Rachayita in Hindi Women Focused by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | रचयिता

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रचयिता

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नीलम कुलश्रेष्ठ

ये शिक्षा संस्थान ओजस्विता का गढ़ है। इसके निदेशक भारतीय संस्कृति के पुजारी हैं। वे कुछ नया करने के जूनून में वे ये घोषणा करते हैं कि

जल्दी ही इस संस्थान के कोर्स में रामायण व महाभारत शामिल करने वाले हैं।

दूसरे दिन इस संस्थान की लड़कियों का दल उनके ऑफ़िस पर धावा बोल देता है। उनमें से एक लड़की क्रोध में काँपते हुये कहती है ,`` क्या आप चाहतें हैं कि हम भी उन प्राचीन स्त्रियों की तरह पाखंडी व साधुओं के भिक्षा या कुछ और माँगने पर सीता की तरह घर की परम्परा तोड़ें?``

दूसरी कहती है ,``या आप हमें उर्मिला बनाना चाहतें हैं कि जिसका पति अपने भाई के लिये उसे चौदह वर्ष के लिये छोड़ गया और वहअपने निष्ठुर पति की प्रतीक्षा करती रही ,वह भी चौदह वर्ष तक ?``

तीसरी कहती है ,``मैं इतनी मेहनत से प्रोफ़ेशनल डिग्री हासिल करूंगी। पति की तरह सारा दिन नौकरी करके रूपये कमाऊँगी। मेरा पति कितना ही उदार हो मुझे ही अधिक घर का काम करना होगा और आप रामायण कोर्स में पढ़ाकर ये शिक्षा देना चाहते हैं कि मुझ जैसी स्त्री पर कोई झूठा लांछन लगाये तो मेरा पति गर्भावस्था में मुझे जंगल में छोड़ आये ? और मैं मूक बनी रहूँ ? ``

ये भीड़ क्रोधित चेहरे लिये प्रश्न पर प्रश्न उछाले जा रही है ,``क्या आप चाहतें हैं कि हम एक स्त्री की जगह वस्तु बन जायें कि कोई भी हमें पांच भाइयों में बाँट दे या कोई भी युधिष्टर हमें जुये में दांव पर लगाकर हार जाये ? यदि हमारा पति अंधा है [ ये अंधापन उसके व्यक्तित्व का भी हो सकता है ] तो क्या हम भी गांधारी की तरह आँखों पर पट्टी बांधकर उसका साथ दें जिससे हमारी संतानें कौरवों जैसी आतातायी हो जायें ?``

``आप हमें द्रौपदी जैसी कमज़ोर स्त्री बनाना चाहते हैं कि कोई हमारा चीर हरण करने की चेष्टा करे और हम कन्हैया को पुकारें ?``

उनमें से एक मेज़ पर हाथ मारकर कहती है ,``क्या गुजरात में स्त्रियों का आर्तनाद कृष्ण ने सुना था ?``

निदेशक अपनी घोषणा के जाल में उलझे उलझकर रह गये हैं। कुछ बोल पाने की स्थिति नहीं है।

एक तैश में आकर कहती है ,``सर !कुछ तो जवाब दीजिये ?``

उनकी नेता तेज़ आवाज़ में कहती है ,``ये क्या उत्तर देंगे ? रामायण व महाभारत की स्तुति सदियों से इसलिये ही की जाती रही है कि स्त्रियां द्रौपदी ,गांधारी बनी ऐसे ही आँसु बहाती रहें इन पुरुषों की सत्ता ऐसे ही निर्बाध चलती रहे। ``

सभी समवेत स्वर में कहतीं हैं ,``हमें अपने ये रोल मॉडल्स स्वीकार नहीं हैं. अब हमें आप क्या रामायण महाभारत पढ़ायेंगे ? हम घर बाहर स्वयं अपने रामायण व महाभारत की रचना कर रहे हैं।``

[ इक्कीसवीं सदी के आरम्भ में आई आई टी खड़गपुर निदेशक की घोषणा कि रामायण व महाभारत कोर्स पढ़ाई जायेंगी के प्रतिक्रया स्वरुप ये रचना ]

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नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffmail.com