इस बार सर्दी पिछले सालों की अपेक्षा कुछ ज्यादा थी परन्तु अब सर्दी के आखिरी दिन चल रहे थे इसीलिए मौसम सुहावना था ऑफिस से भी लगातार तीन दिन की छुट्टी जैसे सोने पे सुहागा | एक छुट्टी तो घर पर चाय पकोड़े वगैरह खाते हुए गुजर गई परन्तु अगले दिन मौसम को देखते हुए घर पर बैठे रहना वक़्त की बर्बादी ही महसूस हो रही थी इसीलिए दोपहर के बाद शहर के बाहरी इलाके की तरफ घूमने निकल गए | शहर का बाहरी इलाक़ा अभी पिछले कुछ वर्षों मैं ही समृद्ध हुआ है इसीलिए यहां पर अनदेखा बहुत कुछ मिल जायेगा यही सोच मुझे बाहरी इलाके की तरफ खींच लायी | बाहरी इलाके ने भी मुझे निराश नहीं किया | अपनी समस्त खूबसूरती मेरे सामने फैला दी जैसे कह रहा हो की अपनी इच्छा के अनुसार कोई बढ़िया जगह चुन कर अपनी छुट्टी का आनंद उठाओ |
कुछ देर इधर उधर घूमने के बाद मैंने एक पार्क मैं जाने का निश्चय किया जोकि बच्चों के लिए बनाया गया था हलाकि मैं बच्चा नहीं हूँ परन्तु इसका मतलब यह नहीं की बच्चों जैसी हरकतें भी नहीं कर सकता | जहाँ मुझे बहुत उम्दा एक्शन से भरपूर इंग्लिश फिल्मे देखने मैं आनंद आता है उतना ही आनंद मैं डोरेमोन देखते हुए भी महसूस करता हूँ इसीलिए मुझे बच्चों के पार्क मैं देख कर आश्चर्य करने की जरूरत नहीं है | खेर बच्चों के पार्क मैं हर बार कुछ न कुछ नया मिल ही जाता है इस बार भी मिल गया | एक सुरंग जोकि मनोरंजन के लिए बनायीं गयी थी विशुद मनोरंजन | सुरंग का नाम था भूतहा सुरंग | जैसा की नाम से ही पता चलता है की इस सुरंग का निर्माण उन बच्चों के लिए किया गया है जोकि डर का आनंद लेना चाहते है |
हलाकि बच्चों के लिए बनाया गया है परन्तु इसका मतलब यह तो नहीं की मैं नहीं जा सकता आखिर मैं हॉरर मूवीज भी बड़े शोक के साथ देखता हूँ | मैंने भी एक टिकट और खाने पीने का कुछ सामान लेकर सुरंग मैं दाखिल हो गया | बढ़िया माहौल क्रिएट किया गया था | सुरंग की शुरुआत कुछ जंगली जानवरों से की गयी थी सामान्य भाषा मैं कहा जाये तो रोबोट का इस्तेमाल किया गया था जोकि तरह तरह की आवाज़ों एवं मूवमेंट से का प्रयास कर रहे थे । प्रयास अच्छा था परन्तु इससे शायद बच्चों को डर लगे मेरे लिए तो बस कोतुहल का विषय ही था । ३० मिनट की इस राइड मैं कुछ ज्यादा अच्छे या यूं कहा जाये की ज्यादा डरावने आइटम भी रखे गए थे | एक मोड़ पर जब एक भूतिया फिगर ने मुझ पर जम्प लगाया तो एक बार तो दिल की दड़कने थोड़ी तेज़ हो गयी | कुल मिलकर एक एन्जॉयबले सफर जारी था | डर और अँधेरे का चोली दामन का साथ है और सुरंग बनाने वाले को इस बात का अच्छा अनुमान था इसीलिए पूरा सफर अँधेरे मैं ही रखा गया था | हलाकि अधिकांश जगहों पर रोबोट अवं रिकार्डेड आवाजों का इस्तेमाल किया गया था जोकि सेंसर के अनुसार प्रतिकिर्या करते थे परन्तु कई जगहों पर असली आदमी अवं औरतों को भी जगह दी गयी थी | इनका मुख्य काम था आने वाले यात्रियों को डराना और यह लोग अपना काम सफलतापूर्वक कर रहे था |
अभी आधा सफर ही हो पाया था की अचानक आगे से एक व्यक्ति के चीखने चिलाने की आवाज़ें आने लगी | एक बार तो लगा की शायद कोई यात्री जरूरत से ज्यादा डर गया है | परन्तु जब नज़दीक जाकर देखा तो पता चला की कोई यात्री एक कर्मचारी पर चिल्लआ रहे थे जिसको की आने वाली यात्रियों को डरा कर मनोरंजन करने के लिए नौकरी पर रखा गया था (सुविधा के लिए मनोज कह लेते हैं) | इस चीखने चिलाने से यही समझ आ सकता था की मनोज ने अपना काम सफलतापूर्वक किया |
झगड़ा बढ़ते बढ़ते गाली गलोच (हालांकि इस हो हल्ले को झगड़द कहना उचित नहीीं एक तरफा गाली गलौच ज्यादा उचित शब्द होगा) तक भी पहुँच गया कुल मिला कर मनोज को यात्री द्वारा पूरी तरह अपमानित किया गया और बेचारा मनोज शायद कुछ बोल भी नहीं सकता था उसको नौकरी करनी थी यात्री महाशय के साथ 4 साल के बच्चे को देख कर उनके तर्क को समझा जा सकता है की बच्चा डर गया इसीलिए उन्होंने मनोज को गालियां निकल दी परन्तु इसमें मनोज का जरा भी कसूर नहीं था | यात्री महाशय को सुरंग मैं दाखिल होने से पहले यह देखना चाहिए था की उनके साथ छोटा बच्चा है । टिकट खिड़की के पास लिखा होना चाहिए की किस उम्र के बच्चों के लिए सुरंग बनायीं गयी है और शायद लिखा भी हो कम से मैंने तो देखने की कोशिश नहीं की | और संभव है यात्री महाशय ने भी देखने की कोशिश नहीं की हो | परन्तु इस मसले मैं मनोज का कोई लेना देना नहीं है यदि इसी मसले पर शिकायत हो तो उसके लिए टिकट खिड़की पर या मालिक से शिकायत की जानी चाहिए थे परन्तु यात्री महाशय ने मनोज के साथ गली गलोच करके खुद को बहादुर साबित करने का प्रयास कर दिया | सुरंग मैं मौजूद अन्य यात्री सिर्फ मोन दर्शक बने रहे । काफी हो हल्ले के बाद यात्री महाशय आगे बढ़ गए परंतु आगे की यात्री उन्होंने मोबाइल की टोर्च जला का की अन्य यात्री इस बात से नाराज़ दिखाई दिए की यात्री महाशय ने मोबाइल की लाइट जला कर उनका मज़ा ख़राब कर दिया उनको इस बात से कोई लेना देना नहीं था की एक यात्री एक अन्य व्यक्ति की मजबूरी का फायदा उठा कर उस पर अपनी फ़्रस्टेशन उतार रहा है |
सुरंग से बाहर निकलने पर एक कार्नर में पार्क के मालिक सिगरेट फूंकते हुए दिखाई दिए पास में ही उनके बॉडीगार्ड भी खड़े हुए थे । कुछ सोचकर मैन सुरंग में डर जाने वाले यात्री महाशय को तकरीबन तकरीबन जबरदस्ती मालिक के पास ले गया और उनसे कहा कि अपनी शिकायत दर्ज करवाएं । यात्री महाशय मालिक के कीमते कपड़ों गाड़ी बॉडीगार्ड के रॉब में दिखाई देने लगे और सर् सर् कह कर घुमा फिरा कर बात करने लगे तो मैंने चुपचाप खिसकने में ही भलाई जान कर पार्क से बाहर आ गया
अब घर की तरफ लौटते हुए बस यही सोच रहा हूँ क्या मैं भी ऐसा ही बड़ा आदमी हूँ या मेरे अंदर अभी कोई छोटा आदमी ज़िंदा है
सत्य घटना पर आधारित