आवाज़ से टूटा | वह बोल रही थी “तुम मेरी कहानी में इतना क्या खो गए?”

“नहीं, नहीं, मैं तो......|”

“मैं तो क्या...|”

मैं बात पलटते हुए बोला “अच्छा ! तुम्हारी बात पूरी हुई की नहीं ?”

“हाँ, हाँ, बाकी तुम्हें फिर कभी सुनाऊंगी |”

“और बोलो |”

“बस यही कि आज मैंने अपनी ज़िन्दगी की सच्चाई पहली बार किसी को बताई है | वह भी तुम्हें इसलिये बताई है कि कल तुम भावनावश या परिस्थितिवश मुझे गलत मत समझ लेना | कई बार जो दिखता है वह पूरा सच नहीं होता | कई बार मजबूरी या पहले से की गयी बेवकूफी के कारण भी हो सकता है..........|”

इस बीच बैठक में रखे फ़ोन की घंटी एक-दो बार बजी और बंद हो गई | लेकिन घंटी सुनकर पूनम के चेहरे पर एक अज़ीब-सी घबराहट फैल गई |

वह अपनी घबराहट पर काबू पाते हुए और मेरी मनःस्थिति को भांपते हुए बोली “अरे यार तुम तो लड़कियों की तरह नज़रे झुकाए बैठे हो और मुझे देख भी नहीं रहे हो | ऐसा मौका फिर ना जाने कब मिलेगा |” कहते हुए वह मेरे सोफे पर ही आ कर बैठ गई और अचानक मुझे अपनी तरफ खीँच कर गले से लगा लिया | मैं अपने शरीर में अज़ीब-सा तनाव महसूस कर रहा था | दिल की धड़कन काफ़ी बढ़ गयी थी जिसके कारण मुझे पसीना आ रहा था | अचानक मुझे अपने गाल पर कुछ गीला सा महसूस हुआ | मैंने पूनम से अलग होते देखा कि मेरे गाल पर उसका आंसू टपका था|

उसकी आँखें काफ़ी गीली थीं | मैं कुछ समझ पाता कि अचानक उसके घर के दरवाज़े की घंटी बज उठी | घंटी सुनते ही वह मुझसे अलग हो कर आँखें पोंछते हुए बोली “शायद कामवाली होगी,मैं उसे टाल कर आती हूँ”,कह कर वह चली गई |

मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे और साथ ही साथ डर भी लग रहा था | मैं अपने डर और उत्तेजना पर काबू पाते हुए सोफे से उठकर खड़ा हो जाता हूँ | मैं उसका बेसब्री से इन्तजार करने लगता हूँ, अभी जैसे ही वह आएगी तो उसे अपनी बाहों में भर लूँगा|

मैं उसके आने का इन्तज़ार कर ही रहा था कि मेरी नज़र बैठक के दरवाज़े पर पड़ती है | सामने का दृश्य देखकर मेरे शरीर का खून ही सूख गया और मैं बुत की तरह खड़ा ही रह गया |

मेरे सामने पूनम के गुट (group) के सारे दोस्त खड़े थे, उसमें से एक ने मुझे देखते हुए बोला ‘”देखो, यार इसे भी कुछ-कुछ होता है | अरे देखो........, हमें अब इसे मर्द मानना ही पड़ेगा |”

वह अपने से दूर खड़ी लड़की की तरफ इशारा करते हुए फिर से बोलता है “कुछ और देखना चाहते हो तो पूनम से कहें कि इसके कपड़े उतरवाए |”

उसके साथ खड़ी लड़की कहती है “अरे यार, आज तो यह बहुत सेक्सी लग रहा है |” वह लड़की मेरे पास आकर मुझसे लिपटते हुए बोली “यार इसकी धड़कन तो बहुत तेज़ चल रही है | प्लीज यार, मुझे इसके साथ अकेला छोड़ दो |”

दूसरा लड़का जो कि अभी तक चुप खड़ा था | मेरे पास आया और उस लड़की का हाथ पकड़ कर खींचते हुए बोला “फ़ालतू समय बर्बाद ना करो, इसे जाने दो |”

मैं घर से बाहर निकलने के लिये मुड़ा ही था कि पहले वाले लड़के ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे वहीँ सोफे पर बैठने का इशारा किया |

वह दोनों लड़कियाँ मेरे दायें-बाएं और वह दोनों लड़के मेरे सामने बैठ गए | पहला लड़का बोला “तुम क्या समझे थे कि पूनम तुम जैसे बेवकूफ लड़के से प्यार कर बैठेगी | इस कद्र प्यार में फंस जाएगी कि तुम्हारे साथ सब कुछ करने को तैयार हो जाएगी | अबे साले, ऐसा कुछ भी नहीं था |”

मेरे दाएं बैठी लड़की मेरे गालों पर हाथ फेरते हुए बोली “पूनम की हमारे साथ शर्त लगी थी कि वह तुम्हें अपने प्यार के जाल में फंसाएगी | तुम्हारे जैसे डरपोक और लल्लू लड़के के कपड़े तक उतरवाने की कोशिश करेगी और उसने आज यह कर के दिखा दिया | तुम्हारे चक्कर में वो इस कॉलेज की अभी तक की सबसे बड़ी शर्त जीत गई है |”

मैं बड़ी हिम्मत जुटाते हुए बोला “यह बात पूनम जी से कहलवा दो|”

सब मेरी बात सुन कर बहुत ज़ोर से हँसे और मेरे बाएं बैठी लड़की हँसते हुए बोली “लो चींटी के भी पर निकल आये हैं | पूनम में है ही ऐसा जादू | देखो लल्लू और पुराने फर्नीचर-सा दिखने वाला लड़का भी ‘पूनम जी’ लगा कर फरमाइश कर रहा है |”

सामने बैठा लड़का जो अभी तक नहीं बोल रहा था, अपनी जगह से उठकर मेरे पास आया और मेरी कमीज़ का कॉलर पकड़ कर बोला “अबे साले, तुझे अभी तक समझ नहीं आया कि हम क्या कह रहे हैं, वो मुझसे प्यार करती है | तेरे साथ यह सब शर्त जीतने के लिये कर रही थी | चल भाग यहाँ से, तेरे चक्कर में हम लोग शर्त हार गए हैं | अब उठता है कि...... |”

यह सब सुन कर मेरी हिम्मत टूट गई थी, लेकिन फिर भी दिल को विश्वास नहीं हो रहा था | मैं सोफे से उठते हुए भी इधर-उधर देख रहा था | मेरी आँखें चारों तरफ पूनम को ढूँढ़ रहीं थी | यह देखकर पहले वाला लड़का ज़ोर से चिल्लाया “पूनम जी आप आयें और इस चू….. को हमारे सामने नंगा करें | ये आशिक आज ऐसे नहीं जाएगा |”

पूनम रसोई से निकल कर मेरे सामने आई और मुझसे नज़र मिलाये बिना ही बोली “हाँ, शर्त तो लगी थी लेकिन मैंने जो भी कुछ तुम्हें कहा वो.......|”

वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि उसका आशिक लड़का बीच में ही बोल पड़ा “सुन लिया, तुम्हारी पूनम जी ने क्या कहा, चल अब निकल ले पतली गली से और दोबारा हम में से किसी को कभी दिख भी मत जाना वरना......|” कहकर वह सब ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे |

मुझे घर से निकल कर अपने स्कूटर तक पहुँचने में ऐसा लग रहा था कि सदियों लग गई हैं | घबराहट के कारण स्कूटर भी स्टार्ट नहीं हो पा रहा था | मैं उस जगह से जल्द से जल्द दूर होना चाह रहा था | इसलिए स्कूटर बिना स्टार्ट किये ही कुछ दूर तक घसीटता रहा | सड़क किनारे घना पेड़ देखकर वहीँ स्कूटर स्टैंड पर लगाकर बैठ जाता हूँ |

मैं तेज़-तेज़ साँस ले रहा था | कमीज़ पसीने से भीग गई थी और आँखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे | मैंने कांपते हाथों से ज़ेब से रुमाल निकाला और मुँह पोंछने लगा | तभी मुझे जानी पहचानी-सी आवाज़ सुनाई दी | रुमाल हटा कर देखा तो सामने माँ खड़ी थी |

माँ को हैरानी से देखते हुए बोला “माँ तुम यहाँ क्या कर रही हो ?”

“यही तो मैं तुमसे पूछना चाह रही थी कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

“मैं तो............|”

“कितनी दूर से स्कूटर खीँच कर ला रहा है? पसीने से नहाया हुआ है | रास्ते में कोई मिस्त्री नहीं मिला क्या ?” फिर खुद ही कुछ सोचते हुए बोली “ओह! हाँ, आज तो दुकानों की साप्ताहिक छुट्टी है, मुझे भी याद नहीं रहा और मैं बाज़ार सामान खरीदने आ गई | चल घर चलतें हैं |”

आस पास देखकर मुझे एहसास हुआ कि मैं तीन-चार किलोमीटर स्कूटर को झोंक-झोंक में ही घसीट लाया हूँ | यह सोचकर कि घर तो अभी भी दो किमी० दूर है | मैं बोला “माँ एक बार और कोशिश कर के देखता हूँ, शायद स्टार्ट हो ही जाए |”

“तो क्या तूने रास्ते में कोशिश करके नहीं देखी?”

“नहीं, मुझे याद ही नहीं रहा |”

“तो अब कैसे याद आ गया |”

“अब माँ जो मिल गई इसलिए याद भी आ गई |” कह कर मैंने स्कूटर की किक मारी |

स्कूटर स्टार्ट होते ही मैं उस पर बैठते हुए बोला “देखा माँ, तुम्हें देखकर स्कूटर भी स्टार्ट हो गया |”

“तुझे भी अब काफी बातें बनानी आ गईं हैं |” माँ स्कूटर पर बैठते हुए बोली |

*

मुझे इस घटना के बाद कई रात नींद नहीं आई | दिन में भी बेचैनी-सी महसूस होती रहती थी | एक रात खाना खाने के बाद जैसे ही मैं अपने कमरे में जाने के लिये उठा तो पिता जी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रुकने का इशारा करते हुए बोले “बैठो बेटा, हम तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं | हमें पता लग गया है कि तुम कई दिनों से क्यों परेशान हो | बेटा यह तो ज़िन्दगी है और यह सब उसका एक हिस्सा है | कुछ ही दिन की बात है, फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा |”

मैं बिना सोचे-समझे ही बोल पड़ा “पिताजी कैसे ठीक हो जाएगा......|” कहते हुए मेरे आंसू निकल आते हैं |

माँ जल्दी से उठकर, मुझे गले लगाते हुए बोलीं “मैं ना कहती थी कि इसने हमारी बातें सुन ली हैं | देखो इस वजह से ये कितना परेशान है |”

यह सुन कर मेरा ध्यान टूटा और मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ | लेकिन अब मेरे लिये यह दुविधा थी कि मैं बोलूं क्या?

मुझे चुप देखकर पापा बोले “बेटा, अब तो तुम्हारा कॉलेज भी बंद हो गया है | ऐसा क्यों न करें कि तुम सब भी मेरे साथ ही चलो | दो-तीन महीने में जब तुम्हारी परीक्षा का परिणाम आ जाएगा तो तुम लोग यहाँ वापिस आ जाना |”

माँ मेरे कंधे पर हाथ रखकर बोली “क्यों, अक्की यह ठीक रहेगा |”

मैं हवा में तीर चलाते हुए बोला “वह जगह कैसी है और आप कितने दिन के लिये जा रहे हो |”

“शायद छह महीने के लिये मेरा तबादला हुआ है | वहाँ जब भी किसी की नियुक्ति हो जाएगी तो मैं उसे कार्यभार सौंप कर दिल्ली वापिस आ जाऊंगा | उधमपुर बहुत ही खूबसूरत जगह है, वहाँ तुम्हारा मन अवश्य लग जाएगा |”

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इस घटना के करीब चार-पांच दिन के बाद ही हम उधमपुर चले गए | वहाँ करीब छह महीने रहे और मेरा पूरा समय अकेले दूर जंगलों में बीता | मैं उन छह महीनो में कभी भी पूनम को भुला नहीं पाया | उसकी याद जब भी आती तो हर बार उसका मासूम चेहरा सामने आ जाता | मुझे ऐसा लगता कि उस दिन वह मुझसे कुछ कहना चाहती थी | शायद उसने यह सब किसी मजबूरी की वज़ह से किया था | उसने उससे पहले कहा भी तो था कि वह मज़ाक–मज़ाक में मेरे पास आई थी लेकिन कुछ समय बाद ही मैं, उसे अच्छा लगने लगा था | दूसरे ही पल यह सोच आती कि अगर ऐसा था तो उसने मुझे पूरी बात क्यों नहीं बताई | उसके जैसी दबंग लड़की उस दिन सब के सामने सच बोल सकती थी पर उसने ऐसा क्यों नहीं किया ? शायद उसने यह सब शर्त के लिये ही किया होगा | जब भी मैं इस निर्णय पर पहुँचता तो मेरी बैचैनी और भी बढ़ जाती | क्यों, मैं उसकी चाल को नहीं समझ पाया, क्यों मैंने उसे अपने नज़दीक आने दिया ?

मैंने एक दिन फैसला लिया कि मैं अपनी माँ से पूछूँगा कि आख़िर मुझ में क्या कमी है और क्यों है | मैं, दूसरे लोगों की तरह क्यों नहीं हूँ और भी ऐसे कई अनसुलझे सवाल थे जो पिछले कुछ समय से मुझे परेशान कर रहे थे |

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मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है कि वह अक्टूबर का महीना था | शायद वह दिन उस महीने का दूसरा रविवार था | उन दिनों अक्टूबर के महीने में भी थोड़ी-बहुत ठण्ड हुआ करती थी | मैं रात को ठीक तरह से सो भी नहीं पाया था फिर भी सुबह जल्दी उठ गया था | नहा-धोकर कर मैं नाश्ता करने के लिए बैठक में पहुंचा ही था कि माँ नाश्ता ले आईं | माँ नाश्ता परोसते हुए, शायद मेरी मानसिक स्थिति भांप गईं थी | वह बोलीं ‘अक्की’ इसी नाम से मुझे घर पर बुलाया जाता था, “तुमने जो कुछ भी करना या पढ़ना है कर लो, मैं दोपहर का खाना खाने के बाद तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ |”

मैं अपनी मानसिक स्थिति को छिपाने की नाकाम कोशिश करते हुए बोला “माँ आप क्या बात करना चाहती हैं और ऐसी क्या जरूरी बात है?”

“अच्छा मुझे काम ख़त्म करने दे फिर तेरे सब सवालों का ज़वाब दे दूंगी |” कह कर वह दूसरे कमरे में चली गयीं | मैं सोचता ही रह गया, आख़िर इन्हें कैसे पता लगा कि मैं इनसे कुछ पूछना चाहता हूँ |

मन मे बैचेनी होने के कारण मैं दोपहर का खाना भी अच्छी तरह से नहीं खा पाया | माँ सामने बैठी खाना खाते हुए मुझे चुप-चाप देखती रही लेकिन वह कुछ नहीं बोलीं | मैं खाना खाकर जल्दी से अपने कमरे में आकर बिस्तर पर लेट गया | माँ का इंतज़ार करते-करते कब सो गया मुझे पता ही नहीं चला | अचानक मुझे ऐसा लगा कि कोई मुझे पुकार रहा है | मैंने आँख खोल कर देखा तो माँ मेरे पास पलंग पर लेटी हुई थीं और उनका एक हाथ मेरे सिर पर था | मुझे आँखे खोलता देख वह बोलीं “अक्की, तुम तो बहुत गहरी नींद में सो रहे थे |”

“क्यों ? आप काफी देर से बुला रहीं थी क्या ?” मैंने हैरानी से पूछा |

“हाँ ! दो-तीन बार पहले भी आ चुकी हूँ |”

“समय क्या हो गया होगा ?”

“चार बज रहें हैं |”

“अच्छा बोलो ! आप क्या बात करना चाहती थीं |”

माँ पलंग पर सीधी लेट गईं और आँख बंद कर कुछ सोचते हुए बोलीं “पहली बात जब तक मैं बोल रही हूँ, तू बीच में मुझे टोकना नहीं ! जो कुछ भी पूछना या कहना चाहे, मेरी बात खत्म होने के बाद ही बोलना ठीक है |”

माँ ने आंखे खोल कर मुझे देखा तो मैंने हाँ में सिर हिला दिया |

माँ फिर से आँख बंद कर बोलने लगीं “बेटा जब तुम पैदा हुए थे, तब बिल्कुल स्वस्थ थे | तुम्हारा रंग तो बचपन से ही काफी गोरा था | समय के साथ-साथ तुम मोटे-तगड़े और शरारती भी होते जा रहे थे | तुम्हारे गोल-मटोल चेहरे पर सब मोहित हो जाते थे | जब तुम कहीं भी बाहर खेल रहे होते थे तो पास से निकलने वाला हर इन्सान तुम्हें एक बार पलट कर जरूर देखता था | सब पास-पड़ोस के लोग कहा करते थे कि तुम्हारे घर तो साक्षात् कृष्ण भगवान ने जन्म लिया है |

तुम्हारी रोज़ नई से नई शरारतों को देखकर मैंने तुम्हें करीब साढ़े तीन साल की उम्र में ही स्कूल में डाल दिया | लेकिन स्कूल में भी तुम बहुत जल्द अपनी शरारतों और बेबाक बोलने से प्रसिद्ध हो गये थे |

जब से तुम्हें स्कूल डाला था, तुम्हारी शरारतें तो कम नहीं हुईं लेकिन तुम्हारे अन्दर धीरे-धीरे एक परिवर्तन जरूर आने लगा था | तुम रोज़ मेरे साथ सुबह उठ जाते थे और खुद ही नहा कर मेरे साथ पूजा करने के लिए बैठ जाते थे | मेरी पूजा कर लेने के बाद भी तुम श्रीमद्भगवद्गीता लेकर तब तक बैठे रहते, जब तक कि तुम्हें डांट कर उठने के लिये ना कहा जाए | तुम्हारा पूजापाठ और ‘गीता’ को लेकर बैठने का सिलसिला दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था | पड़ोसी, रिश्तेदार यहाँ तक कि रास्ते चलता हुआ अनजान भी तुम्हें देखकर यही कहता था कि यह बच्चा कुछ ख़ास है | यह देख-सुनकर, हमें एक अनजान-सा डर सताने लगा था कि तुम्हें किसी की नज़र ना लग जाए | इसलिए हम तुम्हें कभी भी अपनी नज़रों से ओझल नहीं होने देते थे |

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आख़िर वह मनहूस दिन आ ही गया, जिस से हम डरते थे | वह नवम्बर का महीना था और तुम घर के बाहर बने पार्क में खेल कर आये थे | जैसे कि तुम्हारी लगभग रोज़ की आदत थी कि घर में घुसते ही तुम्हें भूख-प्यास सब लग जाती थी और फिर एक भी मिन्ट का सब्र नहीं होता था |

उस दिन तुम और दिनों की अपेक्षा घर देर से लौटे थे | तुम्हारे पापा के आने का समय लगभग हो चुका था | तुम्हारे पापा की शुरू से आदत थी कि वह सुबह भारी नाश्ता(heavy breakfast) करने के बाद रात को ही भोजन करते थे | मैं तुम्हारे पापा के शाम को घर लौटने से पहले ही खाने के लिए कुछ ना कुछ बनाकर रख लिया करते थी, ताकि शाम की चाय के साथ उन्हें कुछ हल्का-फुल्का नाश्ता मिल जाए | रोज़ की तरह उस दिन भी तुम बहुत जिद्द कर रहे थे कि मैं पहले तुम्हें कुछ खाने को दूँ फिर कुछ करूँ |

मैं रसोई में थी और तुम रसोई के बाहर सामने की दिवार के साथ रखे एक ऊँचे स्टूल पर चढ़ कर ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे “जल्दी से कुछ खाने को दो, नहीं तो मैं यहाँ से कूद जाऊंगा |” रोज़-रोज़ की तुम्हारी शरारतें और जिद्दें देख-देख कर मैं दुःखी हो चुकी थी | तुम्हारी आज इस नई जिद्द को सुनकर, मैं रसोई से ही बोली “जा आज तू कूद ही जा |”

खैर उसके बाद कोई कूदने या रोने की आवाज़ नहीं आई तो मैं समझ गई कि तुम मेरा गुस्से से भरा ज़वाब सुनकर अंदर कमरे में चले गए होगे | मैंने ऐसा उस समय इसलिये भी सोचा कि तुम रोज़ रात को सोने से पहले माफ़ी मांगते थे कि अब तुम भविष्य में कोई जिद्द नहीं करोगे |

तुम्हारे पापा के गेट खोलने की आवाज़ पर मैंने तुम्हें पुकारा “देखो ! अक्की, शायद पापा आए हैं.................. |”

लेकिन बीच में ही तुम्हारे पापा की आवाज़ सुनाई दी, वह तुम्हें कह रहे थे “यहाँ जमीन पर क्यों लेटे हुए हो | चलो उठो यहाँ से, अभी मैं कपड़े बदल कर और हाथ मुँह धोकर आ रहा हूँ, तब तक तुम माँ-बेटे खा पीकर तैयार हो जाओ, आज हम बाज़ार घूमने चलेंगे|”

वह रसोई के पास से निकलते हुए मुझसे बोले “ये श्रीमान, ज़मीन पर क्यों लेटे हैं?”

“मैं तो आपके बेटे की रोज़-रोज़ की जिद्द और ड्रामेबाजी से दुःखी हो चुकीं हूँ |”

“आख़िर, हुआ क्या है ?”

“कुछ नहीं, आप हाथ-मुँह धो कर आइए, इसे मैं देखती हूँ ”, यह सुन कर पापा अंदर कमरे में चले गये |

मैं तुम्हारे पास आई, तुम्हें काफी पुकारने के बाद भी तुम टस से मस नहीं हुए | यह देखकर मैंने तुम्हें बोला “अभी बुलाती हूँ तुम्हारे पापा को, वही तुमसे निपटेंगे |” कह कर मैं तुम्हारे पास से उठी और रसोई की तरफ जाते हुए तुम्हारे पापा को ज़ोर से पुकारती हुयी बोली “सुनिए, ये मेरी तो सुन नहीं रहा है, आप ही देखिए | मैं तो इससे परेशान हो चुकी हूँ |”

कुछ ही देर बाद तुम्हारे पापा की ज़ोर से आती आवाज़ सुनकर मैं रसोई से भाग कर बाहर आई तो देख कर हैरान रह गई | तुम्हारे पापा तुम्हें गोदी में लिटा कर, ज़ोर-ज़ोर से हिला रहे थे और तुम बेसुध पड़े थे | यह देखकर मैं चीखती हुई तुम्हारी तरफ दौड़ी और तुम्हारे पापा से खींच कर तुम्हें अपनी छाती से लगा कर ज़ोर-ज़ोर से पुकारने लगी “अक्की उठो, अक्की क्या हुआ तुम्हें |”

शोर सुन पास-पड़ोस वाले भी भाग कर आ गये थे | सब कुछ न कुछ बोल रहे थे लेकिन किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर तुम्हें हो क्या गया है ? तभी किसी ने भीड़ से निकल कर तुम्हारी कलाई पकड़ कर बोला कि नब्ज तो ठीक-ठाक चल रही है | शायद बेहोश हो गया है इसलिए देर न करें, इसे डॉक्टर के पास ले जाएं |

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तुम दो दिन बेहोश या यूँ कहें कोमा(coma) में रहे | डॉक्टर्स को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था | जब तक वे कुछ समझकर फैसला कर पाते, तुम्हें अचानक होश आ गया | अब सब कुछ पहले जैसा नहीं रह गया था | अब तुम हर समय सहमे-सहमे से रहने लगे थे | तुम्हें देख कर ऐसा लगता था कि तुम उस घटना से डर गए थे या फिर अंदरूनी रूप से कुछ कमज़ोर हो गए थे | उस घटना के बाद से तुम चुप-चुप रहने लगे थे | तुम दिन-प्रतिदिन सेहत और पढ़ाई दोनों में कमज़ोर होते जा रहे थे | कई बार रात को सोते-सोते अचानक चीख कर उठ जाते और कभी-कभी बिस्तर पर पेशाब भी कर दिया करते थे |

हमने उस ज़माने के मशहूर से मशहूर चिकित्सक(doctor) को दिखाया | अधिकतर चिकित्सकों का मानना था कि तुम्हें कुछ अन्दरूनी दिमागी झटका लगा है जिससे तुम अभी तक उबर नहीं पाए हो | कुछ चिकित्सकों का यह भी कहना था कि बढ़ती उम्र के साथ प्यार और देखभाल से यह बीमारी खुद-ब-खुद ठीक हो जाएगी |

काफी मनोचिकित्सको(psychiatrists) से इलाज कराने के बाद भी जब तुम में कोई सुधार ना हुआ तो हमें यह लगने लगा था कि शायद तुम्हें लोगो की नज़र लग गई है या फिर किसी ने तुम पर कुछ टोना-टोटका कर दिया है | आख़िर, एक दिन हमने फैसला लिया कि हम यह घर बेच कर इस मनहूस जगह से कहीं दूर चले जाते हैं, जहाँ हमें कोई जानता न हो |

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आठवीं कक्षा से तुम्हारे अंदर कुछ शारीरिक व मानसिक परिवर्तन आना शुरू हुआ | अब तुम्हारा रात को डरकर उठ जाना या बिस्तर गीला करना तो रुक गया था | इन सब परिवर्तनों के बावजूद भी तुम धीरे-धीरे अन्तर्मुखी(introvert) होते जा रहे थे | तुम्हारा घर के अंदर अकेले खेलना और खुद से ही बोलते रहना देखकर हम दोनों को रात-रात भर नींद नहीं आती थी | हम दोनों पति-पत्नी की ज़िन्दगी सुबह तुम्हारे साथ शुरू होती थी और रात तुम्हारे साथ सोने पर ही खत्म होती थी | हम दोनों ही तुम्हारे माँ, बाप, बहन-भाई, यार-दोस्त थे | तुम कब इतने बड़े हो गये, हमें तो आज भी यकीन नहीं होता है |

बेटा, हमें उस समय यह लगता था कि तुम इस ज़ालिम दुनिया के कारण ही आज ऐसे हो | कुछ डॉक्टर्स का यह भी कहना था कि हो सकता है किसी ने तुम्हें कुछ गलत खिला-पिला दिया हो | हमारे रिश्तेदारों व जानकारों का कहना था कि शायद तुम पर किसी तन्त्र-मंत्र का असर है |

अब जो भी, जैसा भी किसी ने किया हो और हो या न हो पर हमारी हँसती खेलती दुनिया अचानक गुमनाम अँधेरे में डूब गयी थी | बस यही था जो तुम्हें आज तक नहीं बताया था, बाकी फिर भी यदि तुम मुझसे कुछ पूछना चाहते हो तो बताओ” कह कर माँ चुपकर गई|

इतना कुछ सुनने के बाद मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या पूछूँ ? जब काफी देर तक मैं कुछ भी सोच नहीं पाया तो माँ खुद ही बोलीं “अब तुम थोड़ी देर आराम कर लो और ज्यादा दिमाग़ पर ज़ोर डालने की जरुरत नहीं है | बेटा हमने भी बहुत दिमाग़ लगा कर सोच कर देख लिया, कुछ हासिल नहीं हुआ अंत में इसी नतीज़े पर पहुंचे कि जो होना है वह होकर ही रहेगा |” मुझे आँखे बंद किए देखकर, माँ उठीं और रसोईघर में चली गईं | मैंने लेटे-लेटे काफी सोचने के बाद यह फैसला किया कि अब मैं अपने अंदर के डर को जीतने की हर संभव कोशिश करूँगा |

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