gazal Sher - 4 in Hindi Poems by Kota Rajdeep books and stories PDF | ग़ज़ल, शेर - 4

Featured Books
Categories
Share

ग़ज़ल, शेर - 4

अब मुसलसल यादों में आता ही नहीं
लगता है मुझसे बेवफ़ाई मोड़ ली है।___Rajdeep Kota


रोना धो ना सब सहना सीख गए
हम इश्क़ करना किसिसे सीख गए।
मेरे दिल ए नाकाम तुम फ़िक्र ने करियों
हम इश्क़ का दूजा हुसुल सीख गए।__Rajdeep Kota


तिरे गांव
तिरी गलियों का
कोई हिसाब ही नहीं दोस्त।___Rajdeep Kota



वक्त आहिस्ता आहिस्ता हमें कई बातें सीखा जाता हैं।
बिछोह नहीं, हमें उसका सबब आजकल सताता है।___Rajdeep Kota



मुहब्बत मैं मंज़िल नहीं मिलती हर किसीको,
कुछ बीच में ही दम तोड़ देते हैं।___Rajdeep Kota



तुम्हें याद कर के ख़ुश तो सहीं
पर बाद में दिनों परेशान रहते हैं।___Rajdeep Kota



मेरी बस्ती मैं हर रोज़ कोई मरता है।
किसिको देह से हाथ धोना पड़ता हैं।
तो किसिको दिल से हाथ धोना पड़ता हैं।___Rajdeep Kota




ये वस्ल से अच्छा एक ओर भी जरिया हैं दिल्लगी का,
हम उसे आजकल बिछोह कहने लगे हैं।___Rajdeep Kota




मैंने भी रातों मैं अक्सर रात को जागते
देखा हैं कीसिके इंतज़ार मैं।__Rajdeep kota



मिरे साथ ही कोई फरिश्ता था मुद्दतो से।
मालूम हुआ बाद में कि था वो मिरी माँ।___Rajdeep Kota


ये मिरी मुरव्वत ही मिरी पहचान हैं यारों
ओर तुम कहो कि मैं इसे छोड़ दू।
मुद्दतों के बाद फ़िर तुमसे आ मिला
हूं, ओर तुम कहो कि में तुम्हे छोड़ दू।
कोई खल मिट्टी से निकला नहीं हूं मैं,
ठानू तो हवाओं का रुख भी मोड़ दू।___Rajdeep kota


पैर थोड़े हिचकिचाएं,
लगा तेरा घर आ गया।
बिन मौसम पेड़ पे
बड़ा फ़ल आ गया।

अभी घर से निकलने
की चाह मैं ही था,
की निकला ओर कुछ देर
बाद वापिस आ गया।
सफ़र पे चलते चलते

एक मरहले पे तुझे देख
सोचा कि
मेरा मुकाम आ गया।
तेरे हसीं लहजे की
सोच में पता
नहीं कब ओर किस
वक्त मेरा घर आ गया।
यह सब सोच ही रहा
था कि,किसीने
जगाया और कहा
उतर जा, तेरा शहेर आ गया।___Rajdeep Kota



ईमान सरीखा पत्थर ढूंढने चला था, इस जहां में।
ऐसा कोई पत्थर ही नहीं था जिसे ढूंढ़ता था, एक दिन इस जहां में।

शिष्टता है सदाचार है ईमान है तुझे परखना आता हो
तो ठीक, वरना बद्दियो का ढेर भी लगा है इस जहां में।

कुछ जुड़ा जुड़ा सा पड़ा है इर्द गिर्द
तो कुछ बिखरा बिखरा भी पड़ा है इस जहां में।

कुछ सहमा सहमा सा चल रहा तो
कुछ तेजियो की उचाई छू रहा है इस जहां में

टूटा हुआ दिल लिए दरबदर फिरते है,
कई आशिक़, श्याम सलोने तेरे इस जहां में।

कहीं अंधेरों की बोछारे गिर रही है तो
कहीं धूप तेज़ी से बढ़ रही है इस जहां में।

कुछ शरीफ़ है जिन्हें शराफ़त का रंग लगा है
बेईमानों की पंक्तियां भी कम नहीं है इस जहां मै।

किस किस की इबादत होगी मुझसे,
भगवानो का पूरा ढेर लगा है इस दुनियां मै।

शौर्य था, ख़ुमारी भी थी,थी भलमनसाही मगर
इंसानों का सौदा होता था कभी इस दुनियां में।

कपड़ों की चंपल की पैसों की अतिरिक्ती
है,लेकिन नंगे,निर्धन कई घूमते है इस दुनियां मै।





कोई इन पत्तो पे लिख रहा है मुझे...
क्या में इतना नाज़ुक हूं कि,
लिखाओसा जा रहा हूं इन पत्तो पे... Rajdeep kota



मेरे हाथों मैं आज वोही पुराने ज़ख़्म ताज़ियाना हो गए।
पर अफ़सोस, मरहम लगाने वाला आज नहीं हैं।__ Rajdeep Kota




आज छत से चांद फ़िका फ़ीका दिख रहा था।
लेकिन तू भी तो छत पे नहीं दिख रहा था।

कितना मूर्ख था में, मुझे उस पत्थर में
कल परवरदिगार दिख रहा था।

तेरे गुस्से भरे लहजे में भी, मुझे
तेरा प्यार उभलता हुआ दिख रहा था।

रईसो की दावते लगी थी,ओर कोई
भूखा बच्चा एक रोटी को तरसता दिख रहा था।

इन नदियों मैं, इन गलियों मैं, इन पेड़ों पे कभी
बच्चों का बचपन गुज़रता हुआ दिख रहा था।

कमबख्त उसे भले ही कहे पूरी दुनियां कुछ फर्क
नहीं पड़ता,मुझे तो उसमे मेरा प्यार दिख रहा था।

बेवजह मार दिया उसे "राज़",उन सियासतवालो ने,
उन्हें तो उसमे सिर्फ़ पैसा ही दिख रहा था।____Rajdeep Kota




न ओकात थी समंदर की
की मुझे खींच डूबा ले जाए
डूबे तो सिर्फ़ हम तेरी अदाओं में।___Rajdeep Kota




अल्फ़ाज़ की कमी है
वरना कविताओं का पूरा का पूरा ढेर लगवा दू।
उस खिलखिलाते चांद से उसकी
चांदनी थोड़ी देर उधार मगवा दू।

मेरा मन कई दिनों से उदास बैठा पड़ा है,
खुश हो इसलिए सोचा मन मंदिर में तेरी फोटो टंगवा दू।

तू बार बार ईमान को भूल जाता है"राज़"
सोचता हूं तेरी हथेली पे मुहब्बत शब्द लिखवा दू।___Rajdeep kota




पता नहीं,किसे कब और किस घड़ी, कब्र नसीब हो जाएं।
इससे पहले कि ख़ुदा हम तेरे ओर क़रीब हो जाएं।

अच्छा है मुहब्बत का किरदार, निभा लेंगे, कोई
उज्र नहीं है,पहले उसके मुनासिब हो जाएं।

दिल का पत्थर बिखरा पड़ा है चारों ओर,ख़ुदा
करे उसकी दस्तक से पहले वाजीब हो जाएं।

उसको रोशनी बेहत पसंद है, कुछ हो
सकता है हमारे बीच,जो सूरज मेरा नसीब हो जाएं।

उस चांद को छत पे ला सकु, वैसी
में सोचू ओर तू तरकीब हो जाएं।

अभी तू नसीब मै है तो आजमा ही लू,ज़रा क़रीब से,
वरना पता नहीं कब नसीब, बदनसीब हो जाए।

तुझे अंधा होता देखना चाहता हूं मेरे प्यार मै,
डर है कि कहीं खड़ा कोई रकीब हो न हो जाए।___Rajdeep Kota



वो एक जमीं था, और मैं आसमान हो गया।
वो एक जूठ था, और में ईमान हो गया।

छाप उसकी कुछ बीते दिनों से थी नासमझ की
बस्ती में,पता नहीं कब, किस वक्त इंसान हो गया।

वो एक बुत था जो कल खंडहर में से मिला था खुदाई के दौरान,और देखो आज भगवान हो गया।___Rajdeep Kota




हाल-ए-अमलारा लिए कल मैं अमलदस्तूर भूले जा रहा था।
पता था,
उसे भूलना मेरा एक कुसूर होगा,
लेकिन यही कुसूर बार बार किए जा रहा था।___Rajdeep kota

अंदाज-ए-मुसिफ लिए हम, कल इकरारनामा लिख रहे थे।
कहा पता था हमे,
जमाने से अनभिज्ञ होके,
मुल्याहिन,सारहिन,महत्वहिन पहलू चुन रहे थे।___Rajdeep Kota

संभल के न चले जब चलना था,
परिणाम क्या हुआ,
हम रूपजाल मैं फंस गए...
आज रूपजाल में फंसे एक असिर है हम...
रूपजाल मैं फंसे असीर,
अब आब-ए-चश्म बहाने से क्या फ़ायदा..___Rajdeep kota



हर फ़रतुत मुर्ख नहीं होता, बेवकूफ़ नहीं होता, नीरर्थक नहीं होता, निकम्मा नहीं होता...
होता है तो सिर्फ बाहरी तरफ़ से बुड्ढा, लेकिन वास्तविकता में बुड्ढा भी नहीं होता...__Rajdeep kota

सब मेरे भीतर ही था,
मैं तो खामखां बाहर ढूंढे जा रहा था।
मेरा आशियाना..२
खो गया था कहीं तन्हाईयो बीच,
मैं तो उसे हसीन पल मैं ढूंढे जा रहा था।___Rajdeep kota

तेरे जिस्म ओर मेरी रूह के बीच,
बीते दिनों संधि हुई थी।
बेशक संधि हुई ही थी,
लेकिन आज पता चला कि दुरभीसंधि हुई थी।
संधि तो हुई ही थी...___Rajdeep kota

मेरे भीतर बीते कुछ दिनों से कोई भाव डेरा डाले रहता था...
बारिश के दिन क्या बीते...
वे तो लुप्त हो गया...____Rajdeep Kota



इस बार वजूद भी कुछ ओर था...
ओर इरादे भी कुछ ओर थे...
लेकिन प्रतिक्रिया वोही हुई...
जो पहले हुई थी...____Rajdeep Kota

आज कल सब हमे अफसानानविस कहने लगे है...
एक विस्मयकारी बात है...
अफसाना लिखते है, इसलिए अफसानानविस बना दिया...
हम तो बस जज़्बात की दुनियां में सहज़ से
लुप्त होके,कुछ चुनिंदा अल्फाजों को चुन के,काग़ज़ पे आवास दे देते है...
इसमें अफसानानविस कहा हो गए...?
____Rajdeep kota

नियाज़ी के यु बेवजह चले जाने का गम नहीं है हमे...
गम इस बात का है कि,
अतीत मैं, अल्फ़ाज़ उसने नियति के पेड़ से चुन चुन के अभिव्यक्त कीये थे...
ओर हमने ही उसे,
अनुरक्तता से सजी पलको पे बिठा के रखा था उस दिन...
फिर भी चला गया...
गम इस बात का है..._____Rajdeep Kota



वो अफ़ताब आसमान में सदेय अजहर रहेगा।
लफ़्ज़-ए-इश्क़ अज़र अमर रहेगा।
मुहब्बत को हादसा समझो या समझो
कुछ ओर, ये होता इधर उधर रहेगा।___Rajdeep Kota



जिसे न था अज़ीज़ मुझसे, उसके पीछे भागा चला गया।
वो एक दलदल था, मैं तो उसमें ही खुपता चला गया।___Rajdeep Kota



वो एक अजनबी था तब तक सही था,
पहचान ही लंबे हिज्र की वज़ह बनी।
__Rajdeep Kota



बुतखाने की चोकट तक गया, फ़िर वापिस आ गया।
मेरे माजी अब तो कोई मर्म बतला ही दे,ले मैं आ गया।____Rajdeep Kota




एक रोज़ तेरी यादों ने भरे शब मैं मेरे भीतर जगह खोजनी चाही।
मिलते ही उनसे मैं सराबोर हो गया।___Rajdeep kota




हर बदलाव अच्छे नहीं होते,
कुछ बदलाव दम निकाल देते हैं।___ Rajdeep kota



तेरे ज़िक्र से शुरू मेरे ज़िंदगी का फ़साना
तेरे ज़िक्र पे ही ख़त्म होगा।___Rajdeep Kota




आज किसी और का जमाना है कल मेरा होगा
फ़िर तो यह आफताब, यह चांद ,यह तारे
सब कुछ मेरा होगा।___Rajdeep kota




ख़्वाब-ए-मुसलसल शब भर जारी रहा।
तेरा ख़्वाब मैं आना जब तक जारी रहा।_____Rajdeep kota




रोज़ की तरह वो मिलने नहीं आई।
लेकिन उसकी यादें मिलने चली आई।___Rajdeep Kota





आज मेरी ख़ामोशी का सबब पता चला।
वो कई दिनों से मुझसे दूर है।
___Rajdeep Kota



कोई ऐसा इज़ाज हो कि, मैं आफ़ताब हो जाऊं।
इंतिख़ाब तेरे हाथों हो तो बता दे, मैं फूल हो जाऊं।___Rajdeep Kota





वो एक जमीं था, मैं आसमान हो गया।
वो एक जूठ था, में ईमान हो गया।___Rajdeep Kota



आब-ए-चश्म, आब-ए-तल्ख़ न हो जाएं कहीं।
मेरा चश्म-ओ-चिराग़, धूमिल न हो जाएं कहीं।___Rajdeep Kota





मेरे हिस्से के कुछ दिए उन्हें देकर आया हूं।
मेरे दुश्मनों की नींद हराम करके आया हूं।

सुना है तेरी सांसो जहां बड़ा वीरान पड़ा है सदियों से,
फ़िक्र मत कर,मेरे नाम के कुछ पौधे बुनकर आया हूं।

तेरी आंखों को जिस जिस दिन रुलाया है मैंने
उस उस दिन में ही आंसू बन बाहर आया हूं।

तेरे जिस्म के पत्थर इर्द गिर्द उखड़े पड़े है,
में उसकी मरम्मत करने आया हूं।

ओर नए चांद उगाने होंगे हमें "राज़"
अंधेरे ने मुझसे कहा था,में इस जहां पे हुकूमत करने आया हूं।_rajdeep Kota