hai re vigyapan in Hindi Comedy stories by Dr Narendra Shukl books and stories PDF | हाय रे विज्ञापन !

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हाय रे विज्ञापन !

मैं श्री कृष्ण का शुद्ध भक्त हूँ । प्रतिदिन सुबह - सुबह मंदिर अवश्य जाता हूँ । मंदिर जाने से दिल और दिमाग दोनों पवित्र हो जाते हैं । बीते दिन के पाप धुल जाते हैं । तन और मन पुनः ‘माया‘ का आलिंगन करने के लिये आतुर हो जाता है । आफिस जाकर ‘माल ‘ की तलाश में फाइलें दबाने को मन ललकता है । लेकिन , डाक बाबू के पेशे में माल कहां ! आयकर या उत्पाद शुल्क अधिकारी होता तो बात अलग थी । यहां तो महीने की पच्चास आते - आते चार-पाच हज़ार की उधारी हो जाती है । मेरा मंदिर जाने का मकसद दूसरा है । दरअसल , मंदिर के ठीक सामने राजकीय महिला कालेज़ है । वहां की हवा मेरी आंखों को अज़ब सी ठंडक पहचाती है । मैं सोते से जाग जाता हूँ ।

आज, जब मैं मंदिर जाने को हुआ तो देखा टिंकू चाकलेट खा रहा था । पांच - सात टाफियां पास पड़ी हैं ।

मैंने कहा - ‘बेटा, टिंकू , इतनी टाफियां खाओगे तो दांत सड़ जायेंगे । ‘

वह झटपट बाथरुम से टूथपेस्ट ले आया - पापा , बैट लगा लो । नहीं सड़ेंगे ।

मैं डपटा - क्यों नहीं सड़ेंगे ।

रंग - बिरंगा टूथ पेस्ट दिखाते हए वह बोला - मैं यह टूथ पेस्ट करता हॅूं । टी . वी. वाला राजू भी यही टूथ पेस्ट से ब्रश करता है । एक बार में दो तीन चाकलेट खा लेने से भी उसके दांत मोतियों जैसे चमकते हैं। मैं तो दिन में दो बार ब्रश करता हूं । फिर मेरे दांत कैसे गिर सकते हैं ?

आठ बज रहे थे । कालेज़ खुलने को था । लिहाजा़ , उसे बिना कुछ कहे मंदिर की ओर चल पड़ा । पर , वाह री किस्मत , आज इलैक्शन के चक्कर में कालेज़ बंद था । मुझे बैरंग घर लौटना पड़ा ।

घर आते ही मैंने देखा कि श्रीमती जी खीरा , दूध , नारियल व चंदन आपस में मिलाकर पीस रही हैं । मैंने पूछा - माला , ये क्या कर रही हो ? ताज़ी सब्ज़ियां वैसे ही मंहगी हैं और तुम ?

तुम्हें मेरे हर काम में फिज़ूलखर्ची दिखाई देती है । श्रीमती जी ने मेरी बात काटते हये गुस्से में कहा ।

मैंने बड़े प्यार से कहा - माला दरअसल , मेरा वह मतलब नहीं था । तुम मेरे बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रही हो । चैनलों पर ‘बहस‘ देखते - देखते मैं अपनी ही कही बात से मुकरने में खिलाड़ी हो गया था ।

मैं अच्छी तरह से जानती हूं आपका मतलब । वे एहसान जताते हुये बोलीं - आपकी ही जेब बचा रही हूं । चेहरा साफ करने का लेन बना रही हूं । टी. वी. पर देखा नहीं । इन्हीं सब के मिक्स्चर से बनी फेयरनेस क्रीम लगाकर काली कलूटी कमला इतनी गोरी चिटटी हो गई कि काली कलूटी कहकर शादी से इंकार करने वाला राहुल भी अपने मां - बाप को छोड़कर, बिना दहेज़ के कमला को शादी करके ले जाता है ।

मैंने माथा ठोंका - पर भागवान , तुम्हें तो अब मैं ब्याह के ले के ले आया हूँ न ।

वे तुनक कर बोलीं - हूँ कभी ब्यूटी पार्लर तो ले के नहीं गये । दो पैसे तो खर्च नहीं किये मुझ पर । चले हैं ब्याह के लाने वाले । हूं । मोहल्ले में कमला , विमला , छाया आदि सभी के पति अपनी बीवीयों को सप्ताह में दो बार ब्यूटी पार्लर भेजते हैं । और एक आप हैं कि । आप नहीं चाहते कि मैं सुंदर दिखूं । वे रोने लगीं ।

मैंने हथियार डाल दिये । लेकिन कामयाब पतियों की तरह शायराने अंदाज़ में कहा - प्रिया तुम वैसे ही ‘रवीना टंडन ‘ लगती हो । तुम्हें इन बनावटी चीज़ों की क्या आवश्यकता ?

सच्चाई छूप नहीं सकती बनावट के असूलों से ।

खशबू आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से ।।

वे शांत हईं । मुस्करा कर कहा - मैं और सुंदर होकर मोहल्ले में होने वाले ‘ब्यूटी कांन्टेस्ट ‘ में ‘मिस मोहल्ला ‘ बनना चाहती हूं ।

मैंने कोई और रास्ता न देख हवा में तीर फेंका - पर , यह क्रीम तो तुम बाज़ार से भी ले सकती हो ।

वे बोलीं - बाज़ार में यही क्रीम 200 रुपये की है । मैं हार गया और चुपचाप हाथ पर रुपये रख दिये ।

शाम को , पिंटू और ‘मिंटू‘ को मैथ की किताब लिये आपस में झगड़ता देखकर मैंने मिंटू से पूछा - क्यों रे , इतना शोर क्यों मचा रखा है ?

मिंटू बोला - पापा , पिंटू कहता है कि जायेगा । मैं कहता हूं कि नहीं जायेगा ।

मेरी नज़र पिंटू की नोट - बुक पर पड़ी । जहां 10 अंक में से 12 अंक घटाये जा रहे थे । मैंने पिंटू के कान उमेठते हुये पूछा - क्यों रे , भला 10 में से कभी 12 गये हैं । स्कूल में यही सिखाया जाता है ?

पिंटू रोते हये बोला - पापा , स्कूल में तो एक सवाल कराके बाकि सवाल यह कह कर , घर से कर के लाने को कहा जाता है कि बाकि भी इसी तरह के हैं । न समझ में आये तो टयूशन में समझ लेना । यहां समय वेष्ट करने की जरुरत नहीं है ।

मिंटू बोला - दरअसल पापा , हम ‘सम‘ नहीं , टी.वी पर आने वाली उस एड के बारे में बात कर रहे थे जिसमें बच्चे की ‘टी - शर्ट ‘ पर लगे सार्स के दाग को लेकर पति - पत्नी में झगड़ा हो जाता है ।

मेरी आॅंखों के आगे वह दृश्य आ गया जब आधुनिक मांए जींस व ‘टी-शर्ट‘ पहने , ‘टी-शर्ट ‘ के दाग को धोने के लिये खुशी - खुशी ऐसे ‘वाशरुम‘ जाती हैं जैसे किसी सहेली के घर ‘किटटी - पार्टी‘ में ‘तंबोला‘ खेलने जा रही हो ।

अपनी पड़ोसन , मिसेज़ वर्मा को पीठ पकड़कर कराहते हुये लाॅन में टहलते हुये देखकर मैंने पूछा - क्यों मिसेज़ वर्मा , आज क्या एक्सरराइज़ अधिक कर ली ?

मिसेज़ वर्मा हमारे मोहल्ले की ‘लेडी दारा सिंह‘ हैं । मोहल्ले में जब भी उठा-पटक होती है । इन्हें बड़े सम्मान से बुलाया जाता है ।

मिसेज़ वर्मा ने कहा - नहीं भाई साहब । अब क्या बताउॅं ! उस मुए एडवरटाइज़मेंट के चक्कर में आकर घर की सारी चददरें , पर्दे, बैड -कवर व गददे धो डाले । हाय ! अब खड़ा भी नहीं हुआ जाता । सत्यानाश हो उसका । कहता था , इस वाशिंग पाउडर से धोबियों की छुटटी हो जायेगी । मुआ , एक बार और मिल जाये जो कसम खुदा की उसकी चटनी बना दूं । एक पल के लिये जोश में उनकी मुटिठयां तन गईं । लेकिन दूसरे ही पल वे फिर कराहने लगीं ।

एक दिन , मेरे एक मित्र घर आये । वे मेरे साथ ही डाकघर में कर्लक थे । उनका भी मेरी ही तरह जीविका का एकमात्र सहारा तनख़्वाह ही था । उनकी परमात्मा से सदा यही शिकायत रहती कि भगवान ने उन्हें डाक -घर में ही नौकरी क्यों दी । जबकि वे मालदार विभाग में चपडा़सी बनने के लिये भी तैयार थे ।

आज़ मित्र कार पर आये थे । मैं हैरान हुआ - भाई भूषण , ‘राखी बंपर‘ इस बार क्या तुम्हारे नाम लगा हैं ?

वे बड़ी शान से बोले - नहीं प्यारे । अलादीन का चिराग हाथ लग गया है । यह सब ‘के. बी. आई ‘ बेंक का कमाल है । कार , टी.वी. ए.सी. तथा मकान सब कुछ लोन पर मिल गया है ।

मैंने स्थिती समझते हुये पूछा - पर , भूषण , इन सबका ब्याज़ भी तो देना पड़ेगा ?

वे रइसों की सी अदा में बोले - पहले साल तो कुछ देना नहीं है । फिर इज़ी सी 72 किस्तें कुल दस हज़ार की हैं ।

मैंने कहा - लेकिन , तुम्हारी पगार तोे तीस हज़ार ही है । हर महीने की 25 आते - आते तुम हाथ पसारने लगते हो । किश्त कैसे दोगे ?

उन्हें मेरा प्रश्न पसंद नहीं आया । लेकिन , फिर कुछ सोचते हुये तनिक दार्शनिक अंदाज़ में कार में बैठते हुये बोले - सब हो जायेगा । तुम्हे चिंता करने की ज़रुरत नहीं है । और नहीं भी हुआ तो बैंक हैं ही । लोन ले लेंगे ।

मैंने मन में कहा - भारत ‘न्यू इंडिया ‘ हो गया है । अब हम विज्ञापनों के सहारे चांद से तारे भी तोड़ कर ला सकते हैं । उभरते प्रेमियों का अब घबराने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है । वे चांद पर हनीमून की तैयारी कर सकते हैं ।

- डा. नरेंद्र शुक्ल