Sita - Mithila ki yoddha in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | सीता - मिथिला की योद्धा

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सीता - मिथिला की योद्धा

किसी भारतीय लेखक की किताब की अगर एक बार में ही 10 लाख प्रतियां प्रिंट में चली जाएँ और उसके बाद धड़ाधड़ वो बिक भी जाएँ तो यकीनन इसे चमत्कार ही कहेंगे और इस चमत्कार को इस बार भी कर दिखाया है हमारे देश के प्रसिद्ध लेखक अमीश त्रिपाठी जी की किताब "सीता-मिथिला की योद्धा" ने। जो कि राम चंद्र श्रृंखला की उनकी दूसरी किताब है। इससे पहले इसी श्रृंखला की पहली किताब "इक्ष्वाकु के वंशज" भी इसी तरह का धमाल मचा इतिहास रच चुकी है।

मूलतः अंग्रेज़ी में लिखी गयी इस किताब का हिंदी में अनुवाद उर्मिला गुप्ता जी ने किया है। अब तक 19 भाषाओं में अमीश जी की रचनाओं का अनुवाद हो चुका है। अपनी लेखनी के ज़रिए अमीश, अमिताभ बच्चन , शेखर कपूर तथा शशि थरूर जैसे दिग्गजों समेत विश्व के अनेक प्रसिद्ध लोगों को अपना मुरीद बना चुके हैं।

1974 में पैदा हुए अमीश आई.आई.एम (कोलकाता) से प्रशिक्षित एक बैंकर से अब पूर्णतः एक सफल लेखक में बदल चुके हैं। अपने पहले उपन्यास "मेलुहा के मृत्युंजय"(शिव रचना त्रय की पहली पुस्तक) की अपार सफलता से प्रोत्साहित हो कर उन्होंने अपने 14 वर्षीय सफल बैंकिंग कैरियर को तिलांजलि दी और पूर्ण रूप से लेखन कार्य में जुट गए। इतिहास तथा पौराणिक कथाओं एवं दर्शन के प्रति उनके लगाव एवं ज़ुनून ने उनके लेखन को एक अलग..ऊँचे स्तर तक पहुँचा दिया। इनकी किताबों की अब तक 40 लाख से ज़्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं और गिनती लगातार बढ़ ही रही है।

इस किताब "सीता- मिथिला की योद्धा" में उन्होंने सीता के ज़रिए, उन्हीं को मुख्य किरदार बना कर पिछली कहानी (इक्ष्वाकु के वंशज) को ही आगे का विस्तार दिया है। रोचक तथा रोमांचक मोड़ों से गुज़रते हुए कहानी में एक के बाद एक कई रहस्योद्घाटन होते हैं जो उपन्यास के खत्म होने तक पाठक की उत्सुकता को निरंतर बनाए तथा अगले उपन्यास के लिए बचाए रखते हैं।

इस कहानी में सीता के जन्म से ले कर रावण द्वारा उनके हरण की कहानी तक का ताना बाना बहुत ही रोचक ढंग से बुना गया है। इसमें मूल कहानी के साथ साथ कई छोटी कहानियाँ अपने महत्त्वपूर्ण किरदारों समेत अपनी मौजूदगी दर्ज करती हुई साथ साथ चलती हैं। कहानी का प्लॉट इतना रोचक, चुस्त एवं कसा हुआ कि पाठकों को हॉलीवुड या फिर बाहुबली सरीखी बड़े बजट की मल्टी स्टारर फ़िल्म का सा जीवंत आभास होता है। पुराने संदर्भों में आधुनिकता का उनका घालमेल कहानी को थोड़ा अलग बनाने के साथ साथ हमें ये सोचने पर भी बाध्य करता है कि समस्याएं तो तब भो वही थी और अब भी वही हैं। उनके हल तब भी वही थे और अब भी वही हैं। बस..तब और अब के ट्रीटमैंट में तकनीकी वजहों एवं आधुनिकीकरण होने के नाते थोड़ा फर्क आ गया है।

कोई आश्चर्य नहीं कि लोग जल्द ही इस पर हॉलीवुड की कोई फ़िल्म अथवा बड़े बजट की वेब सीरीज़ बनते हुए देखें। मूलतः अंग्रेज़ी में लिखा होने और हिंदी में उसका अनुवाद होने के कारण कई जगहों पर भाषा थोड़ी असहज(परिचित शब्दशैली की कमी) सी प्रतीत होती है लेकिन रोचक कथानक होने की वजह से इसकी भूमिका थोड़ी देर में गौण होने लगती है और आप इसी भाषा के आदि य्या फिर कह लें कि मुरीद होने लगते हैं। 398 पृष्ठीय इस उपन्यास को प्रकाशित किया है वेस्टलैंड पब्लिकेशंस लिमिटेड ने और इसका मूल्य ₹299/- मात्र रखा गया है जो कि किताब की क्वॉलिटी एवं कंटैंट को देखते हुए बिल्कुल भी ज़्यादा नहीं है। फिर भी पाठक अगर अमेज़न या फ्लिपकार्ट सरीखे ऑनलाइन पोर्टलों पर अगर पता करें तो कुछ डिस्काउंट भी मिल सकता है। एक अच्छी, पठनीय तथा सहेज कर रखी जाने वाली किताब लाने के लिए लेखक तथा प्रकाशक को बहुत बहुत बधाई।

***राजीव तनेजा***