अशोक विहार की कोठी में जब मैंने कदम रखा तो उस समय बंसल साहब की लाश ड्राइंग रूम में बिलकुल बीचोंबीच पड़ी हुई थी। पुलिस की फोरेंसिक टीम अपने काम में लगी हुई थी और फोटोग्राफर लाश के विभिन्न एंगल से फोटो लेने में लगा हुआ था।
मै अभी लाश की तरफ बढ़ ही रहा था कि एक पुलिसिये ने मेरा रास्ता रोक दिया। वो सब इंस्पेक्टर चौहान था जो पता नही क्यों मुझ से कुछ ज्यादा ही खुंदक खाता था।
"तुम्हे क्या घर बैठे लाश की स्मेल आ जाती है क्या जो हर जगह पहुंच जाते हो अपनी टांग अड़ाने"चौहान जलेभुने स्वर में बोला।
"जाओ चौहान साहब अपने काम में ध्यान दो ऐसा न हो की मुर्दा उठकर भाग जाए" मैंने चौहान को मुस्करा कर जवाब दिया।
"भागेगा तो बेटा तू अभी यहाँ से" चौहान अपनी हद से बाहर जा रहा था अब।
"चौहान इधर आ, वहां क्या कर रहा है"ये आवाज इंस्पेक्टर निरंजन शर्मा की थी। शर्मा जी की आवाज सुनकर चौहान मेरे पास से नौ दो ग्यारह हो गया। मेरी नजर भी उनकी आवाज सुनकर शर्मा जी पर पड़ी। मै लपक कर शर्मा जी के पास गया।
"सॉरी सर !वो यहाँ आते ही चौहान साहब मेरी सेवा पानी में लग गए तो मै आपको सैलूट करने नहीं आ पाया।
"पता है मुझे कैसी सेवा पानी कर रहा होगा वो तुम्हारी" शर्मा जी ने मुस्करा कर कहा।
"मै सोच ही रहा था कि अभी तक अनुज बाबू क्यों नहीं आये? कब से बंसल साहब की लाश भी अकेले बोर हो रही थी" उस गम्भीर माहौल में भी शर्मा जी हल्का सा मुस्करा कर बोले।
"सर लाश पुलिस और जासूस इन तीनो का तो चोली दामन का साथ है"मैंने मुस्करा कर शर्मा जी को जवाब दिया।
"ठीक है तुम देखो यहाँ ! तब तक मै बाकि काम निबटा लेता हूँ फिर शाम को थाने में मिलते है"ये बोलकर शर्मा जी अपने कामो में मशगूल हो गए।
मै अनुज! एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ। मै जासूसी के उस दुर्लभ धंधे से ताल्लुक रखता हूँ जो भारत में दुर्लभ ही पाया जाता है। हमारे धंधे को कुछ चौहान जैसे पुलिसिये अपने काम।में रुकावट मानते है जबकि कुछ शर्मा जी जैसे लोग हमारे धंधे की कद्र करते है। एक बात और मै उस शक,धोखा,तलाक, पीछा वाली कैटगिरी का जासूस नही हूँ । आपका सेवक सिर्फ कत्ल जैसे जघन्य केस को ही सॉल्व करने में ज्यादा इंटरेस्ट रखता है।
मैंने वहां से हटकर बंगले के अंदर की तरफ जाने की कोशिश की। अंदर चारो तरफ पुलिस की टीम ने अपना मोर्चा सम्हाल रखा था।
जिन बंसल साहब का क़त्ल हुआ था,उनका पूरा नाम अशोक बंसल था। दिल्ली शहर की नामीगिरामी हस्तियो में उनका नाम शुमार होता था। काफी बड़े उद्योगपति थे। मैंने सुना था कि कई स्कूल भी उनके दिल्ली जैसे शहर में चलते थे। यही वजह थी की पुलिस के बड़े बड़े ऑफिसर का लगातार आना जाना लगा हुआ था। खुद दिल्ली के पुलिस कमिश्नर इन्वेस्टीगेशन के पल पल की खबर रखे हुए थे। बंगले से 200 मीटर की दूरी पर मीडिया का भारी जमावड़ा लगा हुआ था।
मैंने बंसल साहब की लाश के नजदीक पहुंच कर एक नजर उनपर डाली तो किसी धारदार हथियार से उनकी गर्दन को रेता गया था,और पहली नजर में देखने से ऐसा लग रहा था कि उनके गुप्तांगों के साथ भी काफी निर्ममता बरती गयी हो।
फोरेंसिक टीम अपना काम खत्म कर चुकी थी। एक कौने में अशोक बंसल जी एकलौता बेटा राजीव बंसल बेहद गमगीन मुद्रा में अपने रिस्तेदारो के साथ खड़ा हुआ था।
मै भी उन्ही लोगो के पास जाकर खड़ा हो गया। तभी लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया जाने लगा। बंसल साहब के बैडरूम को सील कर दिया गया था। और ड्राइंग रूम को भी सील करने की कवायद शुरू कर दी गई,क्योकि लाश ड्राईंग रूम से ही बरामद की गई थी। अब मैंने भी वहां से फूटने में ही अपनी भलाई समझी,क्योकि शाम को मुझे अशोक विहार थाने में जाकर इंस्पेक्टर शर्मा से भी मिलकर कुछ तथ्य जुटाने थे।
क्रमश: