gazal Sher - 3 in Hindi Poems by Kota Rajdeep books and stories PDF | ग़ज़ल, शेर - 3

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ग़ज़ल, शेर - 3

मिले तो होगी फ़िर वोही बात जुदाई कि
इससे अच्छा हैं ये दिन ऐसे ही बसर होने दें।___Rajdeep Kota


देर तक रात में करवटें बदलना याद हैं
हमें अब तक वो वाकियात याद हैं।___Rajdeep Kota


देर तक रात में करवटें बदलना याद हैं
हमें अब तक वो वाकियात याद हैं।___Rajdeep Kota


अब वोही पुराने ज़ख्म ताजियाना क्यों करें।
इश्क़ के दरख़्त पे नया आशियाना क्यों करें।___Rajdeep Kota



जब ये लालिमा कालिमा मैं तब्दील हो जाएं।
ऐसा न हो की फ़िर मिलना मुश्किल हो जाएं।___Rajdeep Kota



अब हमने भी गवाई है एक ज़िन्दगी इंतज़ार में किसि के
यारों हमारी भी कोई खबर लो।___Rajdeep Kota



कुछ भी हो जाएं
मुंह मत फेरना ईमान से
निवाला ठुकरा ना मत
मिलता हो जो एहसान से
आडंबरों के बादल छाए है चारो और
ख़ुद को हर कोई बड़ा बता रहा है भगवान से
तुम मिलो न मिलों वो एक ओर बात है
पर मेरे खत पढ़ लेना इतमीनान से
यारों डर उस मालिक का,उस खालिद रखो
खामखां डरते क्यों हो इन हैवान से
मेरा बाप कहो या तुम कहो उसे मेरी मा
बड़ा कोई नहीं है मेरे लिए हिन्दुस्तान से
ख़ुद को खुशकिस्मत समझूं जो मयस्सर हुई ये ज़मीं
अपार मुहम्मत करता हूं जी ओर जान से।
कोशिशें भले ही करें हमें मिटाने की फरेब
तिरंगा लहरा है ओर सदेय लेहरेगा सान से
उल्फत को पहचानो, की क्या होती हैं
मिटाने आए तो ख़ाक हो जाओगे कहता हूं मान से
आज़ाद था इसलिए छोड़ के चला गया
पर मुझे जलन क्यों होती है उस इंसान से।___Rajdeep Kota




साहब में भूखा हूं मुझे खाना नहीं
थोड़ा रहम ही मयस्सर करा दो।
दिए की लौ डगमगाने लगी हैं
मेरी दोस्त से मुलाक़ात पलभर करा दो।

वोही आख़िरी जरिया हैं जीने का कोई
उनकी बातों से यादों से मेरा जिहन तरबतर करा दो।___Rajdeep Kota



जरूरत महसूस हुई थी यारों की
पर खड़े हुए है अपने ही पैरों पे।
सबब ख़ुद ही थे ख़ुद की बर्बादी के
तो इल्ज़ाम क्यों लगाएं गैरों पे।__Rajdeep Kota




बस्ती ला रंग आज फीका फीका क्यों हैं
क्या कोई इसे छोड़ कर चला गया।
मेरे कमरे में मचा रहें हैं सौर सन्नाटे
क्या कोई बिस्तर छोड़ कर चला गया।___Rajdeep Kota




साहब एक सूखा पत्ता हूं टेहनी से टूटा
तो ये जमीं संभाल लेगी।
मेरे यारों महफ़िल को अलविदा कहने दो
देर हुए तो मेरी दोस्त घर से निकाल देगी।
दोस्त पैसा ही इल्म पैसा ही ख़ुदा पैसा ही हैं सब कुछ
एक मछली को लुभा ओरो को पकड़ने खुद ही जाल देगी।

फितरत है उसकी आखेट की नहीं देता में उसे कोई आयुध
दू तो अभी लाके हाथ में कोई पशु की खाल देगी।
जानी पहचानी सौदागर थी वो इश्क़ की में भी गया बाज़ार सोच के की मुझे भी कुछ माल देगी।___Rajdeep Kota




मयस्सर न हुए फ़रिश्ते काली काली नींद में।
आना जाना था उसका काली काली नींद में।___Rajdeep Kota



वो प्यार के नाम पर भर ज़िन्दगी इम्तिहान
लेता रहा।
अभी इम्तिहान ख़त्म होगा यही सोच में ज़िंदगी
लुटाता रहा।___Rajdeep Kota




मैं रहा उम्र भर इंतज़ार मै
वो अपने रकीब के साथ था।___Rajdeep Kota



हर दिन मुझे सिर्फ़ तुम्हारा इंतज़ार करना था।
दूर दूर तक वस्ल का नाम ओ निशान नहीं था।___Rajdeep Kota



सोचता हूं तुझसे पल भर बेवफ़ाई कर लूं
दिल के नाम पर थोड़ी रुसवाई कर लूं
गालिबन सबकी मुहब्बत मैं दरार पड़ती देखी हैं
मुनासिब हो तो में अभी से थोड़ी सफ़ाई कर लूं।____Rajdeep Kota



मिट जाते प्रेम के तंतु उम्र बसर होने से
भला इश्क़ को सही उम्र की जरूरत ही क्या।___Rajdeep kota



जाने वाले गए थे आने का वादा किए।
भरोसा कर भी लिया बोहोत ज्यादा किए___Rajdeep Kota



बेहते वक्त ने ज़रा खिसक के इशारा
कर दिया
अब संभल जा।
जिसको हमने ही घर ख़रीद के दिया वो
अब हमीं को कहता है
घर से निकल जा।___Rajdeep Kota




रहा था मका रहने एक पुराना
बस्ती वालो ने ये भी गिरा दिया।
कसूरवार सा काम पहले उसने
ख़ुद किया ओर नाम मिरा दिया।___Rajdeep Kota



ख़ामोशी भी ख़ामोश रहती है आज मेरी बस्ती मैं
नहीं समझ पा रहा हूं मै, की वो आखि़र था कौन।___Rajdeep Kota


रास्तों का ओर क्या कहूं
कहीं तो पूरे होते होंगे।
मुझसे बिछड़ ने वाले
क्या रात को ठीक से सोते होंगे।__Rajdeep Kota




बेकरार आज कल हमीं नहीं रहते दोस्त
ये चांद तारे भी सुबह तक रात जागते हैं।__Rajdeep Kota



मैं एक चराग था
लोगो ने मुझे आफताब बना दिया।
सांझ संवर के महफ़िल में क्या गया
लोगो ने मुझे महताब बना दिया।___Rajdeep Kota



मोहब्बत का नाम सुनते ही
अब जलन होने लगती हैं।
क्या इतना कुछ गवा बैठा हूं मैं।___Rajdeep Kota