Thappad in Hindi Short Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | थप्पड़

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थप्पड़

औऱ अब रिपोर्ट लिखाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था।उसकी बेटी चारु कल कॉलेज गई थी औऱ फिर घर नहीं लौटी थी।पहले वह समझता रहा किसी सहेली के घर चली गई होगी।आ जायेगी।लेकिन रात होने पर.भी चारू नही लौटी,तो वह चितिंत हो उठा।बेटी का मामला था।बदनामी के डर से बात को छिपाए रहा।लेकिन कब तक ?सुबह होने पर कॉलोनी के कई लोगो को चारु के बारे मे पता चल गया था।
बेटी की तलाश मे वह कॉलेज गया।उसके साथ पढने वाली सब लडकियों से मिला।तब एक लडकी ने बताया था"चारू हिरोइनबननाचाहतीहै।किसी लडके के साथ मुम्बई जाने की बात कर रही थी।"
उस लडकी की बात सुनकर वह समझ गया कि बिना पुलिस की मदद के चारु को ढूंढना मुश्किल है।लोगों को चारु के घर न लौटने के बारे मे पता चल चुका था।इसलिएअब छुपाने के बारे मे कुछ नही रह गया था।वह रिपोर्ट लिखाने के लिए थाने जा पहुंचा।थाने के गेट पर खडा सिपाही उसे रोकते हुए बोला,"कहॉ जा रहे हो?
"थानेदार साहब से मिलना है"
"कयो मिलना है?कया काम है?"सिपाही ने एक साथ कई प्रश्न दाग दिए थे।
,मुझे रिपोर्ट लिखानी है"
रिपोर्ट का नाम सुनते ही सिपाही ने उसका हाथ पकड़कर अंदर जाने से रोक दिया।थानेदार रघुराज का स्पष्ट आदेश था कि उसकी अनुमति के बिना कोई एफ आई आर न लिखी जाए।रिपोर्ट लिखाने आये शख्स को थाने के अंदर ही न घुसने दिया जाए।थानेदार के आदेश का पालन करते हुए।सिपाही ने उसे हडकाया।उलटा सीधा बक कर ,उसे भगाने का प्रयास किया।उसनें सुन रखा था कि थाने मे एफ आई आर कराना आसान काम नहीं है।लेकिन वह भी पकका इरादा करके आया था कि रिपोर्ट लिखाकर ही आयेगा।उसनें संयम रखते हुए खूब मिन्नतें की औऱ सिपाही के आगे से टस से मस नहीं हुआ।सिपाही उससे हार गया औऱ बोला"जाओ"
थानेदार रघुराज आराम से कुर्सी पर बैठा था।उसके हाथ मे मोबाइल था।रात को मुखबिर की सूचना पर उसने एक होटल पर छापा मारा था।युवक युवतियों को रंगरेलियां मनाते पकड़ा था। उनकी फोटोज उसने मोबाइल मे कैद कर ली थी।उन्ही को वह देख रहा था।तभी वह थानेदार के चेम्बर मे जा पहुंचा।
"कौन है बे तु?और यहॉ कयो आया है?"
अपना परिचय देकर वह बोला",मुझे रिपोर्ट लिखानी है"।
"रिपोर्ट।कैसी रिपोर्ट?"
"मेरी बेटी चारू--- -और उसने एक ही श्वांस मे अपनी बात कह दी।
"बेटी तुम्हारी भागी है औऱ परेशान करने मुझे चले आये।बेटी को अच्छे संस्कार दिए होते,तो यह दिन कयों देखना पडता।बेटी भाग गई।तुम्हारे मुह पर कालिख पोत गई।औऱ तुम अपनी बदनामी का ढिंढोरा पीटने मेरे पास चले आये।"थानेदार रघुराज उसकी बात सुनते ही उखड गया था,"मै तुम्हारी जगह होता,तो जानते हो क्या करता?"
"कया करते?वह मरी सी आवाज मे बोला था।
"मै तुम्हारी तरह अपनी बदनामी का गाना गाते नही फिरता।अपनी बेटी को ढूढकर गोली मार देता।बेटी नही मिलती तो अपने को गोली मार लेता"।
थानेदार रघुराज उस पर गरज रहा था।तभी एक औरत बदहवास सी उसके चेम्बर मे आयी थी।वह आते ही बोली"रंजीता कॉलेज से नही लौटी है।सब जगह तलाश लिया।घर से गहनों औऱ नगदी भी गायब है।"उस औरत की बातें सुनकर थानेदार के चेहरे का रंग उडता जा रहा था।
"तुमने तो अपनी बेटी को अच्छे संस्कार दिए होगें।फिर वह कयो भाग गई?"वह उस औरत की बात सुनकर समझ गया था कि वह थानेदार की बीबी है और उसकी बेटी भाग गई है,"मुझे बहुत भाषण दे रहे थे।अब देखता हूँ बेटी को गोली मारोगे या खुद को।"
वह बिना रिपोर्ट लिखाये चला गया था।लेकिन थानेदार को ऐसा लग रहा था,बातों ही बातों मे वह उसके गाल पर थप्पड़ जड गया था।