Aage badho aur badhte hi jaao in Hindi Motivational Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | आगे बढ़ो और बढ़ते ही जाओ

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आगे बढ़ो और बढ़ते ही जाओ

आगे बढ़ो और बढ़ते ही जाओ

सुप्रसिद्ध वरिष्ठ अधिवक्ता श्री सतीशचंद्र दत्त (85 वर्ष) फौजदारी मामलों के विशेषज्ञ है। उन्होंने सन् 1953 में वकालत का पेशा अपनाया था एवं वे अभी भी वकालत कर रहे हैं और इसे वे ईश्वर का आशीर्वाद मानते है।

उनका कथन है कि मैं नही मानता कि जीवन सीमित है यह तो ईश्वर की इच्छा पर निर्भर हैं कि हमारा जीवन कब तक रहेगा। यह सच है कि जीवन अमर नही है पर जीवन के हर क्षण का सदुपयोग किया जाए तो अपने परिवार, समाज और अपने देष बहुत भला किया जा सकता हैं। हम जब तक भी रहें अपने जीवन को क्रियाशील बनाकर रखें। मैं समाज और देश का उत्थान किस प्रकार और कैसे कर सकता हूँ ? इस दिशा में हमेशा प्रयासरत रहता हूँ। मैं वकालत के पेशे में आज भी नये आयाम खोजता रहता हूँ और जीवन में उन्हें अपनाने का प्रयास करता हूँ जिससे मुझे असीम प्रसन्नता, आनंद और संतोष प्राप्त होता है। मैं अपने परिजनों के व्यवहार से पूर्ण संतुष्ट हूँ।

मेरे अनुरोध पर उन्होंने जीवन का एक स्मरणीय संस्मरण बताते हुए कहा कि मुझे वकालत के पेशे में 6 साल ही हुये थे और मैं नवोदित वकील के रूप में जाना जाता था। उस समय मेरे पास एक मामला आया जिसमें श्याम टाकीज, जबलपुर जो कि अब मालवीय चौक के रूप में जाना जाता है के पास सत्तू पहलवान नामक व्यक्ति का कत्ल हो गया था। वे अपने मोहल्ले के एक जाने पहचाने व्यक्ति थे। इस मामले में पुलिस ने दो व्यक्तियो पर हत्या का मामला दर्ज किया था और वह उस समय का बड़ा चर्चित मामला था। मेरे मुवक्किल को लोग समझाते थे कि क्या नौसिखीए अधिवक्ता को मुकदमा लडने के लिये लगाया है। उस समय बडे बडे ख्यातिप्राप्त अधिवक्ता उपलब्ध थे, पर मेरे मुवक्किल कही नही गये और मुझसे कहा कि मुकदमा आपको ही लडकर उनका बचाव करना है। मेरे मुवक्किल को काफी चोटें आयी थी और उन्हें पुलिस द्वारा अभियुक्त बनाया गया था। मैंने उनको कहा कि मैं आत्मरक्षा का बचाव लेना चाहता हूँ। वे इसके लिए तैयार हो गये और उन्होने अदालत में अपनी रक्षा एवं बचाव में मृतक को मारने की गवाही दे दी। मेरे मुवक्किल को कइ लोगों ने समझाया कि तुम्हारे वकील ने तो तुमसे घटना कबूल करवा ली है और तुम्हें सजा होना सुनिश्चिित है परंतु उन्हें मेरे उपर पूर्ण विश्वास था। जब फैसला आया तो आत्मरक्षा के बचाव को मानते हुए जज साहब ने उन्हें बरी कर दिया।

उन दिनों मैं साइकिल पर चलता था और एक किराये के मकान में साधारण परिस्थितियों में अपने माता पिता और भाई बहिनो के साथ रहता था। जब मैं शाम को पाँच बजे घर पहुँचा तो गली के दोनो छोंरों पर बहुत भीड लगी थी और मेरे घर के सामने भी हजारों लोग खडे थे। वहाँ पर ढ़ोल नगाडे भी बज रहे थे। पहले तो मुझे कुछ समझ नही आया, जब मैं घर के सामने पहुँचा तो मेरे मुवक्किलों द्वारा मुझे मालाओं से ढक दिया। वह क्षण मेरे लिये बहुत ही रोमांचकारी था क्योंकि मैने पहला बडा मुकदमा जीता था और मेरा स्वागत जिस तरह से किया गया वह क्षण मैं आज तक नही भूल पाया हूँ। वह मुकदमा, फूल मालाएँ तथा ढोल नगाडो की आवाजे मानो आज भी मेरे कान में गूंज रही है। यद्यपि उसके बाद और भी बडे मुकदमों के फैसले मेरे पक्ष में हुये पर जो प्रसन्नता उस मुकदमें में मुझे हुई थी, वैसी महसूस नही होती है।

जीवन क्या है ? हमें इसे प्रसन्नता पूर्वक परिवार और मित्रों के साथ समाज में रहते हुए सकारात्मक उद्देश्य के साथ जीना चाहिए। मृत्यु सत्य है परंतु उससे घबराना या डरना नही चाहिए, जब तक वह नही तब तक शारीरिक व मानसिक रूप से संघर्षरत रहते हुए जीना हमारा कर्तव्य है। जब मनुष्य मृत्यु को प्राप्त करे तो वह क्षण भी उसे सुखमय महसूस हो। मैं समाज की सेवा, सभी मनुष्यों का भला एवं पीडित व्यक्तियों की मदद अपने पेशे के माध्यम से करके उन्हें राहत प्रदान कर अपने समय का सदुपयोग करना चाहता हूँ।

पैरासाइकोलाजी पर खोज हो रही है जिससे पुनर्जन्म एक सत्य प्रतीत होता है। कई व्यक्तियों को देखा है जो बचपन में ही रामकथा, महाभारत के बारे में बहुत अच्छी तरह प्रवचन देते है। वे अपने पूर्व जीवन के बारे में भी बताते है। इन सभी बातों से लगता है कि पुनर्जन्म एक सत्य है। समाज और शासन से हमारी बहुत अपेक्षाएँ है, यदि शासन एक शांतिपूर्ण एवं सुरक्षित वातावरण जनता को नही दे सकता तो हमारा जीवन गर्त की ओर चला जाएगा। समाज का कर्तव्य है कि आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक रूप से कठिन परिस्थितियों में समय व्यतीत कर रहे कमजोर व्यक्तियों की यथासंभव मदद करना चाहिए। यही जीवन का दर्शन है कि आगे बढ़ो और बढ़ते ही जाओ।