Pustak Samiksha - 4 in Hindi Book Reviews by Yashvant Kothari books and stories PDF | पुस्तक समीक्षा - 4

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पुस्तक समीक्षा - 4

समीक्षा

हम सब दीमक हैं

यशवंत कोठारी

पिछले दिनों मैंने कुछ व्यंग्य उपन्यास पढ़े. तेज़ गर्मी ,लू के थपेड़ो के बीच लिखना संभव नहीं था सो कूलर की ठंडी हवा में पांच व्यंग्य उपन्यास पढ़ डाले. एक दीमक सबसे बाद में पढ़ा गया,लेकिन मुझे इस से बढिया शीर्षक नहीं मिला.जो अन्य उपन्यास पढ़े गए वे हैं-शरद जोशी का –मैं मैं और केवल मैं ,सुरेश कान्त का ब से बैंक ,हरी जोशी का घुसपैठिये ,गिरीश पंकज का माफिया . इसी बीच फे स्बूक पर कवि सम्मेलनों पर एक उपन्यास अंश देखा,अधिकांश कवि सम्मेलन हास्यास्पद रस के होते हैं अत:इसकी चर्चा व्यर्थ है

.शरद जोशी का उपन्यास मैं अक्सर पढता रहता हूँ व् यह देखता रहता हूँ की यह रचना बड़े कलेवर में आती तो कैसी होती. ब से बैंक काफी समय पहले लिखा गया था, आजकल सुरेश कान्त इस पर पुन; कम कर रहे हैं.हरी जोशी की रचनाओं का कायल रहा हूँ ,घुसपैठिये में एक किरायेदार व् मकान मालिक की व्यथा –कथा हैं जो हर भुक्त भोगी जानता है.लेकिन विषय का निर्वहन अच्छा है.माफिया लेखक पत्रकार बिरादरी के व्यापक फलक को लेकर लिखा गया है. लगभग सभी लेखक –सम्पादक-पत्रकार इस रस्ते से गुजरे हैं.और अंत मैं मेने दीमक पढ़ा. दीमक प्रकाशक ने भेजा था ,मगर मैं वी पी नहिं छुड़ा सका बाद में लेखक ने भेजा .

कुछ पुस्तके काफी समय पहले छपी हैं कुछ ताज़ा है लेकिन दूसरी तीसरी बार पढने का भी आनन्द है, जिसे मैं स्वीकार कर ता हूँ.ये लेखक मेरे क्षेत्र व् जाती के नहीं हैं.

बात उपन्यासों के कथ्य शिल्प और भाषा की भी होनी चाहिए.कथ्य कीस्थिति ये है की आप यदि सरकार के किसी विभाग में हैं तो उस विभाग की विसंगतियों पर उपन्यास लिख सकते हैं इसे काफी प्रयोग हुए हैं.शिल्प के नाम पर प्रतीक, बिम्ब ,आदि का सहारा लिया जासकता है. भाषा का चयन सावधानी से किये जाने की जरूरत है,यही मेरे जैसा लेखक गलती करता है.

बड़े लेखकों को जाने दीजिये वे तो जो करेंगे अच्छा की कहलायेगा, कालिदास व्याकरण की चिंता नहीं करता , उनके लिखे के अनुसार साहित्य की भाषा व् व्याकरण बनते बिगड़ते हैं.

हिंदी में बड़े कलेवर के व्यंग्य उपन्यास नहिं लिखे गए . अब स्थिति ये है की आप रेल विभाग, पोस्ट ऑफिस ,सेना, प्रशाशन,शिक्षा ,पुलिस , याने किसी भी महकमे पर एक ठो उपन्यास पाठक के सर पर ठोक सकते हैं.केवल विषय तय करना है,बाकि तो पाण्डुलिपि के साथ चेक भेजना है भाई साहब.आप जिन्दगी भर जिन्दगी के साथ व्यंग्य कार सकते हैं लेकिन जब जिन्दगी आपके साथ व्यंग्य करती है तो व्यंग्य जन्म लेता है.शास्त्रीय बाते शास्त्रकार जाने ,व्यंग्य के काव्य शास्त्र को भी नहीं समझता हूँ,सपाट बयानी के लफड़े में भी नहीं पड़ना चाहता हूँ फिर भी अपनी मोटी बुद्धि के सहारे कुछ मोटी-मोटी बातें प्रस्तुत हैं.

इन रचनाओं में विट है हुमर है, आइरनी कटाक्ष,,पंच आदि सब है.रचनाओं का कलेवर विशाल नहीं है, लेकिन एकाग्रता के साथ लिखे गए है. यह लेखन एक सिटींग का लेखन नहि है. कई बार का ड्राफ्ट है. इन रचनाओं में अनुभव भी जलकता है. ये वो नहीं है की टी वि के सामने बैठ जाओ और घटना के घटते हीं तीन सो शब्द लिखो सम्पादक को फोन कर भेज दो.

शरद जोशी ने जब जीप पर सवार इल्लियाँ लेख लिखा तो सब तरफ इल्लियाँ हो गई थी. आज कल सब तरफ दीमक हो गए हैं जो व्यवस्था को खोख ला कर रहे हैं. शशि का यह उपन्यास इसी वर्ष आने वाली दूसरी बड़ी रचना है.यह शिक्षा व्यवस्था पर करारी चोट है.श्रीलाल शुक्ल ने शिक्षा पद्यति को रस्ते पर पड़ी कुतिया बताया था ,इसे गरीब की जोरू सबकी भाभी कहा जाना चाहिए.यह व्यवस्था उस द्रोपदी की तरह है जो किसी को भी मना नहीं कर सकती.

कभी उपन्यासों में एक चलन आया था, चित्त कोबरा , सफ़ेद मेमने,सांड, जैसी किताबे आई थी. लगभग यहीं चलन इल्लियों से दीमक, केंचुयें आदि तक तक पहुंचा है. आप डाक्टर है इस व्यवस्था पर लिखे, कलाकार है इसकी कमियों पर लिखे.पुलिस पर भी वीरेंद्र जैन ने एक व्यंग्य उपन्यास लिखा था.

लेकिन फिर भी राग दरबारी सब पर भा री पड़ता है.

इन रचनाओं की एक विशेषता ये भी है की इन में गा लियां नहि है. आ प की कलम में दम हो तो बिना गा ली दिए भी आप गहरी बात प्रभावशाली तरीके से कह सकते हैं.गा ली लिखने से रचना व् लेखक दोनों ही हलके हो जाते है, फिर भले आप पद्म हो जाये.लेकिन कीचड़ में सने.दीमक भी गा ली विहीन है, हा जो स्थानीय भाषा के संवाद है उनसे बचा जा सकता था.गा ली नहिं लिखना सपाट बयानी नहीं है.

माफिया का सदस्य में भी बनना चाहता हूँ , भरती खुले तो बताना यार.हर तरफ घुसपैठियें जमे हुए है. व्यंग्य के दरवाजे पर खड़े खड़े थक गया हूँ . ब से बैंक कि गली में एक खा ता अपना भी खोलना चाहता हूँ.

मित्रों तमाम् लोगो की नाराजगी की रिस्क लेकर यह पोस्ट फेस बुक पर है क्योकि जल्दी ही पागल खाना पढना है.OOOOOOO

१-मैं ,मैं,और केवल मैं –शरद जोशी-वाणी प्रकाशन ,दिल्ली

२-ब से बैंक –सुरेश कान्त –पराग प्रकाशन दिल्ली

३-घुसपैठिये-हरी जोशी,राजपाल प्रकाशन दिल्ली

४-माफिया –गिरीश पंकज –जगत राम एंड संस ,दिल्ली

५-दीमक-शशिकांत –बोधि प्रकाशन जयपुर

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यशवंत कोठारी ८६,लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बाहर जयपुरमो-९४१४४६१२०७