Shahar si jindagi yu hi bhagne me nikalti thi in Hindi Poems by Dev Borana books and stories PDF | शहर सी जिंदगी यू ही भागने में निकलती थी

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शहर सी जिंदगी यू ही भागने में निकलती थी

सपनों में सोया था एक नए सवेरे के लिए
सपने भी आये थे अपने लिए
सुबह उठना भी था क्योंकि नॉकरी पर जाना था
योग भी करना था क्योंकि स्वास्थ्य की चिंता थी
भरे शहर में दौड़ना था क्योंकि हमको कमाना था
सपनो में सोया था नए सवेरे के लिए
सुबह उठता था टिफिन लेके भागता था
दो टूक की रोटी के लिए भागता था
शहर सी ज़िन्दगी हो गयी
उसमे ट्राफिक भी लड़ता था
ट्राफिक खुलते ही अपने रास्ते भागते थे
क्योंकि ओफिस में समय पर पहुचना था
शहर सी ज़िन्दगी यू ही भागने में निकलती थी
आज भी ये थी और कल भी ये ही होती थी
बस घर से नॉकरी ओर नॉकरी से घर
बसी थी अब तो सिर्फ रविवार की दोस्ती
पहले गांव था जहाँ रोज मिलते थे
अब क्या यही शहर की जिंदगी थी
शहर सी जिंदगी में त्योहारों की कमी थी
एक मेरा गांव था जहाँ हर रोज त्योहारो सी जिंदगी थी
गांव था जहाँ गले मिलकर रहते थे
अब शहर है किसके पास इतना समय है
शहर सी जिंदगी यू ही भागने में निकलती थी
आज भी ये थी और कल भी ये ही होती थी
मेरा गांव था जहाँ बूढ़ो के पास बैठकर कुछ सीखते थे
ये शहर है यहाँ बूढ़े घर के बाहर नही मिलते थे
एक गांव था जहाँ सभी मेरे अपने थे
ये शहर है यहाँ कौन किसका है किसी को नही मालूम
सपनो में सोया था एक नए सवेरे के लिए
सपने भी आये थे अपने लिए
मेरा गांव था जहाँ लोग कंधे से कंधे मिलाकर चलते थे
ये शहर है खुद के अलावा किसी का कन्धा नही होता
सब कमाने के लिए भाग रहे थे इधर से उधर
एक मेरा गांव था जहाँ कमाने की इतनी फिक्र नही थी
कहा चैन की नींद सोते थे क्योंकि
कल नॉकरी जाने की फिकर होती थी
मेरा गांव था जहाँ पक्षियों की आवाज से में उठता था
ये शहर है यहां उठने के लिए अलार्म की जरूरत पड़ती थी
वहां हर इंसान से पहचान थी
यहाँ कौन किसका है खुद को नहीं मालूम
शहर सी जिंदगी यु ही भागने में निकलती थी
आज भी ये थी और कल भी ये हीं होती थी
गांव था जहाँ उगते सूरज को देखते थे
ये शहर है ये भी नसीब की बात होती थी
मेरा गांव था जहाँ पशुओं से प्रेम था
ये शहर है इनको कोई ज्यादा यहाँ जानता तक नहीं
मेरा गांव था जहाँ हरियाली से भरे खेत दिखते थे
ये शहर है यहाँ हरियाली को काटकर बिल्डिंग बिकते थे
मेरा गांव था जहां आपस मे प्यार बाटते फिरते
ये शहर है यहां कोई जानने की कोशिश भी नही करता
शहर सी जिंदगी यू ही भागने में निकलती थी
आज भी ये थी और कल भी ये ही होती थी
मेरा गांव था जहाँ हर त्यौहार खुशी से मनाते थे
ये शहर है कब त्यौहार आता है और कब जाता है कोई खबर नही होती थी
ये शहर है किसके पास इतना समय है
गांव था मेरा जहाँ बैलगाड़ी की तरह जिंदगी थी आराम सी
ये शहर है यहाँ रेलगाडी सी हो गयी है जिंदगी बस भागते रहो
जब याद आयी मेरे गाँव की आँखे भी रोने लगी
की मैं आया शहर दो वक्त की रोटी कमाने के लिए
सब कुछ छोड़ आया दो वक्त के लिए
शहर सी जिंदगी यू ही भागने में निकलती थी
आज भी ये थी और कल भी ये ही होती थी
मेरे गाँव सा नही थी वो शहर तेरा
जब याद आती थी गांव की गांव चला जाता था मैं
मेरे गाँव की सुन्दरता मेरे मन को भाती थी
ये शहर की हवा मेरे मन को न भाती थी
यहां भीड़ सी टक्कर और ट्राफिक सी जिंदगी
आजाद थी मेरी जिंदगी मेरे गाँव मे ना थी इनकी टक्कर
सपनो में सोया था एक नए सवेरे के लिए
सपने भी आये थे अपने लिए
शहर सी जिंदगी यू ही भागने में निकलती थी
आज भी ये थी और कल भी ये ही थी ।।