live in in Hindi Short Stories by अमिता वात्य books and stories PDF | लिव इन - एक दुस्वप्न लिव इन

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लिव इन - एक दुस्वप्न लिव इन

आज उससे जुदा हुये पाँच साल हो गये पर जाने क्यो ऐसा लगता है कभी कभी की सदियां गुजर गई ,और कभी तो लगता है कि वो साथ मे है पास ही है इतना करीब की उसकी खुशबू से मेरा रोम रोम रोमांचित हो रहा है , पर सच क्या है नही पता , वो है या नही है , नही है या है ? , क्या है पता नही , और आज तबियत भी ठीक नही है तो ऐसा लगना भी स्वाभाविक ही है मन भ्रम मे है पर क्यो है पता नही , खैर तबियत अच्छी नही लग रही है मन भी बडा बोझिल सा है और कोई काम भी तो नही है चलो सो जाती हूँ और लेट गई , और कब आँख लग गई पता ही नही चला , शरीर बुखार से तप रहा है पर घर मे अकेले हू तो कौन पूछेगा आकर कि क्या हुआ , ये लो चाय पी लो या कुछ खा लो फिर दवा ले लो बुखार कम हो जायेगा ,। नीद मे हूँ पर दिमाग फिर भी चल रहा है सोच रहा है कमी खल रही है ,पर किसकी ?, उसकी ? जिसने कभी पूछा भी नही कि तुम्हारी तबियत खराब है क्या ? जैसे कभी उसे मेरी परवाह ही नही थी , सोते सोते गहरी नीद मे चली गई , या जग रही हूँ पता नही ।
मै पीले रंग के बहुत मार्डन और एडवांस कपडे पहन रखे है जिसका आगे का गला भी बहुत डीप है और पीछे पूरी पीठ खुली हुई है ये कैसे बेहूदा कपडे पहन लिये मैने और कब पहने सोच मे डूबी हुई सोचे जा रही हूँ कि कमरे मे बहुत भीड बढ गई और चहलपहल हो गई कोई बिमार है मै उसी के पास बैठी हूँ मानो वो अपनी आखरी साँसे ले रहा हो वो बिमार कुछ कहना चाहता था मै उसकी तरफ झुकी ही थी कि कोई पास मे खडा था उसकी नजर मेरे कपडों के अंदर उतरने लगी मै शर्मा गई और खुद को व्यवस्थित किया जब पलट कर देखा तो वो....वही था उसे देखकर एक ठंडी सिहरन दौड गई और वो शरारत से मुस्कुरा रहा था , फिर वो मुझे छेडने लगा परेशान करने लगा , और मै इधरउधर भागने दौडने लगी , पर उसका यूँ परेशान करना भी अच्छा लग रहा था उसे देखकर शरीर मे एक ऊर्जा का संचार होने लगा , पूरे घर मे दौडतै भागते मै छिप रही थी , कि एक कमरा नजर आया और मै उसे उस कमरे मे पकडकर खीच कर ले गई अंधकार मे डूबा हुआ कमरा था एकांत मे मै उससे झगडने लगी कि वो क्यों छोडकर चला गया था पर उसे तो कुछ सुनाई ही नही दे रहा हो वो अजीब सी हरकतें करने लगा मेरे पूरे जिस्म को अपने हाथो से टटोलने लगा सहलाने लगा और मै उसके साँसो के स्पर्श को महसूस करके मोम की तरह पिघलने लगी कुछ समझ मे नही आ रहा था कि क्या हो रहा है और क्यो ये सब हो रहा है उसे जिस्म के घर्षण को अपने जिस्म पर महसूस होने लगा , खुद को उसमे खो जाना चाहती थी , पर तभी किसी ने बहुत तेज थप्पड़ मारा हो और मै होश मे आई उसे धक्का दिया और कमरे से बाहर निकल गई।
किसी से मिलना था और बहुत जरूरी था मिलना और मै कहा भटक रही थी ,अपनी एक चिरपरिचित को फोन मिलाया उसे कहा कि मै उससे मिलना चाहती हूँ क्योंकि मै अपराध बोध महसूस कर रही हूँ मै तुम्हारे शहर के पास जो बाजार है मै वही खडी हूँ कुछ देर मे वो आई और मुझे लेकर एक ऐसे छोटे से घर मे लेकर गई जो बहुत ही गंदा और बहुत ही छोटा सा था उसके दोनो बच्चे भी वही थे गंदे मैले कपडे पहने हुये वो बच्चे कोने से छिप कर देख कर भाग जाते पर उनकी बडी मनमोहन मुस्कान थी जिसे एक पल मे मैने देख लिया था , उन बच्चों की माँ भी वही थी वो छोटे कद की पर थोडी भद्दी सी दिखाई दे रही थी मैने उससे देखा और पश्चाताप से मेरी आँखे भीग गई कि ऐसे और इस हालात के लोगो का सहारा मैने छीनने की कोशिश की , मैने उससे माफी माँगी कि वो मुझे माफ कर दे क्योंकि अब मेरी उससे ( उसके पति ) से मेरी बात नही होती जमाना बीत गया ऐसा मैने कहा , उस औरत ने कुछ बताना चाहा पर कहते कहते ,चुप हो गई मानो कोई उसै रोक रहा हो , कोई धमका रहा हो , औरवो जाने क्या एक छोटे से बक्से से कुछ निकालने लगी शायद वो मुझे कुछ दिखाना चाहती थी , उसने निकाला या नही पता नही पर मै वहां से वापस जाने के लिए निकली तो उसके बच्चों को विदाई दी जैसा सब करते है शगुन या विदाई पर पैसे ही देते है वही मैने भी किया फिर कुछ बच्चे और जाने कहां से आ गये उनको भी दिया अब मै उसके घर से निकली तो मन मे संतोष था , जैसे एक बोझ था मन पर वो उतर गया हो , वो औरत भी मेरे साथ कुछ दूर तक आई उसने भी मेरे हाथ मे जबर्दस्ती 100 रू रख दिये , मना करने पर भी वो नही मानी , तब तक हम बाजार तक पहुच गये कि पास से एक पहचानी सी आवाज आई और मैने उस औरत से कहा वो यही है तुम तुरंत घर वापस जाओ और मै रह कही छिप जाती हूँ उनको पता ना चले कि हम दोनो की मुलाकात हुई है वो बेचारी घबराहट मे भागने लगी तभी अचानक ओ आकर उससे टकरा गई और देखकर पूछने लगा तू यहां क्या कर रही है क्यों आई है यहां ? जाने कैसै मै भी छिपते छिपते उसी के सामने आ गई और मुझे देखकर मुस्कुराते हुये कहने लगा ओह.. तो ये बात है , उसने बहुत अच्छे कपडे पहन रखे थे बहुत खुबसूरत और स्मार्ट दिख रहा था मेरे मन मे खयाल आया कि खुद कैसे रहता है और अपनी बीबी बच्चों को कैसे रखता है मेरा मन बहुत खिन्न हो गया ,तभी उसने एक रिक्शा रोका और जबर्दस्ती अपनी बीबी को उठाकर बैठा दिया और उसी रिक्शे पर भरे बाजार मे चार पाँच थप्पड़ मार दिया और गुस्से से तमतमाये रिक्शे वाले से बोला चलो और वो बेचारी डरी सहमी चुपचाप दुबकी बैठी हुई जाने कौन से खौफ के इंतजार मे थी दहशत से उसके दिमाग ने सोचना ही बंद कर दिया , और ये मंजर देखकर मेरे रौगंटे खडे हो गये , क ई बार कोशिश की कि रोकू पर बस इतना ही बोल पाई कि इसकी कोई गलती नही है मै ही यहां आई थी और ये अचानक मुझे यहां मिल गई और इसके कुछ मत कहना और मारना तो बिलकुल भी नही जो कुछ कहना हो मुझे कह सकते हो और वो रिक्शे पर बैठ कर चला गया , मेरा दिल इंजन से भी तेज धडक रहा था कि मेरी वजह से वो बेचारी पीट जायेगी क्योंकि मै उसका गुस्सा जानती हूँ उसके गुस्से को रोकना इतना आसान नही है और मुझे पता है वो बस मै ही उसे रोक सकती हूँ मै भागी उस रिक्शे के पीछे पर वो मुझे भी धक्का दे देता , एक पल को लगा कि अब सब खत्म हो गया , जब अब कोई रिश्ता ही नही रहा तो क्यों आई फिर से मेरा सामने मै खुद को सम्भाल तो रहा था , अब उसै देखकर कैसे खुद को सम्भालूगा पागल हो जाऊगा मै उसके बिना नही रह सकता , वोसोचे जा रहा था क्योंकि कि उसी सोच मुझे सुनाई दे रही थी और ऐसा वो सोच रहा है ये सोचकर अब मै पागल हो जाऊगी , बस एक बार वो रुक जाये अपने सीने से लगा लुगी और उसका गुस्सा खत्म भी हो जायेगा , एक जैसे तडप दोनौ के दिलो को तडपा रही थी ।
कि अचानक कुछ गले मे लगा फसा हुआ है और बहुत तेज खाँसी आने लगीं और मै उठकर बैठ गई तो महसूस हुआ कि सपना देख रही थी , .उफ्फ .... ये सपना था ??

हे भगवान सपना ही दिखाना था तो कुछ अच्छा दिखाते , खैर राम की माया राम ही जाने
कही किसी के साथ ऐसा कुछ हुआ होगा अगर हुआ हो तो भगवान उनको सद्बुध्दि दे ।