Yahudi Saragardana in Hindi Detective stories by Nasira Sharma books and stories PDF | यहूदी सरगर्दान

Featured Books
Categories
Share

यहूदी सरगर्दान

यहूदी सरगर्दान

शराबख़ाने में मेरी मेज़ के ठीक सामने वह बैठा था। मुझे यहाँ बैठे लगभग चार घंटे हो रहे थे और इस बीच मैं उसे सिप़फऱ् मयख़ोरी करते देख रहा था। अपने में डूबा जाने किन वादियों का सप़फ़र तय कर रहा था। बड़ी देर से दबी ख़्वाहिश को अब ज़्यादा देर न दबा सका। बैरे को बुलाकर मैंने कार्ड पर उसके लिए पैग़ाम लिखा और बैरे को थमा दिया।
बैरे के हाथ से लेकर उसने पैग़ाम पढ़ा। देर तक उस पर नज़र गड़ाए रहा। फिर उसने मेरी तरप़फ़ देखा और बहुत शालीनता के साथ अपनी कुरसी से खड़ा हो गया। मैं अपनी जगह से उठा और उसकी तरफ़ बढ़ा। उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया।
फ्डॉक्टर प्रताप।य्
फ्डॉक्टर बोरहान।य्
फ्बड़ी ख़ुशी हुई आपसे मिलकर---य्
फ्मुझे भी। ख़ासकर यह जानकर कि आप भी डॉक्टर हैं।य्
फ्इत्तप़फ़ाक है।य्
फ्तशरीप़फ़ रखें।य्
फ्आपका वतन---।य्
फ्मेरा कोई वतन नहीं है, मैं यहूदी सरगर्दान हूँ। सारे जहाँ को अपना घर समझ रहा हूँ।य्
फ्फिर भी---य् डॉक्टर प्रताप ने दिलासे के अंदाज़ से कहा मगर उस पर इस मरहम का कोई असर न हुआ। वह सिर झुकाए ख़ामोश अपने में डूबने लगा। डॉक्टर प्रताप ने चुप्पी तोड़ी।
फ्मैं हिंदुस्तान से हूँ। पंद्रह दिन के लिए एक कॉनफ्रेंस के सिलसिले में आया हूँ। अभी चंद दिन और रहूँगा।य्
डॉक्टर बोरहान हलके से मुसकराए, फिर लंबी साँस भरी। हलकी-सी खँखार के साथ बोले, फ्क़ायदे की बात तो यह है कि मैं भी आपको बताऊँ कि पेरिस में कब तक रहूँगा---मगर जब मुझे ख़ुद पता हो तब न? कब तक मुझे रुकना पड़ेगा और फिर यहाँ से कहाँ जाना पड़ेगा---? आपके लिए पेग मँगाता हूँ---बैरा---!य् पि़फ़र ख़ामोशी छा गई। पेग के आ जाने पर उसने बोतल उठाई और मेरे लिए जाम बनाया।
फ्मैं कब तक गज-भर वतन के लिए दर-ब-दर फि़रता रहूँगा। उसे ढूँढ़ता रहूँगा, कुछ हाथ भी नहीं लगेगा।य् इतना कहकर उसने ख़ाली मुट्ठी खोली, बंद की, फिर अपनी हथेली को डॉक्टर प्रताप के सामने खोलकर रखा।
फ्देखिए! चंद लकीरें सपाट हथेली पर उभरी हैं। इन लकीरों की दिशा और ज़बान अनजान है और मैं अज्ञानी नहीं जानता कि ईरानी क़ौम की यह सरगर्दानी कब समाप्त होगी?य्
डांस के लिए म्यूजि़क आरंभ हो गया था। जोड़े खड़े होने लगे थे। डॉ- प्रताप फैली आँखों से काले-सप़फ़ेद, जवान-अधेड़ जोड़ों को आते-जाते हुए देखने लगे। एकदम से एक महीन सुरीली आवाज़ सुन वह चौंक पड़े। एक औरत! उसे बेहद हसीन कहा जा सकता था। मेज़ के समीप खड़ी थी। डॉ- प्रताप से क्षमा-याचना करते हुए उसकी कमर में हाथ डालकर डांसिंग-फ्लोर की तरफ़ ले गए। डॉ- प्रताप दो पल स्तंभित हुए, फिर संकोच से मुसकरा पड़े।
लाल, पीली, नीली रोशनी के बनते-बिगड़ते हॉल में डा प्रताप की नज़रें उन दोनों को ढूँढ़ रही थीं। वे दोनों नाचते बदन के बीच छिपते फिर नज़र आने लगते थे। वह बहुत अच्छा नाच रहा था और इतना ज़्यादा पीने के बाद वह मदहोश न था। मैं अकेले उँगलियों से मेज़ पर ताल देता अपना अकेलापन दूर करता रहा। हफ़्ते-भर में ऐसा अवसर मुझे एक बार भी प्राप्त नहीं हो पाया था। दिन-भर काम में व्यस्त रहता, मगर शाम काटने दौड़ती थी। शाम से गई रात तक पत्नी और बच्चे बेहद याद आते थे।
वे दोनों मेरी ही मेज़ पर आ गए। डॉ- बोरहान ने मेरा परिचय कराया, फ्मारिया, मेरी मित्र, बहुत बढि़या चित्रकार हैं। संवेदनाओं की पत्तियों पर फैली नसों के समान चेहरे पर बड़ी सूक्ष्मता से ब्रश द्वारा उभारती हैं। चेहरे की हर चीज़ आपसे बात करने लगती है!य्
फ्बड़ी ख़ुशी हुई आपसे मिलकर!य् सचमुच डॉक्टर प्रताप को उस औरत से मिलकर ख़ुशी हुई थी। हफ़्ते-भर में यह पहली शाम थी जो ख़ाली नहीं थी और दिलचस्प लोगों के साथ गुज़र रही थी।
बातों-बातों में पता चला कि बहुत अच्छा हार्ट-स्पेशलिस्ट है। किसी पिकनिक स्पॉट पर वह मारिया से मिला था। दो-तीन मुलाक़ातों में ही दोनों बड़े अच्छे दोस्त बन गए थे। खाने के बाद मारिया को वह उसकी कार तक छोड़ने के लिए बाहर निकला। मैंने खाने का बिल मँगवाया। मालूम हुआ, उसने बाहर जाते हुए पे कर दिया है। मुझे अजीब फ़ुरतीला आदमी लगा। थोड़ा बुरा भी लगा। कुछ देर बाद वह तेज़ क़दमों से मेरे समीप आया और बोला, फ्माप़फ़ करिएगा, मैंने आपको तन्हा छोड़ा। यदि आप थके न हों तो बाग़ में टहलते हैं। मैं पास ही होटल बेलफ़ास्ट में ठहरा हूँ।य्
फ्चलिए!य् कहकर मैं खड़ा हो गया। संयोग से मैं भी उसी होटल में ठहरा हुआ था।
सड़क पर टहलते हुए मुझे एहसास हुआ कि वह मुझसे काफ़ी लंबा है। पेड़ों के साये के साथ उसकी छाया मेरे ऊपर पड़ रही थी।
फ्मारिया से जब भी मिलता हूँ, ईरान बड़ी शिद्दत से याद आने लगता हैµउसके बदन से, बातों से, उसके पूरे वजूद से ईरान की ख़ुशबू की लपटों को मैं महसूस करता हूँ, उसका स्पर्श करता हूँ। मारिया पाँच साल ईरान में रही हैं पूरा ईरान घूमी है। मेरे ग़म को ख़ूब पहचानती है।य्
फ्आप कभी हिंदुस्तान गए हैं?य्
फ्गया था, लगभग दस वर्ष पहले।य्
फ्ईरान आने का प्रोग्राम मेरा भी बना थ मगर एकदम से प्रोग्राम टल गया। तेहरान में ग़ज़ब की गड़बड़ शुरू हो गई थी।य्
फ्हाँ, तब मैं अमेरिका में था। ईरान लौटा तो सारे देश का नक़्शा ही बदला हुआ था। धर्म की जोंक हम ज़रदुश्तियों का ख़ून पीने के लिए ईरान के जिस्म पर चिपक गई थी।य्
फ्धर्म में आखि़र बुराई क्या है, डॉ- बोरहान?य् डॉ- प्रताप ने आश्चर्य से पूछा।
फ्कौन-सी बुराई नहीं है, डॉ- प्रताप?य् ऊँची आवाज़ से अँधेरे को फ़ाड़ता हुआ उसका क़हक़हा दरख़्तों पर सोती चिडि़यों के दिल दहला गया।
फ्मन और आत्मा को सुकून---।य् डॉ- प्रताप की बात बीच में ही कट गई।
फ्हमारा सुकून, हमारी सभ्यता, संस्कृति को अरब इस इसलाम-रूपी धर्म के बुलडोज़र से उखाड़ फ़ेंकना चाहते हैं---। तीन सौ वर्षों की अथाह कोशिशों के बाद ीाी वे यह काम अंजाम नहीं दे पाए। हापि़फ़ज़ और फि़रदौसी जैसे शायरों ने उन्हें मुँहतोड़ जवाब दिया था। अब ईरान पर दोबारा अबर आक्रमण हुआ है। उसकी सत्ता को ईरानी मन से क़बूल नहीं करेंगे। गोली का ख़ौप़फ़ समय की ज़बान पर चाहे ताले डाल दे।य्
डॉ- प्रताप ख़ामोशी से चलते रहे। वह जब तक आधा घंटा सुबह पूजा नहीं कर लेते थे, मन अनमना-सा रहता था। बचपन से अब तक यही आदत पड़ी थी उन्हें! क्या कहते बोरहान की इन बेतुकी बातों पर?
फ्डॉ- प्रताप, यदि आपके मुल्क हिंदुस्तान पर किसी विदेशी सत्ता का आक्रमण हो जाए तो आप ख़ुश होंगे?य्
फ्बिलकुल नहीं, इसमें ख़ुशी की क्या बात है?य्
फ्तो फिर मेरे घाव पर नमक न छिड़कें।य् ख़ामोश रहकर, फ्कहिए कि वास्तव में ईरान पर ज़ुल्म हुआ है, ईरानी बेघर-बार हुआ है। आपसे यदि आपके रीति-रिवाज़ छीन लिए जाएँ तो आप पर क्या गुज़रेगी?य्
फ्पागल होकर मर जाऊँगा।य् डॉक्टर प्रताप ने फ़ौरन जवाब दिया।
फ्हम ईरानी पहले मरना पसंद करते थे। उस समय हमारे ईरान में शहीद होने का चलन आम नहीं हुआ था। हमारे कूचे और बाज़ार, सड़क और फ़ुटपाथ जब से लाशों से पटने लगे हैं हम मौत नहीं, संग्राम चाहते हैं जिसमें दिवानावार इन विदेशियों की जड़ें, जड़ से उखाड़ फ़ेंकें।य्
होटल सामने नज़र आ रहा था। दोनों के क़दम आगे बढ़ गए। डॉक्टर प्रताप को ख़ामोश रहने से डर लगने लगा था कि कहीं डॉक्टर बोरहान फिर ख़प़फ़ा न हो जाएँ।
फ्आपका क्रोध अपने स्थान पर उचित है। धर्म आपका शत्रु नहीं है बल्कि वह व्यक्ति जो उस धर्म को अपनी सत्ता के लिए प्रयोग करे, वह बुरा है!य् डॉक्टर प्रताप ने धीमे-से कहा।
फ्आपका विचार और नज़रिया एकदम सही है, मगर इसलाम ने हमें दिया ही क्या है, केवल इस भावना के कि धर्म का अर्थ कोड़े और जं़जीरें हैं? ज़ुल्म और सितम है? जिस धर्म की अभिव्यक्ति पिछले चौदह सौ वर्षों से ख़ून-ख़राबा, क़त्ल-ग़ारतगरी रही हो उससे आपकी आशा तो बँध सकती है मगर मुझ ज़रदुश्ती की नहीं---! मेरा नाम हुसैन था। जब होश आया तो महसूस हुआ मेरा नाम ईरानी नहीं, विदेशी है। आखि़र क्यों? माँ-बाप से जी भरकर लड़ा और अपना नाम कुरुश रखा---! नाम बदलवाने में दाँतों पसीना आया। मान लें आपका नाम डॉक्टर ब्राउन होता और आप हिंदू होते। तब मुझे हक़ था कि मैं आपके दोग़लेपन पर आश्चर्य करता। क्या आप स्वयं अपने पर करते?य्
फ्ज़रूर करता, डॉ- बोरहान! आपकी बातेंµक्षमा करें, मेरी मालूमात बहुत कम है और ये गूढ़ बातें समझने के लिए मुझे ईरान के अतीत और वर्तमान को समझना पड़ेगा। हम तो सिफऱ् इतना ही जानते हैं कि शाह एक अच्छा शासक था। उसने ईरान की मान-मर्यादा को चार चाँद लगाकर उसे संसार में एक ऊँचा स्थान दिलवाया था और बस!य्
फ्शाह की ग़लतियाँ ही तो थीं जो हमने यह दिन देखा। उस पर दूसरा देश सवार था। अमेरिका से ईरान फैशन और करप्शन में केवल अस्सी घंटे पीछे था। सब कुछ घुन खाया, दीमक लगा, खोखला था। ख़ैर, छोडि़ए---कुछ पिएँगे?य् डॉ- बोरहान ने हँसते हुए कहा।
फ्कुछ ठंडा---सॉफ्ट ड्रिंक---!य् डॉ- प्रताप ने कहा।
फ्बच्चों वाली बात---गोल्ड स्पॉट, कोकाकोला, पाइनएपिल---यह तो बच्चे पीते हैं।य् डॉक्टर बोरहान के क़हक़हे की आवाज़ लॉबी की छत फ़ाड़ने लगी। आस-पास के लोग चौंककर देखने लगे। डॉ- प्रताप भी उनकी मासूमाना ख़ुशी पर अपनी हँसी दबा नहीं पाए।
लॉबी में भीड़ काफ़ी थी। एक तरफ़ पड़ा सोप़फ़ा ख़ाली देखकर वह उधर जाकर बैठ गए। बैरे को ऑर्डर देकर डॉ- बोरहान ने अपनी आँखें छत पर गाड़ दीं, फिर थोड़ा झुककर डॉ- प्रताप की तरफ़ मुड़े और कहने लगेµ
फ्बड़ी उम्मीदें लेकर हिंदुस्तान गया था। उस धरती को ढूँढ़ने जहाँ पर पंचतंत्र जैसी आबे-हयात, खाने-पीने से बेगाना आबिद, हिमालय की चोटी पर ध्यानमग्न रहते हैं, मगर नाउम्मीदी हुई। वहाँ मुझे वह सब कुछ न मिला जो मैंने टैगोर की कविताओं, नेहरू और गाँधी की जीवनी में पढ़ा था। आगरा जाकर उन ईरानी कारीगरों के लिए रो पड़ा जिन्होंने ताजमहल जैसा शाहकार बनाकर अपने हाथ कटवा लिएµप़फ़न की ऊँचाई प़फ़नकार को क्या देती हैµअपंगता? यह पहली बार हिंदुस्तान ने मुझे समझाया।य् डॉ- बोरहान ने पेग में शराब उँडे़लते हुए कहा। डॉ- प्रताप ख़ामोश रहे। नींद उनकी माँसपेशियों पर हावी होकर उन्हें शिथिल बना रही थी। रात के दो बज रहे थे। दस बजे दूध का एक गिलास पीकर सो जाने वाले डॉक्टर प्रताप बहुत विचलित-से हो रहे थे। जूते और पैंट में कसे उनके पैर ढीली-ढाली तहमत के लिए तड़पने लगे थे।
फ्आपको नींद आ रही है?य् डॉ- बोरहान ने अपना तीसरा पेग एक के बाद एक ख़ाली करते हुए डॉ- प्रताप के पहले पेग को देखते हुए पूछा।
फ्जी! जी नहींµ। यूँ ही आँखें झपक गई थीं।य् डॉक्टर प्रताप ने जेब से रूमाल निकालकर मुँह पोंछते हुए कहा। पीछे के दाँत न होने के कारण सोते में राल बहती हुई गालों पर आ जाती है।
फ्आपने कभी इश्क़ किया है, डॉक्टर प्रताप?य् डॉ- बोरहान ने बुझी लकड़ी पर फ़ूँक मारी।
फ्इश्क़? मैंने?य् बुझी लकड़ी चिनगारी पकड़ने लगी।
फ्जी, आपने जनाब?य् पैने लहजे ने चिनगारी को हवा दी।
फ्जवान होने से पहले ही शादी हो गई। इश्क़ कह लें या जो भीµवह मैंने अपनी पत्नी सावित्री से किया है।य् लकड़ी ने आग पकड़ ली।
फ्इश्क़ पत्नी से नहीं, महबूबा से होता है।य् लकड़ी पर तेल छिड़का।
फ्जी?य् लकड़ी दिवानावार लपकते शोलों से भर गई।
फ्हाँ। मैं दस वर्ष पहले आशिक़ हुआ था। उस समय मेरी शादी को नौ साल गुज़र गए थे और---।य्
फ्शादी के बाद आपने---?य् डॉ- प्रताप की नींद उनकी आँखों से कोसों दूर भाग गई थी। उनकी हालत गै़र हो चुकी थी, इस ख़याल से कि ऐसा अनर्थ और पाप करने वाला उनके समीप बैठा उनके साथ मयख़ोरी कर रहा है।
फ्इसमें हैरत की क्या बात है? इश्क़ तो कभी भी हो सकता है। आशिक़ होने की कोई उम्र नहीं है। जब तक दिल जवान है, एहसास की कोंपलें फ़ूटती हैं, आप इश्क़ कर सकते हैं। जब मैं दुबारा आशिक़ हुआ था तब मेरी उम्र तीस वर्ष की थी। पहली बार जब मैं अपनी वर्तमान पत्नी पर आशिक़ हुआ था उस समय केवल उन्नीस वर्ष का था। उसे मैंने अपने चचा के बाग़ में ऊपर छत से एकदम नंगी अवस्था में देखा था। वह कपड़े उतारकर हौज़ में तैर रही थी, मगर मैं अपना ईमान खोकर ख़ुदकुशी पर आमादा हो गया और घर वालों को धमकी देकर बताया कि शादी उसी से करूँगा वरना नहीं। मजबूरन उसे मेरी मोहब्बत को तसलीम करना पड़ा। उसकी मँगनी हो चुकी थी। मेरे पास अब उसी से चार बच्चे हैं। पत्नी और बच्चे ईरान में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्हें रोज़ मेरे ख़त का इंतज़ार रहता होगा कि कब मैं उनके लिए टिकट भेजूँ। मैं पूरी कोशिश में हूँ कि वे किसी प्रकार वहाँ से निकल आएँ---। ख़ैर---हाँ तो, मैं अपने दूसरे इश्क़ का जि़क्र कर रहा था। तीस साल, मर्द की भरपूर जवानी का जाम छलकने की उम्र होती है। और तीस वर्ष औरत की काम-वासना की पराकाष्ठा का समय होता है। सहर तीस वर्ष की भरपूर औरत थी। इश्क़ और जवानी की दिवानगी हमारे बीच पाँच साल तक चली। शहद और शराब के नशे में हम मदहोश थेµडॉ- प्रताप, आपने सेब से भरा दरख़्त देखा है? ऐसी ही जवानी और हुस्न सहर में था जो आपको प़फ़ौरन तोड़कर अपने को खाने के लिए मबूर करता है। जाने कैसे उसके पति को हम पर शक हो गया। मैं उसका जीवन ख़राब नहीं करना चाहता था। इसलिए ख़ामोशी से अमेरिका चला आया, इस ख़याल से कि फ़साद स्वयं दब जाएगा। मैं उसे दिलोजान से चाहता था।य्
फ्मारिया---?य् डॉ- प्रताप को बेचैनी थी कि डॉ- बोरहान उन्हें अब बता दें कि मारिया से उन्हें चालीस साल की उम्र में फिर तीसरी बार इश्क़ हो गया है।
फ्मारिया की मैं बहुत इज्ज़त करता हूँ। मारिया मेरे वतन को प्यार करती है। मैं मारिया के व्यक्तित्व के आईने में ईरान की छवि देखता हूँ। वह आईना---। उसे मैं तोड़ नहीं सकता हूँ। हम दोनों बड़े अच्छे दोस्त है, और बस।य् डॉ- बोरहान ने डॉ- प्रताप की उत्तेजना पर ठंडे पानी के छींटे मारे।
फ्सहर से आपकी मुलाक़ात फिर नहीं हुई?य् डॉ- प्रताप ने उत्तेजना से भरे धुएँ से उबरते हुए पूछा।
फ्हुई थी। वह मुझे भूल नहीं पाई थी। उसने शौहर के सामने इक़रारे-जुर्म कर लिया था। विश्वास से भरी तब तलाक़नामा लेकर वह मेरे पास पहुँची तो उसे मालूम हुआ कि मैं ईरान छोड़कर लंबे अरसे के लिए विदेश चला गया हूँ। कहाँ? पता नहीं। वर्ष-भर बाद जब मैं लौटा तो वह ग़म से निढाल सूखे दरख़्त में तब्दील हो चुकी थी। उसके पति की मौत भी कार-दुर्घटना में हो गई थी। हर तरफ़ से लुटी-उजड़ी वह स्वयं धरती छोड़ने लगी थी। जब मैं उससे मिला तो वह मेरी बाँहों में किसी खोखले पेड़ की तरह गिर गई। इन्हीं बाँहों के बीच, इसी सीने पर उसने दम तोड़ दिया। मैंने उसे अमृतपान कराना चाहा था। उसकी जिं़दगी में ख़ुशियाँ भरना चाही थीं और हुआ उसका उलटा---।य् डॉ- बोरहान के कंधे झुक गए। आवाज़ में पानी की नमी का गीलापन था। घड़ी की सुई तीन बजा रही थी। मगर डॉ- प्रताप की आँखों से नींद काफ़ूर की तरह उड़ चुकी थी।
फ्आज उसे गुज़रे पूरे छह वर्ष हो गए हैं। बुध की रात थी जब मैं उससे मिलने गया था। जब उसने मेरे दिल पर दम तोड़ा था तब वह जुमेरात की सुबह थी। यानी रात के तीन बजे---।य् बोरहान ने शराब की पूरी बोतल गिलास में उलट ली।
फ्उस दिन से आज तक मेरे लिए कोई---य्
फ्आपका कॉल है, सर!य् बैरा ने बोरहान से कहा।
फ्अच्छा! डॉ- प्रताप, मैं अभी हाजि़र होता हूँ।य् कहकर बोरहान नपे-तुले क़दमों से टेलीप़फ़ोन की तरफ़ बढ़ने लगा।
इसी बीच डॉ- प्रताप ने अपना सिर सोप़फ़े पर पीछे टिकाया, पैर फैलाए और आँखें बंद कर लीं। इससे पहले कि डॉ- बोरहान लौटते, वे गहरी नींद में डूब चुके थे।
दो दिन तक डॉ- प्रताप, डॉ- बोरहान की ख़बर लेने के लिए बेचैन रहे, फिर थककर शाम को अकेले ही घूमने जाने लगे। सुबह और रात को कब डॉ- बोरहान आते और जाते हैं, होटल वालों को भी इसकी कोई विशेष जानकारी नहीं थी।
तन्हाई से डॉ- प्रताप थक चुके हैं। हिंदुस्तान लौटने में अभी दो दिन बाक़ी हैं। बच्चों और सावित्री के लिए थोड़ा-बहुत सामान ख़रीद लिया है। फिर भी किसी नई, सस्ती, अच्छी चीज़ की आशा में बाज़ार की ओर निकल गए। हिंदुस्तान से वह अकेले हैं। अधिकतर लोग मध्य-पूर्वी देशों से हैं। उनके साथ दोस्ती केवल मीटिंग तक रहती ह। फिर वह शाम होते ही कैबरे और महँगी तप़फ़रीह की तरफ़ चल पड़ते हैं। एक-दो बार तो वे भी पिगाल की ओर घूम आए हैं। सेक्स-शॉप को भी घबराहट में देख आए हैं, मगर उन्हें यह सब कुछ भाया नहीं। एक-दो साथी जो फ्रेंच थे, उन्होंने एक बार सबको डिनर पर बुलाकर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया। इसीलिए विदेश अकेले जाते हुए डॉक्टर प्रताप घबराते हैं। मीट खा नहीं पाते हैं। शराबनोशी भी पिछले पाँच वर्षों से शुरू की है। जिं़दगी के चालीस वर्ष शु) शाकाहारी भोजन और नशे से दूर रहकर गुज़ार चुके हैं।
बाज़ार से लौटते हुए डॉक्टर प्रताप ने सोचा कि डॉक्टर बोरहान हार्ट स्पेशलिस्ट हैं। उनसे एक बार अपना चेकअप करा लेना बुरा नहीं है। दो वर्ष पहले हलका-सा हार्ट-अटैक उन्हें हुआ था। कमरे में सामान रखकर वह लेट गए। डॉ- बोरहान का जुमला याद आने लगा। आशिक़ होने की कोई विशेष उम्र नहीं होती है। अजीब आदमी है। उनके वज़ूद का लक्कड़ पछतावे की आग में धू-धू करके जल उठा। सारी जवानी सावित्र के काले बालों की छाँव में गुज़ार दी है। सुनहरे अखरोटी भूरे रंग के मुलायम गुच्छेदार बालों को अब तक उन्होंने केवल रेशम की लच्छियों से अधिक महत्त्व नहीं दिया था। नीली आँखें, सफ़ेद रंग उन्हें कभी प्रभावित नहीं कर पाए थे। मगर आजµ? मर्यादा और लज्जा की सारी दीवारें गिरा देने के लिए मन मचल रहा है। सावित्री को क्या पता चलेगाµमैं यहाँ सात समंदर पार क्या कर रहा हूँ।
डॉ- प्रताप ने करवट बदली। तकिए को बाँहों से भरा। उस दिन शाम को डॉक्टर बोरहान की किस्मत पर वह ठगे-से रह गए थे। भूरे बालों और शहद की रंगतवाली आँखों वाली लड़की के साथ वह रेस्तराँ के बाहर पड़ी कुरसियों पर बैठे उन्मुक्त हँसी हँसते शराब पी रहे थे। उस समय डॉ- प्रताप बस में बैठे शांज़ालिजा से गुज़र रहे थे।
डॉ- बोरहान को देखकर कोई कह सकता था कि वह दुखी हैं? उनके मन को कोई दर्द मथ रहा है? शराब के हर जाम को उठाते हुए धीरे-से कहते थे, ख़ुमैनी की मौत परµसलामतीµ। कहकर हलकी शीशे की आवाज़ जाम टकराने से उठती थी।
चियर्स कीगह डॉ- प्रताप की आँखें थकान से मुँदने लगीं। बोझिल नींद से डूबते दिमाग़ पर मारिया की छवि उभरने लगी। मारिया के साथ वह सोमनाथ की सीढि़याँ चढ़ रहे हैं। उसके नाज़ुक पैर पर उनकीµबाँहों का तकिया पैरों के पास आ गया।
उनके खराटे कमरे की सप़फ़ेद दीवारों से सिर टकराने लगे। सपने में डूबी लक्कड़ देह दावाग्नि की लपट में झुलस रही थी।

रात को डॉ- प्रताप की उड़ान थी। सारा सामान बँध गया था। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। दरवाज़ा खोला तो सामने डॉ- बोरहान को खड़ा पाया। चहकते हुए डॉ- प्रताप बोले, फ्कहाँ थे, डॉक्टर बोरहान? मैं आपके लिए काप़फ़ी परेशान था। सोच रहा था, जाने से पहले मुलाक़ात होती भी है या नहीं? आइए!य् डॉक्टर प्रताप ने उन्हें कमरे में आने की दावत दी।
फ्मैं कुछ कामों में मशग़्ाूल हो गया था। आपका ख़याल मुझे बराबर आता रहा। आपके जाने की तारीख़ मुझे याद थी। आज रात आपकी फ़्लाईट है न?य् डॉ- बोरहान ने हँसते हुए कहा।
फ्जी, रात के बारह बजे? यह रहा मेरा कार्ड। कभी हिंदुस्तान आना हुआ तो मेरे गरीबख़ाने पर तशरीप़फ़ ज़रूर लाइएगा।य् बड़ा विनम्र अनुरोध किया डॉ- प्रताप ने।
फ्जाने से पहले एक-एक पेग हो जाए, अभी तो काप़फ़ी समय है।य् डॉ- बोरहान ने कार्ड को माथे से लगाकर उसे जेब में रखते हुए कहा।
फ्चलिए! दावत मेरी तरप़फ़ से होगी।य् डॉ- प्रताप ने पैन और रूमाल सूट की जेब में सजाते हुए कहा।
फ्आपकी ख़्वाहिश हमारे सिर-आँखों पर, डॉ- प्रताप।य् डॉ- बोरहान ने गद्गद भाव से कहा।
होटल का बार लोगों से भर रहा था। वे दोनों एक कोने में बैठ गए, जहाँ से शहर की गगनचुंबी इमारतें रोशनी के दीए बदन पर सजाए खड़ी हुई थीं। पेग बनाकर दोनों ने सलामती कहा और सिप लिया।
फ्मैंने आपको जब पहली बार देखा तो ग़लतप़फ़हमी में पड़ गया था कि आप हिंदुस्तानी हैं। साँवला रंग, काले बाल, काली आँखें। ईरानी अधिकतर गोरे और भूरे बालों वाले होते हैं।य् डॉ- प्रताप ने हँसते हुए कहा।
फ्मैं शिराज़ शहर से हूँ। वहाँ का साँवलापन पूरे ईरान में अपने नमक और लावण्य के लिए प्रसि) है।य् हँसते हुए डॉ- बोरहान बोले।
फ्अच्छा!य्
फ्खुमैनी की मौत के बाद तशरीप़फ़ लाएँ, शिराज़ में हमारे पुश्तैनी मकान में ठहरें। आपको ईरान का असली चेहरा दिखाऊँगा।य् डॉ- बोरहान ने उत्साह से कहा।
फ्सर, आपकी कॉल है।य् बैरा ने इत्तला दी।
फ्अभी आया। मेरे घर से प़फ़ोन होगा।य् कहकर बोरहान चले गए।
लगभग आधा घंटा बाद डॉ- बोरहान लौटेµलड़खड़ाते। मेज़, दीवार, कुरसी का सहारा लेते हुए, पकड़ते हुए। उन्हें देखकर डॉ- प्रताप आश्चर्य में पड़ गए। आज पिए बिना डगमगा रहे हैं। उनके चेहरे पर शरारत-भरी मुसकराहट उभरी। डॉ- बोरहान के समीप जाने पर वह कोई मज़े का जुमला कसना चाह रहे थ्ज्ञे, मगर उनके चेहरे पर नज़र पड़ते ही डॉ- प्रताप की हँसी और शरारत ग़ायब हो गई थी। डॉ- बोरहान का चेहरा पसीने में डूबा था। डॉ- प्रताप घबरा गए। अपने स्थान से उठकर आगे बढ़े।
फ्क्या बात है, डॉक्टर बोरहान?य् डॉ- प्रताप ने उनके चेहरे और आँखों से उबलते पानी को देखकर व्याकुलता से पूछा।
फ्कुछ ख़ास नहीं, मेरे दोस्त!य् कहकर वे टूटे-से कुरसी पर बैठ गए। उनकी आँखों में जमा पानी गालों पर बह निकला।
फ्प़फ़ोन तो तेहरान से था न? सब ख़ैरियत है न?य् डॉ- प्रताप ने रूमाल से उकना चेहरा खुश्क करते हुए पूछा।
फ्मुझ जैसे यहूदी सरगर्दान की ख़ैरियत पूछते हो?य् डॉ- बोरहान ने आँखें कसकर बंद करते हुए कहा। पानी का वेग आँखों से निचुड़कर गालों पर पछाड़ें खाने लगा।
फ्चाहें तो कुछ बताएँµमन हलका होगा, डॉ- बोरहान।य् डॉ- प्रताप ने उनके हाथों पर अपना हाथ रखा।
फ्यह देखो।य् डॉ- बोरहान ने यह कहकर जेब से पाँच टिकट निकालकर मेज़ पर रखे।
फ्भेजने वाले थे इन्हें तेहरान---?य् डॉ- प्रताप ने कुछ न समझते हुए पूछा।
फ्हाँ, मगर---। वे पाँचों शिराज़ की सरज़मीन छोड़कर ऊपर आसमान में विलीन हो गए हैं।य्
फ्आपका मतलब क्या है इन बातों से?य् डॉ- प्रताप व्याकुल हो उठे।
फ्हैलो, डॉक्टर बोरहान!य् सामने मारिया आसमानी लिबास पहने खड़ी थी। बोरहान उसे देखकर भी वैसा ही लुटा-लुटा बैठा रहा। हाथ मिलाना भी भूल चुका था।
फ्क्या बात है, डॉक्टर?य् मारिया ने घबराकर पूछा।
फ्मेरा घर---शिराज़ में मेरा ख़ानदान---सब कुछ समाप्त हो गया है। सब कुछ धर्म की ज्वाला में जलकर रखा हो गया है।य् डॉ- बोरहान ने अपने को सँभालते हुए कहा।
फ्घर से तार मिला या ख़त?य् मारिया ने काँपते हुए पूछा।
फ्प़फ़ोन आया था। कल शाम बम के विस्फ़ोट में पाँचों उड़ गए।य् डॉ- बोरहान ने धीरे-से कहा।
मारिया और डॉ- प्रताप पत्थर की तरह ख़ामोश हो गए।
फ्कल तक वतन न था, आज अपना कोई न रहा।य् डॉ- बोरहान ने कहा और तीन पेग बनाने लगे।
डॉ- बोरहान जितना अपने को सँभालने की कोशिश कर रहे थे, उतना ही उनका चेहरा उनके दुःख का आईना हो रहा था। घड़ी की सुई नौ पर पहुँच गई थी। मेरा रिर्पोटिंग टाइम उस बजे था। मैंने इज़ाजत ली और कमरे की तरफ़ चल पड़ा। सामान नीचे रखवाकर मैंने टैक्सी के लिए कहा। सामने बार में भीड़ लगी हुई थी। मैंने काउंटर पर चाबी दी। बिल अदा किया।
फ्हार्ट-अटैक हुआ है।य् बैरा कहता हुआ लपका और प़फ़ोन घुमाने लगा। मैं
चलने से पहले डॉ- बोरहान से मिलना चाह रहा था। टैक्सी के लिए कहकर आगे बढ़ा। हमारी मेज़ के चारों तरफ़ भीड़ जमा थी। क्या बात है? डॉ- बोरहान यहीं किसी का मुआयना तो नहीं करने लगे हैं? मारियाµ? हाँ, ठीक तो है, डॉ- बोरहान मारिया का भी इलाज कर रहे थे। कहीं उसे हार्ट-अटैक न हो गया हो? औरतें नाज़ुक दिल होती हैं। फिर ठहरी चित्रकार, संवेदनाओं से जुड़ी। भीड़ हटाकर मैं आगे बढ़ा। सुई नौ से आगे भाग रही थी।
कंधों, हाथों के बीच से जैसे ही मैं आगे बढ़ा, सामने का दृश्य मेरे लिए किसी सदमे से कम न था। मारिया की गोद में डॉ- बोरहान का सिर था और उसकी आँखों से आँसू गिर रहे थे। पास में डॉक्टर अपना बैग उठाकर ख़ामोश खड़ा था।
लाश उठाने के लिए इंतज़ाम हो गया था। मारिया के कंधों पर डॉ- प्रताप ने धीरे-से हाथ रखे। उसने उनकी तरप़फ़ देखा। वहाँ मैं ही तो था अकेला जो डॉ- बोरहान और उसका जान-पहचान का था, जिससे वह अपना दुःख व्यक्त कर सकती थी।
एयरपोर्ट की ओर जाते हुए डॉ- प्रताप का मन भारी था। ईरान का अतीत और वर्तमान उनके सामने खुला पड़ा था और उस खुली किताब के हर पन्ने पर डॉ- बोरहान और उनके ख़ानदान वालों की लाशें थीं।
जहाज़ पर बैठकर डॉ- प्रताप ने खिड़की से नीचे देखा। गगनचुंबी इमारतें सिरों पर जलती कंदीलें उठाए खड़ी थीं। इन्हीं गगनचुंबी इमारतें के बीच भटकता यहूदी सरगर्दान याद आयाµअपने वतन की गज-भर ज़मीन ढूँढ़ता हुआ।

***