Unique journey to my diamond planet - 2 in Hindi Adventure Stories by Hareesh Kumar Sharma books and stories PDF | मेरी डायमंड ग्रह की अनोखी यात्रा - 2

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मेरी डायमंड ग्रह की अनोखी यात्रा - 2

मैं राजा जॉजफ की सेना मेरी मदद के लिए वहां से चल पड़ी थी। और मैं वहां दुश्मन राज्य की सेना को युद्ध ना करने के लिए विनती कर रहा था। मैंने उन लोगों को बहुत समझाया, बहुत विनती की लेकिन वो लोग तो समझने के लिए तैयार ही नहीं थे, मानो दुश्मन सेना सिर्फ युद्ध के लिए ही आयी थी। अब मैं मजबूर था उनके साथ युद्ध करने के लिए। कुछ ही देर बाद राजा जॉजफ की सेना भी वहां पहुंच गयी ‌। लेकिन जब तक हमारी सेना मेरे पास पहुंची तब तक दुश्मन राज्य की सेना ध्वश्त हो चुकी थी। और मैं वहीं पर एक पत्थर से लगकर बैठा था। राजा जॉजफ की सेना ये सब देखकर दंग रह गयी , उनमें से एक सैनिक की नज़र मुझपर पडी फिर उसने बाकी सैनिकों को मेरे बारे में बताया कि मैं वहां उस तरफ बैठा हुआ हूं। सभी सैनिक आश्चर्य वाली नज़रों से देखते हुए मेरे पास आऐ और मुझसे कहा कि आप ठीक तो हैं। मुझे दुश्मन सेना के कुछ हथियारों से हल्की-फुल्की चोट लगी थी और उसके कारण मुझे दर्द भी हो रहा था। लेकिन मैं उन लोगों को कोई परेशानी नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने उन लोगों से कहा कि मैं ठीक हूं बस यहां आकर बैठ गया था। पता नहीं मुझसे पहले ही इन सभी को कौन हराकर चला गया? लेकिन सेनापति समझ गया कि सारी सेना को मैंने ही मारा है। सेनापति ने मुझसे कहा कि आपने अकेले इतनी बड़ी सेना को कैसे हरा दिया। मैंने कहा नहीं इन सभी को मैंने नहीं मारा है ये मेरे यहां पहुंचने से पहले ही ये सभी ऐसे ही पड़े थे। सेनापति ने तुरंत मुझसे पूछा कि आप हमसे झूठ क्यों बोल रहे हो? क्योंकि हम जानते हैं ये दुनिया की सबसे ताकतवर सेना थी। और पूरे डायमंड ग्रह पर इन्हे हराना किसी भी राज्य के बस का नहीं था। और वैसे भी आपके अलावा यहां दूर-दूर तक कोई भी नहीं है। मैंने सोचा कि अगर ये बात सभी को पता लगी कि मैं अकेला ही एक सेना के बराबर हूं तो और भी राज्य मुझे बन्दी बनाने की कोशिश करेंगे और राजा जॉजफ के दुश्मनों की संख्या और बढ़ जायेगी। इसलिए मैंने सेनापति से कहा कि सेनापति आपसे एक विनती है। सेनापति बोले-" विनती नहीं आप बताइए क्या करना है निश्चिंत रहिए वही होगा जो आप चाहेंगे। मैंने कहा कि आप राज्य में किसी को भी ये मत बताना कि दुश्मन सेना को मैंने हराया है बल्कि आप ये कहना कि दुश्मनों ने मुझे बन्दी बना लिया था लेकिन सही समय पर आप सभी वहां पहुंच गए और अपनी पूरी शक्ति से लडकर दुश्मन को हरा दिया और फिर मुझे छुडाकर लेआये, ठीक है। सेनापति ने कहा कि ठीक है, जैसी आपकी मर्जी। और यह कहकर सेनापति ने सेना को आदेश दिया कि आप में से कोई भी राज्य में ये नहीं बताएगा कि दुश्मन सेना को किसने मारा है। सभी यही बताना कि हमारी सेना ने दुश्मन राज्य की सेना को युद्ध में हराया है। सेना में खुशी थी कि उन्होंने डायमंड ग्रह की सबसे शक्तिशाली सेना को हरा दिया है और अब से सभी राज्य राजा जॉजफ के राज्य से डरेंगे, कोई भी अब से हमपर आक्रमण नहीं करेगा। सैनिकों की तरफ से पूरे जोश और उल्लास के साथ आवाज आयी कि ठीक है हम ऐसा ही बोलेंगे। सेनापति ने सेना को वापस चलने का आदेश दिया फिर सभी वहां से वापस लौट आए। मैं और सेनापति वहां से लौटने के बाद राजा जॉजफ के पास गए और उन्हें युद्ध के बारे में जानकारी दी। राजा जॉजफ ये सुनकर बहुत खुश हुए और खुशी में सेनापति को राज्य में महोत्सव आयोजित करने का आदेश दिया। सेनापति आदेश सुनकर वहां से चले गए और राज्य में एलान करा दिया कि आज रात को राज्य में जीत की खुशी महोत्सव मनाया जायेगा। राज्य की सारी जनता ने पूरे हर्षोल्लास से महोत्सव मनाया। अब राजा जॉजफ का लगभग आधे डायमंड ग्रह पर आधिपत्य था। उस रात उन सभी का खुशनुमा माहौल को देखकर मुझे भी अपने घर पृथ्वी की याद आ रही थी। मैं रात के अंधेरे में एक सुमशान जगह पर लेटकर आसमान में टिम-टिमाते तारों को देख रहा था। मेरे मन में चल रहा था कि पता नहीं इन लाखो-करोडो तारों में मेरी धरती कौन-सी है? पता नहीं घर पर मम्मी पापा कैसे होंगे? जब उन्हें मेरी याद आती होगी तो वो कैसे अपने मन को मनाते होंगे? यही सोचते-सोचते मैं पता नहीं कब उसी खुले आसमान के नीचे सो गया। सुबह के समय अचानक मुझे एक आवाज़ आई-" ओए हरीश, यार, अभी तक सो ही रहा है जागना नहीं है क्या?" मेरी नींद तुरंत खुल गई मुझे लगा कि मेरे पापा मुझे आवाज़ दे रहे हैं। लेकिन ये आवाज़ मेरे पापा की नहीं बल्कि सेनापति जी की थी। मैं उठा और बोला कि नहीं, मैं जाग चुका हूं। बताइए कैसे याद किया? सेनापति ने कहा कि हम सुबह की सैर के लिए जा रहे हैं अगर आप भी हमारे साथ चलोगे तो हमें अच्छा लगेगा। मैंने कहा कि ठीक है चलो मैं भी चलता हूं। फिर मैं और सेनापति सुबह की सैर के लिए चल पड़े। जब हम सैर कर रहे थे अचानक से आसमान में एक तेज रौशनी एक दिशा से दूसरी दिशा में गयी। मैं चौंक गया की यहां तो किसी को भी स्पेश साइंस का ज्ञान नहीं है फिर ये क्या था। वो एक रंगीन तरंग की तरफ थी। ऐसी तरंगों को पृथ्वी पर भी कई बार देखा गया है। मैंने सेनापति जी से पूछा कि क्या आपने अभी आसमान में जो रौशनी गुजरी उसे देखा क्या? सेनापति ने कहा कि यहां आसमान में ये रौशनी बहुत बार देखी गई है। पर ये रौशनी क्या है, कहां से आती है? ये किसी को भी नहीं पता है। फिर मैंने उस रौशनी को नज़रंदाज़ कर दिया और हम आगे चले गए। मैं अपनी सैर करने के बाद महल गया फिर वहां से खाना-पीना करके अपने स्कूल पहुंचा जहां मैं बच्चों को स्पेश के बारे में सिखाता-पढाता था। कुछ दिनों तक सब अच्छा चलता रहा। जैसा कि आप सभी जानते हैं नयी जैनरेशन ( बच्चे ) टैक्नोलॉजी की बातें बहुत ही जल्दी समझ जाते हैं। ऐसा ही कुछ वहां भी हुआ। एक दिन एक बच्चा अजीब सा दिखने वाला डब्बा लेकर मेरे पास आया। शायद उसमें कुछ खास चीज़ थी। क्योंकि उस बच्चे ने डब्बे को बहुत सारी लचीली चीजों से ढका हुआ था। वो बच्चा मेरे पास आया और मुझसे कहा कि-"मैं आपके अंतरिक्षयान के पास से गुजर रहा था तो उसमें से एक आवाज़ आ रही थी। मैं उस आवाज़ को सुनने के लिए अंदर गया तो उसमें से ये मिला। वैसे ये क्या है?" मैंने तुरंत उस डब्बे को खोला और देखा कि वो एक रेडियोएक्टिव वैव रिसीवर था जिसे कुछ रेडियोएक्टिव वैव रिसीव हो रहीं थीं। फिर मैंने उस बच्चे को रेडियोएक्टिव वैव रिसीवर के बारे में सारी बातें बताई। ये सब बातें सुनकर वो बच्चा कुछ सोचने लगा मैंने उसके सर पर हंसते हुए हाथ फेरा और मैं बोला ज्यादा मत सोचो मैं तुम्हें इसके बारे में अच्छी तरह से बताऊंगा अभी तुम जाओ और खेलो। बच्चा खुश होकर वहां से चला गया। लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि ये रेडियोएक्टिव वैव्स आ कहां से रहीं हैं? तभी पीछे से सेनापति जी की आवाज़ आई कि किस सोच में पड़े हो? मैंने हंसते हुए कहा कि कुछ नहीं बस ऐसे ही ,आप आइए। तब तक सेनापति जी और मेरी अच्छी दोस्ती हो चुकी थी। सेनापति जी आकर मेरे पास बैठ गये और बोले किस सोच में डूबे हुए हैं जनाब? मैंने कहा कुछ नहीं मैं बस ये सोच रहा था कि ये एक तरंगमापी यंत्र है। और अभी इसे कुछ तरंगें प्राप्त हो रहीं हैं लेकिन यहां तो कोई साइंस के बारे में जानता ही नहीं है फिर ये तरंगें कहां से आ-रहीं हैं? बस यही सोच रहा था। सेनापति जी बोले कि " हां , यहां तो कोई भी इस चीज़ के बारे में नहीं जानता है। फिर कहां से आ-रहीं हैं?" मैंने सेनापति जी से कहा कि आप परेशान ना हो। मैं इसके बारे में जानकारी निकाल लुंगा। आप बताइए कि क्या चल रहा है? सेनापति जी-" कुछ नहीं बस ऐसे ही घूम रहा हूं।"
मैं - अच्छा, और राजा साहब के क्या हाल है?
सेनापति जी - वो भी अच्छे हैं। अच्छा आप अपने ग्रह के बारे कुछ बताओ कि कैसा है तुम्हारा ग्रह?
मैं - आज आपको मेरे ग्रह के बारे में जानने का ख्याल कैसे आया?

सेनापति जी - बस ऐसे ही पूछ रहा हूं कि जहां के लोग इतने शक्तिशाली है तो वो ग्रह कैसा होगा?

मैं - अच्छा , आपको सच बताऊं तो मेरी पृथ्वी जैसा ग्रह कहीं नहीं है। उसकी तो कुछ बात ही निराली है।

सेनापति जी - अच्छा, ऐसा क्या है वहां?

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फिर मैंने सेनापति जी को पृथ्वी के बारे में बताया।

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कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहा। मैं लोगों में खुशीयां बांटता फिरता था और वहां के लोग भी मुझे अपने छोटे भाई की तरह मानते थे। कुछ सालों में मैंने वहां के लोगों को और बच्चों को अंतरिक्ष विज्ञान का अच्छा ज्ञान करा दिया । और फिर मैंने उन लोगों के साथ मिलकर अपना अंतरिक्षयान ठीक कर लिया। लेकिन एक दिन जब मैं और सेनापति जी राज्य में घूम रहे थे। अचानक अंतरिक्ष में एक तेज रफ्तार से चक्रवात बनने लगा। मैंने सेनापति जी से कहा कि अब ये क्या हो रहा है? सेनापति जी ने मुझसे कहा कि "आज मैं ये चक्रवात दूसरी बार देख रहा हूं।" मैंने पूछा पहले कब देखा था आपने इसे? सेनापति जी ने मुझे बताया कि " जब आप इस ग्रह पर आये थे तब भी एक ऐसा ही चक्रवात बना था। और आप इसी चक्रवात से निकलकर डायमंड ग्रह पर आते थे।" सेनापति अपनी पूरी बात भी नहीं कह पाए कि अचानक एक और अंतरिक्षयान उस चक्रवात से निकलकर डायमंड ग्रह पर आकर गिरा। मैं और सेनापति जी तुरंत सैनिकों के साथ उस अंतरिक्षयान के पास गए और उसमें से भी एक इंसान बहार आया। वो इंसान रशियन स्पेश एजेंसी से था। मैं उसे अपने साथ महल लेकर आया। उसे पहले राजा जॉजफ से मिलवाया और फिर उसे खाना खिलाया। फिर कुछ देर बाद मैंने उससे पूछा कि आप भी अंतरिक्ष में कोई ग्रह ढुंढने के लिए निकले थे क्या? उसने मुझसे कहा कि नहीं, वो तो बस सैटेलाइट मैन्टेनैन्स के लिए आया था। मैंने उससे पूछा तो आप पृथ्वी से इतना दूर कैसे आ गये? उसने मुझसे कहा कि ये ग्रह अद्रश्य ग्रह है। हम अभी पृथ्वी से ज्यादा दूर नहीं हैं। ये बात सुनकर मुझे उन रेडियोएक्टिव वैव्स की याद आई। मैंने सेनापति जी से कहा कि वो रेडियोएक्टिव वैव्स हमारे ग्रह पृथ्वी से ही आ-रहीं थीं। मैं तुरंत समझ गया कि हम जिस चक्रवात से निकलकर डायमंड ग्रह पर आये हैं वहीं से बाहर निकलने का भी रास्ता होगा। फिर मैं और दूसरा अंतरिक्ष-यात्री दोनों अपने अंतरिक्षयान को ठीक करने में जुट गए। क्योंकि अब मैंने दूसरे अंतरिक्षयान में से आधा फ्यूल ले लिया था और इतना फ्यूल हमें पृथ्वी तक आराम से पहुंचा सकता था।


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अब हम वहां से अपनी उड़ान भर पाये या नहीं क्या कोई फिर से परेशानी तो नहीं आयी? क्या वो चक्रवात दोबारा से बन पाया? ये सारी बातें जानेंगे पार्ट-3 में। अभी तो कहानी बहुत लम्बी है। तो चलिए अभी के लिए नमस्कार दोस्तों।


यदि आपका इस कहानी के सम्बन्ध में कोई भी सुझाव है तो आप मुझे 91-6398908295 पर WhatsApp कर सकते हो।


© Hareesh Kumar Sharma