Surgical Strike in Hindi Moral Stories by bharat Thakur books and stories PDF | सर्जिकल स्ट्राइक

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सर्जिकल स्ट्राइक

कोमल की सिसकियां पूरे कमरे में गूंज रही थी। निवेदिता ने उसका हाथ धरा और आंखों से ही उसे सांत्वना देने लगी। कौशल्या वही पास खड़ी निवेदिता और कोमल को देख रही थी, पर एक शब्द न बोली। वह मौन खड़ी थी। मानो क्रोध के सैलाब से लबालब थी पर किसी मूरत के समान खड़ी थी। कौशल्या ने न जाने कितनी औरतों को देखा जो थक हार कर आखिर में उसकी संस्था 'पहला कदम' में आती है और अपनी आप बीती सुनाते ही अश्रुओं के सागर में डूब जाती है। कौशल्या, कोमल की बाते सुनकर भावुक नही हुई थी अपितु उसे ऐसा लग रहा था कि सामने कोमल नही अपितु एक दूसरी कौशल्या खड़ी है। आज कोमल ने इस संस्था का रुख लिया और अपनी आप बीती सुनाई। समाज से ठुकराई हुई, अपने परिवार से तिरस्कृत की हुई औरतों का जयपुर में एक ही ठिकाना है 'पहला कदम'। कौशल्या ने इस संस्था का बीड़ा कुछ 20 सालो पहले स्वयं उठाया था। कौशल्या की कोई संतान नही है पर कौशल्या ने इस संस्था को ही अपनी सन्तान माना।

निवेदिता पहला कदम नामक संस्था में बतौर वकील रूप में काम करती है। निवेदिता ने कोमल का ढाढस बंधाया और संस्था में रह रही दूसरी औरतों से मिलवाने उसे कमरे से बाहर ले जा रही थी के तभी कौशल्या ने कहा,"आज जितना रोना है, रो लेना! कल से आंखों में आंसू नही बल्कि चेहरे पर खुद के लिए जीने की खुशी चाहिए। जो बीत चुका वो कल पराया था। जो आनेवाला कल है वो अपना होगा। तुम आज में जीना, हर पल को महसूस करना, खुद के होने का एहसास धरना! देखना! जिंदगी कैसे करवट लेगी! बिता हुआ पल कभी तुम्हे छू भी न सकेगा।" कौशल्या की आवाज में आत्मविश्वास साफ झलक रहा था। कोमल किसी यंत्र समान कौशल्या की सारी बातों को आत्मसात कर रही थी। उसे पता था कि कौशल्या उसके जैसे कई औरतों के लिए किसी फरिश्ते से कम नही थी। कौशल्या की उम्र लगभग 55 साल है। पर आज भी माथे पर कोई चिंता की लकीरें नही है। काले बड़े चश्मों से झाँकती कौशल्या की आंखे इतनी गहरी थी के मानो किसी के देह की रूह तक देख ले। कोमल ने उनके बारे में यही जाना था कि वो भी किसी समय इसी पीड़ा से गुजर चुकी थी जिससे आज स्वयं कोमल गुजर रही है। कोमल ये बखूभी जानती है कि जयपुर में शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित महिलाओं के लिए एक ही घर था, 'पहला कदम'।

कोमल के आंतरिक मन मे विचार कौंध ही रहा था कि तभी, निवेदिता, कोमल को बाहर बरामदे में ले आई। वहां लगभग 50 औरते किसी न किसी कुटीर उद्योग में लिप्त थी। बरामदे में बैठी औरते बांस की लकड़ी के छोटे मोटे फर्नीचर बना रही थी। कुछ औरते पास में बांस की लकड़ी की सुंदर शो पीस बना रही थी तो कुछ उन बांस की लकड़ियों पर पोलिश और पेंटिंग कर रही थी। बरामदे से सटे हुए अलग अलग कमरों में कुछ औरते पापड़, अचार और फरसाण बनाकर उन्हें पैक कर रही थी। तो कुछ औरते खाने की टिफिन पैक कर रही थी। कोमल भीड़ में अपने आप को असहज महसूस कर रही थी। एक अरसा हो गया था, कोमल घर से बाहर नही निकली थी। इतने सारे लोगो के बीच कोमल खुद को असहज महसूस कर रही थी। शादी से पहले पापा ने कॉलेज छुड़वा कर घर बिठा दिया था, तो शादी के बाद पति ऐसे मिले की बात बात में झगड़ना, अपमानित करना, शारीरिक तथा मानसिक शोषण करना, ये लगभग रोज की दिनचर्या हो गयी थी। कोमल अंदर से इतनी खोखली हो गयी थी के अब अनजाने में अपनी परछाई भी देख लेती तो उसकी रूह कांप जाती।

कोमल की मनोदशा भाँप निवेदिता ने कहा,"कोमल! अब यही परिवार है। शुरुआत में भले ये सब अलग लगे, यहां का माहौल अलग लगे, पर बाद में यही सब तुम्हारे परिवार का हिस्सा होगा। यहां भेदभाव नही होता, यहां सभी एकजुट होकर काम करते है और स्वयं अपना भरण पोषण करते है। ये किसी के मोहताज नही बल्कि अब ये संस्था इनके कमाए हुए रुपयों के एक हिस्से को बचाकर अपना खर्च निकालती है।"

"मैं.. मैं..क्या करूँ? कैसे करू? मुझे कुछ नही आता।" कोमल ने सहमते हुए कहा।

"कोमल तुम्हे एक एक करके सारे काम सिखाये जायेगे। फिर जिस काम को करने में तुम्हारी रुचि होगी तुम्हे वही काम देगे। तुम बिल्कुल निश्चिंत रहो कोमल! मैं केस के पेपर जल्द बनवा कर तुम्हारे पति से तुम्हारे भरण पोषण का मुआवजा जल्द लेगे तथा तुम्हारे शारीरिक और मानसिक पीड़ा के लिए उसे सख्त से सख्त सजा दिलवाएंगे। यहां सभी को न्याय इसी संस्था ने दिलवाया है।" निवेदिता ने अपनी बात पूरी की।

कोमल अब भी चिंतित सी लग रही थी। कोमल के हाव भाव मे हताशा और निराशा, दोनों अब भी झलक रही थी। इतने सालों में कोमल के मन की कोमलता कही छुप सी गयी थी। रोज रात को सोते वक्त बुरा सपना देख कोमल चिल्ला उठती है। सिगरेट से शरीर के नाजुक अंगों पर जख्म और मानसिक रूप से विक्षिप्त सी अवस्था लिए कोमल अपने सपने में बुरी तरह काँप जाती है। इन सबका जिम्मेदार उसका पति धनंजय ही था। धनंजय का नाम सुनते ही कोमल की डर के मारे सांस ही रुक जाती है। कई दिन बीतने के बाद भी कोमल के व्यवहार में कुछ खास बदलाव नही आया।

निवेदिता और कौशल्या आपस मे कोमल के बारे में विचार विमर्श कर रहे थे।

"कोमल के क्या हाल है?" कौशल्या ने पूछा।

"कोमल की हालत अब भी जस के तस बनी हुई है। वह इतना डरती है कि भूल से अपना चेहरा अगर आईने में भी देख ले तो एक बारगी सहम जाती हैं। साइक्रेटिक्स डॉक्टर को दिखा दिया पर उसकी हालत में सुधार ही नही हो रहा है।" निवेदिता ने कहा।

"हम्म,, पहले उसके मन के अंदर बैठे धनंजय का भय मिटाना होगा। कड़वी यादों को हमेशा हमेशा के लिए उसके मन से हटाना होगा।" कौशल्या गंभीर मुद्रा में आ गयी।

"पर कैसे करे? साइक्रेटिक्स की दवा चल रही है। पर कुछ फर्क नही पड़ रहा है।" निवेदिता फिर परेशान हो उठती है।

"सर्जिकल स्ट्राइक!" कौशल्या के इतना कहते ही निवेदिता के मुख पर अजीब सी मुस्कान तैर जाती है। निवेदिता हामी में सिर हिलाती है और अपने काम मे लग जाती है।

दो दिन बाद,

धनंजय रात में शराब के नशे में धुत अपने कमरे में दाखिल होता है। तभी किसी ने उसके मुँह पर काला कपड़ा बांध दिया। उस कपड़े में क्लोरोफार्म लगी हुई थी। धनंजय कुछ देर की जद्दोजहद के बाद बेहोश हो जाता है।

आंख खुलने पर धनंजय अपने आप को एक कुर्सी से बंधा पाता है। उसके मुँह में कपड़ा बुरी तरह ठूसा हुआ था। कमरे मे अंधेरा था पर धनंजय महसूस कर पा रहा था कि कमरे में कुछ और लोग भी मौजूद थे। तभी कुछ साये आपस मे गुफ्तगू करने से लगे।

एक साया नकाब पहने हुए जो निवेदिता थी, उसने दूसरे नकाब वाले साये के हाथ मे हॉकी का स्टिक दिया। ये दूसरा साया और कोई नही बल्कि कोमल थी। कोमल ने हॉकी का स्टिक हाथ मे ले तो लिया था पर धनंजय के सामने जाने से डर रही थी। तभी, कुछ और नकाबपोश धनंजय की तरफ बढ़ चले और उसके मुख पर जोरदार घुसे और तमाचे जड़ने लगे। धनंजय चाहकर भी चीख नही पा रहा था। उसके मुख से दबी हुई सिसकारी निकल रही थी। उसके नाक से थोड़ा खून निकलने लगा। कोमल को धनंजय की सिसकारी कुछ सुकुन सी लग रही थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे ये आवाज उसके आघात पहुचे हुए मन के लिए किसी मरहम जैसा था। उसके हाथ मे हॉकी स्टिक थी। कोमल बिजली की भांति तुरंत धनंजय की तरफ बढ़ी और हॉकी स्टिक से उसके पैरों पर, हाथो पर, उसके सीने पर जोरदार प्रहार किया। धनंजय दर्द के मारे चीखना चाह रहा था पर उसकी हर चीख उसके मुख में ठुसे हुए कपड़े पर आकर रुक जाती थी। उन कपड़ो से आवाज छनकर बाहर आ रही थी। कोमल दो पल रुक गयी। उसके मुख से ठूसा हुआ कपड़ा बाहर निकाला। कोमल ने अबकी बार और तेज गति से प्रहार करना शुरू किया। वही धनंजय अब बुरी तरह चीख रहा था। रहम की भीख मांग रहा था। वो अब भी अनजान था कि उस पर हमला क्यो हो रहा है?

कोमल की आंखों में कुछ बूंदे तैर गयी थी। पर ये बूंदे कुछ ऐसी थी कि मानो उसकी बरसो की दबी हुई वेदना, उस पर किये हुए हिंसा और मानसिक आघात, सभी कोमल से धीरे धीरे रुखसत ले रहे थे। कोमल का हर प्रहार, उस पर किये गए अत्याचार की प्रतिपूर्ति कर रहा था। धनंजय की हालत बहुत बुरी हो गयी थी। उसके हाथो और पैरो पर लाल लाल निशान उग आये थे। कोमल ने अपना नकाब उतार फेका। निवेदिता, कोमल को नकाब उतारने से रोक ही रही थी के तभी कौशल्या ने निवेदिता का हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया।

धनंजय ने कोमल की तरफ देखा। उससे रहम की भीख मांगने लगा। उसकी रहम की भीख कोमल के मन को अत्यधिक सुख दे रही थी। तभी, निवेदिता ने कुछ जली हुई सिगरेट कोमल के हाथ मे दी। कोमल ने एक एक कर उन जली हुई सिगरेट से धनंजय के शरीर को छलनी कर दिया था। धनंजय दर्द के मारे लगभग बेहोशी की अवस्था मे एक ही बात दोहरा रहा था, 'मुझे माफ़ कर दो, कोमल!'

कुछ देर बाद, सभी लोग वहां से निकल गए। धनंजय के हाथ की रस्सियां खोल उसे किसी अस्पताल में पहुचा दिया गया था। निवेदिता और उसके साथियों ने बाकी सारे सबूत वहां से मिटा दिए। धनंजय को धमकी दे दी थी के अगर फिर कभी उसने किसी औरत पर हाथ उठाया तो वो अपनी मर्दानगी से हाथ धो बैठेगा। कौशल्या और निवेदिता पूरी तैयारी के साथ सर्जिकल स्ट्राइक करते रहे है। वे अपने लिए ऐसा सबूत जुटा लेते है जिससे किसी अनहोनी में वो ये साबित कर सके कि वो या उनकी टीम से कोई भी बन्दा उस वक़्त, उस घड़ी वहां था ही नही।

कोमल अब जी जान से संस्था के कामो में रुचि लेने गयी थी। अब वो बात करते करते खिलखिलाने लग गयी थी। उसका डर, सहमापन, सब गायब हो गया था। बाकी सभी हैरान थे की आखिर एक रात में ऐसा क्या हुआ के वो इतनी बदल गयी। कौशल्या और निवेदिता, दोनों कोमल को देख खुश हो गए थे। निवेदिता ने कौशल्या से कहा की सर्जिकल स्ट्राइक का अनुमान सही था। वही कौशल्या ने कुछ नही कहा और अपने अतीत के धुंधले पन्ने पर एक और स्याह बिखेर दी थी।

दरख्तों पर बिना मिट्टी के पले बडे उस पेड की तरह कोमल दिख रही थी जो अब मौसम की मार सह सकती थी। कोमल अब अपने अतीत से बाहर आ चुकी थी। कोमल की मुस्कुराहट, उसका चुलबुलापन सभी को आश्चर्यचकित कर रहा था तो वही कोमल सभी से यही कहती, 'ये सर्जिकल स्ट्राइक का कमाल है!'

///----समाप्त----///

भरत ठाकुर

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