ईमान सरीखा पत्थर ढूंढने चला था, इस जहां में।
ऐसा कोई पत्थर ही नहीं था जिसे ढूंढ़ता था, एक दिन इस जहां में।
शिष्टता है सदाचार है ईमान है तुझे परखना आता हो
तो ठीक, वरना बद्दियो का ढेर भी लगा है इस जहां में।
कुछ जुड़ा जुड़ा सा पड़ा है इर्द गिर्द
तो कुछ बिखरा बिखरा भी पड़ा है इस जहां में।
कुछ सहमा सहमा सा चल रहा तो
कुछ तेजियो की उचाई छू रहा है इस जहां में
टूटा हुआ दिल लिए दरबदर फिरते है,
कई आशिक़, श्याम सलोने तेरे इस जहां में।
कहीं अंधेरों की बोछारे गिर रही है तो
कहीं धूप तेज़ी से बढ़ रही है इस जहां में।
कुछ शरीफ़ है जिन्हें शराफ़त का रंग लगा है
बेईमानों की पंक्तियां भी कम नहीं है इस जहां मै।
किस किस की इबादत होगी मुझसे,
भगवानो का पूरा ढेर लगा है इस दुनियां मै।
शौर्य था, ख़ुमारी भी थी,थी भलमनसाही मगर
इंसानों का सौदा होता था कभी इस दुनियां में।
कपड़ों की चंपल की पैसों की अतिरिक्ती
है,लेकिन नंगे,निर्धन कई घूमते है इस दुनियां मै।
कोई इन पत्तो पे लिख रहा है मुझे...
क्या में इतना नाज़ुक हूं कि,
लिखाओसा जा रहा हूं इन पत्तो पे... Rajdeep kota
मेरे हाथों मैं आज वोही पुराने ज़ख़्म ताज़ियाना हो गए।
पर अफ़सोस, मरहम लगाने वाला आज नहीं हैं।__ Rajdeep Kota
आज छत से चांद फ़िका फ़ीका दिख रहा था।
लेकिन तू भी तो छत पे नहीं दिख रहा था।
कितना मूर्ख था में, मुझे उस पत्थर में
कल परवरदिगार दिख रहा था।
तेरे गुस्से भरे लहजे में भी, मुझे
तेरा प्यार उभलता हुआ दिख रहा था।
रईसो की दावते लगी थी,ओर कोई
भूखा बच्चा एक रोटी को तरसता दिख रहा था।
इन नदियों मैं, इन गलियों मैं, इन पेड़ों पे कभी
बच्चों का बचपन गुज़रता हुआ दिख रहा था।
कमबख्त उसे भले ही कहे पूरी दुनियां कुछ फर्क
नहीं पड़ता,मुझे तो उसमे मेरा प्यार दिख रहा था।
बेवजह मार दिया उसे "राज़",उन सियासतवालो ने,
उन्हें तो उसमे सिर्फ़ पैसा ही दिख रहा था।____Rajdeep Kota